क्या है रेवेन्यू पुलिस, 160 साल पुराने ब्रिटिश सिस्टम से क्यों मुश्किल है निजात?

उत्तराखंड पुलिसकर्मियों की तस्वीर.
अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने के सालों बाद भी वो व्यवस्था (British Period System) बनी हुई हैं, जिसे 19वीं सदी के हालात के हिसाब से लागू किया गया था. अब यह लड़ाई नौकरशाही (Bureaucracy) और खाकी की हो गई है, जिसमें राजनीति कोई रुख नहीं अपना पा रही है.
- News18India
- Last Updated: December 16, 2020, 9:55 AM IST
पिछले कई सालों से कोशिश चल रही है कि उत्तराखंड को उस राजस्व पुलिस (Revenue Policing in Uttarakhand) से छुटकारा दिलाया जा सके, जो राज्य के करीब 60% हिस्से पर सिविल पुलिस (Civil Police) की भरपाई करती है. जी हां, उत्तराखंड इकलौता राज्य है, जहां आधे से ज़्यादा हिस्से में पुलिस यानी खाकी वर्दी की व्यवस्था नहीं है. 1861 में ब्रिटिश राज के दौरान यहां पहाड़ी ज़िलों में रेवेन्यू पुलिस सिस्टम (Revenue Policing System) शुरू हुआ था, जिसके तहत राजस्व अधिकारियों (Revenue Officers) को पुलिस के बराबर अधिकार हासिल थे और वो किसी भी केस की जांच कर सकते थे.
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सिस्टम के करीब 160 साल और ब्रिटिशों से देश को आज़ादी मिलने के 73 साल बाद भी उत्तराखंड में यह व्यवस्था बनी हुई है? यह व्यवस्था तब भी बनी हुई है, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को एक राज्य बने हुए 20 साल हो चुके हैं. यह ज़रूरत कई बार महसूस की जा चुकी है कि रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किया जाए, लेकिन यह जी का जंजाल बना हुआ है.
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क्या है रेवेन्यू पुलिस सिस्टम?उत्तराखंड में कुल नौ पर्वतीय व चार मैदानी ज़िले हैं. ब्रिटिश राज में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसके मुताबिक राजस्व क्षेत्रों में होने वाले हर किस्म के अपराध की जांच राजस्व पुलिस ही करती है. उत्तराखंड के सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्से में सिविल पुलिस है और राजस्व पुलिस के क्षेत्र में बीते कुछ सालों में अपराध का ग्राफ बढ़ता रहा है. चूंकि ब्रिटिश राज में यहां अपराध बहुत कम थे इसलिए रेवेन्यू पुलिस सिस्टम बनाया गया था, जो अब प्रासंगिक नहीं रहा.

रेवेन्यू पुलिस बनाम सिविल पुलिस
उत्तराखंड में एक हजार से अधिक पटवारी सर्किलों में से 30 फीसदी खाली पड़े हैं. नतीजा यह है कि ये रेवेन्यू पुलिस अपराधों की जांच सही तरीके और कुशलता से नहीं कर पाती. स्टाफ के साथ ही संसाधन भी रेवेन्यू पुलिस के पास कम हैं. दूसरी तरफ, गंभीर अपराधों के मामले सिविल पुलिस को ही सौंपे जाने लगे हैं क्योंकि उसके पास स्टाफ और संसाधन पर्याप्त हैं.
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इन तमाम हालात के मद्देनज़र एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यहां सिविल पुलिस सिस्टम बनाने को लेकर निर्देश दिए थे. इस आदेश पर प्रदेश सरकार ने संसाधनों की कमी के हवाले से सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ से राजस्व क्षेत्रों में पुलिस थाने खोले जाते रहे हैं और नए थानों की घोषणा पिछले दिनों की गई. हालांकि पूरे राजस्व क्षेत्र को सिविल पुलिस के तहत लाए जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उसके हिसाब से ही होगा.
लेकिन, यह मामला इतना आसान नहीं है कि फ़ौरन फ़ैसला हो जाए और रेवेन्यू पुलिस से छुटकारा मिल जाए. जानिए कि कौन से पेंच उलझे हुए हैं.
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आईएएस बनाम आईपीएस की लड़ाई?
आंकड़ों के हवाले से पुलिस अफसर कहते रहे हैं कि एक दशक पहले तक राजस्व क्षेत्रों में अपराध गंभीर और ज़्यादा नहीं थे. लेकिन अपराधों की संख्या और प्रवृत्ति गंभीर होने के बाद यहां रेवेन्यू पुलिस सिस्टम नाकाफी और कमज़ोर साबित हो चुका है. पुलिस और प्रशासन के हवाले से यह भी कहा जा चुका है कि सिविल पुलिस पूरे इलाके को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिए तैयार भी है.

