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इसलिए नहीं करना चाहिए हिंदुस्‍तानी लड़कियों को मास्‍टरबेट

लड़की देश की इज्‍जत है. इसलिए एक इज्‍जतदार देश की लड़कियां सिनेमा के पर्दे पर तो छोडि़ए, बंद कमरे और बाथरूम के अंदर भी मास्‍टरबेट नहीं करतीं. सिर्फ लड़के करते हैं, सड़क पर भी और सिनेमा के पर्दे पर भी

लड़की देश की इज्‍जत है. इसलिए एक इज्‍जतदार देश की लड़कियां सिनेमा के पर्दे पर तो छोडि़ए, बंद कमरे और बाथरूम के अंदर भी मास्‍टरबेट नहीं करतीं. सिर्फ लड़के करते हैं, सड़क पर भी और सिनेमा के पर्दे पर भी

लड़की देश की इज्‍जत है. इसलिए एक इज्‍जतदार देश की लड़कियां सिनेमा के पर्दे पर तो छोडि़ए, बंद कमरे और बाथरूम के अंदर भी ...अधिक पढ़ें

    1 जून को हिंदुस्‍तान के कुल 2177 स्‍क्रीन्‍स पर एक फिल्‍म रिलीज हुई- “वीरे दी वेडिंग” और अगले ही दिन से देश में हंगामा खड़ा हो गया. हुआ दरअसल यूं था कि अचानक ही बहुत सारे लोग अपनी दादी मां के साथ फिल्‍म देखने पहुंच गए थे. सोचा वीरे दी वेडिंग में वेडिंग होगी, लहंगा, चुनरी, सिंदूर, नाच-गाना, बुल्‍का चुहाने वाला विदाई गीत, लेकिन ये क्‍या, यहां तो लड़कियां दारू-सिगरेट पी रही थीं, गाली दे रही थीं, तलाक ले रही थीं और बिना शादी के सेक्‍स कर रही थीं. और तो और, फिल्‍म की एक हीरोइन स्‍वरा भास्‍कर मास्‍टरबेट भी कर रही थी. डायरेक्‍टर ने डिल्‍डो को ब्‍लर कर दिया तो दादी और पोता दोनों डिल्‍डो तो नहीं देख पाए, लेकिन पूरे देश ने एक लड़की को मास्‍टरबेट करते देख लिया.

    पहले एक ने टि्वटर पर स्‍वरा को लानतें भेजीं, आधी अपनी तरफ से, आधी दादी की तरफ से. तभी ये हुआ कि दादी के बिहाफ पर लानतें भेजने वाले दूसरे संस्‍कारी पोते आ टपके. उसके बाद तो पोतों की झड़ी ही लग गई. सब दादियों के कंधे पर रखकर लगे बंदूक चलाने. स्‍वरा भास्‍कर को शर्म आनी चाहिए, मास्‍टरबेट करती है, लड़की होकर और वो भी हिंदुस्‍तानी लड़की होकर.

    एक हिंदुस्‍तानी लड़की ने मास्‍टरबेट क्‍या कर लिया, इतने सारे हिंदुस्‍तानी लड़कों को हिंदुस्‍तानी होने पर शर्म आने लगी. हालांकि खुद मास्‍टरबेट करते हुए उन्‍हें बिलकुल शर्म नहीं आती. और हिंदुस्‍तानी मर्दों का तो ऐसा है कि उन्‍हें ये काम करने के लिए बंद कमरे की भी जरूरत नहीं. क्‍या ट्रेन, क्‍या बस, क्‍या सड़क, वो कहीं भी बिना शरमाए शुरू हो जाते हैं. इस बात पर उनको तो शर्म नहीं ही आती, किसी और को भी नहीं आती. वो तो मुआमला लड़की का है तो पूरे देश की शर्म और संस्‍कार दोनों जाग उठे हैं.

