बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला का दो की जगह केवल एक साल बढ़ाया गया कार्यकाल.
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ एक के बाद एक अजीबोगरीब फैसले सुना रही है. ताजा फैसले के तहत इसी कोर्ट की जज पुष्पा गनेडीवाला (Pushpa Ganediwala) ने एक रेपिस्ट को बरी कर दिया. जज का कहना था अकेले शख्स के लिए पीड़िता का मुंह बंद करके बिना किसी हाथापाई उससे दुष्कर्म मुमकिन नहीं. जज गनेदीवाल ने कुछ दिनों पहले भी एक के बाद एक दो ऐसे फैसले किए, जो बजाए बच्चियों के दोषियों के पक्ष में जाते थे.
स्किन-टू-स्किन संपर्क न हो तो अपराध कम!
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला का नाम सबसे पहले तब चर्चा में आया, जब उन्होंने अपने फैसले में 12 साल की पीड़िता पर यौन हमला करने वाले को एक बेहद अजीब तर्क देते हुए सजा कम कर दी. जज का कहना था कि चूंकि पीड़िता और दोषी का स्किन-टू-स्किन संपर्क नहीं हुआ है, इसलिए ये मामला पॉक्सो के तहत नहीं आता. इस फैसले की चर्चा के बाद बवाल मच गया. अलग-अलग संगठन इसपर जज की समझबूझ पर सवाल उठाने लगे. इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और उसने बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर रोक लगा दी.
5 साल की बच्ची के अपराधी को 5 महीने की सजा
इस बीच इन्हीं जज का एक और फैसला आया, जिसमें उन्होंने 5 साल की बच्ची के साथ यौन दुर्व्वहार करने वाले 50 साल के शख्स को महज 5 महीने में रिहा करवा दिया. इस बार भी जज का तर्क उतना ही बेतुका था. उन्होंने कहा कि दोषी का बच्ची के हाथ पकड़कर अपने कपड़े उतारना पॉक्सो में शामिल नहीं. इस फैसले पर फिलहाल उतनी चर्चा नहीं हुई है. लेकिन इस बीच पुष्पा गनेडीवाला का नाम जरूर सुर्खियों में है.
आखिर कौन है ये जज?
एक के बाद एक लगातार विवादास्पद फैसले और वो भी दोषियों के पक्ष में ले रही जज पुष्पा गनेडीवाला साल 1969 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक छोटे से गांव में जन्मीं. उनकी शुरुआत पढ़ाई के बारे में खास जिक्र नहीं मिलता. कॉमर्स में ग्रेजुएशन के बाद गनेडीवाला ने लॉ में ग्रेजुएशन और फिर मास्टर्स किया. इसके बाद उनका करियर शुरू हो गया.
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कैसा रहा जज का करियर
साल 2007 में बतौर जिला जज उन्होंने शुरुआत की. इसके बाद वे नागपुर के जिला और फैमिली कोर्ट में भी जज रहीं. पुष्पा का लगातार प्रमोशन होता गया और वे बॉम्बे हाईकोर्ट की रजिस्ट्रार जनरल के पद पर पहुंच गईं. साल 2018 में उनका नाम बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए जज बतौर नामांकित हुआ, लेकिन किसी वजह से उनका अपॉइंटमेंट नहीं हुआ. माना जाता है कि इसके पीछे पुष्पा गनेडीवाला के लिए आ रही नकारात्मक रिपोर्ट्स थीं. अब लगातार बेतुके फैसलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुद आगे आकर गनेडीवाला का बॉम्बे हाईकोर्ट में स्थायी नियुक्ति देने पर रोक लगा दी है.
कम हैं महिला जज
स्किन-टू-स्किन संपर्क के बगैर पॉक्सो का मामला नहीं बनता, जैसी बात उनके सीधे खिलाफ गई. जज गनेडीवाला के इस फैसले पर खुद टॉर्नी जेनरल के के वेणुगोपाल ने निजी तौर पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. उन्होंने इसे खतरनाक बताते हुए कहा था कि इससे भविष्य में और समस्याएं आएंगी. वैसे वेणुगोपाल भारत की अदालतों में महिला जजों की कम संख्या पर भी लगातार बोलते रहे हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में 32 पुरुष जजों के बीच सिर्फ 2 महिला जज हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में 229 मर्दों के बीच 8 महिला हैं और बाकी महानगरों में भी यही हाल हैं.
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महिला वकीलों और जजों के साथ भेदभाव आम
अदालतों में महिला वकीलों से लेकर महिला जजों से भेदभाव की खबरें भी लगातार आती रहती हैं. नामी-गिरामी वकील इंदिरा जयसिंह ने एक बार बताया था कि कैसे वे कोर्ट में अपने ही सहकर्मियों के कारण परेशान हो चुकीं. उन्होंने बताया था कि कैसे मर्द सहकर्मी उन्हें वो औरत कहा करते थे, जबकि वे अपने पुरुष सहकर्मियों को मेरे काबिल साथी बुलाया करती थीं. कई और मामलों पर भी दबी जबान से चर्चा होती रही, जब महिला जजों को अपने साथी पुरुष जजों की वजह से बॉडी शेमिंग जैसी चीजें झेलनी पड़ी.
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