भारत में सबसे अमीर फ्रांसीसी रहे मार्टिन का क्या है स्कूलों और मंदिरों से कनेक्शन?

लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज के भवन की तस्वीर विकिकॉमन्स से साभार.
भयानक विस्फोटक ईजाद करने वाले नोबेल (Alfred Nobel) ने अपने नाम से बड़े पुरस्कार (Nobel Prize) चलाने की वसीयत छोड़ी, लेकिन लखनऊ डिज़ाइन (Lucknow Designer) करने वाले अंग्रेज़ आर्मी अफसर ने वसीयत में लिखा कि उनकी बेशुमार दौलत से स्कूल बनवाए जाएं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 18, 2021, 8:30 AM IST
मेजर जनरल क्लॉडे मार्टिन (जन्म 5 जनवरी 1735) के नाम पर कम से कम दस शिक्षण संस्थान हैं, जिनमें से दो लखनऊ (Lucknow), दो कोलकाता (Kolkata) और छह फ्रांस के ल्योन (Lyon in France) में हैं. यही नहीं, लखनऊ में करीब 4000 की आबादी वाला एक गांव मार्टिनपुरा (Martin Purwa) भी उन्हीं के नाम पर बसा था. और चौंकना चाहते हैं, तो ये भी जानिए कि मार्टिन एक आर्मी अफसर (Army Officer) ही नहीं, शिक्षाविद, आर्किटेक्ट, बिल्डर, संग्रहकर्ता, नवाब, बैंकर, सर्जन, समाजसेवी और लेखक भी थे. यानी क्या नहीं थे! आपको ये भी बताते हैं कि वृंदावन का एक प्रसिद्ध मंदिर (Vrindavan Temple) कैसे मार्टिन के नाम और काम से जुड़ा है.
लखनऊ स्थित ला मार्टिनियर कॉलेज न केवल मार्टिन की कला का शाहकार है बल्कि उनका मकबरा भी है. यह स्मारक भवन भारत में किसी विदेशी का सबसे बड़ा समाधि स्थल भी है और एक अंग्रेज़ इतिहासकार की मानें तो ताजमहल के मुकाबले अंग्रेज़ों के आर्किटेक्ट का जवाब भी. इस स्कूल के कुछ खास पहलुओं से पहले आपको ज़रा मार्टिन के बारे में खास बातें बताते हैं.
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भारत में सबसे अमीर फ्रांसीसी थे मार्टिनपहले फ्रेंच और फिर अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल आर्मी में अफसर रहे मार्टिन की दौलत का प्रमुख स्रोत नवाब आसफुद्दौला के साथ दोस्ती रही. मार्टिन ने अपने रहने के मकसद से एक महलनुमा भव्य भवन बनवाना 1785 में शुरू किया था, जो उनकी मौत के 2 साल बाद तैयार हुआ और बाद में लखनऊ के प्रसिद्ध स्कूल का भवन बन गया. मार्टिन के इस स्कूल से पहले उनके बारे में जानिए.
1. मार्टिन कर्नल और फिर मेजर जनरल के पद तक पहुंचे थे और यह इसलिए अहम बात थी क्योंकि अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी में कोई भी विदेशी सोल्जर मेजर के पद से आगे नहीं बढ़ा था और मार्टिन फ्रांसीसी थे.