    और क्‍यों न हों, लड़की देश की इज्‍जत है. ये इज्‍जत लड़की की योनि में रहती है. इसलिए इज्‍जत से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. एक इज्‍जतदार देश की लड़कियां सिनेमा के पर्दे पर तो छोडि़ए, बंद कमरे और बाथरूम के अंदर भी मास्‍टरबेट नहीं करतीं. सिर्फ लड़के करते हैं, सड़क पर भी और सिनेमा के पर्दे पर भी.

    Pleasantville- 1998 में आई इस फिल्म में एक बेटी अपनी मम्मी को मास्टरबेशन के बारे में बताती है.

    लड़कों ने सिनेमाई पर्दे पर मास्‍टरबेट करना 90 के दशक से ही शुरू कर दिया था. याद है 1993 में आई उपमन्‍यु चटर्जी की फिल्‍म इंग्लिश अगस्‍त, जिसमें अकेला, बेचारा, थका-हारा हीरो यानी राहुल बोस मास्‍टरबेट करता है. उसे मास्‍टरबेट करता देख तो किसी ने चूं तक नहीं की, उल्‍टे संवेदना में आहें भरीं. ऐसा भी नहीं कि उस फिल्‍म के बाद राहुल ने मास्‍टरबेट करने से तौबा कर ली हो. 17 साल बाद 2010 में अपर्णा सेन की फिल्‍म जैपनीज वाइफ में फिर सरेआम पर्दे पर वही हरकतें करते नजर आए. इस बार भी किसी ने मुंह नहीं खोला, उल्‍टा मास्‍टरबेट करते अकेले हीरो के लिए दो आंसू ही चुहा दिए.

    लड़कों के मास्‍टरबेशन की कहानी यहीं खत्‍म नहीं होती. 2013 की फिल्‍म नशा में शिवम पटेल पर मास्‍टरबेट करने का नशा चढ़ा हुआ था. मस्‍ती और ग्रैंड मस्‍ती में आफताब शिवदसानी, रितेश देशमुख और विवेक ओबेरॉय नित्‍यकर्म की तरह मास्‍टरबेट करते हैं और हिंदुस्‍तान की संस्‍कारी जनता ताली बजाती है. क्‍या कूल हैं हम में तुषार कपूर जब तक अपना हाथ जगन्‍नाथ न कर लें, कूल ही नहीं हो पाते. मस्‍तीजादे में वीर दास की मस्‍ती की इंतहा नहीं है, तितली का जिंदगी से लात खाया हीरो हस्‍तमैथुन की शरण में है और ब्राह्मण नमन के हीरो के तो कहने ही क्‍या. उसकी जिंदगी में क्विज खेलने और मास्‍टरबेट करने के अलावा दूसरा कोई मकसद नहीं.

    फिल्‍म The To Do List की हीरोइन तो बैठकर कैसे-कैसे मास्‍टरबेट करना है, की लिस्‍ट ही बनाती रहती है

    तो लब्‍बोलुआब ये कि लड़के तो सड़क से लेकर सिनेमा तक में झूम-झूमकर मास्‍टरबेट कर रहे हैं, लेकिन लड़की चाहिए एकदम संस्‍कारी. उसके वजाइना को मर्द तो छोड़ो, केला, खीरा, बैंगन, डिल्‍डो या खुद उसने भी नहीं छुआ होना चाहिए. क्‍यों? क्‍योंकि गुड इंडियन गर्ल मास्‍टरबेट नहीं करती और जो करती है, वो लूज कैरेक्‍टर होती है.

    और हम लड़कियां लूज कैरेक्‍टर नहीं होना चाहतीं. इसलिए न हम मास्‍टरबेट करती थीं, न करती हैं और न करेंगी.

