स्वाद का सफ़रनामा (Swad Ka Safarnama).
Swad Ka Safarnama: भारतीय भोजन खासकर दक्षिण भारत के व्यंजनों में करी पत्ता बेहद जरूरी माना जाता है. यह भोजन में स्वाद तो भरता है, साथ ही विशेष प्रकार की गंध भी पैदा करता है. करी पत्ते बहुत ही हल्के होते हैं, लेकिन गुणों में यह बहुत ही भारी माने जाते हैं. विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर है करी पत्ता. यह शुगर को कंट्रोल भी रखता है तो लिवर को भी दुरुस्त बनाए रखता है. शरीर को बीमारियों से दूर रखने के कई गुण हैं करी पत्ता में.
करी पत्ते (Curry Leaves) को मीठा नीम, कड़ी पत्ता भी कहा जाता है. करी पत्ता एक बारहमासी पौधा है. इसकी विशेषता यह है कि इसे पेड़ से ताजा तोड़कर ही प्रयोग में लाया जाता है. अगर इसे रख दिया गया या फ्रिज में लगा दिया गया तो यह खुशबू तो छोड़ ही देगा, साथ ही इसकी तासीर भी कम हो जाएगी. इसका पेड़ नींबू वंश का माना जाता है. हिमालय क्षेत्र को छोड़कर करी पत्ता पूरे देश में उगता है. पहले कभी इसे दक्षिणी भारत के व्यंजनों में अधिकतर प्रयोग में लाया जाता था, लेकिन अब इसका प्रयोग पूरे भारत में हो रहा है. दाल में तड़का भी इससे लगाया जा सकता है. हरी मिर्च, पुदीना, हरा धनिया के साथ इसकी स्वादिष्ट चटनी बनाई जा सकती है तो नॉनवेज में स्पेशल स्वाद भरने के लिए इसे साबुत ही डाल दिया जाता है. इसका कारण यह है कि इसकी तेज, मसालेदार और सुगंधित खुशबू खूब लुभाती है.
भारतीय स्पाइसेस बोर्ड का कहना है कि करी पत्ते का उपयोग दक्षिण भारत में विभिन्न करी में प्राकृतिक स्वाद देने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है. इसके वाष्पशील तेल का उपयोग साबुन के इत्र के लिए होता है.इसके अलावा पौधे की पत्तियों, छाल और जड़ का उपयोग स्वदेशी औषधि में टॉनिक, उत्तेजक और अन्य रूप में किया जाता है. इसका उपयोग आयुर्वेद में भी होने लगा है. वैसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पत्ता किसी बीमारी से बचाव या लक्षणों को कम करने में उपयोगी हो सकता है. इसे किसी गंभीर बीमारी का इलाज नही किया जा सकता.
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करी पत्ते की उत्पत्ति भारत के अलावा श्रीलंका में मानी जाती है. हजारों वर्षों से वहां भोजन को खुशबूदार और जायकेदार बनाने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है. पहली शताब्दी से लेकर बाद तक लिखे गए दक्षिण भारत के तमिल और कन्नड़ साहित्य में इसके उपयोग के साक्ष्य पाए जाते हैं. दक्षिण भारत की लोककथाओं में भी करी पत्ते का खूब जिक्र है. इन कथाओं में इसके पत्ते को बुढ़ापे को दूर रखने वाला बताया गया है. कुछ कथाओं में कहा गया है कि इसे नारियल के तेल में मिलाकर बालों पर लगाया जाए तो वह काले और मजबूत रहते हैं.
फूड हिस्टोरियन व खाद्य वैज्ञानिक केटी आचाय (6 अक्टूबर 1923 – 5 सितंबर 2002) ने अपनी पुस्तक ‘ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड’ में जानकारी दी है कि सदियों पहले करी पत्ते को दक्षिण भारत में मसाला के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. वह लिखते हैं कि प्रारंभिक तमिल साहित्य में मक्खन और सुगंधित करी पत्ते के साथ पकाए गए अनार के कोमल फल के व्यंजन परोसने का उल्लेख है. भारत में राज करने करने वाले अंग्रेज भी करी पत्ते के गुण व इसकी खुशबू से प्रभावित थे और वे रसोइयों से अपने भोजन में करी पत्ते का सेवन करने को कहा करते थे. चूंकि यह हिमालय क्षेत्र को छोड़कर कहीं भी उग जाता है, इसलिए पूरे भारत के भोजन में भी यदा-कदा इस प्रयोग जारी है. आजकल तो लोग घरों के गमलों में करी पत्ते को उगाकर भोजन केा लगातार स्वादिष्ट बनाए रखने के प्रयास में लगे रहते हैं.
