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जब आदमी-औरत के बीच सेक्स 'नॉर्मल' नहीं माना जाता था

मैरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने हेट्रोसैक्शुएलिटी को ‘घिनौनी सेक्शुअल भूख’ बताया था

मैरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने हेट्रोसैक्शुएलिटी को ‘घिनौनी सेक्शुअल भूख’ बताया था

अगर हम आपसे कहें कि समलैंगकिता को लेकर जो सोच समाज में है, ऐसा ही कुछ लड़का-लड़की के प्यार के बारे में भी सोचा जाता था. ...अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
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    ‘हेट्रोसेक्शुएलिटी असामान्य है और ये विपरीत लिंग के प्रति भूख को दिखाती है.’ नहीं, आपने गलत नहीं पढ़ा है. विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के प्रति शारीरिक आकर्षण को 1901 की डोर्लैंड मेडिकल डिक्शनरी में कुछ ऐसे ही परिभाषित किया गया था. 23 साल बाद 1923 में मॉरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने भी हेट्रोसैक्शुएलिटी को ‘घिनौनी सेक्शुअल भूख’ बताया. 1934 तक आते आते डिक्शनरी की दुनिया में आदमी-औरत के बीच के प्यार को सामान्य माना जाने लगा और उसे वह मायने मिले जिससे हम आज परिचित हैं – ‘किसी विपरीत लिंग के व्यक्ति के प्रति जिस्मानी आकर्षण की अभिव्यक्ति जो सामान्य है.’

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    ऊपर लिखी गई परिभाषाएं पढ़कर हम हैरान हो सकते हैं क्योंकि हमारे हिसाब से हेट्रोसेक्शुएलिटी का आयडिया सदियों से चला आ रहा है. शायद जब से यह दुनिया, यह पृथ्वी, यह संसार बना है तब से एक आदमी, सिर्फ और सिर्फ किसी औरत के प्रति ही आकर्षित होता आया है. इसमें किसी को ग़लत क्या दिख सकता है. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो हम यहां तक कैसे पहुंच पाते, बच्चे कैसे पैदा होते, मनुष्य प्रजाति इतनी आगे कैसे बढ़ पाती. यह सब कुछ हमारे हेट्रोसेक्शुअल होने की वजह से ही तो मुमकिन हो पाया है. दरअसल विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के साथ सेक्स निश्चित ही सदियों पुरानी बात है, लेकिन ऐसा करने वाले को हेट्रोसेक्शुअल कहते हैं या जो ऐसा नहीं करते, उन्हें कुछ और कहते हैं. इस तरह की पहचान देना या सेक्स किससे और कैसे किया जा रहा है, उसके आधार पर व्यक्ति को किसी खाके में फिट करने का काम ज़्यादा पुराना नहीं है.

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    कार्ल मारिया कर्टबेनी ने 'हेट्रोसेक्शुअल' शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल किया


    यूनवर्सिटी ऑफ मिशिगन के समलैंगिक विचारक डेविड हैल्परिन के मुताबिक – सेक्स का कोई इतिहास नहीं है, क्योंकि वो तो हमारे शरीर के कामकाज में शामिल है. लेकिन सेक्शुएलिटी का इतिहास है क्योंकि वो हमारी ‘सांस्कृतिक उत्पत्ति’ का नतीजा है. दूसरे शब्दों में कहें तो ज्यादातर प्रजातियों में सेक्स, उसी तरह रचा बसा है जैसे भूख और प्यास. लेकिन इसे कोई नाम देना या इसे किसी श्रेणी में डालना, इसका निश्चित ही एक इतिहास है जिसकी तह में जाया जा सकता है.

