इस प्रयोग के सफल होने से ब्रह्माण्ड के कई रहस्य खुल सकेंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली: अगर आपकी अंतरिक्ष (Space) में जरा सी भी दिलचस्पी है तो आपने डार्क मैटर (Dark Matter) का जरूर सुना होगा. अगर नहीं भी सुना तो आप जान लें कि यह खगोलविज्ञान का सबसे रहस्यमय शब्दों में से एक है. यह अपने नाम की तरह ही रहस्यमय है क्योंकि वैज्ञानिक इसके बारे में प्रमाणित रूप से कुछ नहीं जानते फिर मानते हैं कि इसका अस्तित्व होना ही चाहिए.
कहां से आया ये शब्द
डार्क मैटर के बारे में जानने भी ज्यादा रुचिकर है उस शब्द के पैदा होने की कहानी. डार्क मैटर शब्द का उपयोग वैसे तो पहले भी हुआ लेकिन आज जिस संदर्भ में उसका जिक्र होता है उस तरह का उपयो साल 1932 में पहली किया गया था. तब यह कहा गया था कि किसी गैलेक्सी में खुद को बांधे रखने के लिए जितना मैटर चाहिए उसका केवल एक ही प्रतिशत उसके तारों का होता है. इस लिए बाकी डार्क मैटर होना चाहिए. इस विषय में आगे ज्यादा कुछ नहीं हुआ.
एक बार फिर निकला डार्क मैटर का भूत
1990 के दशक में खगोलविदों के बीच एक मामले को लेकर एकमतता थी. वह यह कि यह ब्रह्माण्ड फैल रहा है और इसका ऊर्जा धनत्व इतना है कि यह प्रसार कभी न कभी रुकेगा जरूर और जब ऐसा होगा तब यह सिकुड़ना शुरू हो जाएगा. फिर यह देखा गया कि वास्तव में आज का ब्रह्माण्ड पहले की तुलना में तेजी से फैल रहा है. बस इसी की व्याख्या करने में कई थ्योरी समाने आईं और इसके साथ डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की अवधारणा भी.
फिर जोर पकड़ा डार्क मैटर के अस्तित्व ने
ब्रह्माण्ड के इस बर्ताव को समझाने में अब के सभी खगोलीय सिद्धांत अपरर्याप्त साबित हुए. यहां तक कि आइंस्टीन के वे सिद्धांत जिनमें से कई आज भी व्यवहारिक रूप से सिद्ध नहीं हुए हैं. यहां वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर की अवधारणा तो बता दी, लेकिन वे इस सिद्ध नहीं कर सके. वहीं उन्हें विश्वास था (या अब भी है) कि डार्क मैटर का अस्तित्व होना ही चाहिए.
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