झारखंड के नये मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) शपथ लेने के साथ ही एक्शन मोड में आ गये हैं. उन्होंने झारखंड मंत्रालय पहुंचकर पहली कैबिनेट की बैठक (Cabinet Meeting) की. इसमें मंत्री आलमगीर आलम, रामेश्वर उरांव और सत्यानंद भोक्ता ने भी हिस्सा लिया. कैबिनेट की बैठक में 3 महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला लिया गया. हेमंत कैबिनेट ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और पत्थलगड़ी मामले में दर्ज एफआईआर वापस लेने का निर्देश दिया है. इसी के साथ पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है.
क्या है पत्थलगड़ी
झारखंड आदिवासी पहचान वाला राज्य है. इसकी अपनी परंपरा और संस्कृति है. पत्थलगड़ी (सीमांकन) भी एक परंपरा है. लेकिन इसको लेकर राज्य के कई हिस्से में विवाद और अराजक स्थिति बन गई थी.
पत्थलगड़ी यानी पत्थर गाड़ना. आदिवासी समाज में एक व्यवस्था है जिसके तहत किसी खास मकसद को लेकर एक सीमांकन किया जाता है. जनहित में इस्तेमाल के लिए मूलरूप से इसका उपयोग होता है. पत्थलगड़ी को लकेर राज्य के खूंटी ,गुमला ,सिमडेगा ,चाईबासा ,सरायकेला जैसे स्थानों पर पत्थर गाड़ कर सीमांकन किया जाता है. यानी इसके अंदर आदिवासी समाज का अपना कानून लागू होगा. किसी बाहरी का प्रवेश निषेध रहता है. कोई बाहरी आदमी इस क्षेत्र में बिना ग्राम प्रधान की अनुमति के प्रवेश नहीं कर सकता है. विवाद का यही कारण है.
कब तेज हुआ आंदोलन
साल 2017-18 में झारखंड आदिवासी बाहुल्य गांव भारत से स्वायत्तता की घोषणा कर चुके हैं. कुछ लोग इसे 'आदिवासी गलियारा' कहते हैं तो कुछ अन्य इसे 'आदिवासिस्तान' कहते हैं. इन पत्थरों को स्थापित करने वाले गांवों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पत्थरों की स्थापना सांकेतिक रूप से इस बात की सूचना है कि भारत सरकार के कानून यहां नहीं चलते. सीआरपीसी व आईपीसी यहां पर लागू नहीं होते. गांवों के अंदर पुलिसबल सहित गैर-आदिवासियों को आने की इज़ाजत नहीं है और नई गठित ग्राम सभाएं कार्यकारी, न्यायपालिका और विधायिका तीनों की भूमिकाएं अपने हाथों में ले रही हैं. चोरी से लेकर हत्या तक के मामलों का निर्णय ग्राम सभाएं खुद अपने स्तर से कर रही हैं. यहां तक कि ये गांव अपने खुद के स्कूल चलाते हैं. इन स्कूलों में सरकारी स्कूलों से जबरन बाहर निकाले गए बच्चों को दाखिला दिया जाता है और उनमें भी इस आंदोलन का प्रचार किया जाता है.
पत्थलगड़ी: कारण क्या हैं
पत्थलगड़ी के तेजी से बढ़ने के कारण बहुत सारे कारण हैं - कई पुलिस अधिकारी ऑफ द रिकॉर्ड कहते है कि झारखंड में नक्सली अफीम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं और पत्थलगड़ी आंदोलन इसको ढकने का की कोशिश है. कुछ लोगों का कहना है कि ये विपक्षी पार्टियों की सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आदिवासियों को खड़ा करने की एक चाल है. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह ईसाई मिशनरियों की एक चाल है ताकि वो इन क्षेत्रों में अशांति पैदा करके अपने प्रभाव को बना के रख पाएं.
ऐसा ही एक गांव सोनपुर है. पत्थलगड़ी समारोह पर हुई न्यूज 18 की एक रिपोर्ट भी हुई थी. इस समारोह में हजारों आदिवासी, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, उनमें से लगभग 3,000 लोग धनुष, तीर, गंड़ासा और कुल्हाड़ी लेकर आए थे, जैसे कि वो जंग लड़ने जा रहे हों. ऐसे ही एक विशाल समारोह का उद्घाटन एक भगौड़े आदिवासी नेता जोसेफ पूर्ति ने किया. झारखंड के खूंटी ज़िले में 60 से ज़्यादा गांव अब पत्थलगड़ी गांव बन चुके हैं. हालांकि कुछ गांव ऐसे भी हैं जो कि स्वशासन की बात नहीं करते. लेकिन आदिवासियों का यह दर्द पूरी तरह से गलत नहीं है. आदिवासी बताते हैं कि किस तरह से वर्षों से उनकी अनदेखी की गई. उन क्षेत्रों में आज भी अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, उनके पास पीने को पानी नहीं है और आज तक बिजली नहीं पहुंची है.
रिपोर्ट में आदिवासियों ने बताया था कि बड़े-बड़े बांध वाली परियोजनाओं के कारण वो बेघर हो गए क्योंकि राज्य सरकार ने न ही कोई मुआवजा दिया और न ही रहने के लिए दूसरा घर दिया. उद्योंगों ने उनके गांवों को पूरी तरह से निगल लिया और उन्हें बेघर कर दिया. इसलिए वे नाराज़ हैं. जब इन फल-फूल रहे उद्योगों से भी उन्हें कुछ नहीं मिला तो वो अपने को और भी कटा हुआ और उपेक्षित महसूस करने लगे.
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Tags: Hemant soren, Jharkhand news
FIRST PUBLISHED : December 30, 2019, 17:54 IST