अब आयुर्वेदिक डॉक्टर भी करेंगे सर्जरी, जानें कैसे होती है आयुर्वेदिक सर्जरी

सर्जरी के लिए प्रतीकात्मक तस्वीर.
सरकार (Central Government) ने गांवों तक सर्जरी की सुविधा पहुंचाने के नज़रिये से ट्रेंड आयुर्वेदिक डॉक्टरों (Ayurvedic Doctors) को सर्जरी करने की गाइडलाइन जारी कर दी है. आपके लिए आयुर्वेदिक सर्जरी (Surgery in Ayurved) से जुड़ी तमाम खास बातें और जानकारियां.
- News18India
- Last Updated: November 24, 2020, 9:08 AM IST
क्या आप जानते हैं कि प्राचीन भारत की चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद में शल्य क्रिया यानी सर्जरी होती है? प्राचीन भारत में होती थी, ऐसा साहित्य मिलता है. और अब आयुर्वेद की डिग्री लेने वाले डॉक्टरों (Ayurveda Doctors) को सर्जरी की इजाज़त दे दी गई है. आयुर्वेद छात्रों (Ayurveda Surgery Students) को अब तक सर्जरी के बारे में पढ़ाया तो जाता था, लेकिन वो सर्जरी करें, इस बारे में कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं थी. अब सरकार ने नोटिफाई कर दिया है कि आयुर्वेद के डॉक्टर आंख, नाक, कान, गले (ENT) के साथ ही जनरल सर्जरी (General Surgery) कर सकेंगे, जिसके लिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा.
भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (Central Council of Indian Medicine) के मुताबिक सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद आयुर्वेद में पीजी के स्टूडेंट्स को सर्जरी के बारे में गहन जानकारी दी जाएगी. बताया जा रहा है कि यह फैसला सरकार ने देश में सर्जनों की कमी को दूर करने के मकसद से लिया है. बहरहाल, आपको बताते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी किस तरह होती है.
ये भी पढ़ें :- पाकिस्तान में मिले विष्णु मंदिर परिसर के अवशेष, क्या सुरक्षित रह पाएंगे?
सुश्रुत संहिता में सर्जरी की विस्तृत जानकारीमहर्षि चरक ने चरक-संहिता को 'काय-चिकित्सा (यानी मेडिसिन)' पर केंद्रित ग्रंथ के रूप में लिखा तो महर्षि सुश्रुत ने 'शल्य-चिकत्सा (यानी सर्जरी)' पर केंद्रित ग्रंथ के रूप में. सुश्रुत ने सर्जरी के 3 भाग बताए - पूर्व कर्म (प्री-ऑपरेटिव), प्रधान कर्म (ऑपरेटिव) और पश्चात कर्म (पोस्ट-ऑपरेटिव). इन तीनों प्रोसेस को अंजाम देने के लिए 'अष्टविधि शस्त्र कर्म (यानी आठ विधियां)' करने का भी उल्लेख है, जो इस तरह हैं :
1. छेदन (एक्सीजन)
2. भेदन (इंसीजन)
3. लेखन (स्क्रेपिंग)
4. वेधन (पंक्चरिंग)
5. एषण (प्रोबिंग)
6. आहरण (एक्स्ट्रक्सन)
7. विस्रावण (ड्रेनेज)
8. सीवन (सुचरिंग)

सुश्रुत ने समझाईं बारीक बातें
सुश्रुत संहिता में सर्जरी को लेकर बारीक बातों तक का उल्लेख है यानी घाव कितने तरह के होते हैं, या फिर किस तरह के घाव को सीने के लिए किस तरह सीवन की जाती है, सीवन के लिए धागा कैसा होना चाहिए आदि. सर्जरी में सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में सुश्रुत ने 101 तरह के यंत्रों (ब्लंट इन्स्ट्रूमेंट्स), के बारे में विस्तार से बताया है.
ये भी पढ़ें :- भारत में बनी वो आर्टिलरी गन, जो सबसे लंबी रेंज का वर्ल्ड रिकॉर्ड रखती है
दिलचस्प बात यह है कि सुश्रुत ने चिमटियों का वर्णन विभिन्न पशु-पक्षियों के मुंह की आकृति के आधार पर किया और ये औज़ार आज भी उसी प्रकार हैं. इन औज़ारों का उपयोग ऐलोपैथ सर्जन ज़रूरत की हिसाब से वैसे ही कर रहे हैं, जैसा पुराने समय में आयुर्वेद के सर्जन किया करते थे.
आयुर्वेद में रही प्लास्टिक सर्जरी
सुश्रुत ने सर्जरी को लेकर विस्तार से चर्चा करते हुए सर्जरी के कारण, प्रक्रिया और नियमों का वर्णन किया है. इसके अलावा, प्राचीन काल में आयुर्वेद ने प्लास्टिक सर्जरी तक ईजाद कर ली थी. युद्ध चूंकि तलवारों से होते थे और अक्सर योद्धाओं के नाक या कान कट जाते थे. इन अंगों को फिर से जोड़ने के लिए की जाने वाली सर्जरी की जानकारी भी विसतार से सुश्रुत संहिता में है.
ये भी पढ़ें :- क्या होता है मेडिकल गांजा, किन रोगों के इलाज में होता है इस्तेमाल?
संधान कर्म (यानी प्लास्टिक सर्जरी) के बारे में भी बारीकी से लिखने वाले महर्षि सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी भी कहा जाता है. अब आपको सर्जरी से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब भी जानना चाहिए.
एलोपैथिक सर्जरी से कैसे अलग है आयुर्वेदिक सर्जरी?
दोनों सर्जरी में आपस में कोई कॉम्पिटिशन या विरोध नहीं है. आयुर्वेद की प्लास्टिक सर्जरी और क्षार सूत्र ट्रीटमेंट को एलोपैथी ने अपनाया है और आधुनिक एलोपैथिक सर्जन इन विधियों से इलाज कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, आयुर्वेदिक सर्जरी भी एनीस्थिसिया जैसी पद्धतियों का इस्तेमाल करती है, जो एलोपैथिक सर्जरी की विशेषता है.

