कौन है पीटर फ्रेडरिक, जिस पर टूलकिट केस में है 'खालिस्तानी कनेक्शन' का आरोप

पत्रकार व लेखक पीटर फ्रेडरिक
किसान आंदोलन (Farmers Protest) से पैदा हुए टूलकिट मामले में दिशा रवि (Disha Ravi), निकिता जैकब और शांतनु मुलुक के बाद विदेशी नाम भारत में ट्रेंडिंग है. RSS के आलोचक पीटर का खालिस्तान कनेक्शन क्या है और पीटर क्या किसी प्रोपैगेंडा से जुड़े हैं?
- News18Hindi
- Last Updated: February 23, 2021, 8:05 AM IST
भारत में टूलकिट मामले में इन दिनों सबसे ज़्यादा जो नाम चर्चा में है, वो है पीटर फ्रेडरिक. स्वीडन की एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग (Activist Greta Thunberg) ने जिस टूलकिट को शेयर किया, उसे भारत के खिलाफ सूचना प्रॉक्सी वॉर (Info Warfare) मानकर सुरक्षा एजेंसियां पीटर के खालिस्तानी कनेक्शन के बारे में शिद्दत से जांच कर रही हैं. दूसरी तरफ, पीटर सोशल मीडिया (Social Media) के ज़रिये लगातार अपना बचाव करते हुए भारत के मौजूदा हालात पर टिप्पणी करने से नहीं चूक रहा. किसान आंदोलन के चलते तूल पकड़ने वाले इस मुद्दे के केंद्र में आ गए पीटर की पहचान कम दिलचस्प नहीं है.
दिल्ली पुलिस का दावा है कि पीटर खालिस्तान का एक मोहरा है, जो भारत के खिलाफ साज़िश में शामिल है. यही नहीं पुलिस का कहना यह भी है कि 2006 से ही सुरक्षा एजेंसियां पीटर को अपने रडार पर रखे हुए हैं. बेंगलूरु की एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी और निकिता जैकब व शांतनु मुलुक से पूछताछ की खबरों के बाद पीटर का नाम टूलकिट केस में कैसे आ रहा है और क्यों अहम हो गया है? जानें.
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टूलकिट केस : पुलिस की थ्योरीपीटर कौन है, यह जानने से पहले समझना चाहिए कि टूलकिट केस में पुलिस किस वजह से इस नाम को इतनी तवज्जो दे रही है. अस्ल में दिल्ली पुलिस का दावा है कि कथित टूलकिट खालिस्तानी समर्थक दस्तावेज़ है, जिसे रणनीति के तहत शेयर किया गया. पुलिस की मानें तो दिशा, निकिता और शांतनु 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन' की संचालक और खालिस्तान की हमदर्द मो धालीवाल के ज़रिये आपस में जुड़े हुए थे.

इन तीनों ने जिस टूलकिट डॉक्युमेंट को शेयर किया और उसमें कथित तौर पर कुछ बदलाव भी किए, उसे अंतर्राष्ट्रीय एक्टिविस्ट ग्रेटा ने भी साझा किया. यहां से पीटर का नाम इस केस में शामिल होता है क्योंकि इस गूगल डॉक्युमेंट के "who to be followed" सेक्शन में पीटर का नाम लिखा था.
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अब पुलिस का दावा है कि खालिस्तान के संचालक भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी के साथ पीटर का संबंध है. भिंडर को पुलिस पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई की कश्मीर प्लस खालिस्तान डेस्क का खिलाड़ी मानती है. यही नहीं, पुलिस का कहना यह भी है कि भिंडर के साथ एक संगठन चलाने वाले पीटर का दिशा, निकिता और शांतनु से क्या संबंध है, यह भी जांच की जा रही है.
कौन है पीटर फ्रेडरिक?
ट्विटर पर करीब 29 हज़ार फॉलोअर वाले पीटर खुद को फ्रीलांस जर्नलिस्ट कहते हैं. ट्विटर पर पीटर ने परिचय में लिखा है कि वो 'बोल्ड, तथ्यात्मक, आक्रामक और सत्ता विरोधी पत्रकारिता में विश्वास करते हैं'. वहीं, पीटर की वेबसाइट के मुताबिक वो एक लेखक, एक्टिविस्ट, वक्ता और घुमंतू हैं. इन दिनों टूलकिट केस में एक्टिविस्टों को सपोर्ट करने के लिए पीटर ने ट्विटर पर अपने नाम में 'ग्रेटा थनबर्ग का खादिम' शब्द जोड़ लिया है.
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दक्षिण एशिया के मामलों और खासकर मानवाधिकारों से जुड़े लेखन में पीटर विशेषज्ञता रखते हैं और वेबसाइट यह भी कहती है कि आधिपत्यवादी राजनीति, धर्म की सियासत, सामंतवादी सरकारी नीतियों और सिस्टम के अत्याचारों के खिलाफ पीटर लिखते रहे हैं. अमेरिका की कई यूनिवर्सिटियों समेत गुरुद्वारों, बौद्ध विहारों, मस्जिदों में भी लेक्चर दे चुके पीटर की किसी डिग्री का खुलासा नहीं है.

