प. बंगाल चुनाव: कांग्रेस से हाथ मिलाने वाली ISF, वोट काटेगी या किंगमेकर बनेगी?

कांग्रेस व लेफ्ट के साथ आईएसएफ ने गठबंधन किया.
West Bengal Elections 2021 : कांग्रेस के असंतुष्टों G-23 के निशाने पर आई अब्बास सिद्दीकी (Abbas Siddiqui) की नई पार्टी बंगाल में कैसी राजनीति को लेकर खड़ी हुई है और क्यों? ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) या भाजपा (TMC vs BJP), इससे फायदा किसे होगा?
- News18Hindi
- Last Updated: March 2, 2021, 12:20 PM IST
पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के सियासी संग्राम में एक दिलचस्प मोड़ तब आ गया, जब इंडियन सेक्युलर फ्रंट (Indian Secular Front) के साथ कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट (Congress-Left Alliance) ने हाथ मिला लिया. जैसे ही ये खबरें ब्रेक हुईं तो पहली कड़वी प्रतिक्रिया कांग्रेस के भीतर के ही असंतुष्टों (Congress Dissents) यानी G-23 समूह से आई, जिसने इस गठजोड़ पर नाराज़गी और दुख जताया. अब सवाल है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (Trinmool Congress) और भाजपा के बीच खास मुकाबले के मद्देनज़र कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन में नई पार्टी का शामिल होना बंगाल चुनाव (Bengal Elections) में क्या अहमियत रखता है?
चुनावी समीकरणों पर आने से पहले जानिए कि ISF एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे फुरफुरा शरीफ के धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीकी ने बनाया. खबरों की मानें तो कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद हुए सीट समझौते के मुताबिक ISF 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की तैयारी में है. इस पार्टी के बारे में कुछ खास बातें अब तक सामने आ चुकी हैं.
ये भी पढ़ें : 34 साल की आकांक्षा अरोड़ा, जो लड़ रही हैं UN महासचिव पद का चुनावक्या है ISF और क्यों बनी?
294 विधानसभा सीटों के लिए बंगाल में चुनाव होन जा रहे हैं. इस बीच 21 जनवरी को हुगली ज़िले के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी ने नई पार्टी ISF का ऐलान किया था. देश में अजमेर शरीफ के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाने वाला मज़ार फुरफुरा शरीफ है, जिससे जुड़े परिवार से ताल्लुक रखने वाले धर्मगुरु 34 वर्षीय अब्बास ने यह पार्टी बनाई.

अपने लक्ष्य स्पष्ट रूप से घोषित करते हुए पार्टी ने कहा कि मुस्लिमों, आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए पार्टी काम करेगी. वहीं, अब्बास के बयान के मुताबिक ममता बनर्जी ने सत्ता में आने पर नौकरियां, शिक्षा और 15 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन अब तक निभाया नहीं. अब्बास का यह भी आरोप है कि वादा तो दूर, बंगाल में हिंदू व मुस्लिमों के बीच खाई और गहरी हो गई.
ये भी पढ़ें : कौन है अनूप मांझी, जिसके अवैध 'कोयले की आंच' ममता बनर्जी के घर पहुंची
अब्बास ने कहा था कि उन्होंने ममता पर विश्वास करते हुए अपने प्रभाव के मुस्लिम समुदाय से टीएमसी के पक्ष में वोटिंग करने को कहा था, लेकिन अब उनके समर्थक छला हुआ महसूस करते हैं. इसी कारण अब्बास ने अपनी खुद की पार्टी खड़ी करने का इरादा किया. ममता बनर्जी के विरोध का एक समीकरण और है, जिसकी आगे चर्चा करते हैं.
क्या रहे ISF के चुनावी समीकरण?
अब्बास की इस पार्टी के बारे में पहले इस तरह की चर्चा चल रही थी कि बंगाल के चुनावी मैदान में ज़ोर आज़माइश करने जा रहे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ ISF का गठजोड़ हो सकता है. अब्बास और ओवैसी की एक 'सीक्रेट' किस्म की मुलाकात भी मज़ार शरीफ पर 3 जनवरी को हुई थी.
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लेकिन, फरवरी के पहले हफ्ते में ही इस तरह के अंदाज़ों पर आधारित खबरें आ गई थीं कि दोनों पार्टियों के बीच समझौता होने के आसार नहीं बन रहे. ओवैसी चुनाव अपनी लीडरशिप में लड़े जाने को लेकर अड़े थे, जिसे अब्बास ने सशर्त समझौता कहकर तरजीह देने से मना कर दिया था. आखिरकार अब्बास की पार्टी ने कांग्रेस और लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.

