यूक्रेन संकट (Ukraine Crisis) की वजह से उसके आसपास सैन्य जमवाड़ा बढ़ने से ना केवल इस पूर्वी यूरोप में बल्कि पूरी दुनिया में चिंता बढ़ने लगी है. अमेरिका (USA) कूटनीतिक प्रयास जारी रखने का इरादा बनाए हुए है, लेकिन इसके साथ ही यूक्रेन की सीमा पर रूसी सैनिकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नाटो (NATO) सैनिकों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है. लेकिन हालिया घटनाओं में जर्मनी (Germany) के रवैये ने नाटो की एकता पर सवाल उठा दिए हैं. ऐसे में इस पूरे संकट और नाटो में जर्मनी की क्या स्थिति और भूमिका है इसका भी अलग से आंकलन होने लगा है.
क्या हुआ था
शुक्रवार को यह बात सामने आई की जर्मनी ने नाटो सहयोगी देश एस्टोनिया को जर्मन मूल के हथियार यूक्रेन को देने से रोक दिया. वहीं इससे पहले जर्मनी के नए नेवी प्रमुख वाइस एडमिरल के एचिम शोनबैच के बयान पर बवाल मच गया जब उन्होंने कहा कि क्रीमिया यूक्रेन को वापस नहीं मिलेगा और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सम्मान के हकदार हैं. इस बयान की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
युद्ध में उपयोग की आशंका
वहीं जर्मनी की पहली महिला विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने खुले तौर पर जाहिर होने दिया कि उनके देश द्वारा नाटो को दिए जा रहे हथियार भविष्य में युद्ध के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं. उन्होंने पिछले सप्ताह कहा कि हमारी सीमित स्थिति जाहिर है और इसकी जड़ें इतिहास में हैं. वहीं जर्मनी अपने कामों से यह भी जाहिर कर चुका है कि उसे रूस का खिलौना बनने में भी खोई रुचि नहीं है.
क्या होगा अगर
एक बड़ा सवाल यही है कि यूक्रेन संकट के मामले में जर्मनी नाटो के सदस्यों का किस हद तक साथ दे सकता है. यदि रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो जर्मनी की स्थिति क्या होगी. अगर रूस पर पश्चिमी देशों ने पाबंदियां लगाई गईं तो जर्मनी उनका कितना और कब तक या किस हद तक सहयोग देगा.
रूस से नजदीकी तो नहीं लेकिन
जर्मनी रूस का समर्थक नहीं हैं यह तो साफ है ही. वॉल स्ट्रीय जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक जर्मन अधिकारियों ने खुले तौर पर तो नहीं, लेकिन कहा है कि वे रूस से जर्मनी तक आने वाली पाइपलाइन नोर्ड स्ट्रीम 2 को भी ताक पर रख सकते हैं. जर्मनी की ओर से इस बारे में कोई औपचारिक या आधिकारिक बयान नहीं आया है या कदम नहीं उठा है.
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जर्मनी में नजरिया थोड़ा अलग
अमेरिका के जर्मन मार्शल फंड के रेजिडेंट फेलो लियाना फिक्स ने फॉरेन पॉलिसी को बताया कि हथियारों को मुहैया करना दूसरे देशों में जहां खतरे को रोकने के लिए एक सुरक्षा के लिए उठाया गया कदम माना जाता है, वहीं जर्मनी के राजनैतिक परिदृश्य में इसे संकट और बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम माना जाता है.
अमेरिका का रुख
जर्मन राजनीति के बारे में कई विशेषज्ञों का मानना है कि अभी जर्मनी में घरेलू राजनीति को 21वी सदी की सच्चाइयां स्वीकार नहीं किया गया है. जर्मनी ने यूक्रेन में एक अस्पताल को वित्तीय सहायता भेजी है. इस मामले में जर्मनी पर कोई प्रतिक्रिया से बचते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री ने यही कहा है कि जर्मनी “ने अपने आशंकाएं साझा की हैं, और हम एकता के साथ इस संकट को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसमें हमें कोई संदेह नहीं है.”
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ऐसा नहीं है कि जर्मनी किसी चरम स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार बनाना चाहेगा. जर्मनी विदेश नीति धीमी है. 2014 में भी रूस के क्रीमिया को हथियाने के बाद जर्मनी ने धीरे धीरे देर से सही लेकिन पाबंदियां लगाई थीं. विशेषज्ञ अभी इस मामले में जर्मनी पर इतनी जल्दी राय कायम नहीं करना चाहते हैं.
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