जलवायु परिवर्तन एक डराने वाला शब्द है. इसकी वजह से हालात ही ऐसे बन पड़े हैं. पानी का भीषण संकट पैदा हो गया है. अगर जल्दी ही कुछ उपाय नहीं किए गए तो खेती के लिए क्या, पीने के पानी पर संकट आ सकता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से बेमौसम की बारिश और अत्यधिक गर्मी ने फसलों के उत्पादन में नकारात्मक असर डाला है. साथ ही जिस तरीके से ग्राउंड वाटर लेवल नीचे जा रहा है. ये आने वाले समय में खतरनाक स्थिति लाने वाला है.
भारत में ग्राउंडवाटर यानी भूजल के गिरते स्तर की चिंता की ही नहीं जा रही है. जबकि हम किसी भी सूरत में इसे इग्नोर नहीं कर सकते. भारत में अभी भी 90 से 95 फीसदी पब्लिक वाटर सप्लाई स्कीम्स इसी के जरिए चलाई जा रही है. सिंचाई के लिए करीब 65 फीसदी पानी ग्राउंड वाटर के जरिए ही उपलब्ध हो रहा है. महाराष्ट्र में तो ये 95 फीसदी है. इसके बारे में लोगों को सचेत करने की जरूरत है. नदियों और नहरों के पानी को हम देख पाते हैं, इसलिए उनमें जब कमी आती है तो चिंता होती है. लेकिन ग्राउंड वाटर को नहीं देख पाने की वजह से हम इस दिशा में लापरवाही बरतते हैं. इस बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.
अभी तक पूरी दुनिया की करीब दो तिहाई आबादी को सालभर में कम से कम एक महीने पानी के संकट से जूझना पड़ता है. आने वाले वक्त में स्थितियां और विकराल हो सकती हैं. इसलिए पानी के दूसरे रिसोर्सेज, पानी इकट्ठा करने के दूसरे उपाय और पानी के ट्रीटमेंट को लेकर पुख्ता व्यवस्था करनी होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जलाशयों में पानी के भंडारण पर जोर दिया. ऐसी व्यवस्था को और मजबूत बनाए जाने की जरूरत है. इसी तरह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जल युक्त शिविर प्रोग्राम को लॉन्च किया.
बारिश के पैटर्न में बदलाव ने भी पैदा किया पानी का संकट
बारिश के मौसम में आए बदलाव और रेनफॉल के बदलते पैटर्न ने पानी के भंडारण की जरूरत पैदा की है. सूखे की स्थिति लगातार बन रही है. सिर्फ महाराष्ट्र 2012, 2015 और अब 2019 में सूखे की मार झेल रहा है. पहले 40-45 दिनों की बारिश होती थी. अब बारिश के दिन घटकर सिर्फ 15 दिन रह गए हैं. हालांकि इन 15 दिनों में तेज बारिश होती है.
धीमी बारिश में पानी जमीन अच्छे से सोखती है. इससे ग्राउंड वाटर का लेवल बना रहता है. तेज बारिश में पानी नालों और नदियों के जरिए तेजी से बहते हुए समुद्र में जा मिलता है. महाराष्ट्र में खेती के लिए गलत फसलों का चुनाव और गलत तरीके से खेती ने संकट पैदा किया है. गन्ने की खेती में नुकसान की वजह से पिछले 4 साल में महाराष्ट्र के करीब 12 हजार किसानों ने आत्महत्या की है. सब पानी से जुड़ी समस्या है.
ग्राउंड वाटर का प्रदूषित होना बढ़ा रहा है समस्या
ग्राउंड वाटर का सबसे ज्यादा नुकसान सीवेज के दूषित पानी और इंडस्ट्रीयल कूड़े कचरे ने किया है. इस ओर भी भारत ने अपनी आंखे मूंद रखी है. हालांकि भारत के नजरिए से सबसे अच्छी बात ये है कि हमारे देश में पूरे एशिया के देशों की तुलना में सबसे ज्यादा पानी है. लेकिन पानी का मिसयूज होता है. पानी की बर्बादी ने हमें संकट के मुहाने पर खड़ा कर दिया है.