इस गठबंधन से किसे फायदा होगा?
ISF के बनने और कांग्रेस के साथ जुड़ने के बाद मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति खुलकर सामने आ गई है. एक तरफ, तृणमूल कांग्रेस ने इस तरह की पार्टी के वजूद पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसी पार्टियां राज्य में सांप्रदायिक भेदभाव पैदा करती हैं, जिनका कोई आधार नहीं है क्योंकि बंगाल सांप्रदायिक आधार पर वोटिंग नहीं करता.
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वहीं, भाजपा ने टीएमसी की इस अप्रोच को नाटक करार देकर कहा कि मुस्लिम वोटों को टीएमसी अपनी बपौती न समझे. बंगाल में मुस्लिम आबादी सबसे ज़्यादा पिछड़ी हुई है, यह दावा करते हुए भाजपा ने यह भी कहा कि किसी को भी राजनीतिक पार्टी बनाने का हक है और टीएमसी को इससे डरना नहीं चाहिए.
इस पूरी बहसबाज़ी से साफ है कि 'वोट काटने' की राजनीति से सभी वाकिफ हैं. कहा जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी हो या अब्बास की, इससे खास तौर से मुस्लिमों के वोट बंटेंगे तो बड़ा नुकसान टीएमसी को ही होगा. गौरतलब है कि बंगाल में करीब 30 फीसदी वोट मुस्लिम आबादी के हैं.

क्या किंगमेकर बनने की है कोशिश?
रिपोर्ट्स की मानें तो अब्बास सिद्दीकी के परिवार के ही बुज़ुर्ग तोहा सिद्दीकी फुरफुरा शरीफ के वरिष्ठ पीर हैं, जिन्हें ममता बनर्जी का करीबी माना जाता है. लेकिन उनसे अलग राह पर अब्बास के जाने की वजह यही बताई जा रही है कि वो 40 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन ममता ने इस प्रस्ताव को नहीं माना तो अब्बास ने अपनी ही नई पार्टी बनाई.
इस राजनीति का साफ इशारा यही है कि मुस्लिम वोट बैंक पर जो पार्टी कब्ज़ा करने में सफल होगी, वो एक तरह से बंगाल में सत्ता का भविष्य तय करेगी. दूसरी तरफ, जी 23 समूह के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने कांग्रेस के ISF से हाथ मिलाने को नेहरू और गांधी की पार्टी के उसूलों के खिलाफ बताकर आलोचना की.
चुनावी समीकरणों पर आने से पहले जानिए कि ISF एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे फुरफुरा शरीफ के धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीकी ने बनाया. खबरों की मानें तो कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद हुए सीट समझौते के मुताबिक ISF 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की तैयारी में है. इस पार्टी के बारे में कुछ खास बातें अब तक सामने आ चुकी हैं.

294 विधानसभा सीटों के लिए बंगाल में चुनाव होन जा रहे हैं. इस बीच 21 जनवरी को हुगली ज़िले के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी ने नई पार्टी ISF का ऐलान किया था. देश में अजमेर शरीफ के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाने वाला मज़ार फुरफुरा शरीफ है, जिससे जुड़े परिवार से ताल्लुक रखने वाले धर्मगुरु 34 वर्षीय अब्बास ने यह पार्टी बनाई.