2. लखनऊ के आधुनिक स्वरूप की बुनियाद जिस आर्किटेक्ट ने रखी थी, वह मार्टिन ही थे. नवाब आसफुद्दौला ने उनके साथ मिलकर ही अवध की नई राजधानी को डिज़ाइन करवाया था. कॉंस्टैंशिया के अलावा, गवर्नर हाउस यानी उस समय की कोठी हयात बख्श, फरहाद बख्श, आसफी कोठी आदि कई इमारतें मार्टिन की देन रहीं.
3. नवाब के साथ नज़दीकी और अवध की कमान इस तरह से मार्टिन के हाथ में रही कि उनका जलवा अवध के नवाब से कम नहीं था और वो उसी तरह की शान शौकत के साथ दावत और सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवाते थे.
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4. मार्टिन ने नवाब तक को ऐतिहासिक कर्ज देने के लिए शुरूआती बैंकिंग में हाथ आज़माया था. नील की खेती से लेकर हीरे और गन पाउडर तक के कारोबार में उन्होंने निवेश और कई पहल की थीं. यही नहीं, उन्होंने अपने शरीर में पथरी के इलाज के लिए अपनी ही सर्जरी कर ली थी, बगैर किसी डॉक्टरी प्रशिक्षण के.
5. इनके अलावा, आर्मी के साथियों और अधीनस्थों के लिए सेवा करना और शिक्षा के लिए दूरदर्शिता व संसाधन मुहैया कराने का श्रेय भी मार्टिन को मिलता रहा. कोलकाता और लखनऊ स्थित स्कूल उनकी याद दिलाते रहते हैं.
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लखनऊ के बॉयज़ स्कूल की कहानी
13 सितंबर 1800 को मार्टिन की मृत्यु के बाद 1802 में कॉंस्टैंशिया का निर्माण पूरा हुआ था, जो मार्टिन का महल था. माना गया कि इस भवन का नाम मार्टिन की फिलासफी 'काम और निरंतरता' के आधार पर रखा गया था, जिसके लिए फ्रेंच में कॉंस्टैंशिया शब्द है. वहीं कुछ लोगों ने यह कहानी भी बताई कि कभी शादी न करने वाले मार्टिन को जिस लड़की से पहला प्यार हुआ था, उसके नाम पर इस महल का नाम रखा गया था, जो बाद में स्कूल भवन बन गया.

शादी और कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण मार्टिन ने अपनी वसीयत में लिख छोड़ा था कि उनकी अपार संपत्ति से लखनऊ, कोलकाता और उनके गृहनगर में स्कूल बनवाए जाएं. मार्टिन ने ईसाइयत को बढ़ावा देने के लिए, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई के लिए और लड़कों के लिए कॉलेज के तौर पर कॉंस्टैंशिया के इस्तेमाल की बात भी वसीयत की थी.
क्या है वृंदावन मंदिर से कनेक्शन?
मार्टिन की कई इमारतों के डिज़ाइन को आने वाले शासकों और आर्किटेक्टों ने कॉपी किया क्योंकि वो थी हीं इतनी सुंदर. अवध और आसपास के इलाकों में बाद की कई इमारतों पर मार्टिन की कला की छाप दिखती है. 1751 में भारत पहुंचे मार्टिन ने मुगलों, हिंदुओं और यूरोप के आर्किटेक्चर को मिलाकर एक अनूठा स्टाइल तैयार किया था.
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कुछ लोग मानते हैं कि वृंदावन में 19वीं सदी में बना एक वैष्णव मंदिर भी इसी कला से प्रभावित है. वृंदावन में लखनऊ के रूमी दरवाज़े से मेल खाता एक स्ट्रक्चर है, जहां से शाह जी के मंदिर परिसर की शुरूआत होती है. इसे लखनऊ के ही शाह कुंदनलाल द्वारा निर्मित बताया जाता है. मार्टिन ने जिस तरह लखनवी कोठी बनवाई थी, उसी तरह का यूरोपीय स्टाइल इस मंदिर निर्माण में दिखता है.