भारत में सारी गदंगी नदियों में बहा दी जाती है. नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है
एक आंकड़े के मुताबिक पूरी दुनिया में भारत को सबसे ज्यादा साफ पानी की जरूरत है. मोटे तौर पर सालाना करीब 750 बिलियन क्यूबिक मीटर. लेकिन देश में पूरी दुनिया की तुलना में सिर्फ 4 फीसदी पानी के संसाधन ही हैं. जबकि यहां दुनिया की करीब 17 फीसदी आबादी निवास करती है. पानी की समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकलन के मुताबिक 2030 तक भारत में पानी की डिमांड 1.5 ट्रीलियन क्यूबिक मीटर तक बढ़ जाएगी.
हमें चीन और इजरायल जैसे देशों से सबक लेने की जरूरत है
भारत में पानी को लेकर खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है. लेकिन इसे रोका जा सकता है अगर हम भी चीन और इजरायल जैसे देशों से सबक लें. भारत में सिर्फ 30 फीसदी गंदे पानी को रिसायकल किया जाता है. कई राज्यों में सिर्फ 5 फीसदी गंदे पानी का ट्रीटमेंट होता है. ये बात दीगर है कि हर तरह की गंदगी धरती के भीतर जाती है और वो ग्राउंड वाटर रिजर्व को प्रदूषित करती है.
सबसे खतरनाक औद्योगिक कूड़ा कचरा होता है. जो जानलेवा होता है और उसकी वजह से आने वाली पीढ़ियां विकलांग तक पैदा हो सकती हैं. औद्योगिक कचरे को ठिकाने लगाने में हमारे यहां घोर लापरवाही बरती जाती है. इस पर सख्ती भी दिखाई नहीं जाती. माधव गाडगिल की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के पश्चिमी घाट के किनारे स्थित कई इंडस्ट्रियल यूनिट कचरे के ट्रीटमेंट से बचना चाहते हैं. खर्च बचाने के लिए वो इंडस्ट्री के आसपास की धरती में ही बड़े-बड़े छेद करके कचरे को वहीं बहा देते हैं.
इससे यहां के आसपास रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगियां बर्बाद हो रही हैं. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इस बारे में सख्त दिशा-निर्देश बनाए हैं. लेकिन इसकी अनदेखी की जाती है. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी भी ज्यादा ध्यान नहीं देते. नियमों की अनदेखी करने वालों के लिए जुर्माने की व्यवस्था है. लेकिन औद्योगिक कचरा कितने खतरनाक स्तर का है, इसके आधार पर जुर्माना तय नहीं होता. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड फ्लैट रेट से जुर्माना तय करती है. वो भी पूरी तरह से चुकता नहीं किया जाता.

हर साल झेलना पड़ता है पानी का संकट
भारत में सिर्फ 23 फीसदी सीवेज वाटर का ट्रीटमेंट होता है
भारत में सीवेज डिस्चार्ज में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन करीब 61 हजार 754 मिलियन लीटर सीवेज निकलता है. इसमें 38,791 मिलियन लीटर सीवेज का ट्रीटमेंट नहीं होता है. सिर्फ 23 फीसदी सीवेज यानी 22,963 मिलियन लीटर का ट्रीटमेंट किया जाता है. यूएन की वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट के मुताबिक हाई इनकम देशों में करीब 70 फीसदी गंदे पानी का ट्रीटमेंट होता है. वहीं अपर मिडिल इनकम देशों और लोअर मिडिल इनकम देशों में इसका परसेंटेज गिरकर 38 और 28 फीसदी तक चला जाता है. भारत का 23 फीसदी बहुत कम है. हालांकि लो इनकम देशों में सिर्फ 8 फीसदी वाटर ट्रीटमेंट ही होता है.
भारत में ज्यादातर गंदा पानी नदियों और झीलों में बहा दिया जाता है. इसी वजह से गंगा और यमुना जैसी नदियां इस कदर प्रदूषित हैं. नदियों में गंदा पानी बहा देना सबसे सस्ता और लापरवाही वाला उपाय है. भारत में वाटर ट्रीटमेंट की जहमत कोई उठाना नहीं चाहता.
8 लाख लोग सिर्फ गंदा पानी पीकर मर जाते हैं
यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल करीब 8 लाख लोगों की मौत गंदा पानी पीने या फिर सही तरीके से हाथ नहीं धोने की वजह से होती है. जल जनित बीमारियों की वजह से हर साल अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के करीब 3.5 मिलियन लोगों की जान चली जाती है. ये पूरी दुनिया में एड्स और कार एक्सीडेंट में मिलाकार होने वाली मौतों से भी ज्यादा है.

पानी के संरक्षण के लिए उठाए जाएंगे ये कदम
वाटर मैनेजमेंट पर राज्यों की रिपोर्ट बेहद खराब है. नीति आयोग के दस्तावेजों के मुताबिक 60 फीसदी से ज्यादा राज्य वाटर मैनेजमेंट पर 50 फीसदी से भी कम काम कर रहे हैं. इसमें बदलाव की जरूरत है. यूएन इस दिशा में काम कर रहा है ताकि कम से कम 50 फीसदी गंदे पानी को ट्रीट करके साफ बनाया जा सके. पूरी दुनिया में स्वच्छ पानी की उपलब्धता बढ़े.
भारत की तरफ से अभी काफी काम किए जाने बाकी हैं. भारत में इस लिहाज से कानून बनाए जाने की जरूरत है, कानून के बेहतर इस्तेमाल की जरूरत है और इसे सख्ती से लागू करने की जरूरत है. इस बारे में नई पॉलिसी बनाई जानी चाहिए. पानी और वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए मोटी कमाई की जा सकती है. लेकिन इस दिशा में नई तकनीक के इस्तेमाल की आवश्यकता है.
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FIRST PUBLISHED : July 02, 2019, 14:30 IST