निर्भया केस (Nirbhaya Case) के दोषियों की फांसी (death penalty) में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. तिहाड़ जेल प्रशासन (Jail Authority) फांसी देने की तैयारी में लग गया है. फांसी देने के लिए जल्लाद और रस्सी मंगवाई जा रहे हैं. ऐसे में एक सवाल उठता है कि आखिर फांसी देते वक्त सजा पाए व्यक्ति का क्या हाल होता है? फांसी की सजा पाए कई अपराधियों के अंतिम वक्त का रिकॉर्ड मिलता है. बड़े से बड़ा अपराधी फांसी के फंदे पर झूलने से पहले कांपने लगता है.
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. गोडसे के साथ उसके साथी नारायण आप्टे को भी इसी दिन फांसी मिली थी. उस वक्त अंबाला सेंट्रल जेल में एक पेड़ पर दोनों को फांसी पर लटकाया गया था.
फांसी से पहले डरा हुआ था गोडसे
फांसी पर चढ़ने से पहले नाथूराम गोडसे काफी डरा हुआ था. फांसी दिए जाने के स्थान पर ले जाते वक्त उसके कदम लड़खड़ा रहे थे. वो खुद को निर्भीक दिखाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन उसमें कामयाब नहीं हो पा रहा था. बीच-बीच में वो अखंड भारत का जोर से नारा लगाने की कोशिश करता. लेकिन उसकी आवाज भी लड़खड़ा जाती.
इसी तरह से 31 जनवरी 1982 को तिहाड़ जेल में खूंखार हत्यारों रंगा और बिल्ला को फांसी दी गई थी. 1978 में रंगा और बिल्ला ने रेप और हत्या की वारदात को अंजाम दिया था. रंगा के बारे में कहा जाता है कि वो खुशमिजाज इंसान था. अपने आखिरी वक्त तक उसे इस बात की ज्यादा परवाह नहीं थी कि उसे फांसी की सजा दी जा रही है.
फांसी पर चढ़ते वक्त काला पड़ गया था रंगा-बिल्ला का चेहरा
वहीं बिल्ला की हालत खराब थी. वो हर वक्त रोता रहता था. वो हमेशा कहता कि उसने कोई अपराध नहीं किया है, उसे रंगा ने फंसा दिया. जेल में दोनों का झगड़ा होता रहता.
रंगा और बिल्ला को फांसी देने के लिए फरीदकोट से फकीरा और मेरठ से कालू जल्लाद को बुलाया गया था. फांसी पर चढ़ने से एक दिन पहले बिल्ला जेल के भीतर कुछ पत्रकारों से मिला था. पत्रकारों ने बताया कि उसका पूरा बदन कांप रहा था. वो बार-बार कह रहा था कि उसने अपराध नहीं किया है. लेकिन उसकी बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि वो झूठ बोल रहा है.

रंगा और बिल्ला
फांसी से पहले की रात बिल्ला ने खाना नहीं खाया. वो रात भर सुबकता रहा. जेल की कोठरी में बड़बड़ाता रहा. जबकि रंगा ने रात का खाना भी खाया और पूरी नींद भी ली. रंगा आखिरी वक्त तक जोश में दिखा. फांसी पर चढ़ाए वक्त उसने जोर का नारा लगाया- जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल. हालांकि फांसी पर चढ़ते वक्त दोनों के चेहरे डर से काले पड़ गए थे.
एक ही बात की रट लगाए था कसाब- अल्लाह कसम माफ कर दो
2008 के मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब को 21 नवंबर 2012 को फांसी दी गई. कसाब को पुणे की यरवदा जेल में फांसी पर चढ़ाया गया. फांसी पर चढ़ने से पहले अपने आखिरी वक्त में कसाब डर के मारे बुदबुदा रहा था. वो बोल रहा था- अल्लाह कसम, माफ कर दो. छोड़ दो, ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी.
हालांकि फांसी पर चढ़ने से पहले वो आमतौर पर शांत रहता था. वो किसी से बात नहीं करता था. लेकिन फांसी के फंदे को नजदीक देखकर उसकी घिग्घी बंध गई थी. फांसी से पहले कसाब से उसकी आखिरी इच्छा पूछी गई थी. उसने कहा था कि उसकी कोई अंतिम इच्छा नहीं है. उसने लिखित में यह बात कही कि उसकी कोई अंतिम इच्छा नहीं है. कसाब को लगता था कि वो हिंदुस्तान के कानून से बच जाएगा. लेकिन जब उसका डेथ वॉरन्ट जारी हो गया तो उसकी उम्मीद भी खत्म हो गई. अपने आखिरी दिन उसने डर के साए में बिताए.
फांसी से एक दिन पहले की रात कसाब सो नहीं पाया. फांसी से पहले उसने दो कप मसाला चाय पी थी. फांसी के फंदे तक जाते वक्त कसाब की हालत खराब हो चुकी थी. एक कदम चलने के बाद उसे पुलिस अधिकारी उठाकर फांसी के तख्ते तक लेकर गए.

अजमल कसाब
आखिरी वक्त में अपने किए पर पछता रहा था याकूब मेमन
मुंबई बम धमाकों में दोषी साबित हुए याकूब मेमन को उसके 53वें जन्मदिन पर 30 जुलाई 2015 को फांसी पर लटकाया गया. याकूब मेनन को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई. फांसी पर चढ़ने से पहले की रात उसने अपनी बेटी से बात करने की इच्छा जताई थी. याकूब मेमन ने फोन पर अपनी बेटी और भाइयों से बात की.
याकूब को आखिरी वक्त तक लग रहा था कि उसकी फांसी टल जाएगी. याकूब पूरी रात सो नहीं पाया. एक तरफ जेल में याकूब मेमन की फांसी की तैयारी चल रही थी, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में आधी रात को उसकी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई चल रही थी. रात में उसने खाना भी नहीं खाया. रातभर वो जेल की अपनी कोठरी में टहलता रहा.
जब सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी तो जेल में उसे पहनने के लिए नए कपड़े दिए गए. मेमन ने जेल में अपनी आखिरी प्रार्थना की. उसका मेडिकल चेकअप हुआ. सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया.

याकूब मेमन
याकूब मेमन आखिरी वक्त तक कहता रहा कि उसने अपराध नहीं किया है. याकूब ने अपने भाइयों से कहा था कि अगर उसे अपने भाई के गुनाह के लिए फांसी पर चढ़ाया जाता है तब तो ठीक है. लेकिन अगर उनको लगता है कि मैं गुनहगार हूं और सजा दे रहे हैं तो वो गलत है. मैं बेकसूर हूं.
फांसी वाली सुबह याकूब मेमन को खाने में उपमा दिया गया. लेकिन उसने खाया नहीं. जब डॉक्टर उसका चेकअप करने आए तो उसने कहा कि मुझे क्या हुआ है? मैं कमजोर नहीं हूं. सब लोग अपना काम कर रहे है और आप भी अपना काम कीजिए. फांसी देने के समय याकूब एकदम चुप था. शायद उसको अपने किए पर पछतावा था. वो जेल के सुरक्षाकर्मियों से कह रहा था कि अगर उससे कभी कोई गलती हो गई हो तो माफ करना.
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Tags: Azmal kasab, Nathuram Godse, Nirbhaya, Upheld the death sentence, Yakub Memon
FIRST PUBLISHED : December 12, 2019, 17:00 IST