जब पहली बार सामने आया था पाकिस्तान का आइडिया, इसके पीछे कौन शख्स था?

पाकिस्तान मूवमेंट के जनक कहे जाते रहे चौधरी रहमत अली.
भारत के विभाजन (Partition of India) की बात तब दबे सुरों में की जाती थी. फिर यह हुआ कि आज ही के दिन 88 साल पहले पहली बार ‘पाकिस्तान’ नाम लोगों के बीच आया, जो उस कल्पना के लिए चुना गया था जिसमें भारत के मुस्लिमों के लिए अलग मुल्क (Muslim Nation) था.
- News18Hindi
- Last Updated: January 28, 2021, 8:12 AM IST
चौधरी रहमत अली (Chaudhary Rahmat Ali) का नाम पाकिस्तान में जिस तरह याद किया जाता है, उससे ज़ाहिर होता है कि ‘पाकिस्तान आंदोलन के जनक’ को भुला ही दिया गया. अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति (Divide & Rule) के चलते धर्म के आधार पर एक अलग देश बनने की कवायद के बीच सबसे पहले मुस्लिम देश के लिए ‘पाकिस्तान’ नाम का आइडिया देने वाले रहमत अली को पाकिस्तानी राष्ट्रवादी (Muslim Pakistan Nationalist) के तौर पर जाना जाता रहा. यह कहानी तो दिलचस्प है ही कि पाकिस्तान नाम का आइडिया कहां से और कैसे आया, यह भी कम गौरतलब नहीं है कि पाकिस्तान के पुरज़ोर पैरोकार रहे अली को पाकिस्तान ने ही ठुकरा दिया था.
1933 में जब रहमत अली ने पाकिस्तान का विचार उछाला था, तब मकसद यह था कि लंदन में होने वाले तीसरे गोलमेज सम्मेलन में यह मांग सुनी जाए. लेकिन इसे छात्रों का शिगूफा कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया और किसी नेता ने इसका समर्थन नहीं किया. लेकिन जब 1940 के आसपास मुस्लिम राजनीति चरम पर थी, तब लाहौर के मुस्लिम लीग रिज़ॉल्यूशन में इसे शामिल किया गया और जल्द ही इसे ‘पाकिस्तान रिज़ॉल्यूशन’ का नाम मिल गया.
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कैसे आया पाकिस्तान का आइडिया?28 जनवरी 1933: इस दिन एक परचानुमा प्रकाशन सामने आया, जिसमें लिखा था ‘अभी नहीं तो कभी नहीं..’ यह अस्ल में पाकिस्तान के लिए पहला घोषणा पत्र था. इसे रहमत अली ने तैयार किया था और पहली बार मुस्लिम देश के लिए पाकिस्तान नाम तजवीज़ किया था. पंजाब, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर यानी अफगान क्षेत्र, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान क्षेत्रों के नामों के प्रमुख अक्षरों को जोड़कर ‘पाकिस्तान’ नाम बनाया गया था.

लेकिन यहां दो बातें गौर करने की रहीं. एक तो रहमत अली सिर्फ पाकिसतान की सोच तक नहीं रुके बल्कि उनके ज़ेहन में और भी कई तरह की योजनाएं आकार ले रही थीं. और दूसरे, इस नाम का आइडिया रहमत अली के ज़ेहन में आया कैसे?
क्या सच में रहमत अली का ही था आइडिया?
ऐसा भी माना जाता रहा कि पाकिस्तान का आइडिया मशहूर शायर और राजनीतिक मोहम्मद इकबाल ने दिया था. लेकिन, यह बात पूरी तरह न तो सच है और न ही झूठ. अस्ल में रहमत अली 1930 में इंग्लैंड में इकबाल से मिले थे. तब इकबाल इलाहाबाद के सम्मेलन में अलग मुस्लिम देश की हिमायत कर चुके थे. इस विषय में अली ने उनसे बात की तो चर्चा में पाकिस्तान नाम का आइडिया सामने आया था, लेकिन तब तक इसे प्रचारित नहीं किया गया था.
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देखा जाए तो इस नाम के आइडिया के पीछे इकबाल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. पंडित जवाहरलाल नेहरू और एडवर्ड थॉम्प्सन ने तो यही लिखा कि पाकिस्तान की मांग के पीछे इकबाल ही रहे. हालांकि वो इसके खतरों को भी भांप चुके थे. लेकिन, यह भी सच है कि पुरज़ोर ढंग से, सार्वजनिक तौर पर पहली बार ऐलान के सुर में अली ने ही इस नाम को उछाला और पाकिस्तान मूवमेंट खड़ा किया.
रहमत अली के दिमाग में कौंधे थे कई नाम
सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि और भी कई हिस्सों के लिए नाम तजवीज़ करने में भी रहमत अली पीछे नहीं थे. बंगाल के मुस्लिम हिस्से के लिए उन्होंने ‘बंगिस्तान’ नाम सुझाया था. इसी तरह, दक्षिण में डेक्कन क्षेत्र के मुस्लिमों के हिस्से के लिए ‘उस्मानिस्तान’ नाम वो चाहते थे. मुस्लिमों के लिए हिंदुओं से अलग हिस्सा या मुल्क चाहते रहे अली ने दक्षिण एशिया के लिए भी ‘दीनिया’ नाम सोचा था.