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    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के हित में फैसला सुनाया


    इसे ऐसे भी समझा जा सकता है – 2007 में दुनिया भर में नई प्रजातियों को खोजने का काम करने वाली संस्था, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पीशीज़ एक्सप्लोरेशन ने Electrolux addisoni  नाम की मछली को साल की टॉप 10 नई प्रजातियों में शामिल किया. लेकिन क्या इसका मतलब यह हुआ कि यह मछली हाल ही में दुनिया में आई है. नहीं. यह थी तो बहुत वक्त से लेकिन इसके बारे में अभी दुनिया को पता चला क्योंकि इसके बारे में लिख दिया गया, और वो भी एक ऐसी संस्था ने जो प्रजातियों के मामले में एक्सपर्ट है.

    इसी तरह आदमी-औरत के बीच शारीरिक झुकाव के बारे में इतिहास में लिखा गया, उसे एक शब्द मिला – हेट्रोसेक्शुएलिटी और इस के साथ ही उसे एक पहचान भी मिल गई जिसने आगे चलकर उसे सामान्य बना दिया. जब हेट्रोसेक्शुअलिटी को समाज सिर पर बैठा रहा था, तब समलैंगिकता या अन्य कम सुनी गई सेक्शुएलिटी अपने लिए किसी रहनुमा का इंतज़ार कर रही थी जिसके न होने पर धीरे धीरे समलैंगिकता दुनिया की नज़र में असामान्य होती गई. Electrolux addisoni  जैसी मछली के बारे में जब तक नहीं लिखा गया था – तब तक उसकी हैसियत वैसी ही थी जैसी समाज के नज़र में समलैंगिकता की रही.

    तो Electrolux addisoni जैसी मेहरबानी ही 19वीं सदी के अंत में हेट्रोसेक्शुअल्स के साथ हुई जब वो महज़ होने से आगे बढ़कर पहचाने जाने लगे. लेखक हानै ब्लैंक कहते हैं – ‘1868 से पहले हेट्रोसेक्शुअल या समलैंगिक जैसी कोई परिभाषा नहीं थी. इंसान को तब तक सूझा ही नहीं था उन्हें इस बात पर तोला जाएगा या अलग थलग किया जा सकेगा कि वो प्यार किससे कर रहे हैं या कैसे कर रहे हैं.’

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    धारा 377 और विक्टोरियन नैतिकता पर तर्क लंबे समय से चला आ रहा है


    निश्चित ही धार्मिक स्तर पर सेक्स को लेकर काफी गंभीरता बरती जाती थी और अलग अलग धर्मों में सेक्स करने के दौरान ‘प्रजनन’ यानि बच्चे पैदा करने के उद्देश्य को सर्वोच्च माना जाता था. पश्चिमी दुनिया में सेक्स करने की श्रेणी हेट्रो या होमो से बहुत पहले दो अलग पैमानों पर परखी जाती थी – वो कृत्य जिससे बच्चे पैदा होते हैं और वो जिससे नहीं होते हैं. साधारण भाषा में कहें तो सेक्स अगर बच्चे पैदा करने के मकसद के बजाए, आनंद के लिए किया जाए तो  धार्मिक ग्रंथों की नज़र में यह ‘पाप’ है. ऐसे में सिर्फ पुरुष-पुरुष के बीच संबंध ही नहीं, हस्तमैथून को भी अस्वीकार्य माना जाता रहा क्योंकि ऐसा करने के दौरान, प्रजनन का विचार पीछे छूट जाता है. लेकिन इन सबके दौरान भी सेक्स कैसे हो रहा है पर ज़ोर दिया जाता रहा, न कि कौन कर रहा है.

    1860 के दशक के अंतिम सालों में हंगरी के पत्रकार कार्ल मारिया कर्टबेनी सीन में आए. उन्होंने चार शब्दों को दुनिया के सामने रखा – हेट्रोसेक्शुअल, होमोसेक्शुअल, हस्तमैथून और पशुगमन. 1880 में कर्टबेनी के दिए गए शब्द हेट्रोसेक्शुअल का पहली बार एक किताब में इस्तेमाल किया गया. 1889 में मनोवैज्ञानिक रिचार्ड वॉन क्राफ्ट एबिंग ने अपने एक पेपर में हेट्रोसेक्शुअल शब्द का इस्तेमाल करते हुए उसके साथ ‘सामान्य या नॉर्मल’ शब्द जोड़ा. क्राफ्ट की नज़र में वही शारीरिक भूख ‘नॉर्मल’ है जो कहीं न कहीं प्रजनन जैसे बड़े काम में शामिल है.