    हालांकि जितने मुंह, उतनी बातें. साइंस कुछ और कहता है, डॉक्‍टर कुछ और. और प्रशांत महासागर पार कर जरा उधर के मुल्‍कों में चले जाइए तो वहां की लड़कियां तो जाने क्‍या-क्‍या कहती और करती हैं. पहले साइंस की बात करते हैं. साइंस कहता है कि मास्‍टरबेट करना सेहत के लिए अच्‍छा होता है. डॉक्‍टर भी कहते हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है कि मास्‍टरबेट करने से लड़कियों में ब्रेस्‍ट कैंसर और सर्वाइकल कैंसर की आशंका 34 फीसदी तक कम हो सकती है, लेकिन लड़कियों जरा सोचो, कैंसर भला कैरेक्टर से बड़ा कैसे हो सकता है! कैंसर कम करने के लिए कोई चरित्र कुर्बान कर देगा क्‍या? इसलिए याद रखो, ‘कैंसर आए पर कैरेक्‍टर न जाए.’ कैंसर की आशंका 34 फीसदी बढ़े, चाहे 134 फीसदी, लड़कियों और उस पर हिंदुस्‍तानी लड़कियों को तो बिलकुल मास्‍टरबेट नहीं करना चाहिए.

    अब एक और रिसर्च देखिए. इंडियाना यूनिवर्सिटी की रिसर्च तो ये कहती है मास्‍टरबेट करने से मॉरटैलिटी रेट कम होता है यानी जो लड़कियां मास्‍टरबेट करती हैं, वो लंबा जीती हैं. लेकिन रिसर्च करने वालों को ये समझ नहीं आता कि ऐसी लंबी जिंदगी का क्‍या फायदा, जिसमें चरित्र ही न हो. इसलिए हिंदुस्‍तानी लड़की भले मर जाए, लेकिन उसे मास्‍टरबेट करके अपने चरित्र पर आंच नहीं आने देनी चाहिए.

    रिसर्च तो ये भी कहती है कि पेनीट्रेटिव सेक्‍स के मुकाबले मास्‍टरबेशन के जरिए लड़कियां बेहतर ऑर्गेज्‍म का अनुभव कर सकती हैं. लेकिन मेरा सवाल ये है कि ऑर्गेज्‍म चाहिए ही क्‍यों? ऐसा कौन सा लड़की को चांद पर पहुंच जाना है ऑर्गेज्‍म पाकर. हमारे यहां शादी होती है सेक्‍स के लिए और सेक्‍स होता है, बच्‍चा पैदा करने के लिए, ऑर्गेज्‍म के लिए नहीं. फिट्टे मुंह साइंस की, कहता है ऑर्गेज्‍म मतलब खुशी. कोई खुशी नहीं होती. सद्चरित्रता से बढ़कर कोई खुशी नहीं होती.

    फिल्म Secretary की हीरोइन अपने बॉस को इमैजिन करके ऑफिस के बाथरूम में मास्‍टरबेट करती है

    ये सब किया-धरा पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति का है. विदेशी लड़कियों का तो यहां जिक्र न ही करें तो गनीमत. ऐसे-ऐेसे काम करती हैं कि हमारे देश में भरे चौराहे, भरी बस में मास्‍टरबेट करने वाले मर्द को भी लगे कि कहीं जाकर शर्म से डूब मरूं. एक फिल्‍म है मारगॉट ऐट द वेडिंग. उसमें निकोल किडमैन ऐसे मास्‍टरबेट करती है कि हिंदुस्‍तानी मर्द हाय-हाय करने लग जाएं. एक और फिल्‍म है- द टू डू लिस्‍ट. इस फिल्‍म की हीरोइन तो बैठकर कैसे-कैसे मास्‍टरबेट करना है, की लिस्‍ट ही बनाती रहती है. लिस्‍ट बनाती है और रोज नए-नए तरीकों से करती है. ऐसी लूज कैरेक्‍टर फिल्‍म देख लो तो टीवी पर गंगाजल छिड़कना पड़ जाए. वुल्‍फ ऑफ वॉल स्‍ट्रीट की मारगॉट रॉबी भी खुद ही खुद को छू रही है, जबकि हीरो सामने खड़ा है. और हॉलीवुड वालों की बेशर्मी तो देखो, ऐेसी फिल्‍म को पांच ऑस्‍कर के लिए नॉमिनेट कर दिया. इस फिल्‍म को तो सिर्फ नॉमिनेशन मिली थी, फिल्‍म ट्रू ब्‍लड की अन्‍ना पैक्विन को तो सीधे ऑस्‍कर ही दे दिया था, जबकि वो स्‍क्रीन पर मास्‍टरबेट कर रही थी.