वास्तव में, सर्जरी दोनों पद्धतियों में लगभग सामान्य है. अंतर है तो वह दवाइयों का है जो सर्जरी के दौरान मरीज़ को दी जाती हैं और उन्हीं के आधार पर हम समझते हैं कि यह कौन सी सर्जरी हैं. इसमें कुछ अपवाद हैं, जैसे क्षार सूत्र ट्रीटमेंट, अग्नि कर्म, जलौका लगाना और रक्त मोक्षण सिर्फ आयुर्वेद की खासियतें हैं तो ऑर्गन ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी, लेज़र और कीहोल रोबोटिक सर्जरी आदि एलोपैथी की विशेषताएं हैं.
कैसे मिलती है आयुर्वेदिक सर्जरी की डिग्री?
सर्जरी स्पेशल मेडिकल साइंस है, जिसके लिए खास ट्रेनिंग और प्रैक्टिस की ज़रूरत होती है. आयुर्वेद में भी तीन साल की मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस आयुर्वेद) की डिग्री होती है जो ग्रैजुएशन (बीएएमएस) के बाद हासिल की जा सकती है. एमएस आयुर्वेद करने के बाद पीएचडी भी की जा सकती है. आखिर में जानिए कि सर्जरी की शिक्षा के लिए देश में सबसे बेहतरीन आयुर्वेदिक संस्थान कौन से हैं.
ये भी पढ़ें :- गांजा रखना किस तरह अपराध है? गांजा रखने पर क्या सज़ा होती है?
आयुर्वेद में एमएस करने के लिए सबसे बेहतरीन संस्थानों में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद, नई दिल्ली और आर.ए. पोद्दार अस्पताल, वर्ली, मुंबई माने जाते हैं.
भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (Central Council of Indian Medicine) के मुताबिक सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद आयुर्वेद में पीजी के स्टूडेंट्स को सर्जरी के बारे में गहन जानकारी दी जाएगी. बताया जा रहा है कि यह फैसला सरकार ने देश में सर्जनों की कमी को दूर करने के मकसद से लिया है. बहरहाल, आपको बताते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी किस तरह होती है.
ये भी पढ़ें :- पाकिस्तान में मिले विष्णु मंदिर परिसर के अवशेष, क्या सुरक्षित रह पाएंगे?
सुश्रुत संहिता में सर्जरी की विस्तृत जानकारीमहर्षि चरक ने चरक-संहिता को 'काय-चिकित्सा (यानी मेडिसिन)' पर केंद्रित ग्रंथ के रूप में लिखा तो महर्षि सुश्रुत ने 'शल्य-चिकत्सा (यानी सर्जरी)' पर केंद्रित ग्रंथ के रूप में. सुश्रुत ने सर्जरी के 3 भाग बताए - पूर्व कर्म (प्री-ऑपरेटिव), प्रधान कर्म (ऑपरेटिव) और पश्चात कर्म (पोस्ट-ऑपरेटिव). इन तीनों प्रोसेस को अंजाम देने के लिए 'अष्टविधि शस्त्र कर्म (यानी आठ विधियां)' करने का भी उल्लेख है, जो इस तरह हैं :
1. छेदन (एक्सीजन)
2. भेदन (इंसीजन)
3. लेखन (स्क्रेपिंग)
4. वेधन (पंक्चरिंग)
5. एषण (प्रोबिंग)
6. आहरण (एक्स्ट्रक्सन)
7. विस्रावण (ड्रेनेज)
8. सीवन (सुचरिंग)