विवादों पर पीटर का पक्ष
खुद को अमेरिकी नागरिक बताने वाले पीटर ने 2018 में आरएसएस प्रायोजित विश्व हिंदुत्व कांग्रेस का विरोध किया था. यही नहीं, पीटर ने आरएसएस की आलोचना करती एक किताब 'सैफ्रन फासिस्ट' लिखी है और सोशल मीडिया पर वो उसका प्रचार करते हैं. अब आपको जानना चाहिए कि पुलिस की थ्योरी के बारे में पीटर क्या कह रहे हैं :
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1. चूंकि मैं मोदी सरकार और आरएसएस का आलोचक रहा हूं, इसलिए मुझे निशाना बनाया जा रहा है.
2. पोएटिक जस्टिस क्या है, इस बारे में मुझे भारतीय मीडिया से ही पता चला.
3. खालिस्तान को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार सारी नाकामियों से मुंह फेरना चाहती है.
4. यह मज़ाक है कि मुझे और रिहाना जैसे विदेशियों को अलगाववादी सिख आंदोलन के साथ जोड़ा जा रहा है.
खालिस्तान कनेक्शन पर सफाई
इस तरह की बातें करने वाले पीटर यूट्यूब पर एक वीडियो में 'आरएसएस की गतिविधियों के बारे में जागरूकता' फैलाने के लिए डोनेशन मांग चुके हैं. वहीं, भजन सिंह के साथ कनेक्शन को लेकर पीटर ने माना कि उन्होंने दो किताबों का लेखन सिंह के साथ मिलकर किया है, लेकिन पीटर का दावा है कि अगर 'मैं कभी देखता कि वो खालिस्तान समर्थक हैं, तो उनसे दूरी बना ही लेता'.
दिल्ली पुलिस का दावा है कि पीटर खालिस्तान का एक मोहरा है, जो भारत के खिलाफ साज़िश में शामिल है. यही नहीं पुलिस का कहना यह भी है कि 2006 से ही सुरक्षा एजेंसियां पीटर को अपने रडार पर रखे हुए हैं. बेंगलूरु की एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी और निकिता जैकब व शांतनु मुलुक से पूछताछ की खबरों के बाद पीटर का नाम टूलकिट केस में कैसे आ रहा है और क्यों अहम हो गया है? जानें.
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टूलकिट केस : पुलिस की थ्योरीपीटर कौन है, यह जानने से पहले समझना चाहिए कि टूलकिट केस में पुलिस किस वजह से इस नाम को इतनी तवज्जो दे रही है. अस्ल में दिल्ली पुलिस का दावा है कि कथित टूलकिट खालिस्तानी समर्थक दस्तावेज़ है, जिसे रणनीति के तहत शेयर किया गया. पुलिस की मानें तो दिशा, निकिता और शांतनु 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन' की संचालक और खालिस्तान की हमदर्द मो धालीवाल के ज़रिये आपस में जुड़े हुए थे.

