नासा (NASA) को जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) के प्रक्षेपण में दशकों का समय लगा. बहुत सारे खगोलविदों और वैज्ञानिकों को इससे बहुत अधिक उम्मीदें हैं क्योंकि यह ऐसी तरंगों को पकड़ने में सक्षम होगा जो अब तक नहीं पकड़ी जा पा रही थीं. अब अंततः और यह अपने गंतव्य स्थान की ओर जाते हुए अपने सुनहरे शीशे खोलने का काम कर रहा है. लोग उम्मीद कर रहे थे बाकी अंतरिक्ष यानों की तरह इसके पंख खुलने की घटना वे देख सकेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि इस पर कोई कैमरे (Camera) नहीं लगा है. इसकी भी बहुत खास वजहें हैं.
लंबी यात्रा के पहले की ही तस्वीरें
जेम्स वेब के सुनहरे आईने खुलने की घटना की तस्वीरें हम तक कभी नहीं पहुंच सकेंगी क्योंकि इस प्रक्रिया की तस्वीरों को लेने के लिए कैमरे लगाए ही नहीं गए हैं. इसकी केवल अंतरक्ष में पहुंचने की तस्वीरें ली जा सकी हैं जब वह अपने 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा शुरू करने जा रहा था. उस समय इसके सौर पैनल ही खुल रहे थे. लेकिन एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर इस वेधशाला में कैमरे क्यों नही लगाए गए हैं.
बहुत जटिल काम था ये
नासा के वेब अभियान के डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर पॉल गेथनर ने एक ब्लॉग पोस्ट में इसकी वजह बताई है. उन्होंने बताया, “केवल वेब की स्थापना का देखने के लिए ही कैमरे लगाना आसान काम लगता है, लेकिन वेब के मामले में यह बहुत ही जटिल काम हो जाता है. यह किसी डोरबेल कैम या फिर रॉकेट में ही कैमरा लगाने के जैसा सीधा काम नहीं है.
दो अलग हिस्से
इंजीनियरों का कहना है कि टेलीस्कोप में वेधशाला के स्थापना की तस्वीरें लेने के लिए कैमरा ना होने की वजह ये है कि वेब का एक हिस्सा पूरी तरह काला है तो दूसरी तरफ का हिस्सा सूर्य की ओर रहेगा और वह हिस्सा इतना चमकदार होगा कि कैमरा उसकी चमक की वजह से ठीक से तस्वीरें नहीं ले सकेगा.
वेब की गुणवत्ता पर होता असर
इसके अलावा हमें वेब के ऊपर लगे कैमरा तक जाने के लिए तार लगाने पड़ते और इससे वेब का काला हिस्सा प्रभावित हो सकता है जो कि बहुत ही संवेदनशील भाग है. ज्यादा तारों का मतलब था कि बहुत ठंडा रखे जाने वाले हिस्से में तारों के जरे गर्मी और कंपन आ सकते हैं. इससे वेब को मिलने वाली तस्वीरों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है.
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कैमरा नहीं चल पाता इस हालत में
इंजीनियरों ने यह भी बताया कि तापमान के हिसाब से कैमरा क्रायोजेनक हालात में ही सनशील्ड के ठंडे हिस्से की ओर काम कर सकता है. और इसके लिए एक विशेष तरह कैमरा डिजाइन करना पड़ा. प्लास्टिक के अलग हो जाने, सिकुड़ जाने या फिर तड़क जाने की संभावना हो जाती क्योंकि चिपकाने वाला पदार्थ उसे कायम नहीं रख पाता.
और ये मुश्किलें भी तो आतीं
इसके अलावा कैमरे को बेव के ऊपर रखना बहुत ही जटिल काम हो जाता क्योंकि टेलीस्कोप को पूरा खुलना था जिससे कैमरे कोस्थापित करने की एक अलग प्रक्रिया से गुजरना होता और यह केवल एक ही बार की घटना के लिए, जो कि टेलीस्कोप के काम करने के लिए बिलकुल जरूरी नहीं थी, ऐसा करना बेहतर नहीं होता. वहीं इसके लिए जरूरी नौरोफील्ड कैमरों को लगाना एक अलग तरह की जटिलता पैदा कर देता.
चंद्रमा पर स्पेस स्टेशन बनाना क्यों है बहुत मुश्किल काम
अब इन हालातों में वेब की स्थापना का काम कितना सफल हुआ है इसके लिए इंजीनियर यांत्रिकी, ऊष्मा, और विद्युत संवेदी यंत्रों पर निर्भर हैं. इसके अलावा पृथ्वी पर ग्राउंड मिशन कंट्रोल के पास खास तरह का विजुअलाइजेशन उपकरण है जो टेलीस्कोप की विस्तृत स्थिति और अवस्था की जानकारी पता लगा सकता है. यह अपने निर्धारित स्थान में इस महीने के अंत तक पहुंच सकेगा और इसका काम शुरू होने में पांच महीने और लगेंगे.
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