पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जन्मशती मना रहा है. ये गणतंत्र दिवस तक मनाया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर उनकी होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया. यहां पर स्थायी प्रतिमा एक साल के भीतर लगाई जाएगी. जिस समय पूरा देश नेताजी को याद कर रहा है, उसमें ये सवाल उठ सकता है कि उन्हें अब तक देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से क्यों नहीं नवाजा गया है. क्या पहले की सरकारों ने इसके लिए कोई पहल की थी.
पहली बार 2 जनवरी 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने देश के सर्वोच्च सम्मान (Highest Civilian Award) भारत रत्न देने की परंपरा शुरू की थी. पहले पहल ये सम्मान साहित्य, कला, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र में किसी शख्सियत के उसके विशिष्ट योगदान के लिए दिये जाते थे. बाद में इसका दायरा बढ़ाकर किसी भी क्षेत्र में देशसेवा में दिए योगदान की वजह से दिया जाने लगा.
यह सम्मान भारत के किसी भी नागरिक को दिया जा सकता है, चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, व्यवसाय या लिंग से संबंध रखता हो. 1954 में सबसे पहले ये सम्मान भारत के इकलौते गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक सीवी रमन को मिला.
इसके अगले साल 1955 में स्वतंत्रता सेनानी भगवान दास, सर विश्वेश्वरैया और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया. इसके बाद के वर्षों में स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत, धोंडो केशव, बीसी रॉय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे कई गणमान्य लोगों को दिया गया. भारत रत्न सम्मान देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और मोरारजी देसाई जैसी महान शख्सियतों को भी दिया जा चुका है.
जब सुभाषचंद्र बोस को दिया जाने वाला था भारत रत्न
1991 में भारत सरकार ने सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न देने की तैयारी की थी. हालांकि सुभाषचंद्र बोस के परिवार ने इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था. सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न सम्मान देने की भारत सरकार की योजना के बारे में बहुत बाद में पता चला. नेताजी से संबंधित कुछ फाइलों के सरकार द्वारा डिक्लासीफाई करने के बाद जानकारी मिली कि 1991 में पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने सुभाषचंद्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न देने का फैसला किया था.
इस बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 10 अक्टूबर 1991 को राष्ट्रपति आर वेंकटरमन को एक खत लिखा था. राव ने लिखा था, ‘भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस के देश के लिए दिए अमूल्य योगदान और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का सम्मान करते हुए उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का प्रस्ताव करती है’
भारत सरकार ने इसके लिए खास आयोजन करने का सुझाव दिया था. इसके बाद नरसिम्हा राव ने राष्ट्रपति वेंकटरमन को एक और खत लिखा. उसमें कहा गया था कि अच्छा होगा अगर नेताजी को भारत रत्न देने का ऐलान 23 जनवरी को किया जाए. इस दिन सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन भी है. नरसिम्हा राव ने लिखा था कि मेरा दफ्तर इस बारे में निरंतर आपसे संपर्क स्थापित करता रहेगा.
जब सुभाषचंद्र बोस की बेटी ने भारत रत्न ग्रहण करने से इनकार कर दिया
पीवी नरसिम्हा राव की सरकार सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न दिए जाने की तैयारी कर चुकी थी. 22 जनवरी 1992 को राष्ट्रपति भवन ने सुभाषचंद्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने का ऐलान कर दिया. लेकिन सुभाषचंद्र बोस की बेटी अनिता बोस ने इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया. नेताजी के परिवार का कहना था- ‘सम्मान को ग्रहण करना नेताजी की याद को कम आंकना होगा’. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को इस बारे में एक इंटरनल नोट के जरिए सूचित कर दिया गया.
अब सवाल उठा कि भारत रत्न का क्या किया जाए
सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न देने का ऐलान सरकार कर चुकी थी. सवाल उठा कि अब भारत रत्न का क्या किया जाए? देश के गृहमंत्री ने इसी सवाल को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात की. राष्ट्रपति का कहना था कि भारत रत्न वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. इस संबंध में डिक्लासीफाइड फाइल के जरिए ही पता चलता है कि उस वक्त गृहमंत्री ने कहा, ‘मैंने इस बारे में आज राष्ट्रपति से मुलाकात की. उनका कहना है कि भारत रत्न वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. इसे अर्काइव में भी नहीं भेजा जा सकता. गृहमंत्रालय इसे अपने पास रख सकता है. नाम पुकारते वक्त इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाएगी. अब कुछ करने की जरूरत नहीं है. ’
2014 में फिर उठी थी सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न देने की मांग
1992 के बाद 2014 में एक बार फिर सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न देने की मांग उठी. लेकिन नेताजी के परिवार ने फिर से इस सम्मान को लेने से मना कर दिया. नेताजी के परिवार का कहना था कि भारत रत्न देने से अच्छा है कि सरकार 1945 में हुए विमान हादसे और इसके बाद नेताजी के गायब होने के रहस्य से पर्दा उठाए.
2014 में नेताजी के पोते चंद्र कुमार बोस ने कहा था, ‘नेताजी 1945 से गायब हैं. अगर आप उन्हें मरणोपरांत सम्मान देते हो तो आपको बताना होगा कि उनका निधन कब हुआ. लेकिन इसका सबूत कहां है?’ चंद्रकुमार बोस ने उस वक्त कहा था कि उन्होंने नेताजी के परिवार से जुड़े करीब 60 सदस्यों से बात की है. कोई भी सदस्य भारत रत्न सम्मान दिए जाने को लेकर उत्साहित नहीं है. उन्होंने कहा था कि हममें से कोई भी ये नहीं मानता कि सुभाषचंद्र बोस के लिए ये न्यायोचित सम्मान है. हममें से कोई नहीं इसे स्वीकार करेगा.
नेताजी के परिवार ने उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी से ओपन प्लेटफॉर्म पर आकर नेताजी के गायब होने के रहस्य का पता लगाने के लिए एक कमेटी बनाने की मांग की थी. नेताजी के एक और पोते सुगतो बोस ने भी सुभाषचंद्र बोस को भारत रत्न दिए जाने पर आपत्ति जताई थी. सुगतो बोस ने कहा था,‘नेताजी को 43 लोगों के बाद भारत रत्न कैसे मिल सकता है? उन्हें राजीव गांधी के बाद भारत रत्न कैसे दिया जा सकता है? नेताजी का कद भारत रत्न सम्मान से भी बड़ा है.’
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Tags: Bharat ratna, Netaji Subhash Chandra Bose, Subhash Chandra Bose Birthday
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