पिछले कुछ सालों से प्रशासनिक स्तर पर कई तरह की कमेटियां बनाकर रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किए जाने की कवायद की जा चुकी है, लेकिन कोशिशें रंग नहीं ला सकी हैं. एक पुलिस अफसर के हवाले से ताज़ा खबरों में कहा गया कि यहां अस्ल में, आईएएस और आईपीएस अफसरों के बीच लड़ाई का मुद्दा बन चुका है. 'आईएएस लॉबी का मानना है कि रेवेन्यू सिस्टम से आधे से ज़्यादा राज्य पर उनका वर्चस्व रह सकता है.'
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लेकिन इसका दूसरा पहलू रिटायर्ड डीजीपी आलोक बी लाल के शब्दों में यह भी है कि आईएएस बनाम आईपीएस लड़ाई से ज़्यादा बड़ी वजह राज्य में इस सिस्टम को लेकर 'राजनीतिक इच्छाशक्ति' का न होना रहा है. राज्य के आधुनिकीकरण के लिए लाल और कई जानकार मानते हैं कि सामान्य सिस्टम बहाल होना ज़रूरी है.
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क्या खत्म हो सकेगी रेवेन्यू पुलिसिंग?
यह मामला अचानक फिर इसलिए सुर्खियों में आ गया है क्योंकि राज्य के गृह सचिव नीतेश झा ने तीन सदस्यों की हाई प्रोफाइल कमेटी बना दी है, जो रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को किस तरह खत्म किया जाए, इस पर सहमति और रूपरेखा बनाएगी. हालांकि इस कमेटी में आईएएस और आईपीएस दोनों ही सेवाओं के अधिकारी शामिल हैं, लेकिन जानकार और कुछ पुलिस अफसर अब भी मान रहे हैं कि वर्चस्व की जंग बन चुका यह मामला आसानी से सुलझने वाला नहीं है.
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सिस्टम के करीब 160 साल और ब्रिटिशों से देश को आज़ादी मिलने के 73 साल बाद भी उत्तराखंड में यह व्यवस्था बनी हुई है? यह व्यवस्था तब भी बनी हुई है, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को एक राज्य बने हुए 20 साल हो चुके हैं. यह ज़रूरत कई बार महसूस की जा चुकी है कि रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किया जाए, लेकिन यह जी का जंजाल बना हुआ है.
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क्या है रेवेन्यू पुलिस सिस्टम?उत्तराखंड में कुल नौ पर्वतीय व चार मैदानी ज़िले हैं. ब्रिटिश राज में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसके मुताबिक राजस्व क्षेत्रों में होने वाले हर किस्म के अपराध की जांच राजस्व पुलिस ही करती है. उत्तराखंड के सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्से में सिविल पुलिस है और राजस्व पुलिस के क्षेत्र में बीते कुछ सालों में अपराध का ग्राफ बढ़ता रहा है. चूंकि ब्रिटिश राज में यहां अपराध बहुत कम थे इसलिए रेवेन्यू पुलिस सिस्टम बनाया गया था, जो अब प्रासंगिक नहीं रहा.