टूलकिट केस में दिशा रवि, शांतनु और निकिता से पूछताछ चल रही है.
इन तीनों ने जिस टूलकिट डॉक्युमेंट को शेयर किया और उसमें कथित तौर पर कुछ बदलाव भी किए, उसे अंतर्राष्ट्रीय एक्टिविस्ट ग्रेटा ने भी साझा किया. यहां से पीटर का नाम इस केस में शामिल होता है क्योंकि इस गूगल डॉक्युमेंट के "who to be followed" सेक्शन में पीटर का नाम लिखा था.
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अब पुलिस का दावा है कि खालिस्तान के संचालक भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी के साथ पीटर का संबंध है. भिंडर को पुलिस पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई की कश्मीर प्लस खालिस्तान डेस्क का खिलाड़ी मानती है. यही नहीं, पुलिस का कहना यह भी है कि भिंडर के साथ एक संगठन चलाने वाले पीटर का दिशा, निकिता और शांतनु से क्या संबंध है, यह भी जांच की जा रही है.
कौन है पीटर फ्रेडरिक?
ट्विटर पर करीब 29 हज़ार फॉलोअर वाले पीटर खुद को फ्रीलांस जर्नलिस्ट कहते हैं. ट्विटर पर पीटर ने परिचय में लिखा है कि वो 'बोल्ड, तथ्यात्मक, आक्रामक और सत्ता विरोधी पत्रकारिता में विश्वास करते हैं'. वहीं, पीटर की वेबसाइट के मुताबिक वो एक लेखक, एक्टिविस्ट, वक्ता और घुमंतू हैं. इन दिनों टूलकिट केस में एक्टिविस्टों को सपोर्ट करने के लिए पीटर ने ट्विटर पर अपने नाम में 'ग्रेटा थनबर्ग का खादिम' शब्द जोड़ लिया है.
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दक्षिण एशिया के मामलों और खासकर मानवाधिकारों से जुड़े लेखन में पीटर विशेषज्ञता रखते हैं और वेबसाइट यह भी कहती है कि आधिपत्यवादी राजनीति, धर्म की सियासत, सामंतवादी सरकारी नीतियों और सिस्टम के अत्याचारों के खिलाफ पीटर लिखते रहे हैं. अमेरिका की कई यूनिवर्सिटियों समेत गुरुद्वारों, बौद्ध विहारों, मस्जिदों में भी लेक्चर दे चुके पीटर की किसी डिग्री का खुलासा नहीं है.

पीटर का ताज़ा ट्वीट
विवादों पर पीटर का पक्ष
खुद को अमेरिकी नागरिक बताने वाले पीटर ने 2018 में आरएसएस प्रायोजित विश्व हिंदुत्व कांग्रेस का विरोध किया था. यही नहीं, पीटर ने आरएसएस की आलोचना करती एक किताब 'सैफ्रन फासिस्ट' लिखी है और सोशल मीडिया पर वो उसका प्रचार करते हैं. अब आपको जानना चाहिए कि पुलिस की थ्योरी के बारे में पीटर क्या कह रहे हैं :
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1. चूंकि मैं मोदी सरकार और आरएसएस का आलोचक रहा हूं, इसलिए मुझे निशाना बनाया जा रहा है.
2. पोएटिक जस्टिस क्या है, इस बारे में मुझे भारतीय मीडिया से ही पता चला.
3. खालिस्तान को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार सारी नाकामियों से मुंह फेरना चाहती है.
4. यह मज़ाक है कि मुझे और रिहाना जैसे विदेशियों को अलगाववादी सिख आंदोलन के साथ जोड़ा जा रहा है.
खालिस्तान कनेक्शन पर सफाई
इस तरह की बातें करने वाले पीटर यूट्यूब पर एक वीडियो में 'आरएसएस की गतिविधियों के बारे में जागरूकता' फैलाने के लिए डोनेशन मांग चुके हैं. वहीं, भजन सिंह के साथ कनेक्शन को लेकर पीटर ने माना कि उन्होंने दो किताबों का लेखन सिंह के साथ मिलकर किया है, लेकिन पीटर का दावा है कि अगर 'मैं कभी देखता कि वो खालिस्तान समर्थक हैं, तो उनसे दूरी बना ही लेता'.