Explained: कौन थी करीमा बलूच, जिसके शव से भी घबराया पाकिस्तान?

टोरंटो में एक झील किनारे करीमा बलूच का शव बीते साल दिसंबर में मिला
टोरंटो में एक झील किनारे करीमा बलूच (Karima Baloch) का शव बीते साल दिसंबर में मिला. जैसे इतना काफी न हो, करीमा की मृत देह बलूचिस्तान पहुंचने पर पाकिस्तानी सेना (Pakistan army) ने एयरपोर्ट से ही उसे अगवा कर लिया.
- News18Hindi
- Last Updated: January 25, 2021, 11:10 AM IST
बलूचिस्तान को लेकर पाकिस्तान का डर खुलकर सामने आ चुका है. वो लगातार बलूच लीडरों की आवाज बंद करने की कोशिश करता रहा, लेकिन हद तो ये हो गई कि अब वो मृत बलूच नेताओं से भी घबराया लग रहा है. करीमा बलूच का मामला कुछ ऐसा ही है. बलूचिस्तान में काफी लोकप्रिय विद्रोही करीमा की कनाडा में संदिग्ध मौत के बाद इमरान सरकार ने उसके शव को अगवा कर चुपके से अंतिम संस्कार कर दिया.
क्या है बलूचिस्तान का मामला
करीमा बलूच के बारे में जानने से पहले एक बार ये समझते हैं कि आखिर पाकिस्तान और बलूचिस्तान का मसला क्या है. दरअसल बलूच लोग लंबे समय से पाकिस्तान से अलग होकर आजाद मुल्क बनने की मांग कर रहे हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि भारत से अलग होने के बाद पाक में सिंध और पंजाब का विकास तो हुआ लेकिन बलूच का केवल फायदा उठाया गया.
पिछड़ते गए बलूचनतीजा ये रहा कि बलूच शिक्षा, रोजगार और हेल्थ तक में काफी पीछे रहे. यही देखते हुए सत्तर के दशक में बलूच आजादी की मांग काफी तेज हो गई.

सेना करने लगी हिंसा
मांग दबाने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन भुट्टो सरकार ने आक्रामक तरीका अपनाया. पाक सेना वहां आम बलूच नागरिकों को भी मारने लगी. अनुमान है कि सेना और बलूच लड़ाकों के बीच हुए संघर्ष में साल 1973 में लगभग 8 हजार बलूच नागरिक-लड़ाकों की मौत हो गई थी. वहीं पाकिस्तान के करीब 500 सैनिक मारे गए. इसके बाद मामला खुले तौर पर तो ठंडा पड़ गया लेकिन बलूच लोगों के भीतर गुस्सा भड़कता गया.
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बलूच विद्रोह अब चीन के खिलाफ भी
अब आजादी के लिए बलूच लोग गुरिल्ला हमले का रास्ता अपना रहे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) बलोच अलगाववादियों का सबसे बड़ा संगठन है. ये लगातार पाक पर बलूचिस्तान को अलग करने की मांग करता आया है. इसके अलावा कई और भी अलगाववादी संगठन हैं जो बलूच आजादी के लिए लोगों को एकजुट कर रहे हैं. वे पाकिस्तान से आजादी के लिए चीन को टारगेट कर रहे हैं. अब चूंकि चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश कर रखा है तो इमरान सरकार डरी हुई है कि कहीं बलूचियों का मुद्दा चीन से उसके रिश्ते खराब न कर दे.
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चीन के दबाव में पाकिस्तान सरकार बलूच विद्रोह को काफी ताकत से दबा रही है. करीमा बलूच का मुद्दा भी कुछ ऐसा ही है. करीमा को पाकिस्तान में जान का खतरा था और उन्होंने 2015 में कनाडा में राजनीतिक शरण मांगी थी. वहीं रहते हुए वे पाकिस्तान में बलूचियों की मांग को लेकर आवाज उठा रही थीं. इस बीच करीमा को लगातार धमकियां मिल रही थीं. उनके परिवार ने आशंका जताई थी कि उनका अपहरण हो सकता है.

