पूर्व सोवियत संघ (Soviet Union) का हिस्सा रह चुके आर्मेनिया और अजरबैजान में जंग (Armenia and Azerbaijan conflict) तेज हो चुकी है. नागोर्नो-काराबाख इलाके (Nagorno-Karabakh) पर कब्जे को लेकर दोनों एक-दूसरे पर भारी गोलाबारी कर रहे हैं. रूस इन देशों की लड़ाई में फंस गया है. इधर कई बड़े देश भी दोनों में से एक देश को छांटकर उसके साथ खड़े होने का एलान कर रहे हैं. इस सबके बीच बड़बोले चीन (China) ने चुप्पी साध रखी है. असल में उसने दोनों जगहों पर भारी निवेश कर रखा है और अब उसे चुनना मुश्किल हो रहा है.
ऐसा रहा है दोनों देशों का इतिहास
आर्मेनिया और अजरबैजान के मामले पर नजर डालें तो पाएंगे कि ये देश कभी सोवियत संघ का हिस्सा थे. नब्बे के दशक में सोवियत संघ के टूटने के बीच ये देश आजाद हो गए. तब सोवियत ने ही बंटवारा करते हुए नागोर्नो-काराबाख इलाका अजरबैजान को दे दिया. ये बात और है कि खुद नागोर्नो-काराबाख की संसद ने आधिकारिक तौर पर अपने को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया था.

दोनों एक-दूसरे पर भारी गोलाबारी कर रहे हैं- Photo via AP
क्यों चाहिए आर्मेनिया को काराबाख
आर्मेनिया के लिए इस क्षेत्र की दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र की ज्यादातर आबादी आर्मीनियाई मूल की ही है. यही वजह है कि इस क्षेत्र के लोगों ने लगातार खुद को आर्मेनिया से मिलाने की बात की. हालांकि उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद से काराबाख इलाके के लोगों ने अजरबैजान के खिलाफ आंतरिक लड़ाई शुरू कर दी. इसके बाद फ्रांस, रूस और अमेरिका जैसे देशों की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच लंबी बातचीत चली और कई समझौते भी हुए लेकिन तब भी संघर्ष चलता रहा.
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नया तनाव नब्बे की शुरुआत के बाद का सबसे बड़ा तनाव माना जा रहा है. खतरे को देखते हुए सभी देश अपने को किसी एक तरफ फिट करने में लगे हैं. जैसे अपने ही हिस्से होने के कारण रूस लगातार दोनों के बीच सुलह की कोशिश कर रहा है. हालांकि उसका झुकाव आर्मेनिया की ओर है.

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्गोआन अजरबैजान के साथ हैं
मुस्लिम मुल्क होने के कारण तुर्की और पाकिस्तान अजरबैजान के दोस्त
अजरबैजान के इस्लाम-बहुल मुल्क होने के कारण कई अरब देशों से लेकर पाकिस्तान तक उसके साथ खड़ा हुआ है. बता दें कि अजरबैजान ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का खुलकर समर्थन किया था, तब से ही पाक की दिलचस्पी इस देश में है. अजरबैजान में तुर्की लोगों की आबादी काफी ज्यादा है इसलिए तुर्की के राष्ट्रपति की सहज ही दिलचस्पी अजरबैजान में है. वो लगातार इसे अपना दोस्त देश बताते हुए आर्मेनिया के खिलाफ बोल रहे हैं.
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चीन के कैसे हैं संबंध
चीन ने फिलहाल तक किसी एक देश को खुलकर सपोर्ट नहीं दिया है, बल्कि वो दोनों को आपस में मिलकर मामला सुलझाने को कह रहा है. ये बात विस्तारवादी चीन की प्रवृति से काफी अलग है. हालांकि इसके पीछे भी चीन का अपना फायदा है. असल में काकेशस इलाके की महत्ता को चीन अच्छे से समझता है. ये मिडिल ईस्ट, चीन, रूस और यूरोप को जोड़ता है. यही देखने के बाद साल 2015 में चीन ने अजरबैजान और आर्मेनिया से एक समझौता किया. इससे तहत एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक को ओर से अजरबैजान को 600 मिलियन डॉलर का लोन दिया गया. ये गैस पाइपलाइन के लिए था.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दोनों देशों से व्यापारिक संबंध हैं
इसी तरह से साल 2019 में अजरबैजान और चीन के बीच 800 मिलियन डॉलर से ज्यादा की डील हुई. ये नॉन-आइल सेक्टर में दोनों देशों के सहयोग के लिए थी. ये रिश्ता गहराता ही चला गया और फिलहाल अजरबैजान चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. इसके अलावा चीन अपने बेल्ट एंड रोड एनिशिएटिव के लिए भी अजरबैजान की ओर देख रहा है. बाकू रेलवे के जरिए तुर्की तक चीन का सामान पहुंचाने की अवधि इससे काफी घट जाएगी.
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आर्मेनिया के साथ भी गहरा रिश्ता
ये तो हुआ चीन और अजरबैजान का रिश्ता लेकिन आर्मेनिया के साथ भी चीन के रिश्ते बढ़िया हैं. इसने साल 2015 में ही चीन के साथ सिल्क रोड बेल्ट पर दस्तखत कर दिए थे. अगर देखा जाए तो आर्मेनिया में चीन को लेकर ज्यादा खुलापन है. दक्षिण काकेशस में इसी देश में सबसे पहले चीन का कन्यफ्यूशियस संस्थान खुला था. सोवियत संघ के विघटन के बाद से अब तक आर्मेनिया में दूसरी सबसे बड़ी चीनी एंबेसी है. दोनों देशों के बीच व्यापारिक समझौते भी अजरबैजान से कहीं ज्यादा हैं.
हालांकि ये रिश्ते फिलहाल तक व्यापारिक समझौते के हिसाब से हैं और चीन ने अब तक दोनों देशों की आतंरिक राजनीति में घुसपैठ की कोई कोशिश नहीं की है. अब विशेषज्ञ समझने की कोशिश कर रहे हैं कि नौबत आ ही गई तो चीन किसका साथ देगा और किससे दुश्मनी लेगा.undefined
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Tags: China, Russia, Turkey, World WAR 2
FIRST PUBLISHED : October 05, 2020, 16:14 IST