रेडिएशन से बचाती है लद्दाख की संजीवनी ‘सोलो’

प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने अनुच्छेद 370 (Article 370) के कश्मीर से खात्मे के बाद देश को संबोधित करते हुए लद्दाख में पाए जाने वाले एक खास पौधे के बारे में बताया था. उस पौधे में चमत्कारिक औषधिय गुण पाए जाते हैं...
प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने अनुच्छेद 370 (Article 370) के कश्मीर से खात्मे के बाद देश को संबोधित करते हुए लद्दाख में पाए जाने वाले एक खास पौधे के बारे में बताया था. उस पौधे में चमत्कारिक औषधिय गुण पाए जाते हैं...
- News18Hindi
- Last Updated: August 9, 2019, 4:37 PM IST
कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370) के खात्मे के बाद प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) के संबोधन का इंतजार सारा देश कर रहा था. उन्होंने जम्मू कश्मीर के लोगों की फिक्र से लेकर उनके विकास के लिए सरकार के संकल्प की बातें तो कीं, इस दौरान उन्होंने लद्दाख के एक पौधे का भी जिक्र किया. लद्दाख का वो पौधा, जिसको लेकर वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. उन्होंने इस पौधे के बारे में कुछ हैरान करने वाली जानकारी दी है.
पीएम मोदी ने लद्दाख के जिस पौधे का जिक्र किया, उसे वहां के स्थानीय लोग सोलो (SOLO) कहते हैं. वैसे उस पौधे का नाम रोडियोला (radiola) है. रामायण में जिस संजीवनी का जिक्र किया गया है, इस जड़ी-बूटी को उसी के करीब माना जा रहा है. इसके औषधिय गुणों पर लगातार शोध चल रहा है. लेह लद्दाख के चुनौतीपूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली इस जड़ी-बूटी के बारे में कुछ कमाल की जानकारी मिली है.
लद्दाख के लोग मानते हैं कि रामायण में जिस संजीवनी बूटी के जरिए लक्ष्मण को जीवनदान मिला था, उनकी मूर्छा टूटी थी. दरअसल वो लद्दाख की सोलो ही है. हिमालय पर जितनी ऊंचाई पर ये जड़ी बूटी पाई जाती है, वहां जीवन को बनाए रखना अपनेआप में चुनौती है.
संजीवनी की तलाश हुई पूरीसोलो के गुणों की वजह से कहा जा रहा है कि अब संजीवनी की तलाश पूरी हो चुकी है. इस पौधे में ऐसे-ऐसे औषधिय गुण हैं, जिसके आधार पर ही इसे संजीवनी माना जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस औषधि से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ऊंचे पर्वतीय इलाके में पाए जाने वाले इस पौधे के सेवन से पहाड़ी इलाकों में रहने की उर्जा मिलती है. ये पर्वतीय जीवन को वातावरण के अनुकूल ढालने में सहायक है.
ठंडे और ऊंचे जगह पर पाई जाने वाली इस जड़ी-बूटी के औषधिय गुण से स्थानीय नागरिक अनजान थे. वे इसके पौधे के पत्तेदार भाग को सब्जी की तरह बना कर खाते हैं. सब्जी के तौर पर सेवन करने पर भी इस पौधे से शरीर को फायदा ही मिलता है.

