क्या है IPC सेक्शन 124A, जिसे कंगना रनौत केस में लगाने से हाई कोर्ट हुआ नाराज़

न्यूज़18 क्रिएटिव
26 नवंबर भारतीय संविधान/कानून दिवस (National Constitution/Law Day) विशेष : (Constitution of India) में यह व्यवस्था है तो राजद्रोह का मुकदमा (Sedition Case) क्या सिर्फ इसलिए चल सकता है कि आप सरकार के खिलाफ कुछ कहते हैं?
- News18India
- Last Updated: November 26, 2020, 10:43 AM IST
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के हिसाब से राजद्रोह क्या है? इसके लिए आईपीसी में एक पूरी धारा है, जिसका इस्तेमाल पहले कम किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से काफी ज़्यादा हो रहा है. बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल में मुंबई पुलिस को फटकारते हुए कहा कि बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत (Actress Kangana Ranaut) के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे में धारा 124 ए क्यों लगाई गई? कोर्ट ने साफ तौर पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि 'अगर कोई व्यक्ति सरकार के विचार से सहमत नहीं है, तो क्या उसे राजद्रोह मान लिया जाएगा?'
सामान्य भाषा में इसे 'देशद्रोह' भी कहा जाता है, लेकिन शब्दों के गूढ़ अर्थ में फर्क है. कानूनी भाषा में इसे देशद्रोह कहना ठीक नहीं है. कंगना के मामले के बहाने, भारतीय संविधान और कानून की बेहद खास और अहम धारा 124 ए के बारे में बताने के साथ ही इससे जुड़ी बहस की भी चर्चा करते हैं. यह भी जानिएगा कि क्यों और कैसे इसके केस बेतहाशा बढ़ गए हैं.
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क्या है राजद्रोह कानून का आधार?राजद्रोह के मामलों में आईपीसी की जो धारा 124A लगाई जाती है, वास्तव में उसे थॉमस बैबिंगटन मैकाले ने ड्राफ्ट किया था और इसे आईपीसी में 1870 में शामिल किया गया था. जी हां, ये वही मैकाले हैं, जिन्हें भारत में 'पिछड़ी शिक्षा नीति' का खलनायक माना जाता रहा.

क्या कहती है धारा 124A?
'यदि कोई भी व्यक्ति बोले या लिखे गए शब्दों, संकेतों, या किसी भी विज़िबल रूप में या किसी और तरह से भारत में कानूनन चुनी गई सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काने की कोशिश या अवहेलना या नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास तक का दंड दिया जा सकता है.' आईपीसी में इस धारा को लेकर यह उल्लेख है.
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क्या हैं सज़ा के प्रावधान?
गंभीर मामलों में आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान इस धारा के तहत है, लेकिन मामलों की गंभीरता को देखते हुए तीन साल की कैद की सज़ा भी हो सकती है. साथ ही, जुर्माने का भी प्रावधान है. यानी जुर्मानके साथ तीन साल से लेकर उम्र कैद तक हो सकती है. इस मामले में जिस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चले, वो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता. ऐसे व्यक्ति को पासपोर्ट भी नहीं मिलता.
क्या है धारा 124A पर बहस?
महात्मा गांधी ने इसे 'नागरिकों की स्वतंत्रता का दमन करने वाला कानून' करार दिया था. पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस कानून को 'घिनौना और बेहद आपत्तिजनक' बताकर कहा था कि इससे जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए. समय समय पर इस कानून को लेकर राजनीतिक बहस चलती रही, लेकिन यह कानून कायम रहा.

जुलाई 2019 में, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में सांसद बी प्रकाश के एक सवाल के जवाब में कहा था :
आईपीसी में राजद्रोह संबंधी कानून वाली धारा को हटाए जाने को लेकर न तो कोई प्रस्ताव है और ही विचार. इन प्रावधानों की ज़रूरत है ताकि देश विरोधियों, अलगाववादियों और आतंकी तत्वों से असरदार ढंग से निपटा जा सके.
राय के इस जवाब और सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देशों के बावजूद देश में धारा 124A के दुरुपयोग के मामले दर्ज होते रहे हैं. उदाहरण के तौर पर केदारनाथ सिंह बनाम बिहार स्टेट मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'भले ही कठोर शब्द कहे गए हों, लेकिन अगर वो हिंसा नहीं भड़काते हैं तो राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता.' इसी तरह, बलवंत सिंह बनाम पंजाब स्टेट मुकदमे में कोर्ट ने कहा था कि 'खालिस्तानी समर्थक नारेबाज़ी राजद्रोह के दायरे में इसलिए नहीं थी क्योंकि समुदाय के और सदस्यों ने इस नारे पर कोई रिस्पॉंस नहीं दिया.'
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और क्या कहता है डेटा?
देश भर में पुलिस ने कितने मामलों में राजद्रोह के केस दर्ज किए? एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक 2014 में 47, 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 ऐसे केस दर्ज हुए थे. हालांकि इनमें से गिनती के एकाध मुकदमे में ही आरोपी को दोषी माना गया. इसके बाद 2019 से इस धारा के तहत मुकदमे दर्ज करने की बाढ़ अचानक आई. नागरिकता संबंधी सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वाले 3000 लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ.

