जानिए क्या है भारतीय मानसून के पूर्वानुमान का ज्वालामुखी विस्फोटों से संबंध

ENSO के कारण होने वाले ज्वालामुखी विस्फोटों (Volcanic Eruption)का भारतीय मानसून से गहरा संबंध है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
भारतीय (Indian) जर्मन (German) वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है कि ज्वालामुखी विस्फोटों (Volcanic Eruptions) से भारतीय मानसून (Indian Monsoon) का सही तरीके से पूर्वानुमान लगाने में मदद मिल सकती है.
- News18Hindi
- Last Updated: November 28, 2020, 6:01 PM IST
भारतीय मानसून (Indian Monsoon) का सटीक पूर्वानुमान (Prediction) लगाना बहुत ही मुश्किल काम है. दशकों से भारतीय और दुनिया के वैज्ञानिक ऐसा मॉडल (Climate Model) बनाने की कोशिश में हैं जिससे मानसून का सही पूर्वानुमान लगाया जा सके लेकिन अभी तक इसमें पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है, लेकिन एक शोध ने इस दिशा में एक अनोखी जानकारी दी है. इस अध्ययन में भारतीय और जर्मनी (Germany) दोनों के जलवायु वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ज्वालामुखी विस्फोट (Voclanic Eruptions) भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाने के लिए अतिरिक्त जानकारी दे सकते हैं.
कई कारकों को किया शामिल
साइंस एडवांस में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले एक हजार सालों की जलवायु मॉडलिंग के आंकड़ों का उपयोग किया. इसमें भारतीय मानसून, ENSO, ज्वालामुखी, प्रशांत महासागर में बदालव के प्रॉक्सी रिकॉर्ड और पिछले 150 सालों के अवलोकित आंकड़ों का उपयोग किया गया. शोधकर्ताओ ने IITM अर्थ सिस्टम मॉडल नाम के पहले भारतीय क्लाइमेट मॉडल पर किए गए प्रयोगों को शामिल किया गया.
यह अतिरिक्त स्रोत क्योंइस अध्ययन में मानसून का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक अतरिक्त स्रोत को रेखांकित करने की जरूरत महसूस हुई क्योंकि मानसून और अल नीनो साउदर्न ऑसिलेशन (ENSO) के बीच का संबंध गहरा हो गया है. इसके अलावा ENSO का पहले से ही भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है.

क्या है ENSO
ENSO एक जलवायु परिघटना है जो हर 2 से 7 सालों के बीच प्रशांत महासागर में होती है जहां कटिबंधीय प्रशांत की समुद्री सतह में असामान्य रूप से गर्मी, जिसे अल नीनो कहा जाता है, और असामान्य रूप से ठंडक, जिसे ला नीनो कहा जाता है, होती हैं. पानी के इस असामान्य रूप से गर्म और ठंडा होने का अगले साल भारत में ताकतवर या कमजोर मानसून आने से संबंध हैं.
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ENSO का भारतीय मानसून पर असर
ENSO का भारतीय मानसून पर गहरा प्रभाव पड़ता है. पिछले 150 सालों में करीब 30 अलनीनो की घटनाएं हो चुकी हैं. जिनमें से 21 का भारत में कमजोर मानसून के साथ संबंध था. लेकिन 1871 में से 22 ला नीना की घटनाओं का केवल 10 का संबंध भारत में तीव्र मानसून से संबंध है.
शोध का विषय है यह संबंध
ENSO और भारतीय मानसून के बीच के संबंध की पहली बार सर गिल्बर्ट वॉकर ने 1920 के दशक में दी थी. और तब स यह गहरे शोध का विषय बना हुआ है. वहीं हाल ही में इस बात पर वैज्ञानिक विवाद छिड़ गया है कि दोनों के बीच का संबंध वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण टूट गया है.

