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क्या है वो न्यूक्लिक टेस्ट जो अब चीन में हो रहा है

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चीन में एक बार फिर बड़े पैमाने पर लोगों का कोरोना टेस्ट (coronavirus test in China) किया जा रहा है. इस बार 90 हजार से ज्यादा लोगों पर बीजिंग (Beijing) में न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (nucleic acid test) होंगे.

क्या है वो न्यूक्लिक टेस्ट जो अब चीन में हो रहा हैदिल्ली सरकार ने नया कोविड रिसपॉंस प्लान तैयार किया है. (सांकेतिक तस्वीर)(Photo-pixabay)
चीन की चिंता एक बार फिर बढ़ने लगी है. वुहान (Wuhan) के बाद अब बीजिंग में कोरोना के 67 नए मामले (coronavirus cases in Beijing) दिख हैं. ये सभी मामले थोक बाजार शिनफादी मार्केट से फैले हैं, जहां से लगभग 90 फीसदी मीट और सब्जियां बीजिंग के कोने-कोने तक जाती हैं. इस बाजार में मछली काटने के बोर्ड पर कोरोना वायरस मिला. इसके चीन में एक बार फिर हड़कंप मच गया. तुरंत बीजिंग के सारे थोक बाजार बंद कर दिए गए और लोगों की जांच शुरू हुई. बाजार और उसके आसपास के रिहायशी इलाकों में 90 हजार लोगों का इस बार न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (nucleic acid test) हो रहा है. जानिए, क्या है ये टेस्ट और कोरोना के मामले में कितने पक्के नतीजे देता है.

फिलहाल कोरोना के टेस्ट के लिए Food and Drug Administration (FDA) ने 2 तरह के टेस्ट को मंजूरी दी है. इनमें से पहला है न्यूक्लिक एसिड टेस्ट. इसे मॉलिक्यूलर टेस्ट, जेनेटिक टेस्ट या पीसीआर टेस्ट भी कहा जाता है. जांच के दूसरे तरीके को एंटीबॉडी टेस्ट कहते हैं. इसे सेरोलॉजी जांच भी कहते हैं. हालांकि पहला ही तरीका ज्यादा चलन में है.

न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के तहत संदिग्ध का रेस्पिरेटरी सैंपल लिया जाता है. इसमें नेसोफेरिंजिअल स्वाब के जरिए नाक और गले से नमूना लेते हैं. कोशिश की जाती है कि गले के भीतर से जैसे बलगम का या फ्लूइड का सैंपल लिया जा सके ताकि जांच का नतीजा पक्का आए. ये तरीका न्यूमोनिया के मरीज की जांच के लिए भी अपनाया जाता है.

न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के तहत संदिग्ध का रेस्पिरेटरी सैंपल लिया जाता है


सैंपल लेने के बाद उससे RNA निकाला जाता है, जिसे DNA में बदला जाता है और फिर आगे जांच होती है. इसमें देखा जाता है कि कहीं मरीज कोरोना से एक्टिवली संक्रमित तो नहीं. जेनेटिक मटेरियल को देखने पर यह पता लगता है कि क्या मरीज का RNA वायरस से ग्रस्त है. ऐसा होने पर वायरस की पुष्टि हो जाती है.

न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के पॉजिटिव होने पर आइसोलेशन और इलाज की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. हल्के लक्षणों वाले मरीजों को घर पर ही इलाज दिया जाता है. वहीं स्थिति अगर गंभीर हो तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करना होता है.

कई बार न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के नतीजे गलत भी आ जाते हैं. खासकर फाल्स निगेटिव. ये तब होता है जब मरीज में वायरल लोड काफी कम हो यानी बीमारी शुरुआती अवस्था में हो. कई बार टेस्ट ठीक न होने पर भी नतीजे फॉल्स निगेटिव आते हैं, जबकि व्यक्ति कोरोना पॉजटिव होता है. यही वजह है कि अमेरिकन सोसायटी फॉर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ने इसके लिए एक-एक स्टेप साफ-साफ बताया है.

अमेरिकन सोसायटी फॉर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ने इसके लिए एक-एक स्टेप साफ-साफ बताया है


टेस्ट के दूसरे तरीके यानी एंटीबॉडी टेस्ट में संदिग्ध का ब्लड सैंपल लिया जाता है. ये टेस्ट इल लाइन पर होता है कि अगर कोई बीमारी के संपर्क में आया हो और ठीक हो गया हो तो उसके शरीर में इसके लिए एंटीबॉडी मिलती है. संदिग्ध के ब्लड सैंपल को एक खास एंटीजन से मिलाया जाता है. अगर मरीज के शरीर में एंटीबॉडी होती है तो वो एंटीडन से जुड़ जाती है और सैंपल का कलर चेंज हो जाता है. इसका मतलब है कि व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव रह चुका है. हालांकि इस टेस्ट का ये मतलब नहीं है कि व्यक्ति अभी भी पॉटजिव होगा. ये माना जाता है कि वो किसी वक्त संक्रमित रहा होगा और अब उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार हो चुकी है.

वैसे फिलहाल कोरोना के मरीजों की जांच के लिए एंटीबॉडी टेस्ट को उतना प्रभावी नहीं माना जा रहा क्योंकि एंटीबॉडी बनने में 1 से 2 हफ्ते का वक्त लगता है. इस दौरान मरीज में संक्रमण खतरनाक हो सकता है. कोरोना के मामले में फिलहाल ये भी पता नहीं लग सका है कि एक बार वायरस के संपर्क में आने और एंटीबॉडी बनने के कितने दिनों तक मरीज वायरस से सुरक्षित रह सकेगा इसलिए इस तरीके पर भरोसा करने के बाद किसी को दोबारा एक्सपोज होने के लिए छोड़ना भी खतरनाक हो सकता है.

थोक मार्केट में मछली काटने के बोर्ड पर कोरोना मिलने के बाद से स्थानीय प्रशासन अब तक 29,386 लोगों पर न्यूक्लिक एसिड टेस्ट कर चुकी है और माना जा रहा है कि अगले 2 दिनों में पूरे 90 हजार टेस्ट हो जाएंगे. बता दें कि शिनफादी बाजार जहां मामला आया है, वो 112 हेक्टेयर में फैला है, जहां 30 मई से लेकर अब तक 2 लाख से ज्यादा रिटेल व्यापारी और आम लोग भी आ चुके हैं. यही वजह है कि चीन की सरकार की चिंता बढ़ गई है. सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स' के मुताबिक चीन के विशेषज्ञ इसे कोरोना की दूसरी लहर से जोड़ रहे हैं.

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