हत्या के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने की आशंका
साल 2020 के दिसंबर में करीमा बलूच की संदिग्ध तरीके से हत्या हो गई. अटकलें लगाई जा रही हैं कि हत्या के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का ही हाथ है. लेकिन जैसे हत्या ही काफी नहीं थी, करीमा का शव पाकिस्तान लाने पर उसे एयरपोर्ट से ही अगवा कर लिया गया और आनन-फानन अंतिम संस्कार कर दिया गया. पाकिस्तानी सेना को शक था कि सार्वजनिक तौर पर करीमा का अंतिम संस्कार बलूच लोगों में विद्रोह उकसा सकता है.
तो आखिर कौन थी ये विद्रोही नेता?
करीमा मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं, जो बलूचिस्तान में पाक सेना की हिंसा के खिलाफ लगातार आवाज उठा रही थीं. लगभग 37 साल की करीमा पिछड़े समझे जाने वाले बलूचिस्तान में चुनिंदा सबसे ताकतवर लोगों में से थीं. बलूचिस्तान में ही रहते हुए वे एक्टिविक्ट के तौर पर सक्रिय हो गईं और फिर जल्द ही बलूच स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की अध्यक्ष बन गईं. बलूचिस्तान में वे पहली महिला हैं, जो इस पद तक पहुंचीं.

ये वो दौर था, जब पाक सेना बलूच लोगों पर खुल्लम-खुल्ला हिंसा कर रही थी. धड़ाधड़ बलूच नेता गायब हो रहे थे, तब करीमा ने बीएसओ की बागडोर संभाली. वे लगातार सक्रिय रहीं और बलूचिस्तान में मानवाधिकार के दमन की बातें कोने-कोने में पहुंचाती रहीं. घरों में बंद महिलाओं को भी विद्रोह से जोड़ने में करीमा ने सबसे पहले काम किया. इसी दौरान बीबीसी की ओर से करीमा को दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं में रखा गया.
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PM मोदी को बताया था भाई
साल 2016 में करीमा का नाम काफी चर्चा में रहा, जब उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी का संदेश भेजा था. पीएम मोदी को अपना भाई कहते हुए करीमा ने कहा था कि वे मोदी समेत भारत के साथ की उम्मीद करती हैं. ये वो समय था, जी करीमा बलूचिस्तान छोड़कर कनाडा में शरण लेने पहुंची ही थीं. इसके बाद से करीमा और उनके पति को कनाडा में धमकियां मिलने लगी थीं. लेकिन इसके बाद भी करीमा सोशल मीडिया पर लगातार बलूचिस्तान की आवाज बनी रहीं. अब संदिग्ध हत्या के बारे में करीमा के परिवार का कहना है कि ये ISI का काम है.
क्या है बलूचिस्तान का मामला
करीमा बलूच के बारे में जानने से पहले एक बार ये समझते हैं कि आखिर पाकिस्तान और बलूचिस्तान का मसला क्या है. दरअसल बलूच लोग लंबे समय से पाकिस्तान से अलग होकर आजाद मुल्क बनने की मांग कर रहे हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि भारत से अलग होने के बाद पाक में सिंध और पंजाब का विकास तो हुआ लेकिन बलूच का केवल फायदा उठाया गया.
पिछड़ते गए बलूचनतीजा ये रहा कि बलूच शिक्षा, रोजगार और हेल्थ तक में काफी पीछे रहे. यही देखते हुए सत्तर के दशक में बलूच आजादी की मांग काफी तेज हो गई.

