प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत
भाजपा के कई वर्तमान नेता और देश के कई लेखक, कलाकार, विद्वान व चिंतक समय समय पर कह चुके हैं कि आज़ाद हिंदोस्तान के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण समय 1975 से 77 के बीच का था, जब देश ने
इमरजेंसी के हालात देखे. आवाज़ों पर प्रतिबंध, बेतहाशा गिरफ्तारियां, जो खिलाफ बोला उसका दमन, सरकार की मनमानियां, 'जो चाहो, करो' जैसी नीतियां... और क्या क्या था, जिसकी वजह से इमरजेंसी को हमेशा इतना दुर्भाग्यपूर्ण या लोकतंत्र का हत्यारा या लोकतंत्र का कलंक कहा गया?
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1975 में लगी इमरजेंसी के दौरान 'इंदिरा इंडिया एक है', 'गरीबी हटाओ', 'इंदिरा आइस्क्रीम बडी', 'इंदिरा तानाशाह', 'इंदिरा दुर्गा', 'लोकतंत्र बनाम तानाशाह', 'संपूर्ण क्रांति' जैसे कई नारे और जुमले गूंजे थे. 1977 में इमरजेंसी खत्म हुई और चुनाव हुए. जनता पार्टी की सरकार बनी, लेकिन चूंकि विपक्ष बुरी तरह कमज़ोर था इसलिए ये सरकार जैसे तैसे ढाई तीन साल चली और फिर 1980 में 'मज़बूत सरकार' के वादे पर कांग्रेस सरकार सत्ता में आई. इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनीं और इमरजेंसी को लेकर इंदिरा गांधी या उनकी सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.
इमरजेंसी के 44 साल होने के मौके पर यहां पढ़िए, 44 ज़रूरी और दिलचस्प कहानियों के पहले भाग में 15 कहानियां.
इमरजेंसी में भाजपा नेताओं के किस्से
1. पिछली सरकार में वित्त मंत्री रह चुके अरुण जेटली को इमरजेंसी के दौरान 19 महीने जेल में बंद किया गया था. इस बात का ज़िक्र जेटली पहले अपने एक फेसबुक पोस्ट में कर चुके हैं. जेटली के अलावा, भाजपा के नेताओं इमरजेंसी के दौरान वेंकैया नायडू 17 महीनों, रविशंकर प्रसाद एक साल के लिए और प्रकाश जावड़ेकर को भी जेल भेजा गया था.

70 के दशक में सभा को संबोधित करते अटल बिहारी वाजपेयी. फाइल फोटो
2. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को भी जेल में बंद किया गया था. आडवाणी 19 महीनों के लिए अलग अलग जेलों में बंद रहे. वहीं, आपातकाल के दौरान जेल में बंद वाजपेयी ने इस विषय पर 'अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून / भंग कर दिया संघ को कैसा चढ़ा जुनून' जैसी कविताएं लिखीं.
3. पत्रकार कूमी कपूर की किताब के मुताबिक भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी 1975 में तत्कालीन सरकार को चकमा देकर सरदार के वेश में भागकर अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पहुंचे थे. वहां वर्तमान प्रधानमंत्री और तब 25 वर्षीय नरेंद्र मोदी ने छद्म वेश धरकर उन्हें सुरक्षित ठिकाने तक ले जाने में मदद की थी.

छद्म वेश में सुब्रमण्यम स्वामी और मोदी की ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल रही हैं.
कांग्रेस के किन नेताओं का क्या रोल था?
4. इतिहासकार बिपिन चंद्रा के मुताबिक संजय गांधी के घनिष्ठ मित्र और उस वक्त रक्षा मंत्री रहे बंसीलाल ने चुनावों को टालने और इमरजेंसी की अवधि बढ़ाने के लिए कई कोशिशें की थीं. यहां तक संविधान में संशोधन कर रास्ता तक बनाने की कोशिश की थी.
5. संजय गांधी के एक और घनिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल संजय की मनमानियों को न केवल शह देने का काम कर रहे थे, बल्कि संजय और इंदिरा सरकार के पक्ष में कला और विरोधी खेमे के कई लोगों को प्रतिबंधित करने के रास्ते बना रहे थे.
6. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रे के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही विरोधियों के सुरों को दबाने के लिए इंदिरा गांधी को इमरजेंसी लगाने का आइडिया दिया था. रे ने ही संविधान संशोधन कर पूर्ण सत्ता पा लेने का रास्ता भी सुझाया था. आरके धवन ने रे को लेकर ये बातें कही थीं.

