क्यों चीन में 1.2 अरब की आबादी के बीच सिर्फ 100 ही सरनेम हैं?

एक पार्टी में मौजूद चीनी नागरिक. (File Photo)
चीनी नाम सुनकर आपको कई बार लगा होगा कि कई बार नामों में दोहराव दिखता है. इसके पीछे लंबी कहानी है, भाषा (Chinese Language) और इतिहास है. चीन में सरनेम (Chinese Surnames) गिने चुने रह जाने के लिए मॉडर्न चीन की तकनीक भी ज़िम्मेदार है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 17, 2021, 1:45 PM IST
चीन में अगर आप किसी को सड़क पर अचानक रोककर उसका सरनेम पूछें तो बहुत मुमकिन है कि वो वांग, ली, झांग, लिउ या चेन बताए. गणित में जिसे 'प्रोबैबिलिटी का सिद्धांत' (Theory of Probability) कहते हैं, उसके मुताबिक यह दावा सही भी लगता है क्योंकि ये पांच सरनेम चीन की 30% आबादी (Population of China) के हैं यानी 43.3 करोड़ लोगों के. साफ़ ज़ाहिर है कि चीन में सरनेम का टोटा है. यह टोटा कितना गंभीर है और इससे क्या मुश्किलें खड़ी हो रही हैं? इसके साथ ही आपको ये भी बताते हैं कि इतने सीमित सरनेम रह जाने की वजहें क्या रहीं.
अनुमान के हिसाब से करीब 140 करोड़ के आंकड़े तक चीन की आबादी पहुंचने वाली है, लेकिन इस लिहाज़ से यहां सरनेम काफी कम हैं. चीन के लोक सुरक्षा मंत्रालय के दस्तावेज़ों से खुलासा होता है कि तकरीबन 6000 सरनेम ही इस्तेमाल में हैं, जबकि 86% आबादी के बीच सिर्फ 100 सरनेम ही लोकप्रिय हैं. यह दिलचस्प बात तो है, लेकिन इस पर इतना बवाल क्यों है?
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क्या कहती है तुलना?चीन में सरनेम का टोटा समझने के लिए सबसे पहले अगर भारत के साथ तुलना में देखें तो इस मामले में भारत बहुत आगे है. आबादी के मामले में चीन से कुछ ही पीछे भारत में जनगणना में सरनेम के बारे में कोई डेटा अलग से होने संबंधी पुष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमानों की मानें तो करोड़ों सरनेम इस्तेमाल में हैं, जिनमें लाखों की संख्या में प्रचलित तौर पर हैं.
दूसरी तरफ, अमेरिका की आबादी चीन के मुकाबले एक चौथाई के करीब है लेकिन यहां 2010 की जनगणना में 63 लाख सरनेम इस्तेमाल में पाए गए. हालांकि इनमें से ज़्यादातर सरनेम के केस ऐसे मिले, जिसमें कोई सरनेम किसी एक का ही था, यानी यूनिक सरनेम काफी हैं.

सरनेम के टोटे की क्या वजहें हैं?
अव्वल तो यही कि भारत या अमेरिका जैसे बड़े देश सांस्कृतिक तौर पर काफी विविधता समेटे हुए हैं, जबकि चीन में नस्ल या समुदायों के हिसाब से विविधता बहुत नहीं है. दूसरा कारण भाषा से भी जुड़ा है. जानकारों के मुताबिक कोई भी अतिरिक्त अक्षर जोड़ या घटाकर कोई नया सरनेम बना लेना चीनी भाषा में अंग्रेज़ी जैसी आसान बात नहीं है.
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तीसरा कारण है तकनीक. जी हां, चीन में कई लोगों ने अपने पुराने सरनेम छोड़कर नए इसलिए भी अपनाए हैं ताकि डिजिटल दुनिया में वो पीछे न छूटें. चीन के कंप्यूटर सिस्टम में चीनी भाषा के जो तरीके स्टैंडर्ड के तौर पर हैं, उनके हिसाब से भाषा में फेरबदल कर बनाए गए नाम रजिस्टर नहीं हो पाते इसलिए यह भी बड़ा कारण रहा है कि सरनेम सिमटते चले गए.
