Explained: वो टास्क फोर्स, जिसकी ग्रे लिस्ट में रहना PAK को बर्बाद कर देगा?

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान देश की आर्थिक मंदी से परेशान हैं (Photo- flickr)
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force) ने तय किए हुए सभी लक्ष्यों का पालन करने के लिए पाकिस्तान (Pakistan) को साल 2020 के अंत में चार महीने दिए थे. मियाद पूरी होते ही पाकिस्तान के आर्थिक भविष्य का फैसला हो जाएगा.
- News18Hindi
- Last Updated: February 21, 2021, 3:18 PM IST
पाकिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उसपर पहले कोरोना और अब सूखे की मार ने इसे और गहरा दिया. अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force) या FATF ने इस देश को अपनी ग्रे लिस्ट से नहीं निकाला तो उसके दिवालिया होते देर नहीं लगेगी. सोमवार को पेरिस में FATF की इसके लिए बैठक होने वाली है और पाकिस्तान लगातार गुहार लगा रहा है.
क्या है एफएटीएफ
ये एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और टैरर फंडिंग जैसे वित्तीय मामलों में दखल देते हुए तमाम देशों के लिए गाइडलाइन तय करती है और यह तय करती है कि वित्तीय अपराधों को बढ़ावा देने वाले देशों पर लगाम कसी जा सके.
एफएटीएफ की दो लिस्ट होती हैंपहली सूची यानी ब्लैकलिस्ट में वो देश आते हैं जो आतंकी गतिविधियों से जुड़े होते हैं या फिर उन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर फंड करते हैं. इन देशों की अर्थव्यवस्था से आतंक को बढ़ावा न मिले, इसके लिए देशों को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है. ऐसे देशों को ब्लैकलिस्ट करने का सिलसिला साल 2000 से संस्था ने शुरू किया था.
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देशों को पहले चेतावनी दी जाती है और फिर कुछ देशों की एक कमेटी बनाकर निगरानी की जाती है कि ऐसे देश गाइडलाइन्स के मुताबिक गंभीर मामलों को काबू करने के लिए क्या और कैसे कदम उठा रहे हैं.

दूसरी है ग्रे लिस्ट
मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग के मामलों में टैक्स चोरी का स्वर्ग न होकर ऐसे देश, जो इस स्थिति का शिकार होते लगते हैं, उन्हें इस लिस्ट में रखा जाता है. यह एक तरह से चेतावनी होती है कि समय रहते ये देश काबू करें और वित्तीय गड़बड़ियों को रोकने के कदम उठाएं. अगर ये देश ग्रे लिस्ट में आने के बाद भी सख़्त कदम नहीं उठाते हैं, तो इन पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा बढ़ता है.
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फिलहाल पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में है. बीते साल फ्रांस में आतंकी घटनाओं के बाद पाकिस्तान ने एक तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर इस्लामिक कट्टरता का समर्थन किया था. तब से फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों पाकिस्तान से नाराज हैं. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि चूंकि एफएटीएफ में फ्रांस का बड़ा दखल है इसलिए उनकी नाराजगी पाकिस्तान पर कहर बरपा सकती है. ऐसे में इमरान सरकार ग्रे लिस्ट में बनी रह सकती है.

