दुति चंद
माया एंजेलू एक ब्लैक अमेरिकन राइटर हैं. उन्होंने अपनी आत्मकथा, ‘आय नो व्हाय द केज्ड बर्ड सिंग्स’ में एक जगह लिखा है-
“काले और गोरे में बंटे समाज में वो काली थी
अमीर और गरीब में बंटे समाज में वो गरीब थी
औरत और मर्द में बंटे समाज में वो औरत थी
वो काली थी, वो गरीब थी, वो औरत थी.”
उस किताब के छपने के पचास साल बाद मैं आज उनकी पंक्तियां उधार लेकर उन्हें कुछ यूं कहना चाहती हूं-
“अमीर और गरीब में बंटे समाज में वो गरीब थी
लड़का और लड़की में बंटे समाज में वो लड़की थी
स्ट्रेट और लेस्बियन में बंटे समाज में वो लेस्बियन थी
वो गरीब थी, वो लड़की थी, वो लेस्बियन थी.”
हां, मैं बात कर रही हूं दुति चंद की.
- 100 मीटर की दौड़ 11.24 सेकेंड में पूरा करने का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने वाली दुति चंद.
- 2018 के एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीतने वाली दुति चंद.
- समर ओलिंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करने वाली तीसरी भारतीय महिला दुति चंद.
- पद्मश्री से सम्मानित दुति चंद.
- और पूरी दुनिया के सामने अपने लेस्बियन होने को स्वीकारने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी दुति चंद.
रविवार को दुति अपनी ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद में थीं. उस दिन पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने पहली बार खुलकर ये स्वीकार किया कि वो समलैंगिक हैं और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ पिछले पांच सालों से रिश्ते में हैं. वो बोलीं, “मेरे गांव की ही एक लड़की है, 19 साल की. पिछले पांच सालों से हमारे रिश्ते हैं. वो भुवनेश्वर के एक कॉलेज में बी.ए. सेकेंड ईयर की स्टूडेंट है. वह हमारी रिश्तेदारी में भी है. मैं जब भी घर जाती हूं, उसके साथ समय बिताती हूं. वह मेरे जीवन साथी की तरह है और भविष्य में मैं उसके साथ घर बसाना चाहती हूं.”
दुति के इस इंटरव्यू के बाद अचानक वो इंटरनेट पर वायरल हो गई हैं. इतनी वायरल तो तब भी नहीं हुई थीं, जब पिछले साल जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीते थे और उड़ीसा सरकार ने उन्हें 3 करोड़ रु. का ईनाम दिया था. लोग गूगल पर उन्हें सर्च कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर उनके इस बयान को लेकर चर्चा है. हिंदी में गूगल पर दुति चंद टाइप करिए तो ऐसी हेडलाइन मिल रही हैं, जैसे दुति ने अपना समलैंगिक होना नहीं, बल्कि कोई सीरियल किलर होना कुबूल कर लिया हो. उस लिखे गए में दुति के प्रति विनम्रता और आदर नहीं है.
लेकिन क्या इस समाज से हम विनम्रता और आदर की उम्मीद कर सकते हैं. और वो भी एक ऐसी महिला के लिए, जो पूरी दुनिया के सामने कह रही हो कि वो लेस्बियन है.
3 फरवरी, 1996 को उड़ीसा के बेहद गरीब जुलाहा परिवार में दुति का जन्म हुआ. सरकारी कागजों पर परिवार का नाम गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों की सूची में लिखा था. पूरा घर पेट पालने के लिए कपड़े बुनता था. दुति भी बुनती थीं. बड़ी बहन सरस्वती चंद जब स्टेट लेवल पर दौड़ने लगीं तो दुति को प्रेरणा भी मिली और जिंदगी का रास्ता भी. उसके बाद उनके जीते पदकों और उपलब्धियों का ब्यौरा तो इंटरनेट पर मौजूद है, संघर्ष की कहानी नहीं है.
आज के पहले वो एक बार और विवादों में आई थीं, जब उन पर पुरुष होने का आरोप लगा था. इंटरनेशनल एथलेटिक फेडरेशन ने 2014 में ग्लासगो में हो रहे कॉमनवेल्थ खेलों में उन पर प्रतिबंध लगा दिया था. वजह थी, उनके शरीर में एक सामान्य महिला के मुकाबले टेस्टस्टेरोन की मात्रा अधिक पाया जाना. यहां गौर करने वाली बात ये थी कि ये मामला किसी भी तरह की डोपिंग का नहीं था. दुति महिला थीं और महिला वर्ग से ही खेल रही थीं. बस उनके शरीर में टेस्टस्टेरोन नामक हॉर्मोन किसी अन्य महिला के मुकाबले ज्यादा था. और सिर्फ इस वजह से फेडरेशन से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.
उस समय भी छपी खबरों की हेडलाइन काफी गैरजिम्मेदाराना थी, जो सीधे दुति को पुरुष साबित करने पर तुली थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई मर्द औरत का भेस धरकर औरतों के खेल में घुस आया था. ये सारे आरोप इतने अपमानजनक थे कि एक लड़की की देह में जन्मी और पिछले 18 सालों से एक लड़की की पहचान के साथ जी रही दुति को सबके सामने कहना पड़ा, मेरी जांच कर लो कि मैं लड़की हूं या नहीं. आईएएफ ने दोबारा उनका लिंग परीक्षण करवाया. ये मामला खेल से जुड़ी सबसे बड़ी अदालत कोर्ट ऑफ आर्बिटेशन फॉर स्पोर्ट्स में पहुंचा. कोर्ट ने जांच के बाद उन्हें सारे आरोपों से मुक्त कर दिया और उन पर लगा दो साल का प्रतिबंध भी हटा दिया गया.
अगले एशियाई खेलों में दुति भारत के लिए दो रजत पदक जीतकर आईं. भारत के इतिहास में ये पहली बार था, जब किसी महिला ने इस खेल में दो रजत पदक जीता था.
फिलहाल दुति अगले ओलिंपिक की तैयारी में व्यस्त हैं.
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