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दिल्ली आने वाली लड़कियों! तुम्हारे नाम एक खुली चिट्ठी...

प्रतीकात्‍मक तस्वीर

प्रतीकात्‍मक तस्वीर

तुम्हारे छोटे गांव, शहर में लड़कों की जिंदगी तुम लड़कियों से बेहतर क्यों थी? कि हमारे देश में मर्दों की जिंदगी औरतों से ब ...अधिक पढ़ें

    लड़कियों !

    डीयू में दाखिला मिलना तुम्हारे गांव, कस्बे, मुहल्ले, पास-पड़ोस के लिए बड़ी ख़बर है. कुछ दिन रहेगी भी. जैसे आंखों में चमक और आज़ादी की आहट, स्कूल, यूनीफॉर्म और नियम-कायदों से छुटकारे की आहट. अब कॉलेज की जिंदगी होगी, हॉस्टल या फिर पीजी. अब जो दुपट्टा नहीं लिया तो निग़ाहें पीछा नहीं करेंगी, न मां की, न मुहल्ले की. भले ही दोनों की वज़हें अलग हों. देर होने पर कोई टोकेगा नहीं. सफाई नहीं देनी पड़ेगी किसी को.

    आजादी मिलते ही इंसान सबसे पहले वही सब सब करता है, जिसकी मनाही रही हो. आजादी का चस्का ही कुछ ऐसा है. यहां पापा का टाइमटेबल नहीं है, मम्मी की पैनी निगाहें नहीं, पड़ोसियों की जासूस नजर नहीं. और तो और, सड़क पर भी हर वक्त कोई घूरे, कोई छेड़े, यहां ऐसा नहीं होता. इस महानगर की भीड़ में तुम आसानी से गुम हो सकती हो. कोई नहीं देख रहा तुम्हें, कोई तुम्हारा रोजनामचा नहीं लिख रहा. इन दिनों दिल्ली आने वाली तुम्हारी तरह की हर लड़की एक देहरी लांघकर सिर्फ शहर नहीं बदल रही, बल्कि अपनी ज़िंदगी भी बदल रही है. तुम अपनी पिछली पीढ़ी और पास-पड़ोस की तुलना में अपनी नियति खुद लिख सकने के लिए ज्यादा काबिल हो सकती हो. अभी कुछ दिन लगेंगे, सेटल होने में. बस का नम्बर, मेट्रो का रंग और स्टेशन, ट्रैफिक और भीड़ का उमड़ना-घुमड़ना. फिर तुम्हारा दिमाग जल्द ही उनका पैटर्न बना लेगा.

    कॉलेज देखा न. कैसा लगा? तरह-तरह की लड़कियां और लड़के. डीप नेक टॉप वाली लड़की से लेकर लाल रंगे बालों वाली लड़की, घुटने से तीन इंच ऊपर स्कर्ट वाली लड़की, डार्क रेड लिप्स्टिक वाली लड़की, पटर-पटर अंग्रेजी बोलने वाली लड़की, नाभी में बाली और कमर में टैटू वाली लड़की. कुछ विचित्र टाइप. तुमने शायद अभी तक वैक्सिंग भी न करवाई हो. पर मेरा अंदाज़ा ग़लत भी हो सकता है. सब अपने कॉलेज के पहले दिन को सबके कॉलेज का पहला दिन समझते हैं.

    तुम्हें याद हैं आर्यकन्या पाठशाला की वो सहेलियां, जो आज तुम्‍हारे उसी छोटे शहर के किसी मामूली गर्ल्‍स डिग्री कॉलेज में एडमिशन ले रही हैं. पता है आज से चंद महीनों बाद क्या होने वाला है? वो उसी कुएं में रहने वाली हैं, जहां से तुम निकल आई हो. वो रोज उन्हीं गलियों, उन्हीं बाजारों से होकर गुजरेंगी, उन्हीं घूरती, छेड़ती निगाहों से होकर गुजरेंगी, उसी बब्बन की चाट खाएंगी, उसी ब्यूटी पार्लर में जाएंगी, उन्हीं मुहल्ले की आंटियों से अचार डालने का हुनर सीखेंगी. वो वही जिंदगी आगे भी जिएंगी, जो जीकर तुम इस महानगर तक आ पहुंची.

