कोविड-19 वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) लगवाने से पहले दूसरी बीमारियों के मरीजों को सावधानी बरतनी होगी.
कोरोना वायरस महामारी के दौर में देखा गया कि Covid-19 के मरीज़ों में ऑक्सीज़न लेवल (Oxygen Level) कम हो जाता है. कुछ मामलों में तो यह बेहद गंभीर स्थिति तक देखा गया और देखा जा रहा है. पिछले एक साल से ज़्यादा वक्त के दौरान पल्स ऑक्सीमीटर (Pulse Oximeter) एक ज़रूरी उपकरण बन गया था, जो न केवल हेल्थकेयर वर्करों (Healthcare Workers) के पास अनिवार्य रूप से पहुंचा, बल्कि दुकानों और घरों तक भी इसकी काफी बिक्री रही. लेकिन अब इस ऑक्सीमीटर की प्रामाणिकता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
अस्पतालों से मरीज़ों का दबाव कम करने के लिए मरीज़ों को घरों में ही आइसोलेट करने की जो योजना दिल्ली सरकार ने बनाई थी, उस दौरान मरीज़ों को हज़ारों की संख्या में यही ऑक्सीमीटर दिए गए थे, ताकि वो अपने ऑक्सीज़न लेवल को जांच सकें. लेकिन अब विशेषज्ञों ने माना है कि इस उपकरण की अपनी सीमाएं हैं और कुछ मामलों में हो सकता है कि यह उपकरण सही जानकारी न दे.
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क्या होता है ऑक्सीमीटर?
स्वास्थ्य संबंधी अमेरिका की संघीय एजेंसी एफडीए ने साफ तौर पर चेतावनी दी कि ऐसा नहीं है कि हर समय ऑक्सीमीटर से सही जानकारी ही मिले इसलिए इस उपकरण को डायग्नोसिस या वायरस की संभावना को नकारने के लिए कतई नहीं किया जा सकता. वास्तव में, ऑक्सीमीटर खून में ऑक्सीज़न लेवल की रीडिंग बताने वाला एक छोटा सा हल्का उपकरण होता है, जिसे उंगलियों या कान पर फिट करके जांच की जाती है.
इस उपकरण में इन्फ्रारेड किरणों के ज़रिये देखा जाता है कि शरीर में ऑक्सीज़न लेवल किस तरह चल रहा है. लेकिन इस भ्रांति को पहले कई बार नकारा गया कि इस उपकरण के ज़रिए घर पर ही कोविड जांच संभव है.
डार्क स्किन पर है बेअसर?
ऑक्सीमीटर की रीडिंग कुछ फैक्टरों पर निर्भर कर सकती है. एफडीए ने कहा कि डार्क स्किन वाले लोगों के मामले में संभव है कि यह उपकरण सही रीडिंग न दे. त्वचा के रंजक हो जाने, त्वचा मोटी होने, त्वचा के तापमान, तंबाकू के इस्तेमाल और यहां तक नाखूनों पर अगर नेल पॉलिश लगी हो, तो भी ऑक्सीमीटर की रीडिंग सही होने पर शक किया जा सकता है.
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एफडीए ने अपने बयान में यह साफ तौर पर चेताया कि जो लोग अपने घर पर ही कोविड को मॉनिटर करने के लिए इस उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, वो इन तमाम फैक्टरों को ध्यान में रखें और किसी भी तरह के असामान्य लक्षण दिखने पर इस मशीन के भरोसे न रहें.
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हाइपॉक्सिया के लक्षण और जांच
खून में ऑक्सीज़न लेवल कम होने को हाइपॉक्सिया के नाम से समझा जाता है, जिसकी सही जांच हेल्थ केयर विशेषज्ञों से ही करवाए जाने की सलाह दी जाती है. एफडीए ने बताया कि अगर चेहरे, होंठ या नाखूनों पर नीलापन दिखे, सांस में किसी भी किस्म की तकलीफ या कमी महसूस हो, छाती में दर्द या फिर धड़कन तेज़ होने जैसी स्थिति हो तो लोगों को सतर्क रहना चाहिए.
ऐसी स्थिति में आपको ऑक्सीमीटर पर ही आंख मूंदकर भरोसा न कर लेने की सलाह दी गई है. वास्तव में, एफडीए ने इस तरह की चेतावनियां तब जारी कीं, जब अमेरिका के ही रोग निवारक एवं नियंत्रक यानी सीडीसी ने ऑक्सीमीटर की एक्यूरेसी को लेकर बहुत कम डेटा होने के आधार पर इस उपकरण को नाकाफी बताया.
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इससे पहले दिसंबर 2020 में हॉइपॉक्सिया को लेकर जो रिसर्च हुई थी, उसमें भी कहा गया था कि धमनियों में ऑक्सीज़न की जांच इस उपकरण से करने पर एक बड़ा फैक्टर त्वचा का रंग है. स्टडी ने तब भी कहा था कि गोरी त्वचा वाले मरीज़ों की तुलना में काली त्वचा वाले मरीज़ों के मामले में ऑक्सीमीटर तीन गुना कम एक्यूरेट देखा गया.
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