सत्तर के दशक में बलूच आजादी की मांग काफी तेज हो गई
सेना करने लगी हिंसा
मांग दबाने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन भुट्टो सरकार ने आक्रामक तरीका अपनाया. पाक सेना वहां आम बलूच नागरिकों को भी मारने लगी. अनुमान है कि सेना और बलूच लड़ाकों के बीच हुए संघर्ष में साल 1973 में लगभग 8 हजार बलूच नागरिक-लड़ाकों की मौत हो गई थी. वहीं पाकिस्तान के करीब 500 सैनिक मारे गए. इसके बाद मामला खुले तौर पर तो ठंडा पड़ गया लेकिन बलूच लोगों के भीतर गुस्सा भड़कता गया.
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बलूच विद्रोह अब चीन के खिलाफ भी
अब आजादी के लिए बलूच लोग गुरिल्ला हमले का रास्ता अपना रहे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) बलोच अलगाववादियों का सबसे बड़ा संगठन है. ये लगातार पाक पर बलूचिस्तान को अलग करने की मांग करता आया है. इसके अलावा कई और भी अलगाववादी संगठन हैं जो बलूच आजादी के लिए लोगों को एकजुट कर रहे हैं. वे पाकिस्तान से आजादी के लिए चीन को टारगेट कर रहे हैं. अब चूंकि चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश कर रखा है तो इमरान सरकार डरी हुई है कि कहीं बलूचियों का मुद्दा चीन से उसके रिश्ते खराब न कर दे.
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चीन के दबाव में पाकिस्तान सरकार बलूच विद्रोह को काफी ताकत से दबा रही है. करीमा बलूच का मुद्दा भी कुछ ऐसा ही है. करीमा को पाकिस्तान में जान का खतरा था और उन्होंने 2015 में कनाडा में राजनीतिक शरण मांगी थी. वहीं रहते हुए वे पाकिस्तान में बलूचियों की मांग को लेकर आवाज उठा रही थीं. इस बीच करीमा को लगातार धमकियां मिल रही थीं. उनके परिवार ने आशंका जताई थी कि उनका अपहरण हो सकता है.

करीमा रहते हुए वे पाकिस्तान में बलूचियों की मांग को लेकर आवाज उठा रही थीं
हत्या के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने की आशंका
साल 2020 के दिसंबर में करीमा बलूच की संदिग्ध तरीके से हत्या हो गई. अटकलें लगाई जा रही हैं कि हत्या के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का ही हाथ है. लेकिन जैसे हत्या ही काफी नहीं थी, करीमा का शव पाकिस्तान लाने पर उसे एयरपोर्ट से ही अगवा कर लिया गया और आनन-फानन अंतिम संस्कार कर दिया गया. पाकिस्तानी सेना को शक था कि सार्वजनिक तौर पर करीमा का अंतिम संस्कार बलूच लोगों में विद्रोह उकसा सकता है.
तो आखिर कौन थी ये विद्रोही नेता?
करीमा मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं, जो बलूचिस्तान में पाक सेना की हिंसा के खिलाफ लगातार आवाज उठा रही थीं. लगभग 37 साल की करीमा पिछड़े समझे जाने वाले बलूचिस्तान में चुनिंदा सबसे ताकतवर लोगों में से थीं. बलूचिस्तान में ही रहते हुए वे एक्टिविक्ट के तौर पर सक्रिय हो गईं और फिर जल्द ही बलूच स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की अध्यक्ष बन गईं. बलूचिस्तान में वे पहली महिला हैं, जो इस पद तक पहुंचीं.

बलूचिस्तान में काफी लोकप्रिय विद्रोही करीमा सोशल मीडिया के जरिए दुनियाभर से जुड़ी थीं (Photo- twitter)
ये वो दौर था, जब पाक सेना बलूच लोगों पर खुल्लम-खुल्ला हिंसा कर रही थी. धड़ाधड़ बलूच नेता गायब हो रहे थे, तब करीमा ने बीएसओ की बागडोर संभाली. वे लगातार सक्रिय रहीं और बलूचिस्तान में मानवाधिकार के दमन की बातें कोने-कोने में पहुंचाती रहीं. घरों में बंद महिलाओं को भी विद्रोह से जोड़ने में करीमा ने सबसे पहले काम किया. इसी दौरान बीबीसी की ओर से करीमा को दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं में रखा गया.
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PM मोदी को बताया था भाई
साल 2016 में करीमा का नाम काफी चर्चा में रहा, जब उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी का संदेश भेजा था. पीएम मोदी को अपना भाई कहते हुए करीमा ने कहा था कि वे मोदी समेत भारत के साथ की उम्मीद करती हैं. ये वो समय था, जी करीमा बलूचिस्तान छोड़कर कनाडा में शरण लेने पहुंची ही थीं. इसके बाद से करीमा और उनके पति को कनाडा में धमकियां मिलने लगी थीं. लेकिन इसके बाद भी करीमा सोशल मीडिया पर लगातार बलूचिस्तान की आवाज बनी रहीं. अब संदिग्ध हत्या के बारे में करीमा के परिवार का कहना है कि ये ISI का काम है.