    तुम्हें पता है ना, ये कितनी बड़ी नेमत है. तुम्‍हें एक उम्‍दा कॉलेज में पढ़ने, अपनी जिंदगी बनाने, अपने पैरों पर खड़े होने का मौका मिला है. इस कॉलेज की लाइब्रेरी में इतनी किताबें हैं, जितनी तुम्‍हारे पूरे शहर में न होंगी.

    ये जितनी बड़ी नेमत है, उससे कहीं बड़ी जिम्मेदारी. क्या तुम्हें एहसास है, उस जिम्मेदारी का, जो तुम्हारे 19 साल के नाजुक कंधों पर आ पड़ी है. मेरी दोस्त, यह शहर तुम्हारे गांव, कस्बे से बहुत बड़ा है. हो सकता है इस चमकीले माहौल में तुम भी बाकी लकदक स्टूडेंट्स की तरह बनना चाहो. कोई बुराई नहीं है इसमें. पर सोचने की बात ये है कि क्‍या तुम्हें पता है, तुम क्या और क्यों कर रही हो और तुम्हें क्या हासिल हो रहा है इससे.

    महानगर हमें लील लेता है. हर किसी को एक तरह की गुमशुदगी बख़्शता है. साथ ही वह परवाह भी नहीं करता तुम्हारी बारीक नापसंदगियों की. वह धक्का देता चलता है और अकसर बिना किसी लिहाज के.

    अभी कुछ दिन तो शहर की खाक छानने, भटकने में कटने वाले हैं. अपनी सहेलियों और लड़कों के साथ जल्दी ही तुम सिनेमा देखने जाओगी शायद. सरोजिनी या जनपथ से पहली स्पेगिटी ड्रेस खरीदोगी, खुद की लिप्सटिक भी. सिगरेट हमेशा एक हाथ ही दूर होती है- “देना एक पफ यार” और बीयर का घूंट उससे थोड़ी ही दूर. लड़कों ने ये सब तुम्हारे शहर में ही कर लिया होगा. तुम्हें अब मिलेगा मौका, जीवन के उन सारे निषिद्ध इलाकों में घुसने का, जो तुम्हारे शहर में सिर्फ मर्दों की बपौती थी.

    लेकिन पता है, मौकों से ज्‍यादा बड़ी बात क्‍या है? कि जब मौका और चॉयस मिले तो हम क्‍या चुनते हैं, क्‍या करते हैं? तुम क्या करोगी? बह जाओगी या सोच-समझकर कदम उठाओगी. क्या तुम्हें पड़ी है कि तुम क्या कर रही हो? क्या तुम्हें परवाह है तुम्हारी? महानगर की भीड़ में गुम जाना अच्छा है, लेकिन क्या ऐसे गुम जाना कि खुद को भी खुद की खबर न रहे. ये कोई मम्मी वाली “स्त्री सुबोधिनी टू डू लिस्ट” नहीं है पर शायद तुम इन बातों पर ग़ौर करना चाहो.

    1- मौके की कीमतः तुम्हें मिला मौका बहुत कीमती है, इसी देश और तुम्हारे ही शहर की हजारों लड़कियां अभी भी इससे वंचित हैं. जिंदगी सब पर इतनी मेहरबान नहीं होती, तुम पर हुई. उसकी कीमत समझना. कैम्पस में कौन क्या लेकर आ रहा है, वह महत्वपूर्ण नहीं है. असली बात ये है कि यहां से क्या लेकर जाओगी और कहां जाओगी.

    2- आज़ादी के साथ जिम्मेदारीः ये शहर लड़कियों की आजादी और सफलता की जितनी कहानियों का गवाह है, उससे कहीं ज्‍यादा भटकाव और बरबादी की कहानियों का भी. फर्क सिर्फ ये कि उनका पता कम चलता है या देर से. जिन्‍होंने करियर को गंभीरता से नहीं लिया, उनके जीवन का अंत मामूली नौकरियों और बदतर शादियों में हुआ. कुछ पढ़-लिखकर भी घर लौट गईं और अब उनकी पहचान सिर्फ इतनी है कि वो मिसेज फलाना हैं.



