आर्मी में जनरल स्तर के दो अफसरों के बीच टकराव
भारतीय आर्मी के चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरावणे (Army Chief MM Naravane) ने आर्मी के एक टॉप कमांडर और उनके सेकंड इन कमांड के बीच चल रहे एक विवाद में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश (Court of Inquiry Orders) दिए हैं. पहले भी आपने यह शब्द ज़रूर सुना होगा और संभव है कि बोर्ड ऑफ इंक्वायरी भी सुना हो, लेकिन यह क्या होता है? क्या आप इसकी प्रक्रिया और इसके मकसद के बारे में जानते हैं? आपको यह भी बता दें कि आर्मी चीफ ने हाल में जिस कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (COI) के आदेश दिए हैं, आर्मी के इतिहास (History of Indian Army) में इस स्तर पर यह बहुत दुर्लभ बात है.
राजस्थान बेस्ड वेस्टर्न कमांड में आर्मी के टॉप अफसरों के बीच क्या विवाद चल रहा है, इसके बारे में आगे चर्चा करेंगे, पहले आपको कोर्ट ऑफ इंक्वायरी से जुड़ी तमाम जानकारियां देते हैं. इस बारे में विस्तार से आर्मी रूल्स 1954 के मैनुअल के रूल 180 में चर्चा है. एयरफोर्स के संबंध में रूल 15 और नेवी के संबंध में नेवी पैरा 197 में इंक्वायरी के बारे में चर्चा है.
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क्यों होती है यह इंक्वायरी?
COI या BOI का मकसद किसी घटना की विस्तार से जांच करना होता है, जिसे कमांडिंग अफसर या कमांड में आला अफसर ही आदेशित कर सकता है. इसके लिए किसी एक अफसर की अगुवाई में अफसरों की एक सभा बनाई जाती है. रिफरेंस से लेकर लिखित गाइडलाइनों के तहत ही इंक्वायरी की जा सकती है. यह भी एक नियम है कि COI का नोटिस सभी संबंधितों को पहुंचाया जाता है. COI के दायित्व व अधिकार इस तरह होते हैं :
1. यह गाइडलाइनों के दायरे में रहकर संचालित की जाती है.
2. COI को सभी सबूत जुटाने होते हैं.
3. ज़रूरत पड़ने पर मामले से जुड़े किसी भी गवाह को तलब किया जा सकता है.
4. COI में गवाह की सच्चाई जानने के लिए सवाल किए जा सकते हैं ताकि सबूत की प्रामाणिकता तय हो सके.
5. आदेश देने वाली अथॉरिअी के निर्देश के अनुसार COI को गणित या पुनर्गठित किया जा सकता है.
6. COI पूरी होने के बाद इसके तमाम विवरण संबंधित अथॉरिटी को सौंप दिए जाते हैं.
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क्या होता है प्रोसीजर?
आर्मी रूल्स के मैनुअल में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के संबंध में किस तरह के प्रोसीजर से COI होती है, इसका उल्लेख है. जब भी ऐसा होता है कि इंक्वायरी से मिलिट्री के किसी भी सदस्य के कैरेक्टर पर असर पड़ सकता हो, तो ऐसे में उसके पास अपने लिए अधिकार होते हैं, जो उसे इंक्वायरी के प्रमुख अफसर से मिलते हैं :
1. जब तक कोर्ट मना न करे, तब तक वह इंक्वायरी की कार्रवाई में शामिल रह सकता है.
2. जो भी सबूत रिकॉर्ड में आते हैं, वो देख सकता है.
3. वह गवाहों को क्रॉस कर सकता है और स्टेटमेंट दे सकता है. अपने पक्ष में वह कोई गवाह या दस्तावेज़ पेश कर सकता है.
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उल्लेखनीय बात यह है कि कोर्ट मार्शल यानी कोर्ट में COI/BOI की प्रोसीडिंग्स स्वीकार्य नहीं होतीं. हालांकि COI में दिए गए बयान गवाह को क्रॉस करने के मकसद से उपयोग किए जा सकते हैं. जिस व्यक्ति के खिलाफ आरोप हों, या जिसकी छवि को लेकर प्रश्नचिह्न लगे हों, मांगे जाने पर उसे COI की कॉपी देना होती है. या फिर कॉपी न देने का कारण लिखित तौर पर बताना होता है.
क्या है ताज़ा मामला?
सितंबर 2020 में लेफ्टिनेंट जनरल केके रेप्सवाल ने आर्मी चीफ के सामने अपने सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल आलोक क्लेर पर आरोप लगाए थे. इसके जवाब में क्लेर ने भी प्रत्यारोप लगाए थे. खबरों की मानें तो जनरल बनाम जनरल का टकराव इतना हो गया कि रोज़मर्रा के काम तक बाधित होने लगे. पाकिस्तान की सीमा की रक्षा के लिए तैनात वेस्टर्न कमांड के जयपुर बेस्ड दो आला अफसरों के विवाद को लेकर COI के आदेश अब दिए गए हैं.
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हाल के समय में इस स्तर के अधिकारियों के विवाद में COI की बात बहुत दुर्लभ है. इससे पहले एक कर्नल और उनकी कमांड में ही महिला मेजर के बीच कथित अफेयर को लेकर COI की खबरें रही थीं, लेकिन जनरल के स्तर पर काफी समय से ऐसी बात नहीं सुनी गई. बहरहाल, विवाद में फंसे दोनों अफसरों के सीनियर सेंट्रल आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आईएस घूमन की अगुवाई में COI होगी.
हालांकि विवाद और आरोपों को अभी सार्वजनिक तौर पर नहीं बताया गया है, लेकिन यह इशारा ज़रूर दिया गया है कि कमांड मुख्यालय में कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है क्योंकि दोनों ही आला अफसर अपनी भूमिका, चार्टर और कर्तव्यों को लेकर भिड़े हैं. नियुक्तियों के मामले से जुड़े विवाद को लेकर खबरें सूत्रों के हवाले से कह रही हैं कि मामला पावर के गलत इस्तेमाल का हो सकता है.
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Tags: General MM Naravane, Indian army