उत्तराखंड के ज़िलो का नक्शा विकिकॉमन्स से साभार.
रेवेन्यू पुलिस बनाम सिविल पुलिस
उत्तराखंड में एक हजार से अधिक पटवारी सर्किलों में से 30 फीसदी खाली पड़े हैं. नतीजा यह है कि ये रेवेन्यू पुलिस अपराधों की जांच सही तरीके और कुशलता से नहीं कर पाती. स्टाफ के साथ ही संसाधन भी रेवेन्यू पुलिस के पास कम हैं. दूसरी तरफ, गंभीर अपराधों के मामले सिविल पुलिस को ही सौंपे जाने लगे हैं क्योंकि उसके पास स्टाफ और संसाधन पर्याप्त हैं.
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इन तमाम हालात के मद्देनज़र एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यहां सिविल पुलिस सिस्टम बनाने को लेकर निर्देश दिए थे. इस आदेश पर प्रदेश सरकार ने संसाधनों की कमी के हवाले से सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ से राजस्व क्षेत्रों में पुलिस थाने खोले जाते रहे हैं और नए थानों की घोषणा पिछले दिनों की गई. हालांकि पूरे राजस्व क्षेत्र को सिविल पुलिस के तहत लाए जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उसके हिसाब से ही होगा.
लेकिन, यह मामला इतना आसान नहीं है कि फ़ौरन फ़ैसला हो जाए और रेवेन्यू पुलिस से छुटकारा मिल जाए. जानिए कि कौन से पेंच उलझे हुए हैं.
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आईएएस बनाम आईपीएस की लड़ाई?
आंकड़ों के हवाले से पुलिस अफसर कहते रहे हैं कि एक दशक पहले तक राजस्व क्षेत्रों में अपराध गंभीर और ज़्यादा नहीं थे. लेकिन अपराधों की संख्या और प्रवृत्ति गंभीर होने के बाद यहां रेवेन्यू पुलिस सिस्टम नाकाफी और कमज़ोर साबित हो चुका है. पुलिस और प्रशासन के हवाले से यह भी कहा जा चुका है कि सिविल पुलिस पूरे इलाके को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिए तैयार भी है.

उत्तराखंड का पुलिस महानिदेशक मुख्यालय भवन. (File Photo)
पिछले कुछ सालों से प्रशासनिक स्तर पर कई तरह की कमेटियां बनाकर रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किए जाने की कवायद की जा चुकी है, लेकिन कोशिशें रंग नहीं ला सकी हैं. एक पुलिस अफसर के हवाले से ताज़ा खबरों में कहा गया कि यहां अस्ल में, आईएएस और आईपीएस अफसरों के बीच लड़ाई का मुद्दा बन चुका है. 'आईएएस लॉबी का मानना है कि रेवेन्यू सिस्टम से आधे से ज़्यादा राज्य पर उनका वर्चस्व रह सकता है.'
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लेकिन इसका दूसरा पहलू रिटायर्ड डीजीपी आलोक बी लाल के शब्दों में यह भी है कि आईएएस बनाम आईपीएस लड़ाई से ज़्यादा बड़ी वजह राज्य में इस सिस्टम को लेकर 'राजनीतिक इच्छाशक्ति' का न होना रहा है. राज्य के आधुनिकीकरण के लिए लाल और कई जानकार मानते हैं कि सामान्य सिस्टम बहाल होना ज़रूरी है.
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क्या खत्म हो सकेगी रेवेन्यू पुलिसिंग?
यह मामला अचानक फिर इसलिए सुर्खियों में आ गया है क्योंकि राज्य के गृह सचिव नीतेश झा ने तीन सदस्यों की हाई प्रोफाइल कमेटी बना दी है, जो रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को किस तरह खत्म किया जाए, इस पर सहमति और रूपरेखा बनाएगी. हालांकि इस कमेटी में आईएएस और आईपीएस दोनों ही सेवाओं के अधिकारी शामिल हैं, लेकिन जानकार और कुछ पुलिस अफसर अब भी मान रहे हैं कि वर्चस्व की जंग बन चुका यह मामला आसानी से सुलझने वाला नहीं है.