भारत बीते लगभग एक दशक से जलसंकट से गुजर रहा है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
भारत बीते लगभग एक दशक से जलसंकट से गुजर रहा है. साल 2018 में नीति आयोग ने बताया कि देश में करीब 60 करोड़ लोग पीने के पानी की किल्लत झेल रहे हैं. दूसरी ओर देश से सबसे ज्यादा पानी पड़ोसी देश चीन में बेचा जा रहा है. साल 2020 में चीन भारत से मिनरल और नेचुरल वॉटर का सबसे बड़ा खरीददार बनकर उभरा, जिसके बाद दूसरे नंबर पर हमने मालदीव को पानी बेचा.
क्या पता लगा पानी के निर्यात पर
लोकसभा में हुए सवाल-जवाब सेशन के दौरान ये बात सामने आई कि भारत से कितनी पानी, किस देश को निर्यात किया जा रहा है. इसमें एक सवाल के जवाब में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के राज्यमंत्री हरदीप पुरी ने बताया कि 2015-16 से 2020-21 (अप्रैल से नवंबर) के बीच भारत ने कुल 38,50, 431 लीटर पानी निर्यात किया. आंकड़ों के बारे में डाउन टू अर्थ मैगजीन में विस्तार से बात की गई.
ये रहे सारे आंकड़े
ये पानी केवल मिनरल वॉटर ही नहीं, बल्कि इसमें नेचुरल वॉटर भी शामिल रहा. इन पांच सालों में देश से लगभग 23,78,227 लीटर मिनरल वाटर और 8,69,815 लीटर नेचुरल वॉटर का निर्यात हुआ. इसमें चीन सबसे बड़ा खरीददार रहा. इसे हमने कई किस्म के पानी का निर्यात किया, लेकिन केवल मिनरल वॉटर से हमें लगभग 31 लाख रुपए हासिल हुए. वहीं मालदीव, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) मे भी पानी की कई किस्में हमारे यहां से आयात की गई.
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कोरोना काल में भी पानी निर्यात हुआ
भारत की पानी निर्यात इंडस्ट्री कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इस डाटा से कर सकते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान जब ज्यादातर देशों में एक-दूसरे के लिए अपनी सीमाएं बंद कर रखी थीं, तब भी यानी केवल कुछ ही महीनों के भीतर देश ने अलग-अलग देशों को लगभग 155.86 लाख रुपए का पानी बेचा. ये साल 2020-21 का डाटा है.
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वर्चुअल पानी का निर्यात
ये तो हुआ सीधे पानी बेचने का आंकड़ा. इसके अलावा भी एक पहलू है, जो ज्यादा चौंकाता है. वो यह कि भारत वर्चुअल पानी के निर्यात में सबसे आगे खड़ा देश है. अब आप सोचेंगे कि ये वर्चुअल निर्यात भला क्या है? वर्चुअल निर्यात से हमारा ताल्लुक उन फसलों से है, जिनकी पैदावार ज्यादा पानी में होती है. ऐसी ज्यादा पानी लेकर उगी फसलों को भारत दूसरे देशों को बेचता है तो ये भी एक किस्म से पानी का निर्यात ही है. तब खरीददार देश अपना पानी बचाकर कम पानी वाली फसलें उगाते हैं और भूमिगत पानी का सही इस्तेमाल करते हैं.
पानी मांगती फसलों को बेचना
चलिए, इसे ज्यादा आसानी से समझते हैं. जैसे एक कप चावल बनाने के लिए आप कितना पानी लेते हैं? लगभग इतना ही या फिर और भी कम. लेकिन इसे उपजाने के लिए जो पानी लगता है, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. एक किलो चावल उपजाने में लगभग 2,173 लीटर पानी खर्च होता है. अब इसी धान को भारत दूसरे देशों को निर्यात करेगा तो ये पानी का वर्चुअल निर्यात भी होगा. इससे केवल अन्न ही बाहर नहीं जा रहा, बल्कि पानी की भारी मात्रा भी जा रही है.
चावल के जरिए पानी भी गया बाहर
साल 2014-15 में देश ने 37.2 लाख टन बासमती चावल दूसरे देशों को बेचा था. इसमें लगभग 10 ट्रिलियन लीटर पानी खर्च हुआ था. यानी ये पानी भले ही दिखाई न दे रहा हो, लेकिन ये भी दूसरे देशों में बगैर कीमत ही निर्यात हो रहा है.
इसपर बातचीत इसलिए जरूरी है कि फिलहाल देश में पेयजल का भारी संकट है. नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) की रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं.
भारी संकट है पीने के पानी का
करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं. ये डाटा साल 2018 के जून में जारी हुआ था. अब जाहिर है कि कोरोना के दौरान हालात खास नहीं सुधरे हैं, लिहाजा इस आंकड़े में इजाफा ही हुआ होगा. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि साल 2030 तक हालात और बिगड़ सकते हैं, जिसका सीधा असर देश की GDP पर होगा.
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देश के बड़ी आबादी के पास पीने के पानी की कमी होने के बाद भी ग्राउंड वॉटर दूसरे देशों को बेचा जा रहा है, जिससे हालात और खराब हो रहे हैं. यही सब देखते हुए साल 2019 में सरकार ने जलजीवन मिशन शुरू किया. इसके तहत ग्रामीण इलाकों में साल 2024 तक साफ और भरपूर पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. इसपर काम भी शुरू हो चुका है लेकिन फिलहाल इसके नतीजे सामने आना बाकी है.
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