प्रतीकात्मक तस्वीर
1996 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में इरोड के पास मोडाकुरुची सीट पर बहुत से प्रत्याशी चुनाव में खड़े हो गए. ये संख्या इतनी बड़ी थी कि निर्वाचन आयोग को ये चुनाव कराने के लिए बैलेट बॉक्स के बजाए बैलेट बुक छपवानी पड़ी थी. इस सीट से उस साल 1,033 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. इसके बावजूद निर्वाचन आयोग ने पूरी मेहनत से अपनी जिम्मेदारी निभाई थी. हालांकि इस वाकये के चलते पहले निर्वाचन आयोग को चुनावों को एक महीने के लिए टालना पड़ा और बाद में निर्वाचन आयोग ने चुनाव लड़ने के लिए लगने वाली जमानत राशि बढ़ा दी.
करीब 20 साल और चार आम चुनावों पहले, 1,033 लोगों ने एक ही सीट से चुनाव लड़ने के लिए पर्चे दाखिल कर दिए थे. उनका मकसद था कि वे ऐसा करके निर्वाचन आयोग और सरकार का ध्यान अपनी ओर खींच सकेंगे. इतने पर्चे दाखिल हो जाने के बाद भी भारतीय निर्वाचन आयोग ने बिना इस बात से डरे कि ये चुनाव कैसे होंगे, इस चुनाव को सफलता पूर्वक करवाकर अपनी शक्ति दिखा दी.
यह रिकॉर्ड फेडरेशन ऑफ फार्मर्स एसोशिएसन नाम की संस्था के एक विरोध के चलते बन गया था. इसके सदस्यों ने तय किया था कि जितने ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार हो सकेंगे, उन्हें खड़ा किया जाएगा ताकि वे निर्वाचन आयोग और सरकार का ध्यान अपनी कृषि और चुनाव सुधार से संबंधित मांगों की ओर खींच सकें.
इस फेडरेशन के ऐसा आदेश देते ही इसके सदस्यों (जो ज्यादातर किसान थे) ने चुनावों में भाग लेने के लिए पर्चे भरना शुरू कर दिया. इस कृषि प्रधान इलाके में करीब 1000 किसानों ने नेताओं के साथ पर्चे दाखिल कर दिए. उस वक्त गैर आरक्षित सीटों पर 250 रुपये और SC/ST वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर 125 रुपये की जमानत राशि देनी पड़ती थी.
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