(हमने एक नई सीरीज शुरू की है. इस सीरीज का मकसद बाल यौन अपराधी यानी पीडोफाइल के मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करना है. आज आप इस सीरीज की पांचवी किश्त पढ़ रहे हैं. लंदन स्थित प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक डॉ. द्रोण शर्मा इस सीरीज में पीडोफाइल के मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे. आठ भागों में चलने वाली यह सीरीज आप रोज दोपहर news18hindi पर पढ़ सकेंगे. अगर आपके मन में कोई सवाल है तो आप इस पते पर हमें भेज सकते हैं – ask.life@nw18.com.)
पीडोफीलिया एक विकृत मानसिक सोच है, जिसे सेक्सुअल परवर्जन डिसऑर्डर भी कहते हैं. यह एक सामान्य यौन गतिविधि नहीं है और 99.9 फीसदी समाजों में इसे गलत ही माना गया है और इसके लिए सजा का भी प्रावधान है. ज्यादातर विकसित समाजों में इसका ट्रीटमेंट या इलाज भी किया जाता है.
इस तरह के किसी भी विकृत किस्म के काम को अंजाम देने के पीछे तीन चीजें प्रमुखता से काम करती हैं- पहली है सोच, दूसरा इमोशन और तीसरा एक्शन. पीडोफाइल एक्ट के सदंर्भ में बच्चे के प्रति होने वाला सेक्सुअल अराउजल आपका इमोशन है, जो सेक्सुअल ख्याल मन में आ रहे हैं, वह सोच है और इन दोनों का सम्मिलित नतीजा है- एक्शन यानी कि इस तरह के काम को अंजाम देना.
अब अगर हम मानते हैं कि एक पीडोफिलिक एक्शन गलत है तो उसको ठीक करने के लिए हमें उसके पीछे के कारणों को ठीक करना होगा. इमोशन को तो बदला नहीं जा सकता, लेकिन जिस चीज को हम बदल सकते हैं या जिस पर काम कर सकते हैं, वो है सोच.
अब इस बात को समझें कि एक पीडोफाइल का मनोविज्ञान कैसे काम करता है. जैसेकि मनोविज्ञान में एक टर्म है कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन यानी अपने मन में किसी गलत को सही या किसी झूठ को सच मान लेना. अब आप किसी भी पीडोफाइल से बात करिए तो उसकी पहली प्रतिक्रिया होती है नकार की. वह यह मानने से ही इनकार कर देता है कि उसने ऐसा कुछ किया है. वह यही कहेगा कि मैंने तो यह किया ही नहीं, मुझे तो कुछ पता ही नहीं, मैं तो वहां था ही नहीं.
दूसरी चीज होती है विक्टिम ब्लेमिंग यानी शिकार हुए व्यक्ति को ही दोषी ठहराना. जैसेकि ये कहना कि उसने मुझे ऐसी नजर से देखा कि मुझे लगा कि वो मान गई है. अब अगर आप पूछें कि 12 साल की बच्ची कंसेंट कैसे दे सकती है तो जवाब हो सकता है कि उसने कपड़े ऐसे पहने थे कि बड़ी लग रही थी. मुझे बरगलाया गया है, मुझे फंसाया गया है. कुल मिलाकर विक्टिम ब्लेमिंग का यह सारा मनोविज्ञान अपने दिल और दिमाग को यह समझाने की कोशिश होती है कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मेरी हरकत के लिए मैं नहीं, बल्कि कोई और जिम्मेदार है.
तो एक पीडोफाइल के इलाज की शुरुआत उसके मनोविज्ञान को समझने से होती है. यह जानने से कि उसकी सोच में कौन से तार किस तरह विकृत हो गए हैं और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है. इलाज का एक दूसरा हिस्सा होता है, विक्टिम एंपैथी यानी जिसके साथ यह किया गया, उसे कैसा लगा होगा, कैसा महसूस हुआ होगा, उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी, यह संवेदना विकसित करने की कोशिश. इसके बाद ग्रुप एक्टिविटी आती है, जहां वह अपने ही जैसे अन्य लोगों के साथ समूह में बात करता है, जो इलाज की प्रक्रिया में हैं. यह काफी झकझोर देने वाला अनुभव होता है क्योंकि मन में एक डर भी भर जाता है कि आप कैसे समाज में रह रहे हैं. इस सबके जरिए उसकी सोच को बदलने की कोशिश की जाती है. सोच को बदलने, विक्टिम के प्रति एंपैथी विकसित करने के बाद तीसरी चीज होती है, पीडोफाइल को ऐसे समाज और ऐसे लोगों के बीच लेकर जाना, जहां वह सामान्य ढंग से सामान्य लोगों के बीच घुल-मिल सके और जहां उसकी नॉर्मल सेक्सुएलिटी अभिव्यक्त हो सके.
अगर हम ये कह रहे हैं कि हमें अच्छा इंसान बनाना है तो इंसान की फितरत में तो सेक्सुअल एक्टिविटी शामिल है. सिर्फ उसका झुकाव गलत दिशा में हो गया है, जिसे ठीक करने की जरूरत है.
इसके अलावा इलाज की प्रक्रिया में कुछ दवाइयों का भी इस्तेमाल होता है. कुछ हॉर्मोनल दवाइयां ऐसी भी होती हैं, जो सेक्सुअल डिजायर को खत्म कर देती हैं. अगर मरीज की सहमति हो तो उसे ऐसी दवाइयां भी दी जाती हैं. लेकिन यह इलाज बहुत कम लोगों के साथ ही मुमकिन हो पाता हो क्योंकि कम ही लोग इस बात के लिए तैयार होते हैं कि उनकी सेक्सुएलिटी पूरी तरह खत्म हो जाए.
इसके अलावा कुछ लोग कहते हैं कि पीडोफाइल के टेस्टिकल्स काट दिए जाने चाहिए, यही उनका इलाज है. लेकिन यह सच नहीं है. 40 के दशक में इस तरह के कुछ प्रयोग किए गए थे, लेकिन उन प्रयोगों में यह देखा गया कि टेस्टिकल काट देने से भी यौन हमलों में कोई कमी नहीं आई. जैसाकि निर्भया केस में हमने देखा कि रेप के लिए हमेशा पुरुष के लिंग की ही जरूरत नहीं होती, औजारों से भी हमले होते हैं. इसलिए टेस्टिकल्स काट देना एक पीडोफाइल के इलाज का कारगर तरीका बिलकुल नहीं है, बल्कि उसकी सोच को बदलने की जरूरत है.
पहली किश्त - पीडोफाइल होने का क्या अर्थ है?
दूसरी किश्त - एक पीडोफाइल या बाल यौन अपराधी का मनोविज्ञान क्या होता है?
तीसरी किश्त - बच्चों के साथ यौन अपराध की घटनाएं कैसे घटती हैं ?
चौथी किश्त - बच्चे के साथ स्नेह और परवरिश का रिश्ता कैसे बदल जाता है यौन अपराध में?
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Tags: Child sexual abuse
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