सौर ज्वालाएं सूर्य की सतह पर पैदा होती हैं जिनका असर पूरे सौरमंडल पर होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
आए दिन देखने को मिल रहा है कि सौर ज्वलाओं से संबंधित खबरें हरकुछ दिनों में सुर्खियों में होती हैं. इनके संभावित प्रभावों पर भी खबरें चलती हैं लोगों को पता भी नहीं चलता है कि सूर्य में कितनी उथल पुथल हो रही है और उसके अनुमानित नुकसान भी उन्हें दिखाई नहीं देता है. तो फिर क्या सौर ज्वाला आखिर है क्या और सूर्य में उसका महत्व है क्या वास्तव में यह पृथ्वी को प्रभावित करती है या हम अब तक इस मामले में केवल भाग्यशाली ही हैं जो इसके संभावित प्रकोप से बचे हुए हैं. सौर ज्वाला के बारे में क्या कहता है विज्ञान?
क्या होती हैं सौर ज्वालाएं?
सोलर फ्लेयर्स या सौर ज्वालाएं सूर्य की सतह प होने वाले बहुत ही तीव्र विस्फोट हैं जिनसे भारी और तीव्र मात्रा में विद्युतचुंबकीय विकिरण निकलते हैं. ये हानिकारक विकिरण पृथ्वी तक ही नहीं बल्कि पूरे के पूरे सौरमंडल में फैलती हैं. लेकिन पृथ्वी चुंबकीय क्षेत्र के कारण इसका असर पृथ्वी की सतह पर उस तरह से नहीं पहुंचता है जितनी ये विकिरण सक्षम होती हैं.
तीव्रता की श्रेणियां
इन ज्वालाओं को तीव्रता के अनुसार कई श्रेणियों में रखा गया है. इनमें सबसे शक्तिशाली ज्वालओं के X क्लास श्रेणी की ज्वालाएं कहा जाता है, जिसके बाद ए, सी और बी क्लास और सबसे कमजोर एक क्लास या श्रेणी कहा जाता है. ये ज्वालाएं अचानक से दिखाई देने वाली चमक के रूप में सूर्य के किसी खास हिस्से से निकलती लगती हैं.
सूर्य के वायुमंडल में
ये लपटें कई मिनटों तक ही बनी रहती हैं लेकिन इनका असर पूरे सौरमंडल तक पहुचंता है. ये लपटें या ज्वाला सूर्य की सतह पर तब बनती हैं जब सूर्य के वायुमंडल में चुंबकीय ऊर्जा का निर्माण होता है और उससे अचानक ऊर्जा निकलती है. इसके अलावा इन ज्वालाओं का संबंध सौर चक्र से गहरा संबंध है.
सौर चक्र का काम
सौर चक्र हर 11 साल में होने वाली सूर्य की चक्रीय गतविधि होती है जिसमें सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की विशेष भूमिका होती है जिसके बनने में सूर्य के अंदर गर्म आवेशित गैस का योगदान होता है. हर 11 साल में इस चुंबकीय क्षेत्र का एक चक्र पूरा होता है. इसमें उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पलट कर वापस अपनी जगह पर आ जाते हैं और इससे सूर्य की सतह पर होने वली गतिविधियां प्रभावित होती हैं.
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सूर्य के अंदर का डायनामो
लेकिन सूर्य की सतह वास्तव में चुंबकीय तौर पर बहुत मिश्रित जगह है. नासा के मुताबिक यहां आवेशित गैसों से विद्युत धाराएं बनती हैं जिससे सूर्य के अंदर एक डायनामो बनता है. इस तरह की सौर गतिविधि सौर ज्वाला का उत्सर्जन पैदा कर सकती है जिससे भारी मात्रा में विद्युतचुंबकीय विकिरण पैदा होता है जिसमें रेडियो तरंगें, माइक्रोवेव, एक्स रे, गामा रे, और दिखने वाला प्रकाश शामिल हैं.
कहां से निकलती हैं ये ज्वालाएं
सौर ज्वलाएं सूर्य की सतह के खास इलाकों से निकलती हैं जिन्हें सनस्पॉट या सूर्य के धब्बे कहा जाता है. ये तुलनात्मक रूप से सूर्य के ठंडे इलाके होते हैं जहां चुंबकीय क्षेत्र बहुत ज्यादा शक्तिशाली होता है. ज्यादा धब्बों के दिखाने के मतलब ही ज्यादा संख्या संख्या में सौर ज्वालाओं का निकलना होता है. यह सबसे ज्यादा सक्रिय सौर चक्र में एक बार होते हैं.
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सौर ज्वालाओं से निकलने सौर पवनें और विकिरण वैसे तो पृथ्वी की सतह को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के कारण ज्यादा प्रभावित नहीं करते हैं. लेकिन इससे सैटेलाइट जरूर प्रभावित हो सकते हैं जिससे इंटरनेट और जीपीएस जैसी सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं. इनमें भी एम और एक्स श्रेणी की ज्वलाएं कोरोनल मास इजेक्शन सीएमई पैदा करती हैं जो भारी मात्रा में प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का उत्सर्जन होता है जिससे पृथ्वी को नुकसान हो सकता है. जिससे 1989 में कनाडा के क्वेबेक इलाके में बिजली का तंत्र ठप्प हो गया था. सौर ज्वालाएं इसी वजह से इतनी आशंकाएं इसीलिए जताई जाती हैं.
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