जो बाइडन और कमला हैरिस 20 जनवरी को ही क्यों लेंगे शपथ?

जो बाइडन और कमला हैरिस.
क्या हमेशा से इसी तारीख (Inauguration Day) पर अमेरिकी राष्ट्रपति (President of America) शपथ लेते रहे हैं? नहीं, तो कब से यह परंपरा शुरू हुई और क्यों? यह भी जानिए कि अमेरिका में शपथ ग्रहण समारोह (Oath Taking Ceremony) से जुड़ी दिलचस्प परंपराएं क्या हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 20, 2021, 12:33 PM IST
अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता जो बाइडन (Joe Biden) और 49वें उप राष्ट्रपति के रूप में भारतीय मूल की कमला हैरिस शपथ ग्रहण करने जा रही हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों के नतीजे (US Presidential Election Results) जबकि नवंबर-दिसंबर 2020 में ही स्पष्ट हो गए थे, तो इस शपथ ग्रहण (Oath Ceremony) के लिए 20 जनवरी की ही तारीख क्यों तय हुई? बात सिर्फ कार्यकाल पूरा होने की नहीं है बल्कि इसके पीछे अमेरिकी लोकतंत्र (US Democracy) का करीब 85 साल पुराना इतिहास जुड़ा है और अमेरिकी संविधान (Constitution of America) का खास प्रावधान भी.
अमेरिकी राष्ट्रपति 20 जनवरी को ही शपथ लेते आ रहे हैं. 1937 में जब फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने व्हाइट हाउस में एंट्री के लिए शपथ इस तारीख को ली थी, तबसे इसी दिन शपथ लिए जाने की परंपरा है. इससे पहले 4 मार्च वो खास तारीख थी, जब चुने गए अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण की जाती थी लेकिन रूज़वेल्ट के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से यह सिलसिला बदला.
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क्यों और कैसे बदली गई तारीख?1937 से पहले अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ लेने की तारीख 4 मार्च तय थी. यह तारीख इसलिए थी कि पद छोड़ने वाला राष्ट्रपति सभी प्रक्रियाएं पूरी करते हुए कायदे से आने वाले राष्ट्रपति को ज़िम्मेदारी सौंप सके और तमाम दस्तावेज़ तैयार किए जाने के लिए भरपूर समय हो. लेकिन चूंकि रूज़वेल्ट लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बने, तो उन्हें ऐसी कोई ज़रूरत पेश नहीं आई थी.

लेकिन, इससे पहले रूज़वेल्ट के पहले कार्यकाल के समय ही चर्चा शुरू हुई कि जाने वाला राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के करीब छह महीने तक क्यों तकरीबन ‘लंगड़े बतख’ के तौर पर कुर्सी पर बना रहे? यानी उसके पास इस समय में ज़्यादा अधिकार और समय रह नहीं जाता, तो वो नीतिगत काम और फैसले कर भी नहीं पाता. इतना समय औपचारिक प्रक्रियाओं के लिए ज़रूरत से ज़्यादा समझा गया. पद सौंपने की इस पूरी अवधि को घटाने के लिए अमेरिकी संविधान में 20वां संशोधन किया गया.
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अमेरिकी संविधान में 20वां संशोधन 23 जनवरी 1933 को मंज़ूर कर लिया गया था, जिसके अनुसार राष्ट्रपति पद की शपथ के लिए 20 जनवरी की तारीख तय कर दी गई थी. यानी नए राष्ट्रपति का पद संभालने का इंतज़ार तकरीबन दो महीने कम हो गया था. यही नहीं, इसी व्यवस्था के तहत नई कांग्रेस की पहली बैठक के लिए 3 जनवरी की तारीख भी तय हुई थी. इस व्यवस्था के मुताबिक जाने वाले राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति 20 जनवरी की तारीख शुरू होने से पहले 11ः59ः59 बजे तक पावर में रहते हैं और उसके बाद नया प्रशासन नियंत्रण ले लेता है.
क्या हैं शपथ ग्रहण से जुड़ी रोचक परंपराएं?
अमेरिका के चुने गए राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति को चीफ जस्टिस शपथ ग्रहण करवाते हैं. लेकिन, संविधान के मुताबिक इस काम के लिए चीफ जस्टिस की भूमिका ज़रूरी नहीं है. यह भी दिलचस्प बात है कि अगर 20 जनवरी को रविवार हो, तो शपथ ग्रहण का एक प्राइवेट कार्यक्रम हो जाता है लेकिन सार्वजनिक कार्यक्रम अगले दिन 21 जनवरी को होता है.
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एक और खास फैक्ट यह है कि जब बराक ओबामा ने दूसरी बार राष्ट्रपति का पद संभाला था, तब 2013 में उन्होंने 21 जनवरी को औपचारिक तौर पर शपथ ली थी. दिलचस्प यह है कि ओबामा के दोनों कार्यकाल में बाइडन ही उप राष्ट्रपति थे यानी बाइडन तीसरी बार इस तरह के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक हो रहे हैं.
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भारी सुरक्षा इंतज़ाम
20 जनवरी के खास और ऐतिहासिक दिन के मद्देनज़र सुरक्षा के भारी इंतज़ाम किए गए हैं. 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने जिस तरह भारी हिंसा को अंजाम दिया था, उसके मद्देनज़र इस बार शपथ समारोह के लिए सुरक्षा के लिए इंतज़ाम पहले की तुलना में काफी ज़्यादा हैं. गौरतलब है कि कैपिटल हिल हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत 5 लोग मारे गए थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति 20 जनवरी को ही शपथ लेते आ रहे हैं. 1937 में जब फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने व्हाइट हाउस में एंट्री के लिए शपथ इस तारीख को ली थी, तबसे इसी दिन शपथ लिए जाने की परंपरा है. इससे पहले 4 मार्च वो खास तारीख थी, जब चुने गए अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण की जाती थी लेकिन रूज़वेल्ट के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से यह सिलसिला बदला.
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क्यों और कैसे बदली गई तारीख?1937 से पहले अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ लेने की तारीख 4 मार्च तय थी. यह तारीख इसलिए थी कि पद छोड़ने वाला राष्ट्रपति सभी प्रक्रियाएं पूरी करते हुए कायदे से आने वाले राष्ट्रपति को ज़िम्मेदारी सौंप सके और तमाम दस्तावेज़ तैयार किए जाने के लिए भरपूर समय हो. लेकिन चूंकि रूज़वेल्ट लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बने, तो उन्हें ऐसी कोई ज़रूरत पेश नहीं आई थी.

