मेन्यू कार्ड इंजीनियरिंग में कलाकारों के साथ मनोविज्ञान के जानकार भी काम करते हैं- सांकेतिक फोटो (flickr)
कोरोना के कारण वैसे तो ज्यादातर लोगों का बाहर खाना-पीना बंद है, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि रेस्त्रां जाने और मेन्यू कार्ड हाथ में लेने पर आप किस तरह की डिश ऑर्डर करते हैं. अक्सर लोग वो व्यंजन मंगाते हैं, जिसका नाम काफी लंबा हो. इसके अलावा मेन्यू कार्ड इंजीनियरिंग (menu card engineering) का भी खाने के लंबे-चौड़े ऑर्डर से काफी ताल्लुक है. होटल-रेस्त्रां मालिक इस इंजीनियरिंग पर काफी समय और पैसे लगा रहे हैं.
बाहर खानेवालों की संख्या बढ़ी
नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कोरोना से कुछ पहले एक सर्वे किया था. इसके नतीजे बताते हैं कि भारतीयों में घर से बाहर खाने का आदत लगातार बढ़ रही है. सर्वे में देश के 24 बड़े शहरों से महिलाओं और पुरुषों, दोनों को ही शामिल किया गया था. इस आंकड़े में 37% महिलाएं और 63% पुरुष दिखे जो काम करते हुए बाहर ही खाना पसंद करते हैं.
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ऑनलाइन खाना भी मंगवा रहे
लोगों को अब इसके लिए अलग से रेस्त्रां, कैफे या होटल जाने की जरूरत नहीं पड़ रही क्योंकि ऑनलाइन फूड डिलीवरी एप काफी आराम से घर या दफ्तर में ही खाना डिलीवर कर रहे हैं. वैसे खाना आप चाहे जाकर खाएं या फिर ऑनलाइन मंगवाकर, मेन्यू का इसमें बड़ा रोल होता है.
मेन्यू कार्ड बनाना और व्यंजनों के नाम तय करना एक विज्ञान है
इसके तहत कार्ड से लेकर व्यंजन का नाम इस तरह से तैयार किया जाता है कि ग्राहक खुद को ऑर्डर करने से रोक न पाए. इसे ही मेन्यू इंजीनियरिंग कहा जाता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के शोधकर्ता चार्ल्स स्पेंस के हवाले से इसकी जानकारी दी गई है कि कैसे इसे डिजाइन किया जाता है.
लंबे और मुश्किल नाम वाले व्यंजन ज्यादा खरीदे जाते हैं
इसमें ये देखा गया कि अगर किसी डिश का नाम मुश्किल सा है, तो ग्राहकों में उसकी मांग बढ़ जाती है, भले ही वो डिश मामूली ही क्यों न हो. दरअसल इंसानों में नई चीज को जानने की इच्छा ही इसके पीछे का मनोविज्ञान है, जिसका फायदा रेस्त्रां उठा रहे हैं.
कार्ड में फोंट साइज से लेकर तस्वीर के हैं मायने
व्यंजनों के लंबे नामों के अलावा डिश की तस्वीर और यहां तक कि फोंट भी मायने रखता है. अगर किसी मेन्यू कार्ड में डल तस्वीर डली हुई है या फिर फोंट जरूरत से ज्यादा छोटे या बड़े दिखें तो खाने वालों का मन बिदक जाता है और बिक्री कम होती जाती है. मेन्यू कार्ड मोटा और चिकने पेपर का हो, तो ग्राहक में खाने की काफी किस्में मिलने का भरोसा जागता है.
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इसके साथ ही सप्ताहांत या फिर रोज ही किसी डिश को अपनी खासियत बनाकर परोसना भी एक आर्ट है. इसमें एक डिश को ‘डिश ऑफ द डे’ कहते हुए उसे थोड़ा अलग तरीके से परोसा जाता है, जो अक्सर डिमांड में रहता है.
ऐसे तैयार होता है मेन्यू
वैसे मेन्यू कार्ड इंजीनियरिंग कोई नई विधा नहीं, लेकिन अब इसे मनोविज्ञान से जोड़ने पर ज्यादा फायदा हो रहा है. बड़े रेस्त्रां इसके लिए रिसर्च टीम हायर कर रहे हैं और उन्हें काफी पैसे भी दे रहे हैं. इस टीम में मनोविज्ञान के जानकार, बड़े फूड ब्लॉगर और आर्टिस्ट होते हैं जो मिलकर मेन्यू का डिजाइन तय करते हैं. साथ ही होटल की किचन टीम भी इसमें मदद करती है. शानदार रेस्त्रां या होटल का मेन्यू डिजाइन करने में लगभग सालभर लग जाता है. कई बार इससे ज्यादा समय भी लगता है.
कई बार नाम में ही बदलाव से किसी खास डिश की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है. जैसे ऐसी कोई डिश, जो किसी पुरानी या फिर बचपन की याद को ताजा करे, ऐसी डिशेज की मांग काफी ज्यादा होती है. लेकिन इसके साथ ही ये भी ध्यान रखा जा रहा है कि किसी भी डिश से किसी समुदाय की भावना आहत न हो. खासतौर पर नामी-गिरामी फूड आउटलेट इसपर ज्यादा ध्यान देते हैं.
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