    3- चुनौती हॉरमोन कीः अभी सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है- लव और ब्वॉयफ्रेंड. लाख हिदायतों के बावजूद ये होगा, हॉर्मोन मुंह उठाएंगे, अरमान सिर चढ़कर बोलेंगे. मैं सावधान कर रही हूं, इसलिए नहीं कि नैतिकता का पाठ पढ़ाना है, इसलिए कि ये सो कॉल्‍ड “लव” तुम्हारी आजादी और आत्मनिर्भरता के रास्ते में खड़ी सबसे पेचीदा दीवार है. दिक्कत ब्वॉयफ्रेंड से नहीं है, दिक्कत अपनी मंजिल से भटक जाने से है, दिक्कत उन समझौतों से है, जो अकसर लड़कियां मुहब्बत के लिए कर बैठती हैं. अपना मज़ाक बनने से बचो.

    4- सम्मान से समझौता नहीं: डरा नहीं रही, लेकिन ये सच है कि सबसे ज्‍यादा दुर्घटनाएं भी इसी प्‍यार के रास्‍ते में होती हैं. एक लड़की, जिसका उसके ब्‍वॉयफ्रेंड ने एमएमएस बना लिया था, एक लड़की, जो आरामतलब जिंदगी की तलाश में एक ठर्की बुड्ढे अफसर के चक्‍कर में फंस गई, जो बाद में उसे ब्‍लैकमेल करने लगा, एक लड़की जो ऐसे बेगैरत लड़के से प्‍यार और शादी कर बैठी कि उसका करियर तबाह हो गया, एक लड़की, जिसके ब्‍वॉयफ्रेंड ने उसकी अंतरंग तस्‍वीरें कॉलेज के व्‍हॉट्सऐप ग्रुप पर डाल दीं, एक लड़की, जिसका ब्‍वॉयफ्रेंड अपने दोस्‍तों के सामने स्‍पीकर पर फोन रखकर उससे इंटीमेट बातें करता और उसकी चैट अपने दोस्‍तों को दिखाता था. ये सब यहां रोज हो रहा है. खासकर तुम्‍हारे जैसी मामूली शहरों, मामूली घरों, मामूली आर्थिक परिवेश से आई लड़कियों के साथ. इसलिए सावधान! फोन, चैट, इंटरनेट, कंप्‍यूटर से सावधान! ऐसा कुछ मत करना, जो तुम पर भारी पड़ जाए. तुम्‍हारी नाक इतनी तेज होनी चाहिए कि खतरे को दस हाथ दूर से सूंघ सको, इंसान को पहचान सको. प्‍यार में कमजोर पड़कर लड़कों की बेजा मांगों के आगे घुटने मत टेकना. “नहीं” कहना सीखना. तुम दोस्त बनाना, मुहब्बत करना, लेकिन सबसे ज्यादा और सबसे पहले अपने आप से. याद रखो, तुम्हें प्यार करना किसी और का काम नहीं, ये तुम्हारा काम है और अपना काम बेस्ट करो.



    5- अपनी जगह खुद कमाओः मंजिल भले सबकी एक हो, रास्ते सबके अपने होते हैं. कॉलेज की उन लड़कियों की नकल मत करना, जिनके हिस्से शायद तुम्हारे मुकाबले ज्यादा आसान रास्ता आया हो, जिनके हिस्से में ज्यादा सुविधा, ज्यादा आराम, ज्यादा अच्छी ड्रेस, ज्यादा पॉकेट मनी और ज्यादा रूप-रंग हो. अपने उस हुनर पर भरोसा करना, जो तुम्हें तुम्हारे शहर से उठा यहां तक ले आया. वो हुनर ही तुम्हारा सरमाया है.

