तमिलनाडु (Tamil Nadu), पश्चिम बंगाल (West Bengal), केरल, असम और पुडुचेरी (केंद्रशासित प्रदेश) वो पांच राज्य हैं, जहां विधानसभा चुनावों के लिए छह महीने का समय बमुश्किल बाकी है. अप्रैल या मई में इन पांच राज्यों में चुनाव (State Assembly Elections) होने जा रहे हैं, जिसके लिए राजनीतिक पार्टियों के बीच समीकरण साधने की तैयारी पूरी तरह से शुरू हो चुकी है. दूसरी तरफ, इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग (Election Commission) में भी सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं. हाल में संपन्न हुए बिहार चुनावों (Bihar Elections) के बाद सियासी पार्टियों से लेकर आयोग तक के सामने कई पहलू विचारणीय हो गए हैं.
क्या है सियासी स्थिति?
असम में भाजपा और असम गण परिषद के गठबंधन की सरकार है, जिसमें मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल हैं. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं. केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है यानी भाकपा और माकपा के साथ अन्य लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन हैं. तमिलनाडु में ईके पलनिस्वामी सीएम हैं और एआईएडीएमके सत्ता में है. कांग्रेस के पास सिर्फ केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी है, जहां वी नारायणसामी सीएम हैं.
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2021 चुनावों के लिए कांग्रेस की स्थिति?
सबसे पहले बात करते हैं पश्चिम बंगाल की. सीताराम येचुरी के नेतृत्व वाली माकपा के साथ यहां कांग्रेस गठबंधन के समीकरणों के लिए बातचीत कर रही है. लेकिन, मौजूदा स्थिति में समीकरण कह रहे हैं कि बड़ा मुकाबला बनर्जी की टीएमसी और भाजपा के बीच होगा. हालांकि हिंदू मुस्लिम राजनीति के लिए चर्चा में आ रहे बंगाल में कांग्रेस को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से भी खतरा महसूस हो रहा है.
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बंगाल में सीटों के लिए माकपा के साथ चल रहे समझौते को लेकर कांग्रेस के राज्य प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने इशारा दिया है कि कांग्रेस अपना दावा बिहार चुनावों के नतीजों के आधार पर नहीं बल्कि बंगाल में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर ही रखेगी. वहीं, माकपा के दीपांकर भट्टाचार्य कह चुके हैं कि कांग्रेस ने दबदबे की नीति अपनाई तो रिश्ता खराब हो सकता है. बिहार में 70 सीटों पर लड़कर 19 जीतने वाली कांग्रेस के दबाव से मुक्त रहने की बात साफ कर दी है.
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तमिलनाडु में कांग्रेस के लिए स्थितियां चिंताजनक हो रही हैं. डीएमके के लिए रणनीति बना रहे प्रशांत किशोर 2021 चुनाव के लिए कांग्रेस का साथ नहीं चाह रहे हैं. 2016 में कांग्रेस ने राज्य में डीएमके के साथ गठबंधन के चलते 40 सीटों पर चुनाव लड़कर 20 फीसदी स्ट्राइक रेट से सिर्फ 8 सीटें जीती थीं. वहीं, डीएमके के टीआर बालू कह चुके हैं कि राज्य में गठबंधन मज़बूत है, लेकिन सीट शेयरिंग पर बातचीत की जाएगी.

बिहार से पहले महाराष्ट्र चुनाव में भी कांग्रेस के तुलनात्मक रूप से कमज़ोर प्रदर्शन के कारण अब गठबंधन में सीट शेयरिंग पर कांग्रेस कई राज्यों में बैकफुट पर दिख सकती है. असम में कांग्रेस का गठबंधन लेफ्ट पार्टियों के साथ रहा है. चूंकि बिहार चुनाव में लेफ्ट ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है इसलिए यहां भी अपर हैंड लेफ्ट के पास रहने की अटकलें हैं. केरल में भाजपा का अब तक कोई आधार नहीं है, लेकिन यहां कांग्रेस भी लीडिंग पार्टी नहीं है. लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन ही यहां सत्ता में है.
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वहीं पुडुचेरी में डीएमके के साथ गठबंधन में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है और ओपिनियन पोल कह रहे हैं कि यहां यूपीए की सरकार इस बार भी बच सकती है. आइए अब भाजपा और एनडीए की स्थिति समझी जाए.