पाकिस्तान के आइडिया के पीछे कई कहानियां
अली को यह आइडिया कब सूझा और उन्होंने इसे कब दर्ज किया, इसे लेकर कई थ्योरीज़ बताई जाती हैं. कहा जाता है कि 1932 में कैम्ब्रिज के मकान में अली ने सबसे पहली बार ‘पाकिस्तान’ शब्द लिखा था. अली के खास दोस्त रहे अब्दुल करीम जब्बार ने बताया था कि थेम्स नदी के किनारे पीर एहसान और ख्वाजा अब्दुल रहीम के साथ घूमते हुए अली ने 1932 में यह नाम सोचा था. यही नहीं, अली की सेक्रेट्री रहीं मिस फ्रॉस्ट ने कहा था कि अली को इस नाम का आइडिया लंदन की एक बस में आया था.
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बहरहाल, यह आइडिया गूंजा और मोहम्मद अली जिन्ना का समर्थन मिलने के बाद इसे न केवल शोहरत बल्कि सूरत मिली. लेकिन इस आइडिया के पीछे अच्छा खासा मूवमेंट खड़ा करने वाले रहमत अली को रुसवाई ही हाथ लगी. 1947 में जब पाकिस्तान बन गया, तो कहा जाता है कि बंटवारे के खून खराबे को लेकर और पाकिस्तान के हिस्से में कम सीमा आने को लेकर अली काफी दुखी और नाराज़ रहे.
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हालांकि जब रहमत अली इंग्लैंड से पाकिस्तान लौटे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने न केवल अली की तमाम संपत्तियां ज़ब्त करवाईं बल्कि वो हालात बना दिए कि अली को खाली हाथ 1948 में ही इंग्लैंड लौटना पड़ा. इसकी वजह यही रही कि अली छोटे से पाकिस्तान पर जिन्ना के सहमत होने से खुश नहीं थे और विरोध के तेवरों में जिन्ना को ‘गद्दारे-आज़म’ कह चुके थे.

पाकिस्तान के नाम पर तूफान खड़ा करने वाले अली ने अकेले और गुमनामी में 1951 में कैम्ब्रिज में दम तोड़ा था. उनके आखिरी दो-तीन सालों के लिए ग़ालिब का यही शेर चस्पा रहा कि ‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.’
1933 में जब रहमत अली ने पाकिस्तान का विचार उछाला था, तब मकसद यह था कि लंदन में होने वाले तीसरे गोलमेज सम्मेलन में यह मांग सुनी जाए. लेकिन इसे छात्रों का शिगूफा कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया और किसी नेता ने इसका समर्थन नहीं किया. लेकिन जब 1940 के आसपास मुस्लिम राजनीति चरम पर थी, तब लाहौर के मुस्लिम लीग रिज़ॉल्यूशन में इसे शामिल किया गया और जल्द ही इसे ‘पाकिस्तान रिज़ॉल्यूशन’ का नाम मिल गया.
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कैसे आया पाकिस्तान का आइडिया?28 जनवरी 1933: इस दिन एक परचानुमा प्रकाशन सामने आया, जिसमें लिखा था ‘अभी नहीं तो कभी नहीं..’ यह अस्ल में पाकिस्तान के लिए पहला घोषणा पत्र था. इसे रहमत अली ने तैयार किया था और पहली बार मुस्लिम देश के लिए पाकिस्तान नाम तजवीज़ किया था. पंजाब, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर यानी अफगान क्षेत्र, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान क्षेत्रों के नामों के प्रमुख अक्षरों को जोड़कर ‘पाकिस्तान’ नाम बनाया गया था.