प्राचीन भारत में सुश्रुत संहिता के मुताबिक सर्जरी की जाती रही. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सुश्रुत ने समझाईं बारीक बातें
सुश्रुत संहिता में सर्जरी को लेकर बारीक बातों तक का उल्लेख है यानी घाव कितने तरह के होते हैं, या फिर किस तरह के घाव को सीने के लिए किस तरह सीवन की जाती है, सीवन के लिए धागा कैसा होना चाहिए आदि. सर्जरी में सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में सुश्रुत ने 101 तरह के यंत्रों (ब्लंट इन्स्ट्रूमेंट्स), के बारे में विस्तार से बताया है.
ये भी पढ़ें :- भारत में बनी वो आर्टिलरी गन, जो सबसे लंबी रेंज का वर्ल्ड रिकॉर्ड रखती है
दिलचस्प बात यह है कि सुश्रुत ने चिमटियों का वर्णन विभिन्न पशु-पक्षियों के मुंह की आकृति के आधार पर किया और ये औज़ार आज भी उसी प्रकार हैं. इन औज़ारों का उपयोग ऐलोपैथ सर्जन ज़रूरत की हिसाब से वैसे ही कर रहे हैं, जैसा पुराने समय में आयुर्वेद के सर्जन किया करते थे.
आयुर्वेद में रही प्लास्टिक सर्जरी
सुश्रुत ने सर्जरी को लेकर विस्तार से चर्चा करते हुए सर्जरी के कारण, प्रक्रिया और नियमों का वर्णन किया है. इसके अलावा, प्राचीन काल में आयुर्वेद ने प्लास्टिक सर्जरी तक ईजाद कर ली थी. युद्ध चूंकि तलवारों से होते थे और अक्सर योद्धाओं के नाक या कान कट जाते थे. इन अंगों को फिर से जोड़ने के लिए की जाने वाली सर्जरी की जानकारी भी विसतार से सुश्रुत संहिता में है.
ये भी पढ़ें :- क्या होता है मेडिकल गांजा, किन रोगों के इलाज में होता है इस्तेमाल?
संधान कर्म (यानी प्लास्टिक सर्जरी) के बारे में भी बारीकी से लिखने वाले महर्षि सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी भी कहा जाता है. अब आपको सर्जरी से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब भी जानना चाहिए.
एलोपैथिक सर्जरी से कैसे अलग है आयुर्वेदिक सर्जरी?
दोनों सर्जरी में आपस में कोई कॉम्पिटिशन या विरोध नहीं है. आयुर्वेद की प्लास्टिक सर्जरी और क्षार सूत्र ट्रीटमेंट को एलोपैथी ने अपनाया है और आधुनिक एलोपैथिक सर्जन इन विधियों से इलाज कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, आयुर्वेदिक सर्जरी भी एनीस्थिसिया जैसी पद्धतियों का इस्तेमाल करती है, जो एलोपैथिक सर्जरी की विशेषता है.

सुश्रुत संहिता में सर्जरी के यंत्रों और उपकरणों के बारे में बताया गया है.
वास्तव में, सर्जरी दोनों पद्धतियों में लगभग सामान्य है. अंतर है तो वह दवाइयों का है जो सर्जरी के दौरान मरीज़ को दी जाती हैं और उन्हीं के आधार पर हम समझते हैं कि यह कौन सी सर्जरी हैं. इसमें कुछ अपवाद हैं, जैसे क्षार सूत्र ट्रीटमेंट, अग्नि कर्म, जलौका लगाना और रक्त मोक्षण सिर्फ आयुर्वेद की खासियतें हैं तो ऑर्गन ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी, लेज़र और कीहोल रोबोटिक सर्जरी आदि एलोपैथी की विशेषताएं हैं.
कैसे मिलती है आयुर्वेदिक सर्जरी की डिग्री?
सर्जरी स्पेशल मेडिकल साइंस है, जिसके लिए खास ट्रेनिंग और प्रैक्टिस की ज़रूरत होती है. आयुर्वेद में भी तीन साल की मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस आयुर्वेद) की डिग्री होती है जो ग्रैजुएशन (बीएएमएस) के बाद हासिल की जा सकती है. एमएस आयुर्वेद करने के बाद पीएचडी भी की जा सकती है. आखिर में जानिए कि सर्जरी की शिक्षा के लिए देश में सबसे बेहतरीन आयुर्वेदिक संस्थान कौन से हैं.
ये भी पढ़ें :- गांजा रखना किस तरह अपराध है? गांजा रखने पर क्या सज़ा होती है?
आयुर्वेद में एमएस करने के लिए सबसे बेहतरीन संस्थानों में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद, नई दिल्ली और आर.ए. पोद्दार अस्पताल, वर्ली, मुंबई माने जाते हैं.