स्वाद का सफ़रनामा (Swad Ka Safarnama).
Swad Ka Safarnama: बड़ी इलायची (Badi Ilaychi) भी गजब मसाला है. दिखने में यह बड़ी अनगढ़ और अटपटी लगे, लेकिन ये गुणों की खान है. यह खाने में स्वाद भरती है तो शरीर को कई बीमारियों से भी बचाने में मदद करती है. पेट के लिए तो इसे ‘रामबाण’ माना जाता है. पेट का कोई भी विकार हो उसमें यह फायदा पहुंचाती है. इसमें पाए जाने वाले विशेष गुण दिल का भी खूब ध्यान रखते हैं. इसकी उत्पत्ति चीन-भारतीय क्षेत्र में मानी जाती है. विशेष बात यह है कि पश्चिमी दुनिया इस इलायची को लेकर उदासीन रही है.
बड़ी इलायची (Black Cardamom) जिसे काली इलाचयी भी कहा जाता है, हरी और छोटी इलायची से हर मामले में एकदम अलग है. काली इलायची और हरी इलाचयी की खुशबू में, रंग और बनावट में बहुत फर्क है. विशेष बात यह है कि ये दोनों अलग-अलग क्षेत्रों में उगती है और तीसरी बात यह है कि बड़ी इलायची जड़ में से निकलती है तो हरी इलायची आम फलों के समान फूलों से पैदा होती है. बड़ी इलायची का प्रयोग वर्षों से हो रहा है, भारत में इसे भोजन के मसाले में प्रयोग में लाया जाता है. आयुर्वेद ने भी इसे विशेष माना है तो चीन में पेट की बीमारियों को ठीक करने को लेकर सालों से इसका इस्तेमाल हो रहा है. प्राचीन समय में रोम व यूनान में इसके बीजो को इत्र बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता था. भारत में जो गरम मसाला बनाया जाता है, उसमें बड़ी इलायची एक मुख्य घटक है. इसके अलावा मुगलई डिश खासकर बिरयानी और कोरमा आदि में यही इलायची स्वाद भरती है.
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बड़ी इलायची की उत्पत्ति को लेकर कोई अगर-मगर नहीं है. माना जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व इसकी उत्पत्ति हिमालय से दक्षिणी चीन तक में शुरू हुई. यह हिमालय से दक्षिणी चीन तक पूरे पहाड़ी क्षेत्र और पूर्वी नेपाल, भारत और भूटान हैं में आगे-पीछे उगी. भारत में यह प्रमुख रूप से सिक्किम, दार्जिलिंग जैसे उत्तर पूर्वी राज्यों और उत्तराखंड के कुछ इलाकों में उगाई जाती है. अगर इस क्षेत्र से बाहर की बात करें तो काली इलायची कुछ अफ्रीकी क्षेत्रों में भी उगाई जाती है. विशेष बात यह है कि पश्चिमी देशों और बाजारों इसकी मौजूदगी छिटपुट ही दिखाई देती है.
काली इलायची का आकार हरी इलायची से करीब तीन से चार गुना होता है. लेकिन इन दोनों ही इलायची को पेट के लिए लाभकारी माना जाता है. हरी इलायची का मिष्ठान्न में भी खूब उपयोग होता है, जबकि बड़ी इलायची का प्रयोग मसाले के रूप में और बोल्ड व मुखर स्वाद के लिए किया जाता है. हरी इलायची का उत्पत्ति केंद्र दक्षिणी भारत है.
बड़ी इलायची के गुणों की बात करें तो शरीर के लिए इसे बेहद लाभकारी माना जाता है. मसाला प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले व भारत की एग्मार्क लेब के संस्थापक निदेशक जीवन सिंह प्रुथी ने अपनी पुस्तक ‘Spcices And Condiments’ में जानकारी दी है कि भारत में बड़ी इलायची की सबसे अधिक पैदावार सिक्किम में होती है. उनका कहना है कि इसके बीजों का स्वाद तीखा मगर अच्छा होता है. बड़ी इलायची दिल व जिगर को ताकत देती है. यह आंतों के लिए बेहद लाभकारी है. यह नींद लाती है और भूख भी बढ़ाती है. यह गुर्दे की पथरी में भी लाभकारी और दांतों व मसूड़ों को स्वस्थ रखती है.
चिकित्सा क्षेत्र में इसका उपयोग उत्तेजक दवाओं और सुगंध के लिए भी किया जाता है. इसका तेल सूजन कम करता है. दूसरी ओर भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार सच यह है कि बड़ी इलायची का औषधीय प्रयोग भी किया जाता है. आुयर्वेद के अनुसार बड़ी इलायची पित्त शांत करने वाली, नींद लाने वाली, भोजन में रूचि पैदा करने काम करती है. यह हृदय एवं लीवर को स्वस्थ बनाती है. बड़ी इलायची भूख बढ़ाती है, भोजन को पचाती है, मुँह के बदबू को दूर करती है. यह पेट की गैस को खत्म करती है, उल्टी बंद करती है, घावों को भरती है. इसके प्रयोग से पेशाब खुल कर आता है और बुखार उतर जाता है.
हरियाणा के सोनीपत स्थित भगत फूलसिंह विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग की प्रमुख डॉ. वीना शर्मा बड़ी इलायची को जादुई मानती हैं. उनका कहना है कि यह पेट के पूरे सिस्टम को लाजवाब बनाए रखती है. यह दिल का भी खूब ध्यान रखती है. यह अपने उत्तेजक गुणों की मदद से गैस्ट्रिक और आंतों की ग्रंथियों को आवश्यक रस स्रावित करने के लिए उत्तेजित करती है. इसकी यह भी विशेषता है कि यह पेट के एसिड की मात्रा को नियंत्रण में रखने के लिए रसस्राव की प्रक्रिया को नियमित करती है. इसी के चलते गैस्ट्रिक अल्सर या अन्य पाचन विकारों के विकास की आशंका काफी कम हो जाती है.
पुरानी कब्ज को ठीक करने और भूख में सुधार करने के लिए पदार्थ के पाचन गुण भी बहुत महत्वपूर्ण है. काली इलायची हृदय स्वास्थ्य को भी काफी हद तक प्रभावित करती है. इसमें रक्तचाप को भी नियंत्रण करने के गुण हैं. यह रक्त के थक्के बनने की संभावना को कम कर सकती है. इसमें अस्थमा, काली खांसी, फेफड़ों में जमाव, ब्रोंकाइटिस आदि कई श्वसन विकारों का इलाज किया जा सकता है.
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उन्होंने जानकारी दी कि काली इलायची के जरिए दांतों और मसूड़ों के संक्रमण का इलाज किया जा सकता है. इसकी तेज गंध मुंह से दुर्गंध या सांसों की दुर्गंध को ठीक करने में मदद कर सकती है. मुंह की स्वच्छता बनाए रखने के लिए काली इलायची से भरे गर्म पानी से गरारे कर सकते हैं. रिसर्च बताते हैं कि काली इलायची शरीर में विषहरण प्रक्रिया पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं, जिससे मांसपेशियां तंदरुस्त रहती हैं और बालों को भी पोषण मिलता है. यह ऐसा मसाला है कि जिसका अधिक सेवन नहीं किया जा सकता. मुंह में इसकी अधिक मात्रा पहुंचते ही जीभ इसे नकार देगी. लेकिन ज्यादा सेवन करने से यह शरीर में गर्मी पैदा कर सकती है. पेट भी में जलन हो सकती है.
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