भारतीय हिंदू पौराणिक कथाओं में एक मानव बालक के सिर की जगह हाथी का सिर लगा दिया जाता है तो एक व्यक्ति के धड़ से बकरे का सिर जोड़ा गया है. आधुनिक युग में ऐसा होने असंभव माना जाता रहा है. लेकिन हाल ही में दुनिया में एक नया शब्द प्रचलित हुआ है जिससे इस तरह के चमत्कार भले ही अभी ना सही लेकिन भविष्य में संभव होते दिखने लग जाएं. दो महीने पहले एक व्यक्ति को सुअर (Pig) का आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified) दिल लगाया गया था. इसके लिए वैज्ञानिकों ने जेनोट्रांस्प्लांटेशन (Xenotransplantation) तकनीक का उपयोग किया था जिसकी सारे संसार में चर्चा हो रही है.
दो महीने पहले ही हुआ था ये
इसी साल जनवरी में 57 साल के डेविड बेनेट सीनियर की सेहत बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी. मैरीलैंड मेडिकल सेंटर यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों ने उनमें अनुवांशिक तौर पर संशोधित सुअर का दिल लगाने में सफलतापाई थी. इस ऑपरेशन को एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा गया. बेनेट भी स्वस्थ हो कर अपने परिवार के साथ समय बिताने लगे थे.
देहांत के बाद भी चर्चित रहा जेनोट्रांस्पलांटेशन
लेकिन इसी महीने की 8 तारीख को बेनेट का देहांत हो गया. लेकिन इससे जेनोट्रांस्प्लांट को दुनिया भर में सराहना मिलना कम नहीं हुई. अमेरिका के फेडरल ड्रग्स एसोसिएशन के अनुसार जेनोट्रांस्पलांटेशन कोई भी ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी गैर इंसानी जानवर के स्रोत से प्रत्यारोपण, रोपण या कोशिकाओं अंगों या ऊतकों का निषेचन शामिल हो.
जेनोट्रांस्पलांटेशन की जरूरत
इस प्रक्रिया में ऐसे अंग भी शामिल होते हैं जो किसी जानवर के हों और अनुवांशिकी तौर पर संशोधित किए गए हों. अमेरिकन फेडरल एजेंसी के अनुसार जेनोट्रांस्पलांटेशन के पीछे प्रमुख मकसद इंसान अंगों की बढ़ती मांग है. लेकिन यह बहुत ही जोखिम भरी प्रक्रिया. इंसानी शरीर किसी बाहरी अंग को अस्वीकार कर देता है.
यह पहला मामला नहीं है ऐसा
रोचक बात यह है कि जेनोट्रांस्पलांटेशन का दुनिया में यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले 17वीं सदी के 1667 में फ्रेंच डॉक्टर जीन बाप्तिस्ते डेनेज ने जानवरी की नसों से इंसानों के खून पहुंचाने में सफलता पाई थी. इसके अलावा पिछले सदी में भारत में भी जेनोट्रांस्पलांटेशन का एक ऑपरेशन किया गया था.
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भारत असफल प्रयास के 25 साल बाद
1997 में भारत में एक इंसानी शरीर में सुअर का दिल प्रत्यारोपित करने की कोशिश की गई थी. इस ऑपरेशन में धनीराम बरुआ ने यह साहसिक प्रयास किया था. उसके बाद इस साल यह प्रयास किया गया जिसमें उल्लेखनीय सफलता मिली थी. जेनोट्रांस्पलांटेशन असर सफल होता है तो इसके बहुत सारे फायदे हैं.
क्या होंगे फायदे
जेनोट्रांस्पलांटेशन का सबसे बड़ा फायदा यही होगा कि इससे मानव प्रजाति की औसम उम्र में इजाफा हो सकता है. इसके अलावा मानव अंगों की तस्करी पर लगाम लगने में मदद मिलेगी. पल्मोनोलॉजिस्ट पृथ्वी संघवी का मानना है कि इस प्रकियता से इंसानी जीवन लंबा हो सकता है और लोगों औसत आयु 80 से 90 साल तक पहुंच सकती है.
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यह एक बड़ी सफलता हो सकती है क्यों कि आजादी से पहले भारत की औसत आयु 35 साल की हुआ करती थी. चिकित्सा विकास के चलते आज यह 69 साल की हो चुकी है. लेकिन अगर जेनोट्रांसप्लांटेशन हकीकत में बदला तो भारत में औसत आयु 80-90 साल तक हो जाएगी. फिर भी इस प्रक्रिया में अभी बहुत सी कठिन चुनौतियां है जिनका हल खोजना बाकी है.
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