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क्या कहता है विज्ञान: अरबों साल से आंतरिक पृथ्वी क्यों है सूर्य की तरह गर्म?

पृथ्वी (Earth) की आंतरिक परतें आज भी सूर्य की सतह जितनी गर्म हैं जो हैरानी की बात है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

पृथ्वी (Earth) की आंतरिक परतें आज भी सूर्य की सतह जितनी गर्म हैं जो हैरानी की बात है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

पृथ्वी (Earth) की आंतरिक परतें (Interior of Earth) बहुत ही ज्यादा गर्म हैं. उसके क्रोड़ पर तो सूर्य (Sun)की सतह जितना ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान सूर्य की सतह जितना गर्म है.
हैरानी की बात यह है कि 4.5 अरब साल से यह तापमान अब तक कायम है.
इसके दो प्रमुख कारण बताए गए हैं जिससे पृथ्वी की क्रोड़ का तापमान ऐसा बना हुआ है.

पृथ्वी एक समान गोले की तरह नहीं है बल्कि उसकी कई परतें (Layers of Earth) हैं जिनकी अलग-अलग विशेषताएं है. पृथ्वी का निर्माण 4.5 अरब साल पहले शुरू हुआ था. तब से अब तक पृथ्वी की ऊपर की सतह तो ठंडी होकर ठोस हो गई है, लेकिन ज्वालामुखी और की भूगर्भीय गतिविधियों के जरिए गर्मी निकलने के बावजूद पृथ्वी के आंतरिक भाग (Interior of Earth) अब भी बहुत गर्म हैं. यहां कि पृथ्वी का क्रोड़ अभी सूर्य की सतह के ही जितना गर्म हैं. लेकिन ऐसा क्यों है एक यह अजीब सा रहस्य है. आखिर इस सवाल के जवाब में क्या कहता है विज्ञान (What does Science say)?

गहराई के साथ बढ़ती गर्मी
पृथ्वी की सतह के ऊपरी हिस्सा उसकी पर्पटी ही वायुमंडल को सामने उजागर है. इसक  बाद की परत मेंटल का अधिकांश हिस्सा ठोस ही है. फिर उसके नीचे की परत बाह्य क्रोड़ तरल लोहे का बना है इसके बाद आंतरिक क्रोड़ भारी दबाव के कारण ठोस लोहे का है और जैसे जैसे हम गहराई में उतरते जाएंगे, हम पाएंगे कि गर्मी बढ़ती जा रही है और एक समय पर यह गर्मी सूर्य की सतह की जितनी हो जाएगी.

कैसे मिलती है अंदर की खबर
लेकिन एक समस्या यह है कि हमें वास्तव में पृथ्वी के आंतरिक हिस्सों तक नहीं जा सकते हैं. अभी तक हम केवल एक ही जगह पर 12 किलोमीटर अंदर तक जा पाए हैं. यानी की हम मेंटल की बाहरी सीमा तक से ही बहुत दूर जा पाए हैं. आंतरिक हिस्सों के बारे में जानकारी भूकंपीय तरंगों से वैज्ञानिकों को मिली है.

तरंगें और टेक्टोनिक गतिविधि
भूकंपीय तरंगें भूंकप के जरिए पैदा होने वाले ध्वनि तरंगें होती हैं. दरअसल पृथ्वी की सतह कई कई महाद्वीपों के प्लेटों से बनी हैं तो एक तरह से पिघले हुए प्लास्टिक पर तैर रही हैं. पृथ्वी की पर्पटी और बाहरी मेंटल मिल कर इस हिस्से का निर्माण करते हैं जिसे स्थलमंडल  कहते हैं और इन्हीं प्लेट के आपस में टकराने से, यानि प्लेटों की गतिविधि जिसे टेक्टोनिक गतिविधि भी कहते हैं, भूकंप और ज्वालामुखी जैसी घटनाएं होती हैं.

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पृथ्वी (Earth) की सतह से ही उसके अंदर की जानकारी भूकंपीय तरंगों से मिलती हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

कितनी बढ़ती है गर्मी
प्लेटों की गतिविधि मेंटल के गर्म होने से ही संभव है और गहराई पर जाने से तापमान बढ़ता जाता है. 100 किलोमीटर की गहराई का तापमान करीब 1300 डिग्री सेल्सियस हो जाता है. मेंटल और बाहरी क्रोड की सीमा यानि 2900 किलोमीटर नीचे तापमान 2700 डिग्री सेल्सियस हो जाता है. वहीं बाह्य और आंतरिक क्रोड़ के बीच में तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस हो जाता है. इस तापमान पर सभी धातु तक पिघल जाती हैं लेकिन भारी दबाव के कारण यहां लोहा तरल या ठोस हो जाता है.

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एक अहम सवाल
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह गर्मी आ कहां से रही है. सूर्य से यहां किसी भी तरह से ऊर्जा नहीं पहुंच सकती है. यहां गर्मी के दो स्रोत हैं. एक पृथ्वी की वही गर्मी है जिसका अधिकांश हिस्सा 4.5 अरब साल पहले से अब तक कायम है और उसे बाहर निकलने की कोई जगह नहीं मिली है. जबकि दूसरा स्रोत है रेडिधर्मी आइसोटोप का विखंडन है जो पृथ्वी पर हर जगह बिखरे हुए हैं.

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पृथ्वी (Earth) की सतह के भीतर से मिलने वाली गर्मी से टेक्टोनिक प्लेट की गतिविधि भी मिलती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

रेडियोधर्मिता की भूमिका
जहां हर तत्व के कई तरह के अणु होते हैं जिन्हें आइसोटोप कहते हैं. इनमें न्यूट्रॉन की संख्या में असंतुलन ऐसी विविधता का जिम्मेदार होता है. लेकिन रेडियोधर्मी आइसोटोप स्ठिर नहीं होते हैं. यूरेनियम 238, यूरेनियम-235, थोरियम -232, पोटैशियम-40 ऐसे रेडियोधर्मी तत्व हैं जो आंतरिक पृथ्वी की गर्मी को बनाए हुए हैं. इसके अलावा इन्हीं रेडियोधर्मी तत्वों से पृथ्वी की सतह की गतिविधियों को भी बल मिलता है.

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इतना ही नहीं पृथ्वी के आंतरिक हिस्सों को तो ऊर्जा मिल ही रही है, जिससे वजह ठंडी नहीं हो पा रही है. इसके साथ ही रेडियोधर्मी तत्व पृथ्वी की टेक्टोनिक गतिविधियों को संचालन की ऊर्जा मिलती है. और यही वजह है कि पृथ्वी की सतह पर बदलाव होते रहते हैं जिससे यहां पर जीवन का संचलान कायम रहता है. यदि ऐसा नहीं होता तो अभी तक पृथ्वी ठंडी हो चुकी होती और यहां पर जीवन भी खत्म हो चुका होता.

Tags: Earth, Research, Science, Sun

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