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असहयोग आंदोलन खत्म होने के बाद भी अंग्रेजों ने गांधी जी को जेल क्यों भेजा?

असहयोग आंदोलन खत्म होने के एक महीने बाद गांधी जी को गिरफ्तार किया गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

असहयोग आंदोलन खत्म होने के एक महीने बाद गांधी जी को गिरफ्तार किया गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

असहयोग आंदोलन में लोगों की देशव्यापी भागीदारी से अंग्रेज बहुत घबरा गए थे और वे नहीं चाहते थे कि गांधी जी को एक बार फिर ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन खत्म कर दिया था.
इसके बाद 10 मार्च 1922 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया था.
18 मार्च 1922 को उन्हें देशद्रोह के आरोप में छह साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

1919 में अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में रोलैट एक्ट लागू किया जिसका देश व्यापी विरोध हुआ., इसी के चलते जलियांवाला कांड हुआ और गांधी जी ने देशवासियों की भावनाओं को भांपते हुए असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया. लेकिन फरवरी 1922 में चौरी चौरा घटना की वजह से गांधी जी ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर दिया लेकिन उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर देश द्रोह का मुकदमा चलाया गया. 18 मार्च 1922 को उन्हें छह महीने की जेल हो गई. लेकिन जब आंदोलन खत्म हुआ तो अंग्रेजों को उन्हें गिरफ्तार करने की आखिर जरूरत क्या थी. क्या इसके पीछे भी उनकी कोई साजिश या फिर उनका कोई डर था?

प्रथम विश्व युद्ध  के खत्म होने के बाद
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुए ब्रिटिश शासन को भारत में कई तरह के विद्रोहों का सामना करना पड़ा था. ऐसे हालातों से निपटने के लिए अंग्रेजों ने रोलैट एक्ट जारी किया जो भारतीयों के कई अधिकारों को छीनने का स्पष्ट संकेत था. इसी का देश व्यापी विरोध हुआ. पंजाब में इसका जमकर  विरोध हुआ क्योंकि पंजाब के बहुत से लोगों ने युद्ध में अंग्रेजों का साथ भी दिया था और इस एक्ट का दुरुपयोग सिक्खों पर भी होने लगा था.

 असहयोग आंदोलन का फैसला
अंग्रेज सरकार ने इस विरोध को दबाने की ठान ली थी पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया था और ज्यादा लोगों को साथ निकलने पर पाबंदी लगा दी थी. इसी माहौल में जलियांवालाबाग नरसंहार हो गया जिससे पूरा देश शोक में डूब गया. तभी गांधी जी और कांग्रेस ने मिलकर असहयोग आंदोलन करने का फैसला किया.

उम्मीद से बिलकुल अलग ही
असहयोग आंदोलन उम्मीद से कहीं ज्यादा सफलता मिली. यहां तक कि अंग्रेज तक भी एक तरह से ओवर कॉन्फिडेंस यानि अतिआत्मविश्वास के शिकार हो गए थे उन्हें लगा था कि इस आंदोलन को ज्यादा समर्थन नहीं मिलेगा. लेकिन आंदोलन को जिस तरह का जनसमर्थन मिला वह अभूतपूर्व था और लंदन तक ब्रिटेन की सरकार हिल गई थी.

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गांधी जी के आंदोलन के प्रभाव का अंदाजा अंग्रेजों को बिलकुल ही नहीं था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

फिर चौरी चौरा कांड
आनन फानन इस आंदोलन को कुचलने के आदेश आ गए. अंग्रेजों ने सख्ती से तो काम लिया, लेकिन कार्यकर्ताओं को पहले तोड़ने की कोशिश की इसे चलते उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में चौरी चौरा कांड हो गया. 4 फरवरी 1922 को आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया जिसके जवाब में प्रदर्शनकारियों ने हमला कर एक पुलिस थाने में  आग लगा दी. इस घटना के कारण तीन नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई.

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आंदोलन खत्म लेकिन अंग्रेज सक्रिय
इस घटना से महात्मा गांधी बहुत निराश हुए और अपने अहिंसावादी सिद्धांतों का हवाला देते हुए उन्होंने आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर दिया है. ऐलान होते ही देशभर में निराशा का माहौल छा गया. लोग यह नहीं समझ सके कुछ लोगों की सजा पूरे देश के उत्साह को क्यों मिली. कई कांग्रेसियों का यही विचार था. लेकिन यही से कहानी में एक मोड़ आता है.

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अंग्रेजों ने पूरी योजना बना कर गांधी जी पर देश द्रोह का मुकदमा चला कर उन्हें छह साल की सजा दिलावाई. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

क्या रहा होगा मकसद
चौरी चौरा घटना के एक महीने के बाद अंग्रेजों ने गांधी जी को देशद्रोह के आरोप में 10 मार्च 1922 को गिरफ्तार कर लिया. उन पर मुकदमा चला और 18 मार्च को उन्हें इसी आरोप में छह साल की सजा सुना दी गई. इस मामले में कहा जा सकता है कि अंग्रेज आंदोलन खत्म करने कारण गांधी जी के खिलाफ जो निराशा का भाव था, अंग्रेज उसे ही भुना कर गांधी जी और लोगों के बीच भावनात्मक जुड़ाव को खत्म करना चाहते थे.

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अंग्रेज नहीं चाहते थे कि आंदोलन किसी भी तरह से सुसुप्त रूप से भी आगे बढ़े, इसलिए उन्होंने गांधी जी के अलावा कई कांग्रेसी नेताओं पर कार्रवाई की और उन्हें जेल में डलवाया. लेकिन आंदोलन में जो बीच पड़ने थे वे पड़ चुके थे हजारों युवा देश की आजादी की लड़ाई में कूद चुके थे. कांग्रेस में भी मंथन के कई दौर हुए तो वहीं ब्रिटेन से भी साइमन कमीशन के नाम का झुनझुना तैयार किया गया जिससे आजादी की कहानी का नया अध्याय शुरू हुआ.

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