दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने भीम आर्मी (Bhim Army) प्रमुख चंद्रशेखर रावण (Chandrashekhar Ravan) की याचिका पर सुनवाई करते हुए शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन (Peaceful protest) को लेकर महत्वपूर्ण बातें कहीं. कोर्ट ने जनता के शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करने के अधिकार को लेकर दिल्ली पुलिस को जमकर खरी खोटी सुनाई.
तीसहजारी कोर्ट की जज कामिनी लाउ के बयान अहम हैं. दिल्ली पुलिस ने जब कहा कि शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन के लिए भी इजाजत की जरूरत पड़ती है. इस पर जज साहिबा ने कहा कि 'कैसी इजाजत, आप ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे जामा मस्जिद पाकिस्तान में हो. अगर वो पाकिस्तान में भी होती तो वहां भी धरना प्रदर्शन करने का अधिकार होता, वो भी अविभाजित भारत का हिस्सा ही था.'
तीस हजारी कोर्ट की जज ने कहा कि 'जब संसद तक लोगों की आवाज नहीं पहुंचती तो लोगों को सड़क पर उतरना पड़ता है. मैंने कई नेताओं को धरना प्रदर्शन करके बड़े नेता और मंत्री बनते हुए देखा है. चंद्रशेखर भी उभरते हुए नेता हैं, उन्हें भी धरना प्रदर्शन करने का हक है. पुलिस ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई, जिससे पता चले कि वो हिंसा करने वाले भड़काऊ बयान दे रहे थे.'
दरअसल भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जामा मस्जिद में धरना प्रदर्शन करने गए थे. उस दौरान वहां उनके समर्थकों की भारी भीड़ जमा हो गई थी. दूसरे दिन सुबह 21 दिसंबर को पुलिस ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से वो तिहाड़ जेल में बंद हैं.

जामा मस्जिद में CAA को लेकर विरोध प्रदर्शन
धरना प्रदर्शन के अधिकार को लेकर कोर्ट पहले भी देती रही है फैसले
इसी तरह का मामला 2011 में भी उछला था. दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन चल रहा था. इस प्रदर्शन में योग गुरु स्वामी रामदेव ने भी हिस्सा लिया. प्रदर्शन में उनके समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने उनपर बुरी तरह से लाठी चार्ज किया था.
मामला अदालत में पहुंचा. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त कहा था, 'शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करना, किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है. ये किसी भी तरह से उनसे छीना नहीं जा सकता. कार्यपालिका या न्यायपालिका, किसी भी कार्रवाई के जरिए इस अधिकार को वापस नहीं ले सकती.'
मेनका गांधी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में जस्टिस भगवती ने कहा था कि 'अगर लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए जनता द्वारा शासन है तो ये निश्चित है कि देश का हर नागिरक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करे. और इसलिए उन्हें जनता के मुद्दों पर अपने विचार रखने, उन्हें प्रकट करने और उसके लिए एक जगह पर शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होने का पूरा अधिकार है.
धरना प्रदर्शन को लेकर क्या कहता है संविधान
ये गौर करने बात है कि धरना प्रदर्शन में किसी भी तरह की हिंसा न हो और प्रदर्शन के लिए पहले से अनुमति लेना जरूरी है. मौलिक अधिकारों का हवाला देकर अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के साथ ये भी जरूरी है कि सभी तरह के कानून का पालन किया जाए. संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार दिया गया है. वहीं अनुच्छेद 19 (1) (B) नागरिकों को अधिकार है कि वो अपनी मांग और किसी बात के विरोध के लिए शांतिपूर्ण तरीके से एक जगह इकट्ठा हों.

2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है
धरना-प्रदर्शन करने के लिए भी हैं नियम कायदे
किसी भी तरह के धरना प्रदर्शन के लिए पहले से अनुमति लेना जरूरी है. कानून और व्यवस्था राज्य का मसला है. इसलिए इसको लेकर अलग अलग राज्यों में अलग अलग व्यवस्था है. लेकिन इसके लिए कुछ नियम कॉमन हैं जो तकरीबन हर जगह अपनाई जाती है मसलन-
-धरना प्रदर्शन से पहले पुलिस की अनुमति जरूरी है. इसके लिए पुलिस की परमिट और उनसे नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना जरूरी है.
-अगर पुलिस को लगता है कि इससे इलाके की शांति को खतरा है और इससे तनाव या हिंसा के हालात पैदा हो सकते हैं तो पुलिस परमिट देने से मना कर सकती है.
-धरना प्रदर्शन के बारे में हर तरह की जानकारी पुलिस को देना जरूरी है.
-पुलिस को ये भी बताना पड़ेगा कि धरना प्रदर्शन क्यों दिया जा रहा है. इसकी तारीख, तय समय सीमा और इसमें शामिल होने वाले लोगों की संख्या के साथ ये भी बताना होगा कि ये किन-किन इलाकों से होकर गुजरेगा.
-अनुमति हासिल करने वाले का नाम, पता और फोन नंबर देना जरूरी है.
-अनुमति हासिल करने वाले के दस्तावेज मसलन- पहचान पत्र, आवास प्रमाण पत्र, फोटोग्राफ और एफिडेविट देना जरूरी है.
संविधान का 19(1)(B) अगर सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन का अधिकार देता है तो अनुच्छेद 19(1)(3) उस पर कई तरह की पाबंदिया भी लगाता है.
धरना प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जा सकती
-अगर राज्य की सुरक्षा को इससे किसी भी तरह का खतरा हो
-अगर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर इसकी वजह से असर पड़ने की आशंका हो
-अगर आम जनजीवन के डिस्टर्ब होने का खतरा हो
-अगर इससे अदालत की अवमानना का मामला बनता हो
-अगर इससे देश की एकता और अखंडता को खतरा उत्पन्न होता हो.
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Tags: CAA, CAB protest, Citizenship Act, Citizenship bill, Jama masjid
FIRST PUBLISHED : January 15, 2020, 16:49 IST