भाजपा के लिए 2021 चुनाव हैं खास
पिछले लोकसभा चुनावों में टीएमसी के लिए बड़ी चिंता बन चुकी भाजपा पिछले करीब डेढ़ दो सालों से बंगाल में अपना आधार तैयार करने के साथ ही हिंदुत्व की राजनीति का माहौल तैयार कर रही है. एक गणित यह कह रहा है कि टीएमसी के साथ ओवैसी की पार्टी का गठबंधन हुआ, तो भाजपा को फायदा मिल सकता है और कांग्रेस के मुस्लिम वोट कट सकते हैं. दूसरा गणित यह है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की पार्टी भाजपा के लिए खतरा भी बन सकती है.
बिहार चुनाव के नतीजों से साफ हुआ कि नीतीश पर भाजपा हावी रही. केंद्र और कई बड़े राज्यों में भाजपा की सरकार है ही, इसलिए अपनी आक्रामक रणनीति के तहत भाजपा की बड़ी लड़ाई सत्तारूढ़ सीएम ममता बनर्जी की पार्टी के साथ ही है. विधायकों और नेताओं को तोड़ने से लेकर हिंदुत्व की लहर के प्रसार तक सारे हथकंडे बंगाल चुनाव 2021 को ध्यान में रखकर अपनाए जा रहे हैं.

दूसरी तरफ, इसी हिंदुत्व को एजेंडा बनाने की सियासत तमिलनाडु में भी की जा रही है. केरल में अब भी परेशानी में दिख रही भाजपा ने तमिलनाडु में 'वेत्रिवल यात्रा' का बड़ा दांव खेलने की कोशिश की. एआईएडीएमके सरकार ने कोविड 19 के चलते इस यात्रा की इजाज़त नहीं दी थी. इसके बावजूद हिंदू वोटों को लुभाने के लिए भाजपा ने यहां कोई कसर न छोड़ने का मूड बना लिया.
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दूसरी तरफ, असम चुनाव 2021 में विकास और बांग्लादेशी घुसपैठ से असम संस्कृति की रक्षा, भाजपा के दो बड़े मुद्दे होंगे. केरल में, भाजपा के सामने अजीब सूरत बनी हुई है और उसके बड़े नेता इस्तीफे दे रहे हैं या फिर दल बदलने के संकेत और धमकियां. वहीं, पुडुचेरी में भी ओपिनियन पोल की मानें तो भाजपा के खाता इस बार भी खाली रहने के ही आसार हैं.
लेफ्ट के लिए अच्छा मौका?
बंगाल और केरल में 2021 विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टियों के पास बेहतर मौका नज़र आ रहा है क्योंकि बिहार चुनाव में 29 सीटों पर लेफ्ट पार्टियों ने चुनाव लड़ा और इनमें से 16 पर जीत हासिल की. कांग्रेस के मुकाबले लेफ्ट का स्ट्राइक रेट बहुत बेहतर रहा है. इन राज्यों में लेफ्ट ज़ाहिर तौर पर कांग्रेस से दबने के मूड में नहीं होगा और साथ ही अपने प्रदर्शन को यहां और बेहतर करने की रणनीति पर विचार कर रहा है.
और चुनाव आयोग की कवायद क्या है?
इन पांचों राज्यों में चुनाव अस्ल में शेड्यूल के हिसाब से मई के महीने में होने हैं, लेकिन मौसम, स्थानीय त्योहारों और पोलिंग बूथों के लिए स्कूलों व अन्य स्थानों व संसाधनों की उपलब्धता आदि को मद्देनज़र देखते हुए अप्रैल 2021 में चुनाव करवाए जा सकते हैं. इस बारे में चुनाव आयोग 2 दिसंबर को हाने वाली बैठक में फैसला करेगा. इस बैठक में यह भी मुख्य एजेंडा होगा कि कोविड के दौरान बिहार चुनाव करवाने में क्या समस्याएं आईं और क्या सबक सीखे गए, उनके हिसाब से अगली रणनीति बनाई जाए.
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Tags: Assembly elections, Election commission, Tamilnadu Election 2021, West Bengal Election 2021
FIRST PUBLISHED : December 01, 2020, 12:13 IST