न्यूज़18 क्रिएटिव
लेकिन, इससे पहले रूज़वेल्ट के पहले कार्यकाल के समय ही चर्चा शुरू हुई कि जाने वाला राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के करीब छह महीने तक क्यों तकरीबन ‘लंगड़े बतख’ के तौर पर कुर्सी पर बना रहे? यानी उसके पास इस समय में ज़्यादा अधिकार और समय रह नहीं जाता, तो वो नीतिगत काम और फैसले कर भी नहीं पाता. इतना समय औपचारिक प्रक्रियाओं के लिए ज़रूरत से ज़्यादा समझा गया. पद सौंपने की इस पूरी अवधि को घटाने के लिए अमेरिकी संविधान में 20वां संशोधन किया गया.
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अमेरिकी संविधान में 20वां संशोधन 23 जनवरी 1933 को मंज़ूर कर लिया गया था, जिसके अनुसार राष्ट्रपति पद की शपथ के लिए 20 जनवरी की तारीख तय कर दी गई थी. यानी नए राष्ट्रपति का पद संभालने का इंतज़ार तकरीबन दो महीने कम हो गया था. यही नहीं, इसी व्यवस्था के तहत नई कांग्रेस की पहली बैठक के लिए 3 जनवरी की तारीख भी तय हुई थी. इस व्यवस्था के मुताबिक जाने वाले राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति 20 जनवरी की तारीख शुरू होने से पहले 11ः59ः59 बजे तक पावर में रहते हैं और उसके बाद नया प्रशासन नियंत्रण ले लेता है.
क्या हैं शपथ ग्रहण से जुड़ी रोचक परंपराएं?
अमेरिका के चुने गए राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति को चीफ जस्टिस शपथ ग्रहण करवाते हैं. लेकिन, संविधान के मुताबिक इस काम के लिए चीफ जस्टिस की भूमिका ज़रूरी नहीं है. यह भी दिलचस्प बात है कि अगर 20 जनवरी को रविवार हो, तो शपथ ग्रहण का एक प्राइवेट कार्यक्रम हो जाता है लेकिन सार्वजनिक कार्यक्रम अगले दिन 21 जनवरी को होता है.
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एक और खास फैक्ट यह है कि जब बराक ओबामा ने दूसरी बार राष्ट्रपति का पद संभाला था, तब 2013 में उन्होंने 21 जनवरी को औपचारिक तौर पर शपथ ली थी. दिलचस्प यह है कि ओबामा के दोनों कार्यकाल में बाइडन ही उप राष्ट्रपति थे यानी बाइडन तीसरी बार इस तरह के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक हो रहे हैं.
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भारी सुरक्षा इंतज़ाम
20 जनवरी के खास और ऐतिहासिक दिन के मद्देनज़र सुरक्षा के भारी इंतज़ाम किए गए हैं. 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने जिस तरह भारी हिंसा को अंजाम दिया था, उसके मद्देनज़र इस बार शपथ समारोह के लिए सुरक्षा के लिए इंतज़ाम पहले की तुलना में काफी ज़्यादा हैं. गौरतलब है कि कैपिटल हिल हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत 5 लोग मारे गए थे.