पश्चिम बंगाल चुनाव : मिथुन पर क्यों खेला BJP ने दांव, कैसे होगा फायदा?

पीएम मोदी के साथ मिथुन
पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की कोलकाता में रैली (PM Modi Rally) से ऐन पहले भाजपा में शामिल हुए मोदी के ही हमउम्र मिथुन आगामी 12 मार्च से भाजपा के लिए प्रचार (BJP Campaign) शुरू करेंगे, तो भाजपा का दांव क्या होगा?
- News18Hindi
- Last Updated: March 9, 2021, 9:35 AM IST
पश्चिम बंगाल की राजनीति (Bengal Politics) में फिल्म जगत के कलाकारों की आमद नई बात नहीं है. मुनमुन सेन (Moon Moon Sen), बाबुल सुप्रियो के अलावा करीब एक दर्जन नाम हैं, जो सीधे तौर पर बंगाल की सियासत में मनोरंजन (Entertainment) जगत से जुड़े हैं. इस फेहरिस्त में नाम रहा है मिथुन चक्रवर्ती, जो आगामी चुनाव के मद्देनज़र पूरे जोश के साथ बीजेपी में शामिल (Mithun Joins BJP) हुए हैं. पहले से बंगाल की राजनीति में रहा एंटरटेनमेंट दुनिया का यह नाम बेहद खास है और अब दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी इससे फायदा किस तरह उठाने वाली है.
बंगाल चुनाव के दौरान भाजपा में पूरे ड्रामे के साथ मिथुन ने बॉलीवुड किस्म की डायलॉगबाज़ी के साथ धमकोदार एंट्री की. कोलकाता में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली से ऐन पहले बंगाल भाजपा ने मिथुन का पार्टी का खास चेहरा बनाकर एक भूमिका तैयार की. जानिए कि मिथुन और भाजपा की सियासत के सुर कैसे मेल खा सकते हैं.
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कैसी रही मिथुन की फुफकार?दहाड़ नहीं बल्कि फुफकार के साथ मिथुन ने राजनीति में अपनी नई पारी शुरू की. उन्होंने भाजपा के झंडे के साथ रैली में हिस्सा लिया और कहा, 'मैं कोई मामूली सांप नहीं हूं बल्कि खतरनाक कोबरा हूं, मेरा काटा पानी भी नहीं मांगेगा.' अपने इस डायलॉग पर तालियां बजवा लेने वाले मिथुन के डायलॉग पहले भी बंगाल की सियासत में सुने जाते रहे हैं.

मिथुन ने इस रैली में खुद कहा कि 'इतना मारूंगा कि तुम्हारी लाश दफ़न हो जाएगी', जैसे उनके डायलॉग राजनीति में पुराने हो गए हैं और इस बार वो नये मकसद के साथ भाजपा के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं. भाजपा ने क्यों यह दांव खेला है, इससे पहले जानिए कि मिथुन का बंगाल राजनीति में कैसा दखल रहा है.
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लेफ्ट से राइट तक मिथुन
कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के बंगाल में शासन के समय में मिथुन चक्रवर्ती को दिवंगत पूर्व मंत्री सुभाष चक्रबर्ती का करीबी माना जाता था. लेफ्ट फ्रंट की ही सत्ता के समय मिथुन ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था और टीएमसी के ही टिकट पर 2014 में राज्यसभा पहुंचे थे.
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शारदा घोटाले में मिथुन का नाम आया था, तब दो साल बाद ही उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर राज्यसभा छोड़ दी थी. अब मिथुन कह रहे हैं कि टीएमसी के साथ जुड़ना उनका गलत फैसला था और उनकी तरह सभी पुरानी बातें भूल जाएं. वो भाजपा में गरीबों की मदद के लिए आने का दावा कर रहे हैं, लेकिन चर्चाएं कुछ और भी हैं.

