पिछले कई दिनों से अमेरिका (US) और रूस (Russia) के बीच यूक्रेन (Ukraine) को लेकर तनाव बढ़ता ही जा रहा है. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से रूस को लगातार चेतावनियां मिल रही है. वहीं रूस और अमेरिका के बीच इस संकट को लेकर बैठकों का दौर भी जारी है जहां पहली बैठक में दोनों केवल बातचीत जारी रखने का फैसला कर सके थे. पिछले डेढ़ महीने से जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं उससे ऐसा लग रहा है कि दुनिया शीत युद्ध के दौर में फिर से चली गई है. क्या वाकई ऐसा हो रहा है इस पर भी विश्लेषण होने लगा है.
यूक्रेन का पश्चिम की ओर झुकाव
इस पूरे संकट की शुरुआत रूस के उस आरोप से शुरू हुई जिसके मुताबिक यूक्रेन यूरोपीय संस्थानों के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है और उसे नाटो का सदस्य नहीं बनना चाहिए. इसके बाद यूक्रेन सीमा पर रूसी सेनाओं की संख्या बहुत तेजी से बढ़ने लगे जिसके बाद पश्चिमी देशों की ओर से भी तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं.
शीत युद्ध जैसे हालात?
यह बयानबाजी कुछ वैसी ही है जैसी शीत युद्ध के समय देखने को मिला करती थी. पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. बाइडेन ने पश्चिम की ओर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी भी दी. ऐसा ही नाटो सदस्यों और यूरोपीय देशों ने भी चेताया.
सीमा पर सैन्य जमावड़ा
यूक्रेन के पास रूसी सीमा और क्रीमिया में भारी संख्या में सेना का इस तरह का जमावड़ा हुआ जैसा कि युद्ध के हालात में देखने को मिला जिसे सैटेलाइट तस्वीरों के साथ पहचाना गया. अमेरिका के मुताबिक रूस ने अपनी पूर्वी सीमा पर एक लाख सैनिकों को तैनात किया है. यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा रह चुका है. यहां की भाषा तो रूसी है ही, सांस्कृतिक रूप से भी दोनों देश एक से हैं. यह यूरोप का रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है.
नाटो की पहुंच
यूक्रेन के पड़ोसी देश नाटो के सदस्य हैं जो शीत युद्ध युग में सोवियत संघ के विरोध में बनाया गया सैन्य संगठन है. शीत युद्ध खत्म होने के बाद भी नाटो की सक्रियता कायम है. जिसे रूस अपने लिए खतरा मानता है. यूक्रेन की सीमा से लगे पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया, हंगरी जैसे देश नाटो के सदस्य बन चुके हैं. ऐसे में रूस की सीमा से लगे यूक्रेन का नाटो में शामिल होने रूस के लिए हमेशा ही खतरा बना रहा.
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यूक्रेन का नाटो की ओर झुकाव
साल 2014 के बाद रूस के क्रीमिया के कब्जे के बाद से यूक्रेन के नाटों में शामिल होने की आशंका बहुत बढ़ गई. जब से यूक्रेन ने रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टोर यानुकोविच को सत्ता से हटाया है, तब से रूस ने पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को समर्थन देने शुरू कर दिया जिसके कब्जे में पूर्वी यूक्रेन का हिस्सा है जिसे डोनबास कहते हैं.
रूस की मांगे
रूस हरगिज यह नहीं चाहता का यूक्रेन नाटो का सदस्य बने. इससे अमेरिकी सेनाएं नाटो के नाम पर रूस की सीमा तक आ जाएंगी. अब तो रूस ने सीधे यह मांग रख दी है कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य ना बनने दिया जाए. रूस मांग कर रहा है कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपने सैन्य गतिविधि बंद कर दे. जिसमें पोलैंड और बाल्टिक्स प्रमुख इलाके हैं. उसने गारंटी मांगी की है कि पश्चिम नाटो या अन्य संगठन के जरिए पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा.
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इसमें कोई शक नहीं कि जो हालात है और तनाव के कारण एक दूसरे तरफ से नजर आ रहे हैं वे बिलुकल शीत युद्ध की तरह के हैं. नाटो का कहना है कि यूक्रेन का सदस्य बने या ना बने पूरी तरह से उसी का फैसला होगा. वहीं रूस भी यूक्रेन पर हमला नहीं करना चाहता है, लेकिन वह जरूरी कदम के लिए तैयार रहना चाहता है.
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