बता दें कि संस्था ने अपने तय किए हुए सभी लक्ष्यों का पालन करने के लिए पाकिस्तान को साल 2020 के अक्टूबर के आखिर में 4 महीने की मियाद दी थी. ये समय फरवरी के आखिर में पूरा हो रहा है. वही पाकिस्तान अब भी सारे लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है. यही कारण है कि वो ग्रेस लिस्ट से डरा हुआ है.
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अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा जाएगी. बता दें कि पाकिस्तान पहले से ही कंगाल हो चुका है और फिलहाल कर्ज में डूबा हुआ है. अब कई मित्र देशों ने पाक को आर्थिक मदद देने से भी इनकार कर दिया है. ऐसे में उसके पास वर्ल्ड बैंक और एडीबी जैसी इंटरनेशनल संस्थाओं से ही कर्ज का आसरा है. अगर ग्रे लिस्ट बनी रहे तो ये संस्थाएं भी पाकिस्तान को कर्ज नहीं देंगी. साथ ही साथ ये भी हो सकता है कि ग्रे लिस्ट के चलते देश पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध रखने से इनकार कर दें.
अकेले पाकिस्तान संस्था की ग्रे लिस्ट में नहीं, बल्कि उसका साथ कई दूसरे देश दे रहे हैं. इनमें अल्बानिया, बहामास, बोत्सवाना, कंबोडिया, घाना, आइसलैंड, जमैका, मंगोलिया, निकारागुआ, सीरिया, युगांडा, यमन और जिम्बाब्वे शामिल हैं.
क्या है एफएटीएफ
ये एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और टैरर फंडिंग जैसे वित्तीय मामलों में दखल देते हुए तमाम देशों के लिए गाइडलाइन तय करती है और यह तय करती है कि वित्तीय अपराधों को बढ़ावा देने वाले देशों पर लगाम कसी जा सके.
एफएटीएफ की दो लिस्ट होती हैंपहली सूची यानी ब्लैकलिस्ट में वो देश आते हैं जो आतंकी गतिविधियों से जुड़े होते हैं या फिर उन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर फंड करते हैं. इन देशों की अर्थव्यवस्था से आतंक को बढ़ावा न मिले, इसके लिए देशों को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है. ऐसे देशों को ब्लैकलिस्ट करने का सिलसिला साल 2000 से संस्था ने शुरू किया था.
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देशों को पहले चेतावनी दी जाती है और फिर कुछ देशों की एक कमेटी बनाकर निगरानी की जाती है कि ऐसे देश गाइडलाइन्स के मुताबिक गंभीर मामलों को काबू करने के लिए क्या और कैसे कदम उठा रहे हैं.

ब्लैकलिस्ट में वो देश आते हैं जो आतंकी गतिविधियों से जुड़े होते हैं या फिर उन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर फंड करते हैं- सांकेतिक फोटो (pixabay)
दूसरी है ग्रे लिस्ट
मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग के मामलों में टैक्स चोरी का स्वर्ग न होकर ऐसे देश, जो इस स्थिति का शिकार होते लगते हैं, उन्हें इस लिस्ट में रखा जाता है. यह एक तरह से चेतावनी होती है कि समय रहते ये देश काबू करें और वित्तीय गड़बड़ियों को रोकने के कदम उठाएं. अगर ये देश ग्रे लिस्ट में आने के बाद भी सख़्त कदम नहीं उठाते हैं, तो इन पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा बढ़ता है.
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फिलहाल पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में है. बीते साल फ्रांस में आतंकी घटनाओं के बाद पाकिस्तान ने एक तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर इस्लामिक कट्टरता का समर्थन किया था. तब से फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों पाकिस्तान से नाराज हैं. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि चूंकि एफएटीएफ में फ्रांस का बड़ा दखल है इसलिए उनकी नाराजगी पाकिस्तान पर कहर बरपा सकती है. ऐसे में इमरान सरकार ग्रे लिस्ट में बनी रह सकती है.

पाकिस्तान पहले से ही कंगाल हो चुका है और फिलहाल कर्ज में डूबा हुआ है- सांकेतिक फोटो (defense.gov)
बता दें कि संस्था ने अपने तय किए हुए सभी लक्ष्यों का पालन करने के लिए पाकिस्तान को साल 2020 के अक्टूबर के आखिर में 4 महीने की मियाद दी थी. ये समय फरवरी के आखिर में पूरा हो रहा है. वही पाकिस्तान अब भी सारे लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है. यही कारण है कि वो ग्रेस लिस्ट से डरा हुआ है.
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अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा जाएगी. बता दें कि पाकिस्तान पहले से ही कंगाल हो चुका है और फिलहाल कर्ज में डूबा हुआ है. अब कई मित्र देशों ने पाक को आर्थिक मदद देने से भी इनकार कर दिया है. ऐसे में उसके पास वर्ल्ड बैंक और एडीबी जैसी इंटरनेशनल संस्थाओं से ही कर्ज का आसरा है. अगर ग्रे लिस्ट बनी रहे तो ये संस्थाएं भी पाकिस्तान को कर्ज नहीं देंगी. साथ ही साथ ये भी हो सकता है कि ग्रे लिस्ट के चलते देश पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध रखने से इनकार कर दें.
अकेले पाकिस्तान संस्था की ग्रे लिस्ट में नहीं, बल्कि उसका साथ कई दूसरे देश दे रहे हैं. इनमें अल्बानिया, बहामास, बोत्सवाना, कंबोडिया, घाना, आइसलैंड, जमैका, मंगोलिया, निकारागुआ, सीरिया, युगांडा, यमन और जिम्बाब्वे शामिल हैं.