इस औषधि की खोज लेह में बने डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एलटीट्यूट रिसर्च (DIHAR) के वैज्ञानिकों ने की है. यहां के वैज्ञानिकों का कहना है कि लेह-लद्दाख और सियाचीन जैसे क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए ये औषधि वरदान साबित हो सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सोलो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर रखने के साथ ऊंची और ठंडी जगहों की प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुरूप शरीर को ढालने में मदद करती है.
रेडियो एक्टिविटी से बचाता है लद्दाख का पौधा
इस औषधि के बारे में एक और कमाल की बात कही जा रही है. बताया जा रहा है कि ये रेडियोएक्टिव पदार्थों के प्रभाव से बचाती है. वैज्ञानिक बताते हैं कि इस पौधे में सीकोंडरी मेटाबोलाइट्स और फायटोएक्टिव तत्व पाए जाते हैं. जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.
इस पौधे के सेवन से कम दबाव वाले और कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वातावरण के अनुरूप ढलने में मदद मिलती है. सोलो में अवसाद (डिप्रेशन) और भूख बढ़ाने के गुण भी मौजूद हैं.
सियाचीन जैसे इलाके बेहद ठंडे होते हैं. यहां लगातार बर्फबारी की वजह से तापमान काफी नीचे चला जाता है. ऐसी जगहों पर रहने से इंसान के भीतर अवसाद पैदा होता है. सियाचीन में तैनात सैनिकों के लिए ये सामान्य समस्या है. इस पौधे के सेवन से डिप्रेशन दूर करने में मदद मिलेगी.
वैज्ञानिक यहां तक दावा कर रहे हैं इस पौधे से गामा रेडिएशन के प्रभाव से बचा जा सकता है. जंग की हालात में बमों या फिर बॉयोकेमिकल वॉर में रेडिएशन उत्पन्न होता है तो इस पौधे की मदद से रेडिएशन के प्रभाव से बचा जा सकता है. रेडियो एक्टिविटी से बचाव की वजह से ही इसका नाम रोडियोला दिया गया है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती उम्र के प्रभाव से बचने में भी ये जड़ी-बूटी मददगार है. ये ऑक्सीजन में कमी के दौरान न्यूरॉन्स की रक्षा करता है. DIHAR के वैज्ञानिकों ने अपने संस्थान की दो एकड़ जमीन में सोलो की प्लांटेशन की है और इस पर लगातार रिसर्च जारी है.
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पीएम मोदी ने लद्दाख के जिस पौधे का जिक्र किया, उसे वहां के स्थानीय लोग सोलो (SOLO) कहते हैं. वैसे उस पौधे का नाम रोडियोला (radiola) है. रामायण में जिस संजीवनी का जिक्र किया गया है, इस जड़ी-बूटी को उसी के करीब माना जा रहा है. इसके औषधिय गुणों पर लगातार शोध चल रहा है. लेह लद्दाख के चुनौतीपूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली इस जड़ी-बूटी के बारे में कुछ कमाल की जानकारी मिली है.
लद्दाख के लोग मानते हैं कि रामायण में जिस संजीवनी बूटी के जरिए लक्ष्मण को जीवनदान मिला था, उनकी मूर्छा टूटी थी. दरअसल वो लद्दाख की सोलो ही है. हिमालय पर जितनी ऊंचाई पर ये जड़ी बूटी पाई जाती है, वहां जीवन को बनाए रखना अपनेआप में चुनौती है.
ठंडे और ऊंचे जगह पर पाई जाने वाली इस जड़ी-बूटी के औषधिय गुण से स्थानीय नागरिक अनजान थे. वे इसके पौधे के पत्तेदार भाग को सब्जी की तरह बना कर खाते हैं. सब्जी के तौर पर सेवन करने पर भी इस पौधे से शरीर को फायदा ही मिलता है.

वैज्ञानिकों का कहना है इस पौधे से रेडियो एक्टिविटी से भी बचा जा सकता है
इस औषधि की खोज लेह में बने डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एलटीट्यूट रिसर्च (DIHAR) के वैज्ञानिकों ने की है. यहां के वैज्ञानिकों का कहना है कि लेह-लद्दाख और सियाचीन जैसे क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए ये औषधि वरदान साबित हो सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सोलो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर रखने के साथ ऊंची और ठंडी जगहों की प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुरूप शरीर को ढालने में मदद करती है.
रेडियो एक्टिविटी से बचाता है लद्दाख का पौधा
इस औषधि के बारे में एक और कमाल की बात कही जा रही है. बताया जा रहा है कि ये रेडियोएक्टिव पदार्थों के प्रभाव से बचाती है. वैज्ञानिक बताते हैं कि इस पौधे में सीकोंडरी मेटाबोलाइट्स और फायटोएक्टिव तत्व पाए जाते हैं. जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.
इस पौधे के सेवन से कम दबाव वाले और कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वातावरण के अनुरूप ढलने में मदद मिलती है. सोलो में अवसाद (डिप्रेशन) और भूख बढ़ाने के गुण भी मौजूद हैं.
सियाचीन जैसे इलाके बेहद ठंडे होते हैं. यहां लगातार बर्फबारी की वजह से तापमान काफी नीचे चला जाता है. ऐसी जगहों पर रहने से इंसान के भीतर अवसाद पैदा होता है. सियाचीन में तैनात सैनिकों के लिए ये सामान्य समस्या है. इस पौधे के सेवन से डिप्रेशन दूर करने में मदद मिलेगी.
वैज्ञानिक यहां तक दावा कर रहे हैं इस पौधे से गामा रेडिएशन के प्रभाव से बचा जा सकता है. जंग की हालात में बमों या फिर बॉयोकेमिकल वॉर में रेडिएशन उत्पन्न होता है तो इस पौधे की मदद से रेडिएशन के प्रभाव से बचा जा सकता है. रेडियो एक्टिविटी से बचाव की वजह से ही इसका नाम रोडियोला दिया गया है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती उम्र के प्रभाव से बचने में भी ये जड़ी-बूटी मददगार है. ये ऑक्सीजन में कमी के दौरान न्यूरॉन्स की रक्षा करता है. DIHAR के वैज्ञानिकों ने अपने संस्थान की दो एकड़ जमीन में सोलो की प्लांटेशन की है और इस पर लगातार रिसर्च जारी है.
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