इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा, पढ़ें अमीर क़ज़लबाश की शायरी

पढ़ें अमीर क़ज़लबाश की शायरी
Ameer Qazalbash Shayari: वो सर-फिरी हवा थी संभालना पड़ा मुझे, मैं आख़िरी चराग़ था जलना पड़ा मुझे ...
- News18Hindi
- Last Updated: January 16, 2021, 11:30 AM IST
अमीर क़ज़लबाश की शायरी (Ameer Qazalbash Shayari): अमीर क़ज़लबाश शायरी की दुनिया का एक ऐसा नाम है जो किसी तार्रुफ का मोहताज़ नहीं है. अमीर क़ज़लबाश का पूरा नाम अमीर आग़ा क़ज़लबाश था. अमीर क़ज़लबाश दिल्ली से तालुक्क रखते थे. उन्होंने कई फिल्मों के लिए भी गीत लिखे. प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली के गीतों के लिए अमीर क़ज़लबाश काफी मशहूर भी हुए. आज हम आपके लिए रेख्ता के साभार से लेकर हाज़िर हुए हैं अमीर क़ज़लबाश की शायरी...
1. मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न करअगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा
उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले
उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा .
Also Read: Anwar Shaoor Shayari: फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था, पढ़ें अनवर शऊर की शायरी
2. नज़र में हर दुश्वारी रख
ख़्वाबों में बेदारी रख
दुनिया से झुक कर मत मिल
रिश्तों में हमवारी रख
सोच समझ कर बातें कर
लफ़्ज़ों में तहदारी रख
फ़ुटपाथों पर चैन से सो
घर में शब-बेदारी रख
तू भी सब जैसा बन जा
बीच में दुनिया-दारी रख
एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख
ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख
शेर सुना और भूका मर
इस ख़िदमत को जारी रख .
3. वो सर-फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे
मैं आख़िरी चराग़ था जलना पड़ा मुझे
महसूस कर रहा था उसे अपने आस पास
अपना ख़याल ख़ुद ही बदलना पड़ा मुझे
सूरज ने छुपते छुपते उजागर किया तो था
लेकिन तमाम रात पिघलना पड़ा मुझे
मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू थी मिरी ख़ामुशी कहीं
जो ज़हर पी चुका था उगलना पड़ा मुझे
कुछ दूर तक तो जैसे कोई मेरे साथ था
फिर अपने साथ आप ही चलना पड़ा मुझे .
4. इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है
जिस को देखो वही है चुप चुप सा
जैसे हर शख़्स इम्तिहान में है
खो चुके हम यक़ीन जैसी शय
तू अभी तक किसी गुमान में है
ज़िंदगी संग-दिल सही लेकिन
आईना भी इसी चटान में है
सर-बुलंदी नसीब हो कैसे
सर-निगूँ है कि साएबान में है
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ जागते सोते
कोई आसेब इस मकान में है
आसरा दिल को इक उमीद का है
ये हवा कब से बादबान में है
ख़ुद को पाया न उम्र भर हम ने
कौन है जो हमारे ध्यान में है .
1. मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न करअगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा
उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले
उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा .
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2. नज़र में हर दुश्वारी रख
ख़्वाबों में बेदारी रख
दुनिया से झुक कर मत मिल
रिश्तों में हमवारी रख
सोच समझ कर बातें कर
लफ़्ज़ों में तहदारी रख
फ़ुटपाथों पर चैन से सो
घर में शब-बेदारी रख
तू भी सब जैसा बन जा
बीच में दुनिया-दारी रख
एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख
ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख
शेर सुना और भूका मर
इस ख़िदमत को जारी रख .
3. वो सर-फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे
मैं आख़िरी चराग़ था जलना पड़ा मुझे
महसूस कर रहा था उसे अपने आस पास
अपना ख़याल ख़ुद ही बदलना पड़ा मुझे
सूरज ने छुपते छुपते उजागर किया तो था
लेकिन तमाम रात पिघलना पड़ा मुझे
मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू थी मिरी ख़ामुशी कहीं
जो ज़हर पी चुका था उगलना पड़ा मुझे
कुछ दूर तक तो जैसे कोई मेरे साथ था
फिर अपने साथ आप ही चलना पड़ा मुझे .
4. इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है
जिस को देखो वही है चुप चुप सा
जैसे हर शख़्स इम्तिहान में है
खो चुके हम यक़ीन जैसी शय
तू अभी तक किसी गुमान में है
ज़िंदगी संग-दिल सही लेकिन
आईना भी इसी चटान में है
सर-बुलंदी नसीब हो कैसे
सर-निगूँ है कि साएबान में है
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ जागते सोते
कोई आसेब इस मकान में है
आसरा दिल को इक उमीद का है
ये हवा कब से बादबान में है
ख़ुद को पाया न उम्र भर हम ने
कौन है जो हमारे ध्यान में है .