इस संबंध की अहमियत
यह जरूरी था कि इस संबंध का अध्ययन किया जाए जिससे भारतीय मानसून की तीव्रता की संभावना को सही तरीके से समझा जा सके. लेकिन दोनों के बीच संबंध न होने से इसके नतीजे भ्रम पैदा करने वाले हो सकते हैं. भारत और जर्मनी के शोधकर्ताओं ने नई साख्यकीय तकनीक का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया कि क्या वास्तव में दोनों के बीत कोई संबंध है या नहीं.
शोधकर्ताओं ने बताया कि ज्वालामुखी वैसे तो नुकसानदेह होते हैं लेकिन जिन सालों में ज्वालामुखी फूटे हैं उसके अगले साल भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाना आसान हो गया है. उनका कहना है कि ENSO और भारतीय मानसून के बीच क संबंध टूट रहा हो, लेकिन ज्वालामुखी दोनों के बीच के संबंध को स्थापित कर देता है.
कई कारकों को किया शामिल
साइंस एडवांस में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले एक हजार सालों की जलवायु मॉडलिंग के आंकड़ों का उपयोग किया. इसमें भारतीय मानसून, ENSO, ज्वालामुखी, प्रशांत महासागर में बदालव के प्रॉक्सी रिकॉर्ड और पिछले 150 सालों के अवलोकित आंकड़ों का उपयोग किया गया. शोधकर्ताओ ने IITM अर्थ सिस्टम मॉडल नाम के पहले भारतीय क्लाइमेट मॉडल पर किए गए प्रयोगों को शामिल किया गया.
यह अतिरिक्त स्रोत क्योंइस अध्ययन में मानसून का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक अतरिक्त स्रोत को रेखांकित करने की जरूरत महसूस हुई क्योंकि मानसून और अल नीनो साउदर्न ऑसिलेशन (ENSO) के बीच का संबंध गहरा हो गया है. इसके अलावा ENSO का पहले से ही भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है.

भारतीय मानसून (Indian Monsoon) का लंबे समय से अल नीनो (Al Nino) से संबंध रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
क्या है ENSO
ENSO एक जलवायु परिघटना है जो हर 2 से 7 सालों के बीच प्रशांत महासागर में होती है जहां कटिबंधीय प्रशांत की समुद्री सतह में असामान्य रूप से गर्मी, जिसे अल नीनो कहा जाता है, और असामान्य रूप से ठंडक, जिसे ला नीनो कहा जाता है, होती हैं. पानी के इस असामान्य रूप से गर्म और ठंडा होने का अगले साल भारत में ताकतवर या कमजोर मानसून आने से संबंध हैं.
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ENSO का भारतीय मानसून पर असर
ENSO का भारतीय मानसून पर गहरा प्रभाव पड़ता है. पिछले 150 सालों में करीब 30 अलनीनो की घटनाएं हो चुकी हैं. जिनमें से 21 का भारत में कमजोर मानसून के साथ संबंध था. लेकिन 1871 में से 22 ला नीना की घटनाओं का केवल 10 का संबंध भारत में तीव्र मानसून से संबंध है.
शोध का विषय है यह संबंध
ENSO और भारतीय मानसून के बीच के संबंध की पहली बार सर गिल्बर्ट वॉकर ने 1920 के दशक में दी थी. और तब स यह गहरे शोध का विषय बना हुआ है. वहीं हाल ही में इस बात पर वैज्ञानिक विवाद छिड़ गया है कि दोनों के बीच का संबंध वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण टूट गया है.

भारतीय मानूसन (Indian Monsoon) और अलनीनों (Al Nino) के बीच के कुछ अध्ययन बताते हैं कि उनका संबंध अब सीधा नहीं रहा. (प्रतीकात्मक तस्वीर- ANI)
इस संबंध की अहमियत
यह जरूरी था कि इस संबंध का अध्ययन किया जाए जिससे भारतीय मानसून की तीव्रता की संभावना को सही तरीके से समझा जा सके. लेकिन दोनों के बीच संबंध न होने से इसके नतीजे भ्रम पैदा करने वाले हो सकते हैं. भारत और जर्मनी के शोधकर्ताओं ने नई साख्यकीय तकनीक का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया कि क्या वास्तव में दोनों के बीत कोई संबंध है या नहीं.
शोधकर्ताओं ने बताया कि ज्वालामुखी वैसे तो नुकसानदेह होते हैं लेकिन जिन सालों में ज्वालामुखी फूटे हैं उसके अगले साल भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाना आसान हो गया है. उनका कहना है कि ENSO और भारतीय मानसून के बीच क संबंध टूट रहा हो, लेकिन ज्वालामुखी दोनों के बीच के संबंध को स्थापित कर देता है.