लोकसभा चुनाव नतीजों का विश्लेषणः बीजेपी राज्य के हिंदू वोटर्स के दिमाग में ये बात बिठाने में सफल रही कि वो ही उसकी रक्षक है.
पांच साल पहले पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास मुश्किल से दो सीटें थीं. लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के लगातार रोड शो और रैलियों ने पार्टी के लिए जादू का काम किया है. चुनाव नतीजों के शाम चार बजे तक के रुझान दिखा रहे हैं कि बंगाल की 42 में 20 सीटों पर बंगाल का कब्जा होने जा रहा है. जबकि तृणमूल 21 सीटों पर आगे चल रही है.
बीजेपी ने इस लोकसभा चुनावों में बंगाल की 42 में 23 सीटों पर फोकस किया था, ऐसा लग रहा है कि वो बड़ी मजबूती से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है.
पांच साल पहले बंगाल में नहीं थी बीजेपी
वर्ष 2014 में बीजेपी सही मायनों में बंगाल में कहीं नहीं थी. दार्जिलिंग को छोड़कर बीजेपी ने बाबुल सुप्रियो की आसनसोल सीट जीती थी. दार्जिलिंग से बीजेपी के उपाध्यक्ष एसएस अहलुवालिया जीते जरूर थे लेकिन उन्हें इसमें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का साथ मिला था. वहीं वाम मोर्चा को भी पिछली बार केवल दो सीटें ही बंगाल से हासिल हुईं थीं. इससे पहले 2009 में लेफ्ट ने 13 सीटों पर कब्जा किया था.
कब भगवा रंग चढ़ना शुरू हुआ
अप्रैल 2017 के बाद बंगाल धीरे धीरे भगवा रंग में रंगना शुरू हुआ, जबकि कोलकाता में राम नवमी पर तीर धनुष के साथ जुलूस निकाला गया, इसमें कुछ लोगों ने तलवारें भी ली हुईं थीं. इस पर कोलकाता में हाहाकार सा मच गया. सोशल मीडिया में वाम बुद्धिजीवियों ने हैरानी जाहिर की.
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बीजेपी ने कई उत्सवों का आयोजन किया
तब पहली बार राज्य में सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस और माकपा ने राज्य के भगवाकरण की कोशिशों पर चिंता जाहिर की थी. इसके बाद बीजेपी ने कई उत्सवों का आयोजन किया, जिसमें दुर्गा पूजा, क्रिसमस और ईद शामिल थीं. बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि उनका लक्ष्य राज्य में हिंदू वोटों को साथ लाना था.
दंगों ने हिंदुओं को डराया
घोष ने कहा कि राम इस समय हिंदुत्व के प्रतीक बन गए हैं. बंगाल के लोग इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि कहीं उनका राज्य बांग्लादेश तो नहीं बन जाएगा. राज्य में कालियाचौक, बशीरहाट, आसनसोल में दंगे हो चुके थे. कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में हिंदू संकट से गुजर रहे थे.
हिंसक रहा चुनाव अभियान
राज्य में जो भी चुनाव अभियान चला, वो काफी हिंसक रहा. स्थिति तब और ज्यादा तनावपूर्ण हो गई जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कानून और व्यवस्था का हवाला देकर बीजेपी को रथयात्रा की अनुमति नहीं दी.
वहीं दूसरी ओर अमित शाह के रोड शो और जय श्री राम के नारे ने राज्य में हिंदुत्व की लहर पैदा कर दी. उन्होंने ये बताने और जताने की कोशिश की किस तरह राज्य एक संकट से गुजर रहा है और बीजेपी ही उन्हें उबार सकती है. जबकि ममता लगातार सेक्यूलर राज्य की बात कर रही थीं.
14 मई को अमित शाह की रैली में कोलकाता में हिंसा फूट पड़ी. इसमें समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई. तब तृणमूल ने आरोप लगाया कि ये हिंसा ना केवल जानबूझकर बीजेपी द्वारा फैलाई गई बल्कि मूर्ति भी उसके कार्यकर्ताओं ने तोड़ी.
इसके बाद पहली बार चुनाव आयोग ने धारा 324 को लागू करते हुए चुनाव अभियान को 19 मई को होने वाली वोटिंग से एक दिन पहले ही रोक दिया. चुनाव आयोग का मानना था कि राज्य सरकार सभी उम्मीदवारों को चुनाव अभियान का मौका उपलब्ध कराने में नाकाम रही है.
हिंदुत्व की लहर पर सवार हो गई बीजेपी
हालांकि तृणमूल कांग्रेस लगातार राज्य में आपातकाल जैसे हालात की बात करती रही थी. वहीं बीजेपी हिंदुत्व लहर को अपने पक्ष में लाने में सफल रही. अब ये लगने लगा है कि जब राज्य में वाम मोर्चा विदा ले चुका है तो बीजेपी ने उसकी जगह दूसरी मजबूत पार्टी के रूप में ले ली है.
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Tags: BJP, Lok Sabha Election 2019, Mamata banerjee, Mamata Bannerjee, TMC, West Bengal Lok Sabha Elections 2019
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