पांच खास इलाकों के नामों को जोड़कर रखा गया था पाकिस्तान नाम.
लेकिन यहां दो बातें गौर करने की रहीं. एक तो रहमत अली सिर्फ पाकिसतान की सोच तक नहीं रुके बल्कि उनके ज़ेहन में और भी कई तरह की योजनाएं आकार ले रही थीं. और दूसरे, इस नाम का आइडिया रहमत अली के ज़ेहन में आया कैसे?
क्या सच में रहमत अली का ही था आइडिया?
ऐसा भी माना जाता रहा कि पाकिस्तान का आइडिया मशहूर शायर और राजनीतिक मोहम्मद इकबाल ने दिया था. लेकिन, यह बात पूरी तरह न तो सच है और न ही झूठ. अस्ल में रहमत अली 1930 में इंग्लैंड में इकबाल से मिले थे. तब इकबाल इलाहाबाद के सम्मेलन में अलग मुस्लिम देश की हिमायत कर चुके थे. इस विषय में अली ने उनसे बात की तो चर्चा में पाकिस्तान नाम का आइडिया सामने आया था, लेकिन तब तक इसे प्रचारित नहीं किया गया था.
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देखा जाए तो इस नाम के आइडिया के पीछे इकबाल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. पंडित जवाहरलाल नेहरू और एडवर्ड थॉम्प्सन ने तो यही लिखा कि पाकिस्तान की मांग के पीछे इकबाल ही रहे. हालांकि वो इसके खतरों को भी भांप चुके थे. लेकिन, यह भी सच है कि पुरज़ोर ढंग से, सार्वजनिक तौर पर पहली बार ऐलान के सुर में अली ने ही इस नाम को उछाला और पाकिस्तान मूवमेंट खड़ा किया.
रहमत अली के दिमाग में कौंधे थे कई नाम
सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि और भी कई हिस्सों के लिए नाम तजवीज़ करने में भी रहमत अली पीछे नहीं थे. बंगाल के मुस्लिम हिस्से के लिए उन्होंने ‘बंगिस्तान’ नाम सुझाया था. इसी तरह, दक्षिण में डेक्कन क्षेत्र के मुस्लिमों के हिस्से के लिए ‘उस्मानिस्तान’ नाम वो चाहते थे. मुस्लिमों के लिए हिंदुओं से अलग हिस्सा या मुल्क चाहते रहे अली ने दक्षिण एशिया के लिए भी ‘दीनिया’ नाम सोचा था.

पाकिस्तान बनाए जाने के समर्थक रहे शायर मोहम्मद इकबाल
पाकिस्तान के आइडिया के पीछे कई कहानियां
अली को यह आइडिया कब सूझा और उन्होंने इसे कब दर्ज किया, इसे लेकर कई थ्योरीज़ बताई जाती हैं. कहा जाता है कि 1932 में कैम्ब्रिज के मकान में अली ने सबसे पहली बार ‘पाकिस्तान’ शब्द लिखा था. अली के खास दोस्त रहे अब्दुल करीम जब्बार ने बताया था कि थेम्स नदी के किनारे पीर एहसान और ख्वाजा अब्दुल रहीम के साथ घूमते हुए अली ने 1932 में यह नाम सोचा था. यही नहीं, अली की सेक्रेट्री रहीं मिस फ्रॉस्ट ने कहा था कि अली को इस नाम का आइडिया लंदन की एक बस में आया था.
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बहरहाल, यह आइडिया गूंजा और मोहम्मद अली जिन्ना का समर्थन मिलने के बाद इसे न केवल शोहरत बल्कि सूरत मिली. लेकिन इस आइडिया के पीछे अच्छा खासा मूवमेंट खड़ा करने वाले रहमत अली को रुसवाई ही हाथ लगी. 1947 में जब पाकिस्तान बन गया, तो कहा जाता है कि बंटवारे के खून खराबे को लेकर और पाकिस्तान के हिस्से में कम सीमा आने को लेकर अली काफी दुखी और नाराज़ रहे.
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हालांकि जब रहमत अली इंग्लैंड से पाकिस्तान लौटे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने न केवल अली की तमाम संपत्तियां ज़ब्त करवाईं बल्कि वो हालात बना दिए कि अली को खाली हाथ 1948 में ही इंग्लैंड लौटना पड़ा. इसकी वजह यही रही कि अली छोटे से पाकिस्तान पर जिन्ना के सहमत होने से खुश नहीं थे और विरोध के तेवरों में जिन्ना को ‘गद्दारे-आज़म’ कह चुके थे.

पाकिस्तान के निर्माता कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना
पाकिस्तान के नाम पर तूफान खड़ा करने वाले अली ने अकेले और गुमनामी में 1951 में कैम्ब्रिज में दम तोड़ा था. उनके आखिरी दो-तीन सालों के लिए ग़ालिब का यही शेर चस्पा रहा कि ‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.’