    याद है सेक्‍स एंड द सिटी की समांथा. एकदम ही लूज कैरेक्‍टर, जब देखो तब, यही काम करती है. फिल्‍म वेटलैंड की हीरोइन ने तो फ्रिज की सारी सब्जियों का अपने ऊपर एक्‍सपेरीमेंट कर डाला. फ्रेंच फिल्‍म ब्‍लू इज द वार्मेस्‍ट कलर की नायिका भी मास्‍टरबेट करती है और फिल्‍म को क्रिटीक चार-पांच स्‍टार से नवाजते हैं. फिल्‍म सेक्रेटरी की हीरोइन अपने बॉस को इमैजिन करके ऑफिस के बाथरूम में मास्‍टरबेट करती है. फिल्‍म स्‍लैकर्स की हीरोइन हॉस्‍टल के कमरे में ही शुरू हो गई है. तभी अचानक एक लड़का कमरे में आ जाता है. पूछता है, तुम क्‍या कर रही हो और वो बेशर्मी से मुंह फाड़कर कहती है- मास्‍टरबेट.
    फिल्‍म प्‍लेजेंटविला की हीरोइन खुद तो मास्‍टरबेट करके बर्बाद है ही, अपनी मां को मास्‍टरबेशन पर ज्ञान दे रही है. कह रही है, अकेले भी इंजॉय कर सकते हैं. फिर क्‍या होना है, मां भी बाथरूम में जाकर शॉवर में लेट जाती है. वो बात अलग है कि मास्‍टरबेट करने के बाद मां को समझ आता है कि इतनी खुशी तो अपने पति के साथ भी कहीं नहीं मिली. खुशी मतलब ऑर्गेज्म. तौबा-तौबा, ये ऑर्गेज्म शिकारी कुत्‍ते के मुंह में लगा खून है. एक बार औरतों को इसकी लत लग गई, तो समाज और संस्‍कार का तो बंटाधार ही समझो. इसलिए हम कहते हैं मास्‍टरबेट करना पाप है और ऑर्गेज्म तो महापाप.

    स्‍टोरी ऑफ ए निम्‍फोमेनिआक भी कोई पुरानी बात नहीं हुई. लड़की के दिमाग में सिर्फ एक ही चीज है, सेक्‍स और सेक्‍स. फिर वो लड़के के साथ हो, चाहे अपने साथ. इस फिल्‍म में तो लड़की की दादी के भी ऐसे अरमान हैं कि पूछो मत. कहती हैं, काश कि वो भी अपनी पोती जैसी जिंदगी जी पातीं.

    एक हिंदुस्‍तानी दादियां हैं, कि वीरे दी वेडिंग में स्‍वरा भास्‍कर को देखकर शर्मिंदा हैं और एक वो फ्रेंच दादी है, जो मास्‍टरबेट करने वाली पोती को कह रही है कि तुम कुछ भी गलत नहीं कर रही हो. दादी-दादी का फर्क है.

    इससे ज्‍यादा और क्‍या ही समझाया जाए कि स्‍वरा भास्‍कर के मास्‍टरबेशन वाले सीन को लेकर इतना बखेड़ा क्‍यों खड़ा हुआ. वो बात ये है न कि हिंदुस्‍तानी लड़कियों को ऑर्गेज्म की लत लग गई तो हिंदुस्‍तानी लड़कों का क्‍या होगा, इसलिए हमारे संस्‍कार इंटैक्‍ट रहने बहुत जरूरी हैं.

    वैसे इस पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ हो गई है कि जिस देश में इतने सारे पोते अपनी दादियों के साथ वीरे दी वेडिंग देखने जाते हों, उस देश में परिवार और संस्‍कारों की जड़ें अभी मजबूत हैं. हमारे संस्‍कारों का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. वो बात अलग है कि सब अपनी दादियों के साथ ही फिल्‍म देखने गए, दादा के साथ कोई नहीं गया.

    Tags: Swara Bhaskar

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