सिद्धार्थ शंकर रे. फाइल फोटो
'छोटे सरकार' की बड़ी मनमानियां
7. तब इंदिरा गांधी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी माने जा रहे संजय गांधी ने राजनीतिक ताकतों का खुलकर इस्तेमाल किया और वो छोटे सरकार कहे जाने लगे. कई नीतियां और सरकारी गतिविधियां सीधे तौर पर संजय गांधी चला रहे थे, जिनमें एक था परिवार नियोजन.
8. परिवार नियोजन का पूरा कार्यक्रम विवादास्पद हो गया क्योंकि लोगों के साथ ज़्यादतियां हुईं और दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में लोगों की जबरन नसबंदी करवा दी गई.
9. जनसंख्या काबू करने की दलीलों के चलते 1975-76 के दौरान जहां 27 लाख से ज़्यादा लोगों की नसबंदी करवाई गई, वहीं, आलोचनाओं के जवाब में इस कार्यक्रम को और आक्रामक बनाकर 1976-77 के दौरान ये आंकड़ा 83 लाख लोगों तक पहुंच गया. इनमें से ज़्यादातर मामलों में लोगों की मर्ज़ी के खिलाफ नसबंदी कराने के आरोप लगे.
नसबंदी के हैरान करने वाले किस्से
10. खबरों के मुताबिक दिल्ली से 80 किलोमीटर दूर बसे गांव उत्तावर में सुबह 3 बजे पुलिस ने लाउडस्पीकर से पुकारकर लोगों को जगाया और एक जगह इकट्ठा किया. 400 लोग इकट्ठे हुए तो पुलिस ने घर घर जाकर उन्हें लूटा और पीटकर सबको बाहर लाई. 800 लोगों की एक साथ जबरन नसबंदी कर दी गई.
11. देश के कई हिस्सों में ऐसी खबरें आईं, जहां 70 साल से ज़्यादा तो 18 साल से कम उम्र के लोगों तक की नसबंदी करवा दी गई.
12. एक किस्सा उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का था, जहां पुलिस नसबंदी के लिए जबरन लोगों को उठाकर ले गई थी. इलाके के कई लोगों ने पुलिस स्टेशन पर विरोध जताकर पकड़े गए लोगों को छोड़ने की मांग की तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. लोगों ने गुस्से में आकर पुलिस पर हमला बोला तो पुलिस ने फायरिंग की और 30 लोग मारे गए.

संजय गांधी और इंदिरा गांधी. फाइल फोटो
कुछ घंटों में लगी थी इमरजेंसी, कहानी सालों की थी
13. लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के सामने हारे राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में 1971 में केस दाखिल कर चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था. शांतिभूषण ने नारायण के लिए केस लड़ा और हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी को दोषी करार दिया. हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म की जाए और छह सालों तक चुनाव लड़ने के लिए वो अयोग्य मानी जाएं.
14. इसके बाद गांधी ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सही माना और गांधी की अपील पर सुनवाई पूरी होने तक उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की इजाज़त दे दी. ये 24 जून 1975 को हुआ और अगले ही दिन मोरारजी देसाई और जेपी ने सरकार के खिलाफ फिर बड़ा मोर्चा खोल दिया.
15. इसी मोहलत को देखकर 25 जून की आधी रात तक इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत लेकर इमरजेंसी की घोषणा कर दी. कैबिनेट से चर्चा किए बगैर ये घोषणा की गई और तीन घंटों के भीतर तमाम अखबारों की बिजली काट दी गई और विरोधी नेताओं की धरपकड़ शुरू कर दी गई.
क्रमश: अगले भाग में पढ़ें इमरजेंसी से जुड़ी और कहानियां.
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Tags: Emergency, Indira Gandhi, Sanjay gandhi
FIRST PUBLISHED : June 25, 2019, 11:52 IST