आईएसएफ के नेता अब्बास सिद्दीकी.
अपने लक्ष्य स्पष्ट रूप से घोषित करते हुए पार्टी ने कहा कि मुस्लिमों, आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए पार्टी काम करेगी. वहीं, अब्बास के बयान के मुताबिक ममता बनर्जी ने सत्ता में आने पर नौकरियां, शिक्षा और 15 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन अब तक निभाया नहीं. अब्बास का यह भी आरोप है कि वादा तो दूर, बंगाल में हिंदू व मुस्लिमों के बीच खाई और गहरी हो गई.
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अब्बास ने कहा था कि उन्होंने ममता पर विश्वास करते हुए अपने प्रभाव के मुस्लिम समुदाय से टीएमसी के पक्ष में वोटिंग करने को कहा था, लेकिन अब उनके समर्थक छला हुआ महसूस करते हैं. इसी कारण अब्बास ने अपनी खुद की पार्टी खड़ी करने का इरादा किया. ममता बनर्जी के विरोध का एक समीकरण और है, जिसकी आगे चर्चा करते हैं.
क्या रहे ISF के चुनावी समीकरण?
अब्बास की इस पार्टी के बारे में पहले इस तरह की चर्चा चल रही थी कि बंगाल के चुनावी मैदान में ज़ोर आज़माइश करने जा रहे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ ISF का गठजोड़ हो सकता है. अब्बास और ओवैसी की एक 'सीक्रेट' किस्म की मुलाकात भी मज़ार शरीफ पर 3 जनवरी को हुई थी.
ये भी पढ़ें : किस देश ने बनाई सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार, क्या है कीमत और खासियत?
लेकिन, फरवरी के पहले हफ्ते में ही इस तरह के अंदाज़ों पर आधारित खबरें आ गई थीं कि दोनों पार्टियों के बीच समझौता होने के आसार नहीं बन रहे. ओवैसी चुनाव अपनी लीडरशिप में लड़े जाने को लेकर अड़े थे, जिसे अब्बास ने सशर्त समझौता कहकर तरजीह देने से मना कर दिया था. आखिरकार अब्बास की पार्टी ने कांग्रेस और लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.

फुरफुरा शरीफ मज़ार की तस्वीर विकिकॉमन्स से साभार.
इस गठबंधन से किसे फायदा होगा?
ISF के बनने और कांग्रेस के साथ जुड़ने के बाद मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति खुलकर सामने आ गई है. एक तरफ, तृणमूल कांग्रेस ने इस तरह की पार्टी के वजूद पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसी पार्टियां राज्य में सांप्रदायिक भेदभाव पैदा करती हैं, जिनका कोई आधार नहीं है क्योंकि बंगाल सांप्रदायिक आधार पर वोटिंग नहीं करता.
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वहीं, भाजपा ने टीएमसी की इस अप्रोच को नाटक करार देकर कहा कि मुस्लिम वोटों को टीएमसी अपनी बपौती न समझे. बंगाल में मुस्लिम आबादी सबसे ज़्यादा पिछड़ी हुई है, यह दावा करते हुए भाजपा ने यह भी कहा कि किसी को भी राजनीतिक पार्टी बनाने का हक है और टीएमसी को इससे डरना नहीं चाहिए.
इस पूरी बहसबाज़ी से साफ है कि 'वोट काटने' की राजनीति से सभी वाकिफ हैं. कहा जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी हो या अब्बास की, इससे खास तौर से मुस्लिमों के वोट बंटेंगे तो बड़ा नुकसान टीएमसी को ही होगा. गौरतलब है कि बंगाल में करीब 30 फीसदी वोट मुस्लिम आबादी के हैं.

न्यूज़18 क्रिएटिव
क्या किंगमेकर बनने की है कोशिश?
रिपोर्ट्स की मानें तो अब्बास सिद्दीकी के परिवार के ही बुज़ुर्ग तोहा सिद्दीकी फुरफुरा शरीफ के वरिष्ठ पीर हैं, जिन्हें ममता बनर्जी का करीबी माना जाता है. लेकिन उनसे अलग राह पर अब्बास के जाने की वजह यही बताई जा रही है कि वो 40 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन ममता ने इस प्रस्ताव को नहीं माना तो अब्बास ने अपनी ही नई पार्टी बनाई.
इस राजनीति का साफ इशारा यही है कि मुस्लिम वोट बैंक पर जो पार्टी कब्ज़ा करने में सफल होगी, वो एक तरह से बंगाल में सत्ता का भविष्य तय करेगी. दूसरी तरफ, जी 23 समूह के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने कांग्रेस के ISF से हाथ मिलाने को नेहरू और गांधी की पार्टी के उसूलों के खिलाफ बताकर आलोचना की.