ममता के जवाब में 'बंगाल का बेटा'
अस्ल में, इस बार बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी के खिलाफ सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी भाजपा बन गई है. टीएमसी ने एक तरफ ममता को 'बंगाल की बेटी' के तौर पर प्रचारित किया है, तो भाजपा को बाहरी पार्टी करार दिया है. कुल मिलाकर इनसाइडर बनाम आउटसाइडर की राजनीति के बीच भाजपा ने मिथुन को 'बंगाल का बेटा' कहकर दांव खेला है.
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तो मिथुन ही क्यों?
अब यही दांव खेलना था तो मिथुन को ही भाजपा ने क्यों चुना? इसके पीछे दो बड़े कारण रहे. एक तो, बीजेपी की पहली पसंद पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा बीसीसीआई प्रेसिडेंट सौरव गांगुली थे, जिन्हें वो बंगाल के बेटे के तौर पर पार्टी का चेहरा बनाना चाह रही थी, लेकिन गांगुली ने अपने करीबियों के ज़रिये संदेश भिजवाया कि वो राजनीति में फिलहाल दिलचस्पी नहीं रखते.
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इसके बाद, बीजेपी ने बंगाली फिल्मों के बेहद कामयाब सितारे प्रोसेनजीत चटर्जी को अपने खेमे में लाने की कोशिश की. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर विक्टोरिया मेमोरियल पर पीएम के कार्यक्रम में चटर्जी शामिल भी हुए थे, लेकिन भाजपा के प्रस्ताव को उन्होंने भी खारिज कर दिया. खबरों की मानें तो मिथुन ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुंबई में मुलाकात की और उसके बाद उनके भाजपा में आने की भूमिका तैयार हो गई.

क्या स्टार पावर कारगर है?
बंगाल की राजनीति में आप देखें तो फिल्म और टीवी जगत के कई सितारे दिखेंगे. टीएमसी हो या भाजपा या अन्य पार्टियां, सितारों को हमेशा जोड़ती रही हैं. बॉलीवुड और बंगाली ही नहीं, बल्कि बांग्लादेशी फिल्मी हस्तियां भी बंगाल में चुनाव के समय दिखती रही हैं. ऐसे में, मिथुन का नाम काफी खास है क्योंकि यह देश भर में प्रचलित है और बंगाल में तो घर घर में उन्हें जाना जाता है. कहने की ज़रूरत नहीं कि मिथुन भाजपा के लिए भीड़ तो जुटाएंगे ही.
एक बार फिर नंदीग्राम पर फोकस
मिथुन के लिए न तो नंदीग्राम में चुनाव रैली नई बात है और न ही इस बार का चेहरा. 2014 में भी मिथुन ने सुवेंदु अधिकारी के लिए नंदीग्राम में प्रचार किया था और अधिकारी जीते थे. इस बार नंदीग्राम सीट बेहद खास हो चुकी है क्योंकि टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए अधिकारी के खिलाफ खुद ममता बनर्जी यहां से लड़ने जा रही हैं. ऐसे में, मिथुन की स्टार पावर का पूरा इस्तेमाल बीजेपी इस सीट पर खास तौर से करेगी.
बंगाल चुनाव के दौरान भाजपा में पूरे ड्रामे के साथ मिथुन ने बॉलीवुड किस्म की डायलॉगबाज़ी के साथ धमकोदार एंट्री की. कोलकाता में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली से ऐन पहले बंगाल भाजपा ने मिथुन का पार्टी का खास चेहरा बनाकर एक भूमिका तैयार की. जानिए कि मिथुन और भाजपा की सियासत के सुर कैसे मेल खा सकते हैं.
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पीएम मोदी की रैली में दिखे मिथुन.
मिथुन ने इस रैली में खुद कहा कि 'इतना मारूंगा कि तुम्हारी लाश दफ़न हो जाएगी', जैसे उनके डायलॉग राजनीति में पुराने हो गए हैं और इस बार वो नये मकसद के साथ भाजपा के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं. भाजपा ने क्यों यह दांव खेला है, इससे पहले जानिए कि मिथुन का बंगाल राजनीति में कैसा दखल रहा है.
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लेफ्ट से राइट तक मिथुन
कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के बंगाल में शासन के समय में मिथुन चक्रवर्ती को दिवंगत पूर्व मंत्री सुभाष चक्रबर्ती का करीबी माना जाता था. लेफ्ट फ्रंट की ही सत्ता के समय मिथुन ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था और टीएमसी के ही टिकट पर 2014 में राज्यसभा पहुंचे थे.
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शारदा घोटाले में मिथुन का नाम आया था, तब दो साल बाद ही उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर राज्यसभा छोड़ दी थी. अब मिथुन कह रहे हैं कि टीएमसी के साथ जुड़ना उनका गलत फैसला था और उनकी तरह सभी पुरानी बातें भूल जाएं. वो भाजपा में गरीबों की मदद के लिए आने का दावा कर रहे हैं, लेकिन चर्चाएं कुछ और भी हैं.

