कौन थे संभाजी, जिनके सम्मान में औरंगाबाद का नाम बदलने पर जारी है बहस

छत्रपति संभाजी महाराज की प्रतिमा.
मुगलों ने बेड़ियों में संभाजी (Sambhaji Maharaj) को बंदी बनाकर उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा, तो संभाजी ने मौत चुनी थी. जानवरों के लिए फेंके गए संभाजी के शव के अवशेष छूने तक के लिए मनाही का फरमान मुगलों (Mughals vs Maratha) ने जारी किया था.
- News18Hindi
- Last Updated: January 11, 2021, 9:33 AM IST
सबसे ज़्यादा चर्चित मराठा वीर छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) के सबसे बड़े बेटे संभाजी अपने पिता की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य (Maratha Kingdom) के दूसरे शासक थे. सिर्फ नौ साल के अपने शासनकाल में अपने शौर्य और देशभक्ति के कारण हमेशा के लिए यादगार हो गए संभाजी की कहानी इतिहास (History of Maratha) में कीर्तिगाथा के रूप में दर्ज है. मुगलों से आखिरी युद्ध जीतने के बावजूद मराठा साम्राज्य के इस बेटे का अंत हुआ था और नाटकीय रूप से. धर्म परिवर्तन (Conversion) नहीं बल्कि मौत चुनने वाले संभाजी की कहानी आज भी चाव से कही-सुनी जाती है.
मुगलों की सेनाओं से लड़कर अपने साहस का लोहा मनवाने वाले संभाजी को अपने आखिरी दिनों में राजपाठ के लिए सौतेले भाई से जूझना पड़ा था. आखिरी युद्ध जीतने के बाद भी मुगलों के हाथों दर्दनाक मौत पाने वाले संभाजी के बारे में जानिए, जिनके नाम पर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन शहर औरंगाबाद का नाम रखे जाने की चर्चा ज़ोरों पर है.
ये भी पढ़ें :- सिर्फ 26 शब्दों के कानून से कैसे खफा रहे ट्रंप, क्यों बदल नहीं सके सिस्टम?
मुगल बनाम मराठा और संभाजीवर्तमान समय में मध्य प्रदेश में जो बुरहानपुर शहर है, वहां 17वीं सदी में मुगलों का संपन्न शहर था. संभाजी ने पूरी योजना बनाकर बुरहानपुर पर हमला किया था. दक्षिण को कब्ज़ाने के औरंगज़ेब के मंसूबे की जानकारी के बाद संभाजी को पता था कि बुरहानपुर को जीतने से मुगलों का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र और अहम सैन्य गढ़ को ध्वस्त किया जा सकता था.
ये भी पढ़ें :- 5 ऐतिहासिक ब्लैक आउट : कैसे भारत और पड़ोस में गुल होती रही बिजली?
इसी तरह, 1682 से लेकर 1688 ईसवी तक संभाजी के नेतृत्व में मराठा और औरंगज़ेब की मुगल सेनाएं आपस में कई बार भिड़ती रहीं. एक तरफ मुगल थे, जो नाशिक और बगलाना जैसे मराठा किलों को फतह करना चाहते थे. नाशिक के पास रामसेज किले पर मुगलों ने कई महीनों तक हमले किए लेकिन नाकाम होकर उन्हें लौटना पड़ा. यह मराठाओं के नैतिक पराक्रम और जीत की कहानी बन गई.