इस कृष्ण मंदिर का गृहमुख ही नहीं बल्कि सीढ़ियां, छत, वरांडा, खंभे और कंगूरे सभी पर मार्टिन के शिल्प की छाप साफ देखी जा सकती है. अमेरिका में शोधकर्ता आदित्य चतुर्वेदी के लेख के मुताबिक 'टेढ़े खंभे वाला मंदिर' गौर से देखा जाए तो यहां ग्रीक माइथोलॉजी का प्रभाव दिखता है, जो कॉंस्टैंशिया में भी है.
कहा जाता है कि लखनऊ में मार्टिन के योगदान को याद रखने और उनके कारनामों को बढ़ावा देने के साथ ही सामाजिक व सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल को भी बनाए रखने के लिए शाह जी ने हिंदू मंदिर के लिए इंडो इस्लामिक ढंग के गेटवे और एक यूरोपीय के मिश्रित अंदाज़ वाले शिल्प को चुना था.
लखनऊ स्थित ला मार्टिनियर कॉलेज न केवल मार्टिन की कला का शाहकार है बल्कि उनका मकबरा भी है. यह स्मारक भवन भारत में किसी विदेशी का सबसे बड़ा समाधि स्थल भी है और एक अंग्रेज़ इतिहासकार की मानें तो ताजमहल के मुकाबले अंग्रेज़ों के आर्किटेक्ट का जवाब भी. इस स्कूल के कुछ खास पहलुओं से पहले आपको ज़रा मार्टिन के बारे में खास बातें बताते हैं.
ये भी पढ़ें :- क्यों चीन में 1.2 अरब की आबादी के बीच सिर्फ 100 ही सरनेम हैं?
भारत में सबसे अमीर फ्रांसीसी थे मार्टिनपहले फ्रेंच और फिर अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल आर्मी में अफसर रहे मार्टिन की दौलत का प्रमुख स्रोत नवाब आसफुद्दौला के साथ दोस्ती रही. मार्टिन ने अपने रहने के मकसद से एक महलनुमा भव्य भवन बनवाना 1785 में शुरू किया था, जो उनकी मौत के 2 साल बाद तैयार हुआ और बाद में लखनऊ के प्रसिद्ध स्कूल का भवन बन गया. मार्टिन के इस स्कूल से पहले उनके बारे में जानिए.
1. मार्टिन कर्नल और फिर मेजर जनरल के पद तक पहुंचे थे और यह इसलिए अहम बात थी क्योंकि अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी में कोई भी विदेशी सोल्जर मेजर के पद से आगे नहीं बढ़ा था और मार्टिन फ्रांसीसी थे.

ईस्ट इंडिया कंपनी में मेजर जनरल क्लॉडे मार्टिन. (Wikicommons)
2. लखनऊ के आधुनिक स्वरूप की बुनियाद जिस आर्किटेक्ट ने रखी थी, वह मार्टिन ही थे. नवाब आसफुद्दौला ने उनके साथ मिलकर ही अवध की नई राजधानी को डिज़ाइन करवाया था. कॉंस्टैंशिया के अलावा, गवर्नर हाउस यानी उस समय की कोठी हयात बख्श, फरहाद बख्श, आसफी कोठी आदि कई इमारतें मार्टिन की देन रहीं.
3. नवाब के साथ नज़दीकी और अवध की कमान इस तरह से मार्टिन के हाथ में रही कि उनका जलवा अवध के नवाब से कम नहीं था और वो उसी तरह की शान शौकत के साथ दावत और सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करवाते थे.
ये भी पढ़ें :- भारी मांग के बावजूद किस तरह कूड़े में फेंके जा रहे हैं वैक्सीन डोज़?
4. मार्टिन ने नवाब तक को ऐतिहासिक कर्ज देने के लिए शुरूआती बैंकिंग में हाथ आज़माया था. नील की खेती से लेकर हीरे और गन पाउडर तक के कारोबार में उन्होंने निवेश और कई पहल की थीं. यही नहीं, उन्होंने अपने शरीर में पथरी के इलाज के लिए अपनी ही सर्जरी कर ली थी, बगैर किसी डॉक्टरी प्रशिक्षण के.
5. इनके अलावा, आर्मी के साथियों और अधीनस्थों के लिए सेवा करना और शिक्षा के लिए दूरदर्शिता व संसाधन मुहैया कराने का श्रेय भी मार्टिन को मिलता रहा. कोलकाता और लखनऊ स्थित स्कूल उनकी याद दिलाते रहते हैं.
ये भी पढ़ें :- समीरा फाज़िली के बाद अब बाइडन टीम में हैं ये अहम भारतीय महिलाएं
लखनऊ के बॉयज़ स्कूल की कहानी
13 सितंबर 1800 को मार्टिन की मृत्यु के बाद 1802 में कॉंस्टैंशिया का निर्माण पूरा हुआ था, जो मार्टिन का महल था. माना गया कि इस भवन का नाम मार्टिन की फिलासफी 'काम और निरंतरता' के आधार पर रखा गया था, जिसके लिए फ्रेंच में कॉंस्टैंशिया शब्द है. वहीं कुछ लोगों ने यह कहानी भी बताई कि कभी शादी न करने वाले मार्टिन को जिस लड़की से पहला प्यार हुआ था, उसके नाम पर इस महल का नाम रखा गया था, जो बाद में स्कूल भवन बन गया.