कैसे लुप्त हो गए सरनेम?
चीन में स्थिति हमेशा ऐसी नहीं थी. सीएनएन की एक रिपोर्ट में जानकारों के हवाले से बताया गया है कि पहले 23 हज़ार सरनेम तक चीन में प्रचलित थे, जो अब 6000 तक सिमटकर रह गए हैं. चीन में सरनेम को लेकर हुए सर्वे में यह भी बताया गया कि कागज़ की खोज से पहले यानी कांसा युग से सरनेम किस तरह प्रचलित रहे.
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चूंकि चीन का इतिहास माइग्रेशन, राजनीतिक बखेड़ों और युद्धों से भरा रहा इसलिए असर सीधे लोगों के नामों पर भी पड़ता रहा. नए वंशों और शासकों के समय में पुरानी जो कई चीज़ें या बातें छोड़ी गईं, उनमें सरनेम भी शामिल रहे. कई बार भाषा की सहूलियत के लिए भी नाम बदले गए तो अंधविश्वासों के चलते भी कई सरनेम छूटे.
भाषा कैसे बन गई है समस्या?
अब हाथ से लिखने वाला ज़माना नहीं रहा, तो डिजिटल फॉर्मेट में जो चीज़ें अनुकूल नहीं साबित होतीं, उन्हें छोड़ देना ही रास्ता रह जाता है. चीनी भाषा में कई कैरेक्टर हैं, जिनमें से 2017 तक 32,000 कंप्यूटर डेटाबेस में शामिल किए गए, लेकिन अन्य हज़ारों स्टैंडर्ड फॉर्मेट में रजिस्टर नहीं किए जा सके. चूंकि चीन उन देशों में है, जहां लगभग सभी कुछ डिजिटल हो चुका है इसलिए इस कारण को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

अगर कोई नाम डिजिटल प्रणाली के अनुकूल नहीं होता, तो कभी क्यूआर कोड, कभी पासवर्ड या कभी पिन में उलझनें पैदा होती हैं. इसलिए जो कैरेक्टर स्टैंडर्ड माने गए हैं, उन्हीं के भीतर काम चलाने की मजबूरी बन चुकी है. दिलचस्प फैक्ट है कि इस चक्कर में पहले डिजिटल आईडी कार्ड बनाए जाने के मामले में समस्या पैदा हुई थी, तब पहला हल यह था कि डिजिटल कार्ड में लोग अपना नाम हाथ से लिखें. लेकिन 2004 में अपडेटेड कार्ड में कंप्यूटर प्रिंट के टेक्स्ट की ही व्यवस्था हुई. इसके बाद से कई समस्याएं पेश आईं.
क्यों है भाषा की समस्या?
चीन के कई क्षेत्रों में मैंडेरिन की कई तरह की बोलियां बोली जाती हैं. लेकिन चूंकि सरकार ने डिजिटल वर्ल्ड के चलते इसे स्टैंडर्ड और नियंत्रित करने का बीड़ा उठा लिया, तबसे कई क्षेत्रीय कैरेक्टर भाषा से बाहर हो गए, जिससे बड़ा संकट खड़ा हुआ. भाषा का मानक 2013 में जब तय किया गया तब मंत्रालय ने स्थानीय पुलिस को आदेश दिया था कि 'आबादी सूचना सिस्टम को स्टैंडर्ड के मुताबिक अपडेट करने के लिए नए नाम या नामों में बदलावों को सीमित कर दिया जाए.'