मुगलों से तो लड़ाई लगातार चल ही रही थी, लेकिन बीच बीच में मराठा अन्य वंशों से भी लड़ते रहे. संभाजी के नेतृत्व में मराठाओं ने सिद्दी शासकों से युद्ध किया जो कोंकण के समुद्री तटों पर नियंत्रण चाहते थे. संभाजी ने उन्हें ज़ंजीरा किले तक ही रोकने में कामयाबी हासिल की थी. मराठा क्षेत्रों में तो संभाजी ने सिद्दियों को प्रवेश तक नहीं करने दिया था.
ये भी पढ़ें :- क्या है अमेरिका 25वां संविधान संशोधन, जिससे ट्रंप को हटाना मुमकिन है
दूसरी तरफ, संभाजी की अगुवाई में ही मराठाओं ने 1683 में गोवा में पुर्तगालियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी. पुर्तगालियों को चूर होकर मुगलों से मदद लेना पड़ी तो मुगलों के पहुंचने के बाद जनवरी 1684 में संभाजी यहां से पीछे हटने पर मजबूर हुए थे. इसी तरह, मैसूर पर भी 1681 में चढ़ाई करने वाले संभाजी को वहां से भी पीछे हटना पड़ा था.
राजपाठ और आखिरी समय के नाटकीय मोड़
तमाम युद्धों में भरपूर चौंकाते मोड़ देख चुके संभाजी को अप्रैल 1680 में पिता शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की बागडोर संभालनी थी. तभी, उनके 10 वर्षीय सौतेले भाई राजाराम ने साम्राज्य के लिए विवाद खड़ा किया. अस्ल में, राजाराम की मां यानी संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई ने इस पूरे घटनाक्रम को रचा था, जो करीब 9 महीने का विवाद बन गया.
ये भी पढ़ें :- सरला ठकराल : क्या आपको याद है पहली भारतीय महिला पायलट?
आखिरकार मराठा सेनापति हम्बीरराव मोहिते का पूरा समर्थन मिलने के बाद 1681 में संभाजी की ताजपोशी हुई और सोयराबाई व राजाराम को नज़रबंद कर दिया गया. इसके बाद मुगलों और अन्य वंशों से लोहा लेते हुए संभाजी के अगले करीब 7 साल गुज़रे. साल 1687 में महाबलेश्वर के पास वाई का युद्ध यादगार रहा.

मुगलों के खिलाफ इस अहम युद्ध में हालांकि मराठा जीते लेकिन मोहिते का मारा जाना मराठाओं की हिम्मत तोड़ने वाला नतीजा था. कई मराठा सैनिकों ने मोहिते के बाद संभाजी को अकेला छोड़ दिया था. अंजाम यह हुआ था कि जनवरी 1689 में संभाजी को मुगल सेना ने अपनी गिरफ्त में ले लिया.
ये भी पढ़ें :- हज़ारों लोगों के साथ चीन में कैसे गायब हो जाती हैं बड़ी-बड़ी शख्सियतें?
इसके बाद क्या हुआ, इसके बारे में कई तरह का इतिहास मिलता है, लेकिन तकरीबन सभी इस बात पर एकराय दिखते हैं कि संभाजी को सारे किले और खज़ाने मुगलों को सौंपने पर मजबूर किया गया और आखिरकार इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए भी. लेकिन, पिता की तरह सनातन धर्म के वर्चस्व के लिए लड़े संभाजी ने इस्लाम की जगह मौत चुनना गौरव समझा. उन्हें दर्दनाक ढंग से मुगलों ने मार डाला.
इतिहासकार वायजी भावे की किताब यह भी कहती है कि मुगलों का संभाजी पर ज़ुल्म ढाना और उन्हें दर्दनाक मौत देना मराठाओं में नई चेतना फूंकने का बड़ा कारण बना. संभाजी के इस गौरवशाली बलिदान के बाद मराठा फिर मुगलों के खिलाफ लामबंद हुए.
मुगलों की सेनाओं से लड़कर अपने साहस का लोहा मनवाने वाले संभाजी को अपने आखिरी दिनों में राजपाठ के लिए सौतेले भाई से जूझना पड़ा था. आखिरी युद्ध जीतने के बाद भी मुगलों के हाथों दर्दनाक मौत पाने वाले संभाजी के बारे में जानिए, जिनके नाम पर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन शहर औरंगाबाद का नाम रखे जाने की चर्चा ज़ोरों पर है.
ये भी पढ़ें :- सिर्फ 26 शब्दों के कानून से कैसे खफा रहे ट्रंप, क्यों बदल नहीं सके सिस्टम?
मुगल बनाम मराठा और संभाजीवर्तमान समय में मध्य प्रदेश में जो बुरहानपुर शहर है, वहां 17वीं सदी में मुगलों का संपन्न शहर था. संभाजी ने पूरी योजना बनाकर बुरहानपुर पर हमला किया था. दक्षिण को कब्ज़ाने के औरंगज़ेब के मंसूबे की जानकारी के बाद संभाजी को पता था कि बुरहानपुर को जीतने से मुगलों का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र और अहम सैन्य गढ़ को ध्वस्त किया जा सकता था.
ये भी पढ़ें :- 5 ऐतिहासिक ब्लैक आउट : कैसे भारत और पड़ोस में गुल होती रही बिजली?
इसी तरह, 1682 से लेकर 1688 ईसवी तक संभाजी के नेतृत्व में मराठा और औरंगज़ेब की मुगल सेनाएं आपस में कई बार भिड़ती रहीं. एक तरफ मुगल थे, जो नाशिक और बगलाना जैसे मराठा किलों को फतह करना चाहते थे. नाशिक के पास रामसेज किले पर मुगलों ने कई महीनों तक हमले किए लेकिन नाकाम होकर उन्हें लौटना पड़ा. यह मराठाओं के नैतिक पराक्रम और जीत की कहानी बन गई.

औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर रखने की मांग पर शिवसेना, कांग्रेस और बीजेपी के बीच लगातार बहस जारी है.
मुगलों से तो लड़ाई लगातार चल ही रही थी, लेकिन बीच बीच में मराठा अन्य वंशों से भी लड़ते रहे. संभाजी के नेतृत्व में मराठाओं ने सिद्दी शासकों से युद्ध किया जो कोंकण के समुद्री तटों पर नियंत्रण चाहते थे. संभाजी ने उन्हें ज़ंजीरा किले तक ही रोकने में कामयाबी हासिल की थी. मराठा क्षेत्रों में तो संभाजी ने सिद्दियों को प्रवेश तक नहीं करने दिया था.
ये भी पढ़ें :- क्या है अमेरिका 25वां संविधान संशोधन, जिससे ट्रंप को हटाना मुमकिन है
दूसरी तरफ, संभाजी की अगुवाई में ही मराठाओं ने 1683 में गोवा में पुर्तगालियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी. पुर्तगालियों को चूर होकर मुगलों से मदद लेना पड़ी तो मुगलों के पहुंचने के बाद जनवरी 1684 में संभाजी यहां से पीछे हटने पर मजबूर हुए थे. इसी तरह, मैसूर पर भी 1681 में चढ़ाई करने वाले संभाजी को वहां से भी पीछे हटना पड़ा था.
राजपाठ और आखिरी समय के नाटकीय मोड़
तमाम युद्धों में भरपूर चौंकाते मोड़ देख चुके संभाजी को अप्रैल 1680 में पिता शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की बागडोर संभालनी थी. तभी, उनके 10 वर्षीय सौतेले भाई राजाराम ने साम्राज्य के लिए विवाद खड़ा किया. अस्ल में, राजाराम की मां यानी संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई ने इस पूरे घटनाक्रम को रचा था, जो करीब 9 महीने का विवाद बन गया.
ये भी पढ़ें :- सरला ठकराल : क्या आपको याद है पहली भारतीय महिला पायलट?
आखिरकार मराठा सेनापति हम्बीरराव मोहिते का पूरा समर्थन मिलने के बाद 1681 में संभाजी की ताजपोशी हुई और सोयराबाई व राजाराम को नज़रबंद कर दिया गया. इसके बाद मुगलों और अन्य वंशों से लोहा लेते हुए संभाजी के अगले करीब 7 साल गुज़रे. साल 1687 में महाबलेश्वर के पास वाई का युद्ध यादगार रहा.

संभाजी महाराज की प्रतिमा की यह तस्वीर विकिकॉमन्स से साभार.
मुगलों के खिलाफ इस अहम युद्ध में हालांकि मराठा जीते लेकिन मोहिते का मारा जाना मराठाओं की हिम्मत तोड़ने वाला नतीजा था. कई मराठा सैनिकों ने मोहिते के बाद संभाजी को अकेला छोड़ दिया था. अंजाम यह हुआ था कि जनवरी 1689 में संभाजी को मुगल सेना ने अपनी गिरफ्त में ले लिया.
ये भी पढ़ें :- हज़ारों लोगों के साथ चीन में कैसे गायब हो जाती हैं बड़ी-बड़ी शख्सियतें?
इसके बाद क्या हुआ, इसके बारे में कई तरह का इतिहास मिलता है, लेकिन तकरीबन सभी इस बात पर एकराय दिखते हैं कि संभाजी को सारे किले और खज़ाने मुगलों को सौंपने पर मजबूर किया गया और आखिरकार इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए भी. लेकिन, पिता की तरह सनातन धर्म के वर्चस्व के लिए लड़े संभाजी ने इस्लाम की जगह मौत चुनना गौरव समझा. उन्हें दर्दनाक ढंग से मुगलों ने मार डाला.
इतिहासकार वायजी भावे की किताब यह भी कहती है कि मुगलों का संभाजी पर ज़ुल्म ढाना और उन्हें दर्दनाक मौत देना मराठाओं में नई चेतना फूंकने का बड़ा कारण बना. संभाजी के इस गौरवशाली बलिदान के बाद मराठा फिर मुगलों के खिलाफ लामबंद हुए.