Shayari: 'ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती', पेश हैं वफ़ा पर अशआर

Shayari: शायरों का दिलकश कलाम....Image Credit/Pixabay
Shayari: शेरो-सुख़न (Urdu Shayari) की दुनिया मुहब्बत से लबरेज़ जज़्बातों की दुनिया है. इसमें जिंदगी के सभी रंग मौजूद हैं. फिर चाहें वह इश्क़ (Love) वफ़ा का रंग हो या किसी और जज़्बात (Emotion) पर क़लम उठाई गई हो...
- News18Hindi
- Last Updated: November 2, 2020, 6:41 AM IST
Shayari: उर्दू शायरी (Urdu Shayari) इश्क़ से लबरेज़ है. इसमें मुहब्बत की टीस महसूस है, तो ख़ुशी के तराने भी मिलते हैं. शायरों ने हर विषय पर क़लम उठाई है. फिर चाहें मुहब्बत (Love) की बात हो, वफ़ा का जिक्र हो या फिर इससे जुदा कोई जज़्बात (Emotion) ही क्यों न हो. शायरी में बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ इश्क़ और आशिक़ी की बात की गई है. इसमें दर्द, ख़ुशी, मायूसी, इकरार और इंकार और वफ़ा से लबरेज़ हर जज़्बात को ख़ूबसूरती से अल्फ़ाज़ में पिरोया गया है. आज हम शायरों के ऐसे ही बेशक़ीमती कलाम से चंद अशआर आपके लिए 'रेख़्ता' के साभार से लेकर हाजिर हुए हैं. शायरों के ऐसे कलाम जिसमें बात अगर इश्क़ की हो, तो चर्चा वफ़ा का भी हो. आज की इस कड़ी में पेश है 'वफ़ा' पर शायरों का नज़रिया और उनके कलाम के चंद रंग. आप भी इसका लुत्फ़ उठाइए.
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवीअंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ मांगी जीने की सज़ा पाई
नुशूर वाहिदी
ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ये भी पढ़ें - Shayari: 'कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा', पढ़ें सफ़र पर शायरी
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
हफ़ीज़ बनारसी
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया
हफ़ीज़ जालंधरी
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
मजरूह सुल्तानपुरी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
जफ़ा से उन्हों ने दिया दिल पे दाग़
मुकम्मल वफ़ा की सनद हो गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
ये भी पढ़ें - Shayari: दिल से निकली आवाज़ है शायरी, आज पढ़ें मुहब्बत भरा कलाम
तेरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
बहज़ाद लखनवी
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवीअंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ मांगी जीने की सज़ा पाई
नुशूर वाहिदी
ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
अहमद फ़राज़
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दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
हफ़ीज़ बनारसी
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया
हफ़ीज़ जालंधरी
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
मजरूह सुल्तानपुरी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
जफ़ा से उन्हों ने दिया दिल पे दाग़
मुकम्मल वफ़ा की सनद हो गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
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तेरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
बहज़ाद लखनवी