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लेकिन इस तरह के फैसले से बात बनी नहीं और समस्याएं पेश आती रहीं. इसलिए 32,000 से स्टैंडर्ड कैरेक्टरों को 70,000 तक बढ़ाया गया और अब इसे 90,000 कैरेक्टरों तक बढ़ाने की कोशिश हो रही है. लेकिन समय लेने वाली इस प्रक्रिया से बचने के लिए बड़ी आबादी अपने नामों में बदलाव करने का रास्ता ही चुन चुकी है. एक बड़े हिस्से को दुख है कि उनकी अगली पीढ़ियां अपने इतिहास, पहचान और परंपरा भूल जाएंगी.
अनुमान के हिसाब से करीब 140 करोड़ के आंकड़े तक चीन की आबादी पहुंचने वाली है, लेकिन इस लिहाज़ से यहां सरनेम काफी कम हैं. चीन के लोक सुरक्षा मंत्रालय के दस्तावेज़ों से खुलासा होता है कि तकरीबन 6000 सरनेम ही इस्तेमाल में हैं, जबकि 86% आबादी के बीच सिर्फ 100 सरनेम ही लोकप्रिय हैं. यह दिलचस्प बात तो है, लेकिन इस पर इतना बवाल क्यों है?
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क्या कहती है तुलना?चीन में सरनेम का टोटा समझने के लिए सबसे पहले अगर भारत के साथ तुलना में देखें तो इस मामले में भारत बहुत आगे है. आबादी के मामले में चीन से कुछ ही पीछे भारत में जनगणना में सरनेम के बारे में कोई डेटा अलग से होने संबंधी पुष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमानों की मानें तो करोड़ों सरनेम इस्तेमाल में हैं, जिनमें लाखों की संख्या में प्रचलित तौर पर हैं.
दूसरी तरफ, अमेरिका की आबादी चीन के मुकाबले एक चौथाई के करीब है लेकिन यहां 2010 की जनगणना में 63 लाख सरनेम इस्तेमाल में पाए गए. हालांकि इनमें से ज़्यादातर सरनेम के केस ऐसे मिले, जिसमें कोई सरनेम किसी एक का ही था, यानी यूनिक सरनेम काफी हैं.

चीन में सरनेम के ट्रेंड समझने के लिए एक सर्वे हुआ.
सरनेम के टोटे की क्या वजहें हैं?
अव्वल तो यही कि भारत या अमेरिका जैसे बड़े देश सांस्कृतिक तौर पर काफी विविधता समेटे हुए हैं, जबकि चीन में नस्ल या समुदायों के हिसाब से विविधता बहुत नहीं है. दूसरा कारण भाषा से भी जुड़ा है. जानकारों के मुताबिक कोई भी अतिरिक्त अक्षर जोड़ या घटाकर कोई नया सरनेम बना लेना चीनी भाषा में अंग्रेज़ी जैसी आसान बात नहीं है.
ये भी पढ़ें :- समीरा फाज़िली के बाद अब बाइडन टीम में हैं ये अहम भारतीय महिलाएं
तीसरा कारण है तकनीक. जी हां, चीन में कई लोगों ने अपने पुराने सरनेम छोड़कर नए इसलिए भी अपनाए हैं ताकि डिजिटल दुनिया में वो पीछे न छूटें. चीन के कंप्यूटर सिस्टम में चीनी भाषा के जो तरीके स्टैंडर्ड के तौर पर हैं, उनके हिसाब से भाषा में फेरबदल कर बनाए गए नाम रजिस्टर नहीं हो पाते इसलिए यह भी बड़ा कारण रहा है कि सरनेम सिमटते चले गए.
कैसे लुप्त हो गए सरनेम?
चीन में स्थिति हमेशा ऐसी नहीं थी. सीएनएन की एक रिपोर्ट में जानकारों के हवाले से बताया गया है कि पहले 23 हज़ार सरनेम तक चीन में प्रचलित थे, जो अब 6000 तक सिमटकर रह गए हैं. चीन में सरनेम को लेकर हुए सर्वे में यह भी बताया गया कि कागज़ की खोज से पहले यानी कांसा युग से सरनेम किस तरह प्रचलित रहे.
