Explained: क्या है ब्लू इकनॉमी, जिसे लेकर दुनियाभर के देशों में होड़ मची है?

150 मिलियन से ज्यादा नौकरियां ब्लू इकनॉमी के कारण पैदा हो रही हैं- सांकेतिक फोटो (pixnio)
साल 2010 में आए शब्द ब्लू इकनॉमी ने इधर चीन को बौखलाकर रख दिया है. वो समुद्री रास्तों पर कब्जा कर दुनिया का लीडर बनने की फिराक में है. भारत में भी इस अर्थव्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 6, 2021, 9:40 AM IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने की बात कर रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने देश को ब्लू इकनॉमी में आगे बढ़ाने की सोच रखी. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि वही देश वर्ल्ड लीडर बनेगा, जिसकी ब्लू इकनॉमी मजबूत हो. तो क्या है ये ब्लू इकनॉमी? ये असल में समुद्र के जरिए व्यापार है. आने वाले समय में वही देश राज करेगा, जो इस मामले में सबसे आगे हो.
ब्लू इकनॉमी शब्द ज्यादा पुराना नहीं, बल्कि आज से दशकभर पहले ही ये शब्द अस्तित्व में आया. बेल्जियन व्यापारी और लेखक गुंटेर पॉली ने इस शब्द की खोज की थी. बाद में ये संयुक्त राष्ट्र की सभा में कहा जाने लगा और इसके बाद से ये लगातार इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि ये शब्द नया है लेकिन इस शब्द के पीछे जो अर्थ है, वो सैकड़ों सालों के चला आ रहा है.
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सदियों से व्यापारी एक से दूसरे देश जाकर समुद्र के जरिए व्यापार फैलाते रहे. तब हवाई जहाज नहीं थे और न ही सड़क मार्ग से दुनिया जुड़ी थी. ऐसे में व्यापार का एकमात्र और सबसे मजबूत जरिया समुद्र ही था.
आज भी इस व्यवस्था से दुनिया को सालाना 3.6 ट्रिलियन डॉलर का फायदा हो रहा है. साथ ही 150 मिलियन से ज्यादा नौकरियां ब्लू इकनॉमी के कारण पैदा हो रही हैं. यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने ये आंकड़े देते हुए समुद्री व्यापार का महत्व हाल ही में समझाया था.
अब इसी ब्लू इकनॉमी को और मजबूती देने की बात हो रही है. मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस आम बजट में ब्लू इकनॉमी को मजबूत करने की बात की थी. इसके तहत अर्थव्यवस्था समुद्री क्षेत्र पर आधारित होती है. जिसमें पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बिजनेस मॉडल तैयार किए जाते हैं. ये इस तरह के होते हैं कि जल के रास्ते ज्यादा से ज्यादा व्यापार हो सके. इसके लिए समुद्र में छोटे रास्ते निकाले जाते हैं ताकि समय और धन की बचत हो सके.
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ब्लू इकनॉमी में केवल समुद्री रास्ते से व्यापार करना ही शामिल नहीं, बल्कि इसके तहत सामुद्रिक वस्तुओं का व्यापार भी होता है. जैसे समुद्र तल में कई तरह के मूल्यवान खनिज होते हैं. इनका खनन और बिक्री देश को काफी आगे ले जा सकती है. समुद्री उत्पादों के तहत मछलियां और दूसरे समुद्री जीव भी शामिल हैं, जिनका व्यापार होता रहा है. इनके पालन और प्रजनन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.

समुद्र के रास्ते जहाजों के आने-जाने से प्रदूषण होता है और ईंधन के पानी में मिलने से पानी प्रदूषित हो जाता है. बीते समय में ऐसी कई घटनाएं सामने आईं, जब समुद्र में तेल मिल जाने के कारण सैकड़ों मील दूर तक का पानी प्रदूषित हो गया और जल-उत्पाद मारे जाने लगे. यानी ब्लू इकनॉमी से कहीं न कहीं समुद्री जीवों और पर्यावरण को खतरा हो सकता है. अब प्रदूषण कंट्र्रोल पर भी काम हो रहा है, जिसे ब्लू ग्रोथ कहा जा रहा है. इसके जरिए संसाधनों की कमी और कचरे के निपटारे की समस्या का समाधान किए जाने की कोशिश होती है.
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समुद्र में विशाल कार्गो के जरिए भारी मात्रा में सामान एक से दूसरे देश ले जाया जा सकता है लेकिन इसके लिए समुद्र में उस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा, जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाए. फिलहाल देश में इसपर काफी काम हो रहा है. वैसे बता दें कि देश के कुल व्यापार का लगभग 90 फीसदी समुद्री मार्ग से ही हो रहा है. ऐसे में ब्लू ग्रोथ के तहत पर्यावरण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत महसूस हो रही है.