    एक लड़की, जिसका उसके ब्‍वॉयफ्रेंड ने एमएमएस बना लिया था, एक लड़की, जो आरामतलब जिंदगी की तलाश में एक ठर्की बुड्ढे अफसर के चक्‍कर में फंस गई, जो बाद में उसे ब्‍लैकमेल करने लगा, एक लड़की जो ऐसे बेगैरत लड़के से प्‍यार और शादी कर बैठी कि उसका करियर तबाह हो गया, एक लड़की, जिसके ब्‍वॉयफ्रेंड ने उसकी अंतरंग तस्‍वीरें कॉलेज के व्‍हॉट्सऐप ग्रुप पर डाल दीं, एक लड़की, जिसका ब्‍वॉयफ्रेंड अपने दोस्‍तों के सामने स्‍पीकर पर फोन रखकर उससे इंटीमेट बातें करता और उसकी चैट अपने दोस्‍तों को दिखाता था. ये सब यहां रोज हो रहा है. खासकर तुम्‍हारे जैसी मामूली शहरों, मामूली घरों, मामूली आर्थिक परिवेश से आई लड़कियों के साथ.

    6- सवाल करो, उत्सुक रहोः दिल्ली में इतनी बेहतरीन लाइब्रेरियां हैं, आर्ट और कल्चर की जगहें हैं, बेहतरीन दिमाग वाले लोग हैं. उनका एक्सपीरियंस करो. यह वह बात है, जो दिल्ली को ख़ास बनाती है. खूब सारा पढ़ना, सिर्फ कोर्स की किताबें नहीं, कॉलेज की लाइब्रेरी से और ढेरों किताबें. लिटरेचर, साइंस, फिलॉसफी. किताबें हमारी समझ बढ़ाती हैं, हमें बेहतर बनाती हैं. यहां स्पोर्ट्स हैं, एनजीओ हैं. सीखने को इतना कुछ है.



    7- बेहतर जिंदगी का रास्‍ता: पता है, तुम्हारे छोटे गांव, शहर में लड़कों की जिंदगी तुम लड़कियों से बेहतर क्यों थी? कि हमारे देश में मर्दों की जिंदगी औरतों से बेहतर क्यों है? क्योंकि वो आत्मनिर्भर हैं, अपना पैसा कमाते हैं, किसी के मोहताज नहीं. तुम्हारी जिंदगी भी इसी रास्ते बेहतर होगी. इसलिए हर उस चीज को शक की निगाह से देखना, जो इस रास्ते से तुम्हारा ध्यान हटाए. स्पेगिटी फ्रॉक भी पहनना और रेड लिप्सटिक भी लगाना, लेकिन सबसे पहले अच्छे नंबर और अच्छी नौकरी.
    कॉलेज की उन लड़कियों की नकल मत करना, जिनके हिस्से शायद तुम्हारे मुकाबले ज्यादा आसान रास्ता आया हो, जिनके हिस्से में ज्यादा सुविधा, ज्यादा आराम, ज्यादा अच्छी ड्रेस, ज्यादा पॉकेट मनी और ज्यादा रूप-रंग हो. अपने उस हुनर पर भरोसा करना, जो तुम्हें तुम्हारे शहर से उठा यहां तक ले आया. वो हुनर ही तुम्हारा सरमाया है.

    8- किसी से तुलना नहीं: घूमना-फिरना, शहर और सिनेमा भी देखना, हर चमक, हर रंग को पढ़ना, लेकिन उसमें डूब मत जाना. और जब भी मन में ये कुंठा जगे कि मेरी जिंदगी उस क्लासमेट जैसी क्यों न हुई, जो डिफेंस कॉलोनी में रहती है और अपनी लंबी वाली गाड़ी में कॉलेज आती है तो उन लड़कियों को याद करना, जो आज भी पान की पीक और मर्दाना जोश कैसे बढ़ाएं, के विज्ञापनों से पटी दीवार वाले उस मामूली से गर्ल्‍स डिग्री कॉलेज में पढ़ रही हैं.



    9- शुक्रगुजार होना: और सबसे आखिर में, जिंदगी ने तुम्हें जो मौका दिया है, उसके लिए शुक्रगुजार होना, उसकी कीमत समझना, उसकी इज्जत करना.

    10- हर सुबह जब आईने में शक्ल देखो तो अपनी आंखों में झांक सको और कह सको, सब सही चल रहा है .
    तुम्हारे पहले रिजल्ट का इंतजार रहेगा. हो सके तो बताना.

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    Tags: College education, Delhi University, Safety of Girls

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