Explained: क्या है वैक्सीन डिप्लोमेसी, जिसमें भारत China से बाजी मार सकता है?

भारत लगातार अपने पड़ोसी देशों को कोरोना की वैक्सीन दे रहा है (Photo- news19 creative)
कोरोना फैलने की शुरुआत में चीन ने मास्क डिप्लोमेसी (mask diplomacy by China) दिखाते हुए कई देशों को मास्क और पीपीई किट भेजी थी. अब वैक्सीन डिप्लोमेसी (vaccine diplomacy) में भारत उसपर भारी पड़ता दिख रहा है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 23, 2021, 3:19 PM IST
भारत लगातार अपने पड़ोसी देशों को कोरोना की वैक्सीन दे रहा है. ये सारे ही देश रणनीतिक तौर पर देश के लिए काफी अहम हैं. माना जा रहा है कि भारत का स्वेदशी वैक्सीन बनने के साथ ही उसे कई देशों में तोहफे के तौर पर देना कूटनीति का हिस्सा है. इससे पहले से ही चीन के खिलाफ हो रहे देश भारत के पक्ष में खुलकर आ जाएंगे. यानी आज जरूरतमंद देशों की वैक्सीन उपलब्ध कराई जाए तो वे भविष्य में एशिया में भारत की स्थिति और मजबूत कर सकते हैं.
क्या है वैक्सीन डिप्लोमेसी
इसका अर्थ है, किसी खास वैक्सीन का देश की कूटनीतिक स्थिति मजबूत करने में इस्तेमाल. लगभग सारे ही देश इस डिप्लोमेसी का इस्तेमाल करते आए हैं ताकि आर्थिक तौर पर कमजोर या फिर रणनीतिक तौर पर अहम देशों को अपने प्रभाव में ले सकें. जैसे भारत ने वैक्सीन की बड़ी खेप मालदीव, भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों को पहुंचाई है.
चीन भी इस मामले में पीछे नहीं है
गौर से देखें तो इस डिप्लोमेसी की शुरुआत ही चीन ने की. वहां वुहान में कोरोना का मामला संभला, तब तक पूरी दुनिया में ये संक्रमण कोहराम मचाने लगा था. ऐसे में चीन ने बहुत से देशों को मास्क और पीपीई किट भेजे थे, ये बात और है कि मास्क के काफी खराब क्वालिटी होने की शिकायत कई कोनों से आई थी. तब दुनिया ने एक नया शब्द सुना- मास्क डिप्लोमेसी. दरअसल चीन इस तरह की मदद के जरिए भड़के हुए देशों का मन बदलने की कोशिश कर रहा था.
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अमेरिका के हाल थोड़े अलग हैं
तत्कालीन ट्रंप प्रशासन ने साफ कह रखा था कि वे पहले अपने देश में वैक्सीन की आपूर्ति पक्की करेंगे, जिसके बाद ही दूसरे देशों को वैक्सीन दी जाएगी. इसके लिए अमेरिका ने वैक्सीन बना रहे दूसरे देशों जैसे ब्रिटेन से भी अरबों रुपए का करार किया. इसके अलावा जर्मनी की वैक्सीन पर भी यकीन दिखाते हुए उसने भारी फंडिंग की.

हो सकता है उलटफेर
वैक्सीन डिप्लोमेसी आगे चलकर दुनिया में ताकतवर देशों की लिस्ट में बड़ा उलटफेर कर सकती है. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान चीन के पाले में है और भारत से लगातार तनाव बनाए हुए है. ऐसे में पड़ोसी मित्र देशों को तो भारत ने वैक्सीन देनी शुरू कर दी लेकिन पाकिस्तान अब भी चीन का रास्ता देख रहा है. उसका कहना है कि फरवरी या मार्च में उसके यहां भी वैक्सीन होगी. हालांकि बीच-बीच में पाकिस्तान ये भी बोल जाता है कि चीन जानबूझकर वैक्सीन की खेप उसके यहां पहुंचाने में देर कर रहा है ताकि वो दबाव में रहे.
ये भी पढ़ें: चीन में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील 'पोयांग' को लेकर क्यों मचा हल्ला?
देश में पहले से ही बनती आ रही हैं वैक्सीन
अब थोड़ा सा भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी के बारे में भी समझ लेते हैं. भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के दुनिया में सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्स में होती आई है. यहां पर वैक्सीन बनाने वाली लगभग 6 बड़ी दवा कंपनियां हैं, जिनके अलावा छोटी कंपनियां भी हैं, जिनके पास मैनपावर और लाइसेंस है. ये कंपनियां पोलियो, मैनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी. मीजल्स जैसी बीमारियों के लिए वैक्सीन बना पूरी दुनिया में भेजती हैं.