ये भी पढ़ें :- Explained : कैसी है भारत की पहली स्वदेशी 9-mm मशीन पिस्टल 'अस्मि'?
चूंकि चीन का इतिहास माइग्रेशन, राजनीतिक बखेड़ों और युद्धों से भरा रहा इसलिए असर सीधे लोगों के नामों पर भी पड़ता रहा. नए वंशों और शासकों के समय में पुरानी जो कई चीज़ें या बातें छोड़ी गईं, उनमें सरनेम भी शामिल रहे. कई बार भाषा की सहूलियत के लिए भी नाम बदले गए तो अंधविश्वासों के चलते भी कई सरनेम छूटे.
भाषा कैसे बन गई है समस्या?
अब हाथ से लिखने वाला ज़माना नहीं रहा, तो डिजिटल फॉर्मेट में जो चीज़ें अनुकूल नहीं साबित होतीं, उन्हें छोड़ देना ही रास्ता रह जाता है. चीनी भाषा में कई कैरेक्टर हैं, जिनमें से 2017 तक 32,000 कंप्यूटर डेटाबेस में शामिल किए गए, लेकिन अन्य हज़ारों स्टैंडर्ड फॉर्मेट में रजिस्टर नहीं किए जा सके. चूंकि चीन उन देशों में है, जहां लगभग सभी कुछ डिजिटल हो चुका है इसलिए इस कारण को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

चीन में डिजिटलीकरण से कई नामों में बदलाव हुए.
अगर कोई नाम डिजिटल प्रणाली के अनुकूल नहीं होता, तो कभी क्यूआर कोड, कभी पासवर्ड या कभी पिन में उलझनें पैदा होती हैं. इसलिए जो कैरेक्टर स्टैंडर्ड माने गए हैं, उन्हीं के भीतर काम चलाने की मजबूरी बन चुकी है. दिलचस्प फैक्ट है कि इस चक्कर में पहले डिजिटल आईडी कार्ड बनाए जाने के मामले में समस्या पैदा हुई थी, तब पहला हल यह था कि डिजिटल कार्ड में लोग अपना नाम हाथ से लिखें. लेकिन 2004 में अपडेटेड कार्ड में कंप्यूटर प्रिंट के टेक्स्ट की ही व्यवस्था हुई. इसके बाद से कई समस्याएं पेश आईं.
क्यों है भाषा की समस्या?
चीन के कई क्षेत्रों में मैंडेरिन की कई तरह की बोलियां बोली जाती हैं. लेकिन चूंकि सरकार ने डिजिटल वर्ल्ड के चलते इसे स्टैंडर्ड और नियंत्रित करने का बीड़ा उठा लिया, तबसे कई क्षेत्रीय कैरेक्टर भाषा से बाहर हो गए, जिससे बड़ा संकट खड़ा हुआ. भाषा का मानक 2013 में जब तय किया गया तब मंत्रालय ने स्थानीय पुलिस को आदेश दिया था कि 'आबादी सूचना सिस्टम को स्टैंडर्ड के मुताबिक अपडेट करने के लिए नए नाम या नामों में बदलावों को सीमित कर दिया जाए.'
ये भी पढ़ें :- वो स्टेनोग्राफर, जो नहीं होता तो खो जाते स्वामी विवेकानंद के यादगार भाषण
लेकिन इस तरह के फैसले से बात बनी नहीं और समस्याएं पेश आती रहीं. इसलिए 32,000 से स्टैंडर्ड कैरेक्टरों को 70,000 तक बढ़ाया गया और अब इसे 90,000 कैरेक्टरों तक बढ़ाने की कोशिश हो रही है. लेकिन समय लेने वाली इस प्रक्रिया से बचने के लिए बड़ी आबादी अपने नामों में बदलाव करने का रास्ता ही चुन चुकी है. एक बड़े हिस्से को दुख है कि उनकी अगली पीढ़ियां अपने इतिहास, पहचान और परंपरा भूल जाएंगी.