इधर ब्लू इकनॉमी के फायदों से चीन भी अनजान नहीं. यही कारण है कि वो लगातार साउथ चाइना सी पर कब्जा करने की कोशिश में है. दक्षिण चीन सागर कई देशों से जुड़ा होने के कारण काफी महत्वपूर्ण है. इसे दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है. इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है. ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है.
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सबसे ज्यादा विवाद पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) को लेकर है. ये हिस्सा कच्चे तेल और नेचुरल गैसों का भंडार है. साथ ही लगभग 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले इस समुद्र में मूंगे और समुद्री जीव-जंतुओं की भरमार है. यहां इतने किस्म की मछलियां पाई जाती हैं कि दुनियाभर में फिश बिजनेस की लगभग आधी आपूर्ति यहीं से होती है. यही वजह है कि चीन सागर के जरिए इसे भी हड़प करना चाहता है.
ब्लू इकनॉमी शब्द ज्यादा पुराना नहीं, बल्कि आज से दशकभर पहले ही ये शब्द अस्तित्व में आया. बेल्जियन व्यापारी और लेखक गुंटेर पॉली ने इस शब्द की खोज की थी. बाद में ये संयुक्त राष्ट्र की सभा में कहा जाने लगा और इसके बाद से ये लगातार इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि ये शब्द नया है लेकिन इस शब्द के पीछे जो अर्थ है, वो सैकड़ों सालों के चला आ रहा है.
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इसी ब्लू इकनॉमी को और मजबूती देने की बात हो रही है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
आज भी इस व्यवस्था से दुनिया को सालाना 3.6 ट्रिलियन डॉलर का फायदा हो रहा है. साथ ही 150 मिलियन से ज्यादा नौकरियां ब्लू इकनॉमी के कारण पैदा हो रही हैं. यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने ये आंकड़े देते हुए समुद्री व्यापार का महत्व हाल ही में समझाया था.
अब इसी ब्लू इकनॉमी को और मजबूती देने की बात हो रही है. मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस आम बजट में ब्लू इकनॉमी को मजबूत करने की बात की थी. इसके तहत अर्थव्यवस्था समुद्री क्षेत्र पर आधारित होती है. जिसमें पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बिजनेस मॉडल तैयार किए जाते हैं. ये इस तरह के होते हैं कि जल के रास्ते ज्यादा से ज्यादा व्यापार हो सके. इसके लिए समुद्र में छोटे रास्ते निकाले जाते हैं ताकि समय और धन की बचत हो सके.
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ब्लू इकनॉमी में केवल समुद्री रास्ते से व्यापार करना ही शामिल नहीं, बल्कि इसके तहत सामुद्रिक वस्तुओं का व्यापार भी होता है. जैसे समुद्र तल में कई तरह के मूल्यवान खनिज होते हैं. इनका खनन और बिक्री देश को काफी आगे ले जा सकती है. समुद्री उत्पादों के तहत मछलियां और दूसरे समुद्री जीव भी शामिल हैं, जिनका व्यापार होता रहा है. इनके पालन और प्रजनन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.

ब्लू इकनॉमी से कहीं न कहीं समुद्री जीवों और पर्यावरण को खतरा हो सकता है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
समुद्र के रास्ते जहाजों के आने-जाने से प्रदूषण होता है और ईंधन के पानी में मिलने से पानी प्रदूषित हो जाता है. बीते समय में ऐसी कई घटनाएं सामने आईं, जब समुद्र में तेल मिल जाने के कारण सैकड़ों मील दूर तक का पानी प्रदूषित हो गया और जल-उत्पाद मारे जाने लगे. यानी ब्लू इकनॉमी से कहीं न कहीं समुद्री जीवों और पर्यावरण को खतरा हो सकता है. अब प्रदूषण कंट्र्रोल पर भी काम हो रहा है, जिसे ब्लू ग्रोथ कहा जा रहा है. इसके जरिए संसाधनों की कमी और कचरे के निपटारे की समस्या का समाधान किए जाने की कोशिश होती है.
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समुद्र में विशाल कार्गो के जरिए भारी मात्रा में सामान एक से दूसरे देश ले जाया जा सकता है लेकिन इसके लिए समुद्र में उस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा, जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाए. फिलहाल देश में इसपर काफी काम हो रहा है. वैसे बता दें कि देश के कुल व्यापार का लगभग 90 फीसदी समुद्री मार्ग से ही हो रहा है. ऐसे में ब्लू ग्रोथ के तहत पर्यावरण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत महसूस हो रही है.

देश के कुल व्यापार का लगभग 90 फीसदी समुद्री मार्ग से ही हो रहा है- सांकेतिक फोटो (pixnio)
इधर ब्लू इकनॉमी के फायदों से चीन भी अनजान नहीं. यही कारण है कि वो लगातार साउथ चाइना सी पर कब्जा करने की कोशिश में है. दक्षिण चीन सागर कई देशों से जुड़ा होने के कारण काफी महत्वपूर्ण है. इसे दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है. इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है. ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है.
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सबसे ज्यादा विवाद पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) को लेकर है. ये हिस्सा कच्चे तेल और नेचुरल गैसों का भंडार है. साथ ही लगभग 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले इस समुद्र में मूंगे और समुद्री जीव-जंतुओं की भरमार है. यहां इतने किस्म की मछलियां पाई जाती हैं कि दुनियाभर में फिश बिजनेस की लगभग आधी आपूर्ति यहीं से होती है. यही वजह है कि चीन सागर के जरिए इसे भी हड़प करना चाहता है.