आयुर्वेदाचार्य, फूड एक्सपर्ट व न्यूट्रिशियन कंसलटेंट ने करी पत्ते के इतने अधिक गुणों का वर्णन किया है, जो काफी हैरानी पैदा करते हैं. भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार करी पत्ते में कई सारे औषधीय गुण हैं.यह एक जड़ी-बूटी भी है, और सिर दर्द, मुंह के अनेक रोग में यह लाभकारी है. इसके अलावा मोतियाबिंद, पित्त विकार, कफ विकार आदि रोगों में भी इसके औषधीय गुण से लाभ मिलता है. यह बदहजमी, दस्त, उल्टी, पेट दर्द, डायबिटीज आदि में भी लाभकारी है. फूड एक्सपर्ट के अनुसार करी पत्ते में मुख्य पोषक तत्व कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा, फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, मैग्नीशियम, तांबा और खनिज भी पाए जाते हैं. इसके अलावा विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन ई भी मिलते हैं. इन्हीं पोषक तत्वों के चलते इसमें एंटिडायबिटीक (शुगररोधी), एंटिऑक्सीडेंट, एंटिमाइक्रोबियल (रोगाणुरोधी), एंटिइन्फ्लेमेटरी (सूजनरोधी), हेपेटोप्रोटेक्टिव (लिवर के लिए लाभकारी), एंटिहाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक (केलोस्ट्रॉलरोधी) आदि गुण भी पाए जाते हैं.
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करी पत्ते के गुणों की बात करें तो वह हैरानी पैदा करते हैं. लंदन स्थित किंग्स कॉलेज के फार्मेसी विभाग ने माना है कि मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए करी पत्ते का वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में उपयोग किया जा सकता है. देश की जानी-मानी डायटिशियन अनीता लांबा के अनुसार करी पत्ते में टैनिन और कार्बाजोले एल्कलॉइड जैसे तत्व मौजूद होते हैं. इन तत्वों में हेप्टोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं, जो लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाने के अलावा हेपेटाइटिस और सिरोसिस जैसी बीमारियों को कम करने में भी सहायक हो सकते हैं. करी पत्ते में एंटी एनीमिया गुण पाया जाता है. इसमें आयरन, जिंक और वैनेडियम जैसे खनिज होते हैं जो एनीमिया से निजात दिलाने में मदद करते हैं. इसमें पाए जाने वाले कार्बाजोले एल्कलॉइड्स में डायरिया से बचाव करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है. करी पत्ता कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का काम भी करता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी है.
करी पत्ते के तेल में पाए जाने वाले कुछ खास पोषक तत्वों में एंटीबायोटिक और एंटीफंगल गुण भी पाए जाते हैं. इसमें पाए जाने वाले यही गुण बैक्टीरिया और फंगल प्रभाव को कम करने में लाभकारी परिणाम दे सकते हैं. इसमें एंटी इंफ्लामेंटरी यानी सूजन को कम करने वाला गुण मौजूद होता है जो सूजन संबंधित परेशानियों से कुछ हद तक राहत प्रदान कर सकता है. स्कीन को स्वस्थ रखने के लिए भी करी पत्ते के फायदे देखे जा सकते हैं. दरअसल, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण कई सौंदर्य उत्पादों में इसका उपयोग किया जाता है. यह शुष्क त्वचा में जान भरने के साथ त्वचा की रंगत में सुधार कर सकता है. वैसे तो करी पत्ते का कोई साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन इसका अधिक इस्तेमाल करने पर एलर्जिक समस्या की आशंका बन सकती है. इसका अधिक सेवन ब्लड शुगर वालों में लो ब्लड शुगर की शिकायत की आशंका बढ़ा सकता है.
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