चित्रकार जोहान ज़ोफनी ने इस ऐतिहासिक तस्वीर में नवाब आसफुद्दौला, मार्टिन, अन्य अंग्रेज़ अफसरों के साथ खुद को भी चित्रित किया था. (Wikicommons)
शादी और कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण मार्टिन ने अपनी वसीयत में लिख छोड़ा था कि उनकी अपार संपत्ति से लखनऊ, कोलकाता और उनके गृहनगर में स्कूल बनवाए जाएं. मार्टिन ने ईसाइयत को बढ़ावा देने के लिए, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई के लिए और लड़कों के लिए कॉलेज के तौर पर कॉंस्टैंशिया के इस्तेमाल की बात भी वसीयत की थी.
क्या है वृंदावन मंदिर से कनेक्शन?
मार्टिन की कई इमारतों के डिज़ाइन को आने वाले शासकों और आर्किटेक्टों ने कॉपी किया क्योंकि वो थी हीं इतनी सुंदर. अवध और आसपास के इलाकों में बाद की कई इमारतों पर मार्टिन की कला की छाप दिखती है. 1751 में भारत पहुंचे मार्टिन ने मुगलों, हिंदुओं और यूरोप के आर्किटेक्चर को मिलाकर एक अनूठा स्टाइल तैयार किया था.
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कुछ लोग मानते हैं कि वृंदावन में 19वीं सदी में बना एक वैष्णव मंदिर भी इसी कला से प्रभावित है. वृंदावन में लखनऊ के रूमी दरवाज़े से मेल खाता एक स्ट्रक्चर है, जहां से शाह जी के मंदिर परिसर की शुरूआत होती है. इसे लखनऊ के ही शाह कुंदनलाल द्वारा निर्मित बताया जाता है. मार्टिन ने जिस तरह लखनवी कोठी बनवाई थी, उसी तरह का यूरोपीय स्टाइल इस मंदिर निर्माण में दिखता है.

वृंदावन के शाहजी मंदिर की तस्वीर-
इस कृष्ण मंदिर का गृहमुख ही नहीं बल्कि सीढ़ियां, छत, वरांडा, खंभे और कंगूरे सभी पर मार्टिन के शिल्प की छाप साफ देखी जा सकती है. अमेरिका में शोधकर्ता आदित्य चतुर्वेदी के लेख के मुताबिक 'टेढ़े खंभे वाला मंदिर' गौर से देखा जाए तो यहां ग्रीक माइथोलॉजी का प्रभाव दिखता है, जो कॉंस्टैंशिया में भी है.
कहा जाता है कि लखनऊ में मार्टिन के योगदान को याद रखने और उनके कारनामों को बढ़ावा देने के साथ ही सामाजिक व सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल को भी बनाए रखने के लिए शाह जी ने हिंदू मंदिर के लिए इंडो इस्लामिक ढंग के गेटवे और एक यूरोपीय के मिश्रित अंदाज़ वाले शिल्प को चुना था.