इसके अलावा, भूमि विवादों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे 3300 किसानों के खिलाफ धारा 124A के तहत मुकदम दर्ज किए गए. साथ ही, कई पत्रकारों, लेखकों और एक्टिविस्टों के खिलाफ भी ये केस दर्ज हुए. यह भी गौरतलब है कि भारत में UAPA एक अलग से कानून है और 2018 में इसके तहत 1182 मामले दर्ज हुए. ऐसे में धारा 124A की ज़रूरत पर चर्चा की ज़रूरत बनी हुई है.
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अपनी किताब 'द ग्रेट रिप्रेशन - द स्टोरी ऑफ सेडिशन इन इंडिया' में मशहूर वकील चित्रांशुल सिन्हा ने चर्चा की है कि भारत गुलामी के समय के एक कानून को ढो रहा है, जिसे महज़ अपवाद स्वरूप या बेहद जटिल आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. विडंबना यह भी है कि इसी तरह के एक कानून UAPA को 1967 में लागू कर दिया गया था यानी धारा 124A विचारणीय तो है ही.
सामान्य भाषा में इसे 'देशद्रोह' भी कहा जाता है, लेकिन शब्दों के गूढ़ अर्थ में फर्क है. कानूनी भाषा में इसे देशद्रोह कहना ठीक नहीं है. कंगना के मामले के बहाने, भारतीय संविधान और कानून की बेहद खास और अहम धारा 124 ए के बारे में बताने के साथ ही इससे जुड़ी बहस की भी चर्चा करते हैं. यह भी जानिएगा कि क्यों और कैसे इसके केस बेतहाशा बढ़ गए हैं.
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क्या है राजद्रोह कानून का आधार?राजद्रोह के मामलों में आईपीसी की जो धारा 124A लगाई जाती है, वास्तव में उसे थॉमस बैबिंगटन मैकाले ने ड्राफ्ट किया था और इसे आईपीसी में 1870 में शामिल किया गया था. जी हां, ये वही मैकाले हैं, जिन्हें भारत में 'पिछड़ी शिक्षा नीति' का खलनायक माना जाता रहा.

ब्रिटिश राज के दौरान मैकाले ने भारत के लिए कई नीतिगत प्रारूप तैयार किए थे.
क्या कहती है धारा 124A?
'यदि कोई भी व्यक्ति बोले या लिखे गए शब्दों, संकेतों, या किसी भी विज़िबल रूप में या किसी और तरह से भारत में कानूनन चुनी गई सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काने की कोशिश या अवहेलना या नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास तक का दंड दिया जा सकता है.' आईपीसी में इस धारा को लेकर यह उल्लेख है.
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क्या हैं सज़ा के प्रावधान?
गंभीर मामलों में आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान इस धारा के तहत है, लेकिन मामलों की गंभीरता को देखते हुए तीन साल की कैद की सज़ा भी हो सकती है. साथ ही, जुर्माने का भी प्रावधान है. यानी जुर्मानके साथ तीन साल से लेकर उम्र कैद तक हो सकती है. इस मामले में जिस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चले, वो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता. ऐसे व्यक्ति को पासपोर्ट भी नहीं मिलता.
क्या है धारा 124A पर बहस?
महात्मा गांधी ने इसे 'नागरिकों की स्वतंत्रता का दमन करने वाला कानून' करार दिया था. पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस कानून को 'घिनौना और बेहद आपत्तिजनक' बताकर कहा था कि इससे जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए. समय समय पर इस कानून को लेकर राजनीतिक बहस चलती रही, लेकिन यह कानून कायम रहा.

भारतीय संविधान में नागरिकों को सरकार की आलोचना का अधिकार दिया गया है.
जुलाई 2019 में, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में सांसद बी प्रकाश के एक सवाल के जवाब में कहा था :

राय के इस जवाब और सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देशों के बावजूद देश में धारा 124A के दुरुपयोग के मामले दर्ज होते रहे हैं. उदाहरण के तौर पर केदारनाथ सिंह बनाम बिहार स्टेट मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'भले ही कठोर शब्द कहे गए हों, लेकिन अगर वो हिंसा नहीं भड़काते हैं तो राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता.' इसी तरह, बलवंत सिंह बनाम पंजाब स्टेट मुकदमे में कोर्ट ने कहा था कि 'खालिस्तानी समर्थक नारेबाज़ी राजद्रोह के दायरे में इसलिए नहीं थी क्योंकि समुदाय के और सदस्यों ने इस नारे पर कोई रिस्पॉंस नहीं दिया.'
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और क्या कहता है डेटा?
देश भर में पुलिस ने कितने मामलों में राजद्रोह के केस दर्ज किए? एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक 2014 में 47, 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 ऐसे केस दर्ज हुए थे. हालांकि इनमें से गिनती के एकाध मुकदमे में ही आरोपी को दोषी माना गया. इसके बाद 2019 से इस धारा के तहत मुकदमे दर्ज करने की बाढ़ अचानक आई. नागरिकता संबंधी सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वाले 3000 लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ.

कंगना रनौत अपने बयानों के बाद महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस के साथ विवादों में रहीं.
इसके अलावा, भूमि विवादों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे 3300 किसानों के खिलाफ धारा 124A के तहत मुकदम दर्ज किए गए. साथ ही, कई पत्रकारों, लेखकों और एक्टिविस्टों के खिलाफ भी ये केस दर्ज हुए. यह भी गौरतलब है कि भारत में UAPA एक अलग से कानून है और 2018 में इसके तहत 1182 मामले दर्ज हुए. ऐसे में धारा 124A की ज़रूरत पर चर्चा की ज़रूरत बनी हुई है.
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अपनी किताब 'द ग्रेट रिप्रेशन - द स्टोरी ऑफ सेडिशन इन इंडिया' में मशहूर वकील चित्रांशुल सिन्हा ने चर्चा की है कि भारत गुलामी के समय के एक कानून को ढो रहा है, जिसे महज़ अपवाद स्वरूप या बेहद जटिल आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. विडंबना यह भी है कि इसी तरह के एक कानून UAPA को 1967 में लागू कर दिया गया था यानी धारा 124A विचारणीय तो है ही.