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    मैरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने हेट्रोसैक्शुएलिटी को ‘घिनौनी सेक्शुअल भूख’ बताया था


    और जैसा कि होता आया है नॉर्मल का यहां भी वैसा ही इस्तेमाल हुआ जैसा कि बाकी के मामलों में होता आया है. हम हर उस बात को ‘सामान्य’ मानते चले जाते हैं जो कहीं न कहीं समाज में ऊपर बैठा व्यक्ति, वंचित वर्ग के लिए तय करता है. जैसे गुलामी या उपनिवेशवाद को बहुत वक्त तक गरीब देश सामान्य बात मानते चले आए, कुछ ऐसा जिसके वो 'लायक' हैं. उसी तरह विपरीत लिंग के प्रति झुकाव के बारे में लिखे जाने के बाद यह भी मान लिया गया कि कुछ सामान्य है तो वो हेट्रोसेक्शुअल हैं और जो यह नहीं है वो असामान्य.

    और फिर एक वक्त आया जब हेट्रोसेक्शुअल व्यक्ति ने अपना आधिपत्य जमाया. ब्लैंक के मुताबिक ऐसा तब हुआ जब अमेरिका में मध्यम वर्ग आगे बढ़ रहा था. 1900 में न्यूयॉर्क की जनसंख्या 30 लाख से ज़्यादा थी – यानि एक सदी पहले से 56 गुना ज्यादा. दरअसल हुआ यूं कि जब लोग शहरों की तरफ बढ़ें तो अपने साथ अपनी आदतें भी लेते आए, फिर वो वैश्यावृत्ति हो या किसी भी तरह की कामवासना. ब्लैंक ने लिखा है – गांव के मुकाबले शहर, वासना मिटाने के लिए एक अच्छा ठिकाना बनते जा रहे थे. बड़े शहर में अनैतिक कामवासना  में लिप्त होना ज़्यादा आसान होने लगा क्योंकि वहां आपको कम लोग जानते हैं.

    जब शहर में लोग कम थे, तब इन आदतों पर लगाम कसना आसान था लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ अवैध सेक्स गतिविधियों पर लगाम कसना मुश्किल हो रहा था. जब वासना शहर में पैर पसार रही थी, उसी दौरान गांव से बेहतर जीवन की तलाश में गरीब परिवार शहर आ रहे थे. ऐसे में बर्ज़ुआ परिवार से भरे इस समाज को ऐसा तरीका खोजना था जिससे वो ख़ुद को इस ‘बदचलनी’ से दूर रख सकें. समाज को व्यवस्थित करने के लिए एक ऐसे सुनियोजित ढांचे की ज़रूरत थी जो व्यापक स्तर पर अनुकूल हो और तो और बड़े स्तर पर जिसे लागू किया जा सके ( और हां जहां प्रजनन का ख़्याल रखा जा सके). पहले तो इस तरह के सिस्टम पर धर्म का हाथ था, अब इसे सामाजिक और कानूनी स्तर पर भी मान्यता मिल गई.

    तो आगे से किसी समलैंगिक की सेक्शुएलिटी पर सवाल उठाने से पहले, ख़ुद से पूछिएगा कि आपने स्ट्रेट या हेट्रोसेक्शुअल होना कब और कैसे चुना. अगर आपने नहीं चुना, तो उसने भी नहीं चुना. हमारे झुकाव जैसे हैं, वैसे हमेशा से ही हैं. अगर लड़का-लड़की के आकर्षण को स्पष्टीकरण नहीं चाहिए, तो लड़के-लड़के या लड़की-लड़की के प्यार को भी नहीं चाहिए. और अगर सफाई चाहिए तो फिर सबकी चाहिए.

    Tags: Article 377, Homosexual Relation

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