टीएमसी ने मिथुन के भाजपा में जाने को मौकापरस्ती बताया.
ममता के जवाब में 'बंगाल का बेटा'
अस्ल में, इस बार बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी के खिलाफ सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी भाजपा बन गई है. टीएमसी ने एक तरफ ममता को 'बंगाल की बेटी' के तौर पर प्रचारित किया है, तो भाजपा को बाहरी पार्टी करार दिया है. कुल मिलाकर इनसाइडर बनाम आउटसाइडर की राजनीति के बीच भाजपा ने मिथुन को 'बंगाल का बेटा' कहकर दांव खेला है.
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तो मिथुन ही क्यों?
अब यही दांव खेलना था तो मिथुन को ही भाजपा ने क्यों चुना? इसके पीछे दो बड़े कारण रहे. एक तो, बीजेपी की पहली पसंद पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा बीसीसीआई प्रेसिडेंट सौरव गांगुली थे, जिन्हें वो बंगाल के बेटे के तौर पर पार्टी का चेहरा बनाना चाह रही थी, लेकिन गांगुली ने अपने करीबियों के ज़रिये संदेश भिजवाया कि वो राजनीति में फिलहाल दिलचस्पी नहीं रखते.
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इसके बाद, बीजेपी ने बंगाली फिल्मों के बेहद कामयाब सितारे प्रोसेनजीत चटर्जी को अपने खेमे में लाने की कोशिश की. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर विक्टोरिया मेमोरियल पर पीएम के कार्यक्रम में चटर्जी शामिल भी हुए थे, लेकिन भाजपा के प्रस्ताव को उन्होंने भी खारिज कर दिया. खबरों की मानें तो मिथुन ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुंबई में मुलाकात की और उसके बाद उनके भाजपा में आने की भूमिका तैयार हो गई.

सुवेंदु अधिकारी के साथ मिथुन
क्या स्टार पावर कारगर है?
बंगाल की राजनीति में आप देखें तो फिल्म और टीवी जगत के कई सितारे दिखेंगे. टीएमसी हो या भाजपा या अन्य पार्टियां, सितारों को हमेशा जोड़ती रही हैं. बॉलीवुड और बंगाली ही नहीं, बल्कि बांग्लादेशी फिल्मी हस्तियां भी बंगाल में चुनाव के समय दिखती रही हैं. ऐसे में, मिथुन का नाम काफी खास है क्योंकि यह देश भर में प्रचलित है और बंगाल में तो घर घर में उन्हें जाना जाता है. कहने की ज़रूरत नहीं कि मिथुन भाजपा के लिए भीड़ तो जुटाएंगे ही.
एक बार फिर नंदीग्राम पर फोकस
मिथुन के लिए न तो नंदीग्राम में चुनाव रैली नई बात है और न ही इस बार का चेहरा. 2014 में भी मिथुन ने सुवेंदु अधिकारी के लिए नंदीग्राम में प्रचार किया था और अधिकारी जीते थे. इस बार नंदीग्राम सीट बेहद खास हो चुकी है क्योंकि टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए अधिकारी के खिलाफ खुद ममता बनर्जी यहां से लड़ने जा रही हैं. ऐसे में, मिथुन की स्टार पावर का पूरा इस्तेमाल बीजेपी इस सीट पर खास तौर से करेगी.