भारत दे रहा तोहफे में
निर्माण के स्तर पर भारत वैक्सीन हब है. यानी पहले से ही इसका पलड़ा भारी है क्योंकि जब देश अपनी वैक्सीन की मान्यता लेंगे तो वो तैयार होने के लिए यहीं आ सकती हैं. लेकिन देश ने इससे आगे भी रणनीति बना ली. शुक्रवार को रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण तीन पड़ोसी देशों म्यांमार, मॉरिशस और सेशेल्स को भारत ने उपहार के तौर पर कोरोना वैक्सीन दिए. ब्राजील और मोरक्को के लिए भारतीय वैक्सीन की पहली खेप निकल चुकी है. इनके अलावा भूटान, नेपाल और बांग्लादेश को भी वैक्सीन भेजी जा चुकी. अब अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी वैक्सीन को मंजूरी मिलते ही वहां भी देश अपनी वैक्सीन भेज देगा.
चीन कैसे पिछड़ रहा है
भारत की तुलना में चीन वैक्सीन डिप्लोमेसी में मात खाता दिख रहा है. जैसे बांग्लादेश को चीनी दवा कंपनी सिनोवैक पहले एक लाख से ज्यादा वैक्सीन डोज देने वाली थी लेकिन किसी अंदरुनी वजह से ऐसा नहीं हो सका. इधर इमरजेंसी इस्तेमाल के मामले में भारत ने वहां बाजी मार ली.
ये भी पढ़ें: Explained: अंतरिक्ष का रेडिएशन कितना खतरनाक है, क्या बदलता है शरीर में?
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में बांग्लादेशी स्वास्थ्य अधिकारी के हवाले कहा गया कि भारत की वैक्सीन सामान्य फ्रिज के तापमान पर रखी जा सकती है और इसलिए ये बेहतर है. बता दें कि किसी भी वैक्सीन का असर बनाए रखने के लिए उसे एक नियत तापमान पर स्टोर करना होता है. चीन की वैक्सीन के लिए स्टोरेज तापमान काफी कम है और ज्यादातर गरीब देशों में इसकी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. इस वजह से चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी कमजोर पड़ सकती है.
क्या है वैक्सीन डिप्लोमेसी
इसका अर्थ है, किसी खास वैक्सीन का देश की कूटनीतिक स्थिति मजबूत करने में इस्तेमाल. लगभग सारे ही देश इस डिप्लोमेसी का इस्तेमाल करते आए हैं ताकि आर्थिक तौर पर कमजोर या फिर रणनीतिक तौर पर अहम देशों को अपने प्रभाव में ले सकें. जैसे भारत ने वैक्सीन की बड़ी खेप मालदीव, भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों को पहुंचाई है.

वैक्सीन डिप्लोमेसी आगे चलकर दुनिया में ताकतवर देशों की लिस्ट में बड़ा उलटफेर कर सकती है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
गौर से देखें तो इस डिप्लोमेसी की शुरुआत ही चीन ने की. वहां वुहान में कोरोना का मामला संभला, तब तक पूरी दुनिया में ये संक्रमण कोहराम मचाने लगा था. ऐसे में चीन ने बहुत से देशों को मास्क और पीपीई किट भेजे थे, ये बात और है कि मास्क के काफी खराब क्वालिटी होने की शिकायत कई कोनों से आई थी. तब दुनिया ने एक नया शब्द सुना- मास्क डिप्लोमेसी. दरअसल चीन इस तरह की मदद के जरिए भड़के हुए देशों का मन बदलने की कोशिश कर रहा था.
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अमेरिका के हाल थोड़े अलग हैं
तत्कालीन ट्रंप प्रशासन ने साफ कह रखा था कि वे पहले अपने देश में वैक्सीन की आपूर्ति पक्की करेंगे, जिसके बाद ही दूसरे देशों को वैक्सीन दी जाएगी. इसके लिए अमेरिका ने वैक्सीन बना रहे दूसरे देशों जैसे ब्रिटेन से भी अरबों रुपए का करार किया. इसके अलावा जर्मनी की वैक्सीन पर भी यकीन दिखाते हुए उसने भारी फंडिंग की.

भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के दुनिया में सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्स में होती आई है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
हो सकता है उलटफेर
वैक्सीन डिप्लोमेसी आगे चलकर दुनिया में ताकतवर देशों की लिस्ट में बड़ा उलटफेर कर सकती है. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान चीन के पाले में है और भारत से लगातार तनाव बनाए हुए है. ऐसे में पड़ोसी मित्र देशों को तो भारत ने वैक्सीन देनी शुरू कर दी लेकिन पाकिस्तान अब भी चीन का रास्ता देख रहा है. उसका कहना है कि फरवरी या मार्च में उसके यहां भी वैक्सीन होगी. हालांकि बीच-बीच में पाकिस्तान ये भी बोल जाता है कि चीन जानबूझकर वैक्सीन की खेप उसके यहां पहुंचाने में देर कर रहा है ताकि वो दबाव में रहे.
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देश में पहले से ही बनती आ रही हैं वैक्सीन
अब थोड़ा सा भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी के बारे में भी समझ लेते हैं. भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के दुनिया में सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्स में होती आई है. यहां पर वैक्सीन बनाने वाली लगभग 6 बड़ी दवा कंपनियां हैं, जिनके अलावा छोटी कंपनियां भी हैं, जिनके पास मैनपावर और लाइसेंस है. ये कंपनियां पोलियो, मैनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी. मीजल्स जैसी बीमारियों के लिए वैक्सीन बना पूरी दुनिया में भेजती हैं.

भारत की तुलना में चीन वैक्सीन डिप्लोमेसी में मात खाता दिख रहा है- सांकेतिक फोटो (flickr)
भारत दे रहा तोहफे में
निर्माण के स्तर पर भारत वैक्सीन हब है. यानी पहले से ही इसका पलड़ा भारी है क्योंकि जब देश अपनी वैक्सीन की मान्यता लेंगे तो वो तैयार होने के लिए यहीं आ सकती हैं. लेकिन देश ने इससे आगे भी रणनीति बना ली. शुक्रवार को रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण तीन पड़ोसी देशों म्यांमार, मॉरिशस और सेशेल्स को भारत ने उपहार के तौर पर कोरोना वैक्सीन दिए. ब्राजील और मोरक्को के लिए भारतीय वैक्सीन की पहली खेप निकल चुकी है. इनके अलावा भूटान, नेपाल और बांग्लादेश को भी वैक्सीन भेजी जा चुकी. अब अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी वैक्सीन को मंजूरी मिलते ही वहां भी देश अपनी वैक्सीन भेज देगा.
चीन कैसे पिछड़ रहा है
भारत की तुलना में चीन वैक्सीन डिप्लोमेसी में मात खाता दिख रहा है. जैसे बांग्लादेश को चीनी दवा कंपनी सिनोवैक पहले एक लाख से ज्यादा वैक्सीन डोज देने वाली थी लेकिन किसी अंदरुनी वजह से ऐसा नहीं हो सका. इधर इमरजेंसी इस्तेमाल के मामले में भारत ने वहां बाजी मार ली.
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एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में बांग्लादेशी स्वास्थ्य अधिकारी के हवाले कहा गया कि भारत की वैक्सीन सामान्य फ्रिज के तापमान पर रखी जा सकती है और इसलिए ये बेहतर है. बता दें कि किसी भी वैक्सीन का असर बनाए रखने के लिए उसे एक नियत तापमान पर स्टोर करना होता है. चीन की वैक्सीन के लिए स्टोरेज तापमान काफी कम है और ज्यादातर गरीब देशों में इसकी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